यह स्कूल-कॉलेज की अल्लहड़ आयु में चलायमान मस्तिष्कों में तथाकथित 'कूल एथीस्ट्सटों' द्वारा ठूँसा गया कुतर्क है। 'तुम्हारे राम ने क्या किया? तुम्हारा कृष्ण गोपियों से रासलीला करता है।'
कुतर्कों से कभी तर्क नहीं करना चाहिए, इनपर बिना डिफेंसिव हुए इतना वैचारिक आक्रमण हो कि..
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..ये स्वयं लज्जित होकर भाग जाएँ और पुनः किसी को इस तरह की बकवास में फँसाने से पूर्व दस बार सोचें।
यह एक बड़ा Grey Area है जिसे ये वामपंथी/इस्लामी अपने फायदे के अनुसार प्रयोग करते हैं। वो अलग बात है कि किसी इस्लामिक देश में Communism/Atheism की कोई जगह नहीं और किसी भी..
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..वामपंथी देश में इस्लाम का क्या हाल होता है यह दुनिया जानती है।
हर किसी ने अपने शुरुआती कॉलेज के दिनों या 17-18 की आयु में वामपंथ से परिचय के समय इस तरह की बातें खूब सुनीं होंगी कि भगवान की अवधारणा क्यों है? भगवान है तो दुनिया में इतनी समस्याएँ..
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..क्यों हैं? अफ्रीका के फैलाने देश में इतने बच्चे भूखे क्यों? वह व्यक्ति अंधा क्यों? यह लूला-लंगड़ा क्यों?
सीधी सी बात है कि उस आयु में अधिकतर लोग संवेदनशील होते हैं। आप अपने करियर, रिलेशनशिप्स, नए दोस्तों इत्यादि को लेकर Vulnerable होते हैं। ये बातें आपके मस्तिष्क पर..
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..गहरी व उग्र छाप छोड़ती हैं। आपका दृष्टिकोण संकीर्ण हो जाता है और ऐसे में जब आपके प्रश्नों के लिए आपको उचित उत्तर या तर्क नहीं मिलते तो आप उन प्रश्न उठाने वालों को ही सही समझने लगते हैं, जिनके पास स्वयं इनके कोई उत्तर नहीं हैं। वे भी केवल इन सुने सुनाए प्रश्नों-कुतर्कों..
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..को तोते ही भाँति आगे बड़बड़ा रहे होते हैं।
रोचक बात यह है कि इस तरह के प्रश्न आपको ऐसे कॉलेज/विश्वविद्यालयों में ही सुनने को मिलेंगे जहाँ हिन्दू छात्रों-छात्राओं की संख्या अधिक है।जामिया-एएमयू जैसे कथित विश्वविद्यालयों में ये 'कूल एथीस्ट्स' ना के बराबर पाए जाते हैं।कारण..
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..आगे पढ़कर आप स्वयं जान जाएँगे।
अब आते हैं इस 'भगवान ने तुम्हारे लिए क्या किया?' वाली बकवास पर।
प्रकृति Action और Reaction के सिद्धांत पर चलती है। हाँ, यह सत्य है कि जो कुछ होता है वह ईश्वर(हमसे बड़ी कोई शक्ति) करता है, परन्तु यह सत्य एक Believer(आस्तिक)का सत्य है। और एक..
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..आस्तिक अपना सुख-दुःख-अच्छा-बुरा सब ईश्वर को समर्पित कर चुका होता है। वह ईश्वर से प्रश्न नहीं करता, वह केवल उससे प्रेम और उसमें विश्वास करता है। यही एक कारण है कि असली भक्त/आस्तिक व्यक्ति आपको सदा सकारात्मकता से भरा मिलेगा। उसके पास ईश्वर को लेकर फ़ालतू शिकायतें नहीं..
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..होतीं।
दुःख में सब सुमिरन करे, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय॥
कबीर के इस दोहे की दूसरी पंक्ति आस्तिक व्यक्ति का चरित्र बताती है। आस्तिक व्यक्ति के लिए दुःख जैसा कुछ होता ही नहीं है, वह कठिनाई में भी स्वयं को यह कहता है कि उसका ईश्वर उसकी..
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..परीक्षा ले रहा है।
आप ईश्वर में नहीं मानते, आप साइंस में मानते हैं। तब आपको हर स्तर पर साइंटिफिक अप्रोच ही लेनी होगा। यह तर्क नहीं चलेगा कि ईश्वर है तो दुनिया में दुःख क्यों है? ईश्वर ने समस्या क्यों दी? साइंस के अनुसार तो सुख-दुःख जैसा कुछ होता ही नहीं, सब होर्मोन्स..
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..का खेल है। तो आप उसे उसी तरह देखिए, फिर हर बात में भगवान तो बीच में मत लाइए। हो सकता है यह पढ़कर आपको लगे कि मैं आपको नास्तिक बनने की ओर प्रेरित कर रहा हूँ, अगर ऐसा है तो इस थ्रेड को अंत तक पढ़ें।
अब आते हैं #TheKeralaStory और वामपंथियों/इस्लामियों द्वारा प्रयोग में..
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..लाए जाने वाले इस एजेंडा पर। 'मेरा भगवान-तुम्हारा भगवान' 'कौन भगवान'। इस सबके बीच एक बहुत पतली सी लाइन है जो समझनी होगी। आपको सर्वप्रथम यह ध्यान देना होगा कि जो आपको यह नास्तिकता और 'तुम्हारा भगवान' का पाठ पढ़ा रहा/रही है, उसकी स्वयं क्या विचारधारा है? उसकी विचारधारा..
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..कहीं राजनीति या किसी पूर्वाग्रह से प्रेरित तो नहीं? वह व्यक्ति आपके समक्ष कितना सत्य रख रहा/रही है? #TheKeralaStory या अधिकांश ऐसे मामले जहाँ इस्लामी हिन्दुओं से यह प्रश्न करते हैं कि भगवान ने क्या किया?या कहते हैं कि अ#लाह ही धरती चलाता है।उनसे यह प्रश्न होना चाहिए कि..
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..अ#लाह यमन के लोगों को क्यों नहीं बचा पाया? अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं के लिए अ#लाह क्यों कुछ नहीं करता? सीरिया के लोगों पर अ#लाह का हाथ क्यों नहीं है?
जैसा कि मैंने प्रारम्भ में लिखा कि वामपंथियों के कुतर्कों से तर्क नहीं करना चाहिए, इनपर केवल बिना डिफेंसिव हुए सवालों से..
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..ही आक्रमण करो।
आप स्वयं से यह भी प्रश्न करिए कि आपको नास्तिक बनाकर किसी को क्या मिलगा? इससे लाभ किसका होगा? आपको नास्तिकता का पाठ पढ़ाने वाले की मंशा क्या है? वह आपके मस्तिष्क, आपकी सोच को विस्तृत करना चाहता/चाहती है या किसी अन्य संकीर्ण सोच वाली विचारधारा में धकेलना?
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इस संदर्भ में हाल ही में वायरल हो रहा पीयूष मिश्रा जी के एक साक्षात्कार का अंश समझने योग्य व प्रेरणादायक है।इसमें वे बता रहे हैं कि कैसे वामपंथ ने उनकी जवानी बर्बाद की। ईश्वर की कृपा से वे सही समय पर बाहर आ गए। यह अकेले पीयूष जी का नहीं,विश्वभर के करोड़ों लोगों का अनुभव है।
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अंत में हिन्दुओं से मैं केवल इतनी कहना चाहूँगा कि आप अपने धर्म को जानें, पढ़ें, प्रश्न करें, और पढ़ें और प्रश्न करें। प्राचीनतम सभ्यता होने के कारण आपके पास इतना सब कुछ पढ़ने और जानने को है कि अगर आप उसका एक प्रतिशत भी जान गए तो 1400-2000 वर्ष पूर्व जन्मी विचारधाराएँ आपसे..
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..कभी नहीं जीत पाएँगी। बेशक कुछ कमियाँ होंगी पर सनातन की सबसे सुन्दर बात यह है कि अगर आपके पास उचित व अपेक्षित ज्ञान हो तो सनातन आपको आस्तिक, नास्तिक, प्रश्न करने वाला, उत्तर देने वाला सब बनने की स्वतंत्रता देता है।
आपको किसी अन्य कथित रिलीजन या विचारधारा में जाने की..
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..आवश्यकता नहीं क्योंकि आपने जहाँ जन्म लिया है वहाँ न तो नास्तिक होने पर आपका सिर उतारने की सज़ा है न ही किसी एक व्यक्ति ने आकर यह कह दिया है कि उसने अपने कुछ दशकों के जीवन में जो कहा, जो किया वही परम सत्य है, वही सही और उसी के बनाए नियमों के अनुसार दुनिया आगे चलनी चाहिए।
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अच्छी बात है कि सिंगल स्क्रीन्स मिली हैं। अभी BMS देखा, यह साफ़ है कि लोग टिकिट खरीद रहे हैं, देखने जा रहे हैं। यह फिल्म बड़े मल्टीप्लेक्स के साथ-साथ सिंगल स्क्रीन्स में चलनी अधिक महत्वपूर्ण है। 100-120 रुपए की टिकिट लेकर फिल्म देखने वाले आम लोगों तक कहानी.. #TheKerelaStory 1/9
..पहुँचनी चाहिए। निर्माता विपुल डिस्ट्रीब्यूशन के खेल को अच्छे से समझते हैं ऐसा मेरा अनुमान है। मैं काफी समय से बोलता/लिखता आ रहा हूँ कि सारा खेल डिस्ट्रीब्यूशन का ही है।
RW के पास पटकथाओं की कमी कभी नहीं होगी, जिन क्षेत्रों में पैर जमाने की आवश्यकता है वे हैं प्रोडक्शन..
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..हाउस और डिस्ट्रीब्यूशन। कश्मीर फाइल्स ने सिद्ध कर दिया कि हिन्दू अपनी पर आ जाए तो निर्माताओं को मालामाल कर सकता है।यह बहुत सकारात्मक चीज़ है।इससे निर्माताओं का साहस और विश्वास दोनों बढ़े हैं।
निर्माता भावुक नहीं हो सकता,ना ही होना चाहिए। उसका उद्देश्य पैसा कमाना है, अब यह..
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कल जब ये समाचार देखा,तभी सोचा था इसपर विस्तार से लिखना पड़ेगा। सबसे महत्वपूर्ण चीज़ यहाँ आपने लिख ही दी कि ये बकैती बच्चे की नहीं बल्कि माँ-बाप की है। अब प्रश्न यह है कि ये हो क्यों रहा है? केवल सोशल मीडिया पर थोड़ी सी सस्ती लोकप्रियता के लिए?
नहीं, समस्या इससे कहीं..
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..गंभीर है।
समझ नहीं आ रहा कहाँ से प्रारम्भ करूँ? इसीलिए वहीं से करता हूँ जिस क्षेत्र में मैं अपनी मज़बूत पकड़ मानता हूँ: सिनेमा(पॉप कल्चर)। मेरे विचार में सिनेमा ने इस समस्या की उत्पत्ति एवं इसे बढ़ावा देने में सबसे बड़ा योगदान दिया है। कई लोगों का मानना है कि..
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..ये समस्या केवल सोशल मीडिया/सस्ता इंटरनेट/टिक-टोक/रील के कारण आई है। मैं टेक्नोलॉजी का इस समस्या में केवल 10-20% योगदान मानता हूँ। इस चीज़ में सोशल मीडिया या इन एप्स ने केवल एक catalyst(स्रोत) का कार्य किया है। इसने लोगों को मूर्ख बनाया नहीं, अपितु उनके अंदर की दबी..
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NO
You've surrounded yourself with peopleजिनकी औकात तुमसे नीचे थी।तुम्हारा पति इसलिए नहीं दूर हटता क्योंकि वह फेमिनिस्ट या कोई अन्य'ist'है,वो कार्पेट इसलिए छोड़ता है क्योंकि उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है कि तुम उसकी पत्नी हो।देखा जाए तो वह अधिक insecure है।It's not about gender.. 1/6
..it's about gap in your professional level/औकात। तुम ऐसा करनेवाली एकमात्र मनुष्य नहीं हो जिसने अपने स्तर(कौशल के मामले में)से नीचे व्यक्ति को जीवनसाथी चुना। यह गलत भी नहीं है, समस्या यह है कि आप तुम इस चीज़ को भुना रही हो।
प्रेम स्तर देखकर नहीं किया जाता पर जब आप लोगों को..
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..मूर्ख समझकर यह बताने का प्रयास करते हैं कि आपका पति आपको सामान्य से अधिक महत्व आपके स्तर के कारण नहीं बल्कि इसलिए दे रहा है क्योंकि वह freedom-feminism आदि का समर्थक है तो साफ़ होता है कि आपने धूर्तता की है प्रेम नहीं।एक पटल पर बैठकर यह कहने से ऐसा प्रतीत होता है कि तुमने..
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You either die a hero or you live long enough to see yourself become the villain.
हर मैच समान पिच पर न खेला जाता है और न खेला जाना चाहिए। पठान के साथ यही भूल की गई। यहाँ भी बहुत से कुतर्क प्रस्तुत किए गए हैं, जिनपर कुछ लिखना चाहता हूँ। संभव है बहुत से लोग सहमत न हों
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आगे पढ़ने से पहले दो बातें जान लें कि मैंने भोला(अभी तक) नहीं देखी है,बहुत जल्द देखने वाला हूँ। दूसरी कि मुझे मांस का स्वाद तक नहीं पता है परन्तु मैं मांस ग्रहण करने का पूर्ण समर्थक हूँ।
1>नवरात्रि के समय मांस भक्षण न करना हिन्दुओं का अपना चुनाव होता है, मेरे ज्ञान अनुसार..
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ऐसा कहीं लिखा नहीं है।
वैसे तो हम जिस सभ्यता से आते हैं वहाँ क्या खाना ‘चाहिए’ क्या ‘नहीं’ इस पर कोई कठोर नियमावली नहीं है। ये पूर्णतः भूगोल और आपके पंथ पर निर्भर करता है। (गौमांस एकदम अलग विषय है, हो सका तो इसपर अलग से थ्रेड या वीडियो अवश्य बनाऊँगा।)
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सलमान रुश्दी की जगह सलमान खान का चित्र, संजय गाँधी की जगह राजीव गाँधी का। ऐसे उदाहरण लगभग हर दिन बड़ी-बड़ी मीडिया संस्थाओं में दिख जाते हैं। इनमें 10% ही confusion या जल्दबाज़ी में हुई गलतियाँ होती हैं, अधिकतर ये जानकारी के अभाव इत्यादि से हुई गलतियाँ हैं। कारण..⬇️
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मैं इसे जानकारी का अभाव इसलिए भी कह रहा हूँ क्योंकि ऐसे कई कथित मीडिया स्कूल, जर्नलिज्म स्कूलों की डिग्री वाले लोगों के साथ मेरा निजी अनुभव रहा है, जिन्हें अपने ही क्षेत्र की मूलभूत जानकारियाँ तक नहीं हैं और हिंदी/अंग्रेजी पत्रकारिता में डिग्रियाँ लिए बैठे हैं।
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भारत के मानचित्र पर उंगली रखकर 20 राज्य नहीं बता सकते, उत्तरपूर्व के सब राज्यों के नाम तक नहीं जानते, 10 भारतीय भाषाएँ नहीं बता सकते, PDP और TDP का अंतर नहीं पता, मल्लू और अल्लू में अंतर नहीं पता परन्तु केवल इसलिए सम्मान के अधिकारी हैं क्योंकि..
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