ये है शिमला का स्कैंडल प्वाइंट, जहाँ हिंदुस्तान का पहला लव स्कैंडल हुआ था, पटियाला के राजा भूपेंद्र सिंह ने इसी जगह से लार्ड कर्जन की बेटी को उठा लिया था, तभी से इस जगह का नाम पड़ गया स्कैंडल प्वाइंट।
पराक्रम चन्द...
शिमला:- अंग्रेजों ने मैदानी इलाकों की धूल मिट्टी से बचने के लिए शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था। शिमला में आज भी कई ऐसी जगह हैं जो कई कहानियाँ बयां करती हैं। ऐसी ही एक जगह है शिमला के मालरोड़ में #स्कैंडलप्वाइंट,
जिसे हिंदुस्तान के पहले लव स्कैंडल प्वाइंट के रूप में जाना जाता है।
माना जाता है कि ब्रिटिश काल में शिमला के मालरोड की इसी जगह से पटियाला के महाराजा भूपिंद्र सिंह ने वाइसराय लार्ड कर्जन की बेटी को उठा लिया था। इसलिए इसे पहला लव स्कैंडल कहा जाता है।
महाराजा भूपिंद्र सिंह किसी भी सूरत में कर्जन की बेटी पाना चाहते थे। उनकी बेटी रोजाना शाम को शिमला के मालरोड पर टहलने आती थी। उस समय मालरोड पर हिंदुस्तानियों के आने पर पाबंदी थी। केवल अंग्रेज अफसर ही अपने परिवार के साथ टहलते थे।
कहा जाता है कि महाराजा भूपिंद्र सिंह घोड़े पर सवार होकर आए और मालरोड पर टहल रही लार्ड कर्जन की बेटी को उठा ले गए। गुस्से में वायसराय ने उनका शिमला आने पर प्रतिबंध लगा दिया। महाराजा ने भी अपनी शान के लिए शिमला से भी ऊंचा नगर बसाने की ठान ली और चायल का निर्माण कर डाला।
पटियाला के महाराजा भूपिंद्र सिंह का जन्म 12 अक्टूबर 1891 में हुआ। वर्ष 1900 में उन्होंने राजगद्दी संभाली और 38 साल तक राजपाट किया। उन्होंने ऑनरेरी लेफ्टीनेंट कर्नल के तौर पर प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया था। लीग ऑफ नेशंज में 1925 में भूपिंद्र सिंह ने भारत का प्रतिनिधित्व किया।
महाराजा क्रिकेट के शौकीन थे। वर्ष 1911 में इंग्लैंड दौरे पर भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान भी वही थे।
हालांकि कुछ इतिहासकार इस बात को नहीं मानते है। उनका तर्क है कि लार्ड कर्जन साल 1905 तक वाइसराय रहे। उनकी तीन बेटियां थीं। 1905 में महाराजा की आयु महज 14 वर्ष की थी।
लार्ड कर्जन की बड़ी बेटी आइरिन की उम्र उस समय महज 9 साल थी। इसलिए ये कैसे हुआ ये नही कहा जा सकता।
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इस फिल्म के एक सीन में पीड़ित लड़की आखिर में अपने पिता से पूछती है - "आपने हमें कभी अपने कल्चर के बारे में क्यों नहीं बताया?"
शायद वो ये भी पूछी होगी - "आपने हमें क्यों नहीं बताया कि अपनी "हिंदू आइडेंटिटी" को खोकर मैं क्या खो दूंगी?
प्रेमचंद की एक बड़ी मशहूर कहानी है 'जिहाद'। उसमें एक हिन्दू लड़की है 'श्यामा'।जिसे शायद उसे उसके मां बाप ने इन प्रश्नों का उत्तर दिया होगा,उसे अपने "हिंदू कल्चर" के बारे में बताया होगा,उसे बताया होगा कि हिंदू का होना और बचना क्यूं जरूरी है तभी उसका उल्लेख आज करने की जरूरत पड़ी है
इसको समझने के लिए आपको थोड़ा इस कहानी में उतरना होगा और मुझे उन पंक्तियों का अक्षरशः उल्लेख करना होगा जो उस युवती श्यामा ने हिन्दू धर्म छोड़ कर विधर्मी बने युवक धर्मदास से कही थी। ये वो धर्मदास था जो धनी भी था और सुदर्शन भी और जिस पर श्यामा कभी जान छिड़कती थी।
फिल्म " द केरला स्टोरी" से क्या समझें.??
जरूर पढ़े.!!!
शालिनी उन्नीकृष्णन नर्सिंग कॉलेज में दाखिला लेती है जहां उसकी रूम मेट होती हैं.. गीतांजलि, नीमा मैथ्यूज और आसिफा!
शालिनी एक धार्मिक परिवार से है जिसके परिवार में मां और दादी है, गीतू के पिता एक कम्युनिस्ट है
तो नास्तिक होने के कारण किसी भगवान को नहीं मानते, वही प्रभाव गीतू पर भी है!
नीमा एक क्रिश्चियन लड़की है और उसका जीसस पर पूरा विश्वास है, जबकि दोनो हिंदू लड़कियों को अपने धर्म के बारे में कुछ भी नही पता और इसी का फायदा उठाती है आसिफा जिसका काम है लड़कियों को बहला फुसला कर अपने
मजहब में ला कर जिहाद करना!
वो कहती है कि तुम्हारा एक भगवान हर किसी के साथ रास लीला करता फिरता है, एक भगवान इतना कमजोर है कि उसकी बीवी को एक राक्षस उठा के ले जाता है और उसे बंदरों की मदद लेनी पड़ती है, और तुम उन बंदरों को भी पूजते हो, वो कहती है कि तुम्हारा एक भगवान शिव अपनी मरी
द केरला स्टोरी का सबसे भयावह दृश्य कौनसा था?
गोलियों की बरसात.. धमाके, गला काटना, हाथ काटना, औरतों को जंजीरों में बांधकर बेचा जाना.... यह सब चल रहा था। मेरे लिए यह नॉर्मल था। आखिर इस्लामिक स्टेट में इससे अलग होना भी क्या था?
मध्यकाल में भारत ने तो इससे भयंकर क्रूरताएँ झेली हैं।
लेकिन मेरा कलेजा मुँह को आ गया था.. जब मजहबी 'दोस्त' के बहकावे में कन्वर्ट हो चुकी लड़की प्रॉपर्टी हासिल करने के लिए हॉस्पिटल में मरणासन्न पड़े अपने पिता से मिलने जाती है और उनके चेहरे पर थूक देती है!
वह पिता जो शान से कॉमरेड हुआ करता था..लेकिन बेटी के कन्वर्ट होने पर जिसे हार्ट अटैक आ गया। क्यों? क्योंकि सच को सब जानते हैं और अपने फायदे के लिए दूसरे के बच्चों को मौत के मुँह में झोंक देते हैं लेकिन अपने बच्चे के साथ मजहब क्या करेगा
"मूर्ति" पूजा के सवाल पे कई सारे विद्वान अटक जाते हैं और कई लोग तो शास्त्रों का ऐसा ज्ञान दे डालते है कि जैसे इन्होंने ही कोई शास्त्र लिख डाला हो,लेकिन फिर भी ये इतनी आसान सी चीज को नहीं समझ पाते है कि "पूजा" और "प्राथना" दोनों अलग चीज है।
सब कहते हैं की इस्लाम में मूर्ति पूजा मना हैैं लेकिन वास्तविकता यह है कि इस्लाम में "पूजा " का कॉन्सेप्ट ही नहीं है!
मुसलमान कभी भी अल्लाह की" पूजा" नहीं करते,वे केवल "प्राथना" करते हैं जिसे शायद "नमाज" कहते हैं।आज तक किसी मुसलमान ने अल्लाह कि पूजा नहीं की,
ठीक इसी तरह इसाई भी इसा मसीह की पूजा नहीं करते ,वो भी" प्राथना" जैसा ही कुछ करते हैं,लेकिन वो "पूजा" नहीं होती।खुद बड़े बड़े ज्ञानी हिन्दू इस साधारण सी बात को नहीं समझते तो औरों का तो कहना ही क्या।
मुस्लिम बंधुओं को लगता है कि वे अल्लाह कि पूजा करते हैं।
आईये साध्वी की आपबीती उनके ही शब्दों में एक बार फिर पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ायें, "कुत्ती" "कमीनी" "वेश्या" "कुलटा" "जिंदगी प्यारी है तो जो मैं कहता हुं कबुल ले बाकी जिंदगी आराम से कटेगी।"
ऐसे घृणित शब्दों से किसी और को नहीं बल्कि भगवा वस्त्र धारिणी निष्कलंक साध्वी प्रज्ञा को मुम्बई पुलिस व ATS के दोगलों ने नहलाया था, किसके इशारे पर यह समझा जा सकता है..
सुदर्शन टीवी के चेयरमैन सुरेश चौह्वाण को साध्वी जी द्वारा दिए गये टीवी साक्षात्कार में ऐसे घृणित शब्दों को इशारे
में बताते हुए साध्वी के नेत्र सजल हो गये... "साध्वी" ने मर्माहत शब्दों में वृत्तान्त सुनाया कि मेरे शरीर का कोई ऐसा अंग नही जिसे चोटिल ना किया गया हो। जब पत्रकार ने पुछा कि क्या मारने के कारण ही आपके रीढ़ की हट्टी टूट गई थी? साध्वी ने कहा, "नहीं, मारने से नहीं।
लव जेहाद में फंसी नेत्री की हालत
आज आपको असम की विधायक रूमी नाथ की कहानी बताते हैं साथ ही ये भी समझने की कोशिश कीजियेगा की जिस भी हिन्दू परिवार में मुसलमान बैठने लगेगा उस परिवार की महिलाओं का यह हाल होता है
असम में एक बड़े प्रतिष्ठित डॉक्टर थे राकेश कुमार सिंह इलाके के लोग उनका बहुत सम्मान करते थे क्योंकि वह क्षमतानुसार सब की सहायता करते थे, डॉक्टर साहब की पत्नी थी रूमी नाथ जिससे उन्हें 2 वर्ष की बेटी थी,
उन दिनों असम के एक मंत्री अहमद सिद्दीकी कि डॉक्टर साहब से जान पहचान हुई
और अहमद सिद्दीकी का डॉक्टर साहब के घर आना जाना शुरु हुआ,
अहमद सिद्दीकी ने डॉक्टर साहब की प्रतिष्ठा का राजनितिक लाभ उठाने हेतु उनकी पत्नी रूमी नाथ को टिकट दिलवाकर MLA का चुनाव लड़वाने का सुझाव दिया,
अहमद सिद्दीकी यह जानता था की महिला होने के कारण और डॉ राकेश सिंह की प्रतिष्ठा