इस फिल्म के एक सीन में पीड़ित लड़की आखिर में अपने पिता से पूछती है, "आपने हमें कभी अपने कल्चर के बारे में क्यों नहीं बताया?"
शायद वो ये भी पूछी होगी, "आपने हमें क्यों नहीं बताया कि अपनी "हिंदू आइडेंटिटी" को खोकर मैं क्या खो दूंगी?
प्रेमचंद की एक (1/10)
बड़ी मशहूर कहानी है 'जिहाद'। उसमें एक हिन्दू लड़की है 'श्यामा'। जिसे शायद उसे उसके मां बाप ने इन प्रश्नों का उत्तर दिया होगा, उसे अपने "हिंदू कल्चर" के बारे में बताया होगा, उसे बताया होगा कि हिंदू का होना और बचना क्यूं जरूरी है तभी उसका उल्लेख आज करने की जरूरत आन पड़ी (2/10)
है।
मैं ऐसा किसलिए कह रहा हूं इसको समझने के लिए आपको थोड़ा इस कहानी में उतरना होगा और मुझे उन पंक्तियों का अक्षरशः उल्लेख करना होगा जो उस युवती श्यामा ने हिन्दू धर्म छोड़ कर विधर्मी बने युवक धर्मदास से कही थी। ये वो धर्मदास था जो धनी भी था और सुदर्शन भी और जिस पर श्यामा (3/10)
कभी जान छिड़कती थी।
हिंदू धर्म छोड़ने वाले धर्मदास से श्यामा पूछती है:- इस्लाम कबूलने के बदले में हासिल तो तुमने जो भी किया सो किया पर कीमत क्या दी?
हतप्रभ धर्मदास पूछता है, मैंने तो कोई कीमत नहीं दी। मेरे पास था ही क्या?
जबाब में श्यामा उससे जो कहती है, मुझे लगता है (4/10)
"हिंदू कल्चर" को उससे बेहतर शायद ही कोई डिफाइन करे। श्यामा उससे कहती है:-
"तुम्हारे पास वह ख़ज़ाना था, जो तुम्हें आज से कई लाख वर्ष पहले हुए ऋषियों ने प्रदान किया था। जिसकी रक्षा रघु और मनु, राम और कृष्ण, बुद्ध और शंकर, शिवाजी और गोविंदसिंह ने की थी। उस अमूल्य भंडार को (5/10)
आज तुमने तुच्छ प्राणों के लिए खो दिया।"
ऐसे उच्च संस्कारों से बड़ी हुई श्यामा धर्म छोड़ने वाले उस सुदर्शन लेकिन धर्महीन युवक धर्मदास को छोड़कर एक सामान्य सा दिखने वाले युवक खजानचंद की "विधवा ब्याहता" बनती है जो अब जीवित भी नहीं है क्योंकि उसने अपने महान हिंदू धर्म को (6/10)
त्यागने की जगह मृत्यु का वरण किया था।
इसलिए अपनी श्यामाओं के प्रश्न कि "अपनी 'हिंदुत्व आइडेंटिटी' को खोकर मैं क्या खो दूंगी?' पर उससे कहिए कि तुम खो दोगी अपना स्वतंत्र अस्तित्व, तुम खो दोगी अपना सम्मान, तुम खो दोगी अपना चैतन्य, तुम खो दोगी बौद्धिक स्वातंत्र्य और जब (7/10)
तुम्हारी तरह बाकी सब भी इस आइडेंटिटी को खोने लगे तो दुनिया से आदर्श और जीवन मूल्य खत्म हो जाएंगे, हर जड़ और चेतन में ब्रह्म देखने का संस्कार खत्म हो जायेगा, प्रकृति में मां नहीं दिखेगी, विश्व में बंधुत्व नहीं दिखेगा, विश्व को एक परिवार और 'सबको जीने का अधिकार' की बात (8/10)
करने वाला दर्शन जीवित नहीं रहेगा, टॉलरेंस नहीं एक्सेप्टेंस का सुंदर चिंतन खत्म हो जायेगा, उपासना के वैविध्य की मिली स्वीकृति खत्म हो जायेगी, नास्तिकों के लिए ये दुनिया कत्लगाह बन जायेगी, चिंतन की स्वतंत्रता छीन जायेगी, दुनिया की तमाम आतंकित और पीड़ित जातियां अनाथ हो (9/10)
जाएंगी जो हिंदुत्व के उदार और विशाल हृदय में स्थान पाकर भारत भूमि पर उन्नति करती हैं।
ये सवाल कल को आपसे न पूछा जाए इसकी कोई तैयारी है? अगर नहीं है तो इसकी तैयारी कर लीजिए।
उन्नीसवीं शताब्दी के गहरे अंधकार में अगर कोई मात्र भारत ही नहीं बल्कि पश्चिम को भी भारतीय दर्शन और परम्पराओं की ज्योति से प्रकाशमान करने का दम रखते थे, तो वह हैं स्वामी विवेकानंद। परिस्थितयों ने भले उनको बनाया हो लेकिन वो कभी उनके दास नहीं बने। वह एक सन्देश लेकर आए (1/13)
थे, जो पृथ्वी पर उपस्तिथ हर मनुष्य के लिए विद्यमान है। वह था, “अभय बनो।”
बीसवीं शताब्दी में स्वाधीनता का आंदोलन जब चरम पर था, उस समय विवेकानंद ज्वाला- समान एक नाम थे। ऐसा नाम जो भारत माता को एकमात्र अपना आराध्य मानकर जीवन उनके चरणों में समर्पित करने की प्रेरणा देते (2/13)
थे। भगिनी निवेदिता अपनी पुस्तक “दी मास्टर एज आई सॉ हिम” में लिखती हैं कि उनके लिए भारत के लिए चिंतन करना श्वास लेने जैसा था।
इस लेख में स्वामी विवेकानंद और बाल गंगाधर तिलक के राष्ट्रीय चिंतन पर प्रकाश डालने का मैं प्रयास करूँगा।
जनता कहती है कि हिंदू प्रधानमंत्री वही गलती कर रहे हैं जो पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने की थी।
अगर आप अंबेडकर की किताब पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन पढ़ेंगे तो आपको उसमें एक बहुत कटु सत्य पढ़ने को मिलेगा। उस किताब में लिखा है कि पंजाब में बहुत लंबे समय तक मुस्लिम शासन (1/14)
रहा जिसकी वजह से बहुत तेजी से पंजाब का इस्लामीकरण हुआ। बाद में सिखों ने अपनी बहादुरी से पंजाब में मुस्लिम शासन का खात्मा भी कर दिया लेकिन उन्होंने मुस्लिम संस्कृति का विनाश नहीं किया इसी वजह से आखिरकार पंजाब हिंदुओं के हाथ से निकलना तय हो गया!
जैसी हालत पंजाब के समाज की (2/14)
महाराजा रणजीत सिंह के समय थी। ठीक वैसे ही हालत आज के हिंदुस्तान की है। और अगर हिंदू प्रधानमंत्रियों ने वही गलती करी जो महाराजा रणजीत सिंह ने की थी तो ये तय मानकर चलिए कि इस बचे हुए हिंदुस्तान की हालत वैसी ही होगी जैसी पंजाब की आज की तारीख में है। (यहां मैंने पाकिस्तानी (3/14)
एंटोनिया मायनो ने जब मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में चुना तो सिर्फ उसने यह नहीं देखा कि यह अन्य गुलामों में बेहतर गुलाम हैं, क्योकि कांग्रेस में गांधी परिवार की गुलामी करने में बहुत से कांग्रेसी नेता मनमोहन से भी कई गुणा ज्यादा हैं, एंटोनिया मायनो ने देखा (1/17)
कि यह गुलाम तो हैं ही लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत यह हैं कि यह अपने मासूम चेहरे के पीछे बहुत बड़ा धूर्त और मक्कार इंसान हैं (वैसे मैं व्यक्तिगत रूप से एंटोनिया मायनो के इस पारखी नजर की दाद देता हूँ), जिसकी मासूमियत भरे चेहरे के आड़ में भ्रष्टाचार का कारनामा करने में बहुत (2/17)
सहूलियत होगी क्योंकि इसके मासूम चेहरे को देखकर लोगो को इसपे संदेह भी नहीं होगा। बाथरूम में रेन कोट पहन कर नहाने वाला व्यक्ति इसे मोदी ने भरी संसद में ऐसे ही नहीं कहा था!!
आगामी कर्नाटक चुनाव की तैयारियों के बीच गांधी परिवार के प्रति अपनी गुलामी को प्रदर्शित करते हुए (3/17)
देश के लिए कानून बनाने का शौक रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के मीलॉर्ड, बंगाल, तमिलनाडु और केरल सरकारों को बर्खास्त करने की हिम्मत करें या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ढोल बजाना बंद करें।
यह बात सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश कई बार कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट का बनाया कानून (1/9)
देश का कानून होता है जबकि अदालत के पास कानून बनाने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है क्योंकि यह संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है।
सुप्रीम कोर्ट किसी सरकार को केंद्र द्वारा बर्खास्त किए जाने पर उसे पुनर्स्थापित कर सकता है। पिछले 9 साल से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम (2/9)
पर देश में कई बार अराजकता फैलाने के भी अनुमति दी गई जैसे किसान आंदोलन और CAA के खिलाफ शाहीन बाग़ में।
लेकिन अब समय आ गया है बंगाल, तमिलनाडु और केरल की सरकारों को करोड़ो लोगों की द केरला स्टोरी फिल्म देखने के मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात करते हुए फिल्म को बैन करने के अपराध (3/9)
केरला स्टोरी वाली घटना यानी लव जिहाद में या दूसरे तरीकों से किशोरावस्था में हिंदू लड़के और लड़कियों का ब्रेनवाश करके, उन्हें अपने इस्लाम के जाल में फंसा कर उन्हें या तो बच्चा पैदा करने वाली फैक्ट्री बना देना या फिर आतंकी बना देना, यह सब कुछ सिर्फ केरल में नहीं हुआ (1/10)
इन लोगों ने यह प्रयोग श्रीलंका में भी किया था।
आप लोगों को 2018 में कोलंबो और उसके आसपास हुए सीरियल ब्लास्ट वाली घटना याद होगी जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे।
इस घटना को लव जिहाद में फंसकर हिंदू से मुसलमान बनी एक लड़की ने अंजाम दिया था।
इस घटना के बाद श्रीलंका सरकार (2/10)
ने जब जांच के आदेश दिए, तब श्रीलंका में ऐसी कुल 100 से ज्यादा लड़कियों का पता चला जो या तो बौद्ध थी या सिंघली थी या तमिल हिंदू थी, जिन्हें एक संगठित गिरोह ने लव जिहाद में फंसा कर मुसलमान बना दिया था।
और श्रीलंका के मुस्लिम मौलवी उसकी ट्रेनिंग लेने केरल के उसी बदनाम (3/10)
पीके फिल्म इस अंतिम दृश्य के साथ समाप्त हो जाती कि "मुसलमान कभी धोखा नहीं देता" सरफराज (अब्दुल) धोखेबाज नहीं हैं।
'द केरला स्टोरी' का निष्कर्ष आपको पता है? "अब्दुल धोखा देने के लिए ही प्यार करता है।" यह (1/8)
दोनों फिल्में एक दूसरे से एकदम विपरीत हैं।
जैसे जादूगर अपने खेल में पहले तो कबूतर, टॉर्च, कोल्ड ड्रिंक एक के बाद एक वस्तु निकालता जाता है, आपको लगता है यह जादू दिखा रहा है, लेकिन वास्तव में उसका मुख्य उद्देश्य अंतिम में दृष्टिगोचर होता है जब वह अंत में आपके सामने पैसे के (2/8)
लिए झोली फैला देता है।
जादूगर का उद्देश्य आपको जादू दिखाना नहीं अपितु जादू के नाम पर अपने भोजन पानी की व्यवस्था करना हैं।
ऐसे ही पीके फिल्म का जादूगर आमिर खान हिन्दुओं की कुछ रूढ़िवादी मान्यताओं, कुरीतियों, अंधविश्वास को स्पष्ट करने का जादू दिखाता है और उससे आप फूलकर (3/8)