इस फिल्म के एक सीन में पीड़ित लड़की आखिर में अपने पिता से पूछती है - "आपने हमें कभी अपने कल्चर के बारे में क्यों नहीं बताया?"
शायद वो ये भी पूछी होगी - "आपने हमें क्यों नहीं बताया कि अपनी "हिंदू आइडेंटिटी" को खोकर मैं क्या खो दूंगी?
प्रेमचंद की एक बड़ी मशहूर कहानी है 'जिहाद'। उसमें एक हिन्दू लड़की है 'श्यामा'।जिसे शायद उसे उसके मां बाप ने इन प्रश्नों का उत्तर दिया होगा,उसे अपने "हिंदू कल्चर" के बारे में बताया होगा,उसे बताया होगा कि हिंदू का होना और बचना क्यूं जरूरी है तभी उसका उल्लेख आज करने की जरूरत पड़ी है
इसको समझने के लिए आपको थोड़ा इस कहानी में उतरना होगा और मुझे उन पंक्तियों का अक्षरशः उल्लेख करना होगा जो उस युवती श्यामा ने हिन्दू धर्म छोड़ कर विधर्मी बने युवक धर्मदास से कही थी। ये वो धर्मदास था जो धनी भी था और सुदर्शन भी और जिस पर श्यामा कभी जान छिड़कती थी।
हिंदू धर्म छोड़ने वाले धर्मदास से श्यामा पूछती है :- इस्लाम कबूलने के बदले में हासिल तो तुमने जो भी किया सो किया पर कीमत क्या दी?
हतप्रभ धर्मदास पूछता है-मैंने तो कोई कीमत नहीं दी। मेरे पास था ही क्या ?
जबाब में श्यामा उससे जो कहती है, मुझे लगता है "हिंदू कल्चर" को उससे बेहतर
शायद ही कोई डिफाइन करे। श्यामा उससे कहती है :-
"तुम्हारे पास वह ख़ज़ाना था,जो तुम्हें आज से कई लाख वर्ष पहले हुए ऋषियों ने प्रदान किया था। जिसकी रक्षा रघु और मनु,राम और कृष्ण, बुद्ध और शंकर,शिवाजी और गोविंदसिंह ने की थी।उस अमूल्य भंडार को आज तुमने तुच्छ प्राणों के लिए खो दिया।"
ऐसे उच्च संस्कारों से बड़ी हुई श्यामा धर्म छोड़ने वाले उस सुदर्शन लेकिन धर्महीन युवक धर्मदास को छोड़कर एक सामान्य सा दिखने वाले युवक खजानचंद की "विधवा ब्याहता" बनती है जो अब जीवित भी नहीं है क्योंकि उसने अपने महान हिंदू धर्म को त्यागने की जगह मृत्यु का वरण किया था।
इसलिए अपनी श्यामाओं के प्रश्न कि "अपनी 'हिंदुत्व आइडेंटिटी' को खोकर मैं क्या खो दूंगी?' पर उससे कहिए कि तुम खो दोगी अपना स्वतंत्र अस्तित्व, तुम खो दोगी अपना सम्मान, तुम खो दोगी अपना चैतन्य, तुम खो दोगी बौद्धिक स्वातंत्र्य और जब तुम्हारी तरह बाकी सब भी इस identity को खोने लगे
तो दुनिया से आदर्श और जीवन मूल्य खत्म हो जाएंगे, हर जड़ और चेतन में ब्रह्म देखने का संस्कार खत्म हो जायेगा, प्रकृति में मां नहीं दिखेगी, विश्व में बंधुत्व नहीं दिखेगा, विश्व को एक परिवार और 'सबको जीने का अधिकार' की बात करने वाला दर्शन जीवित नहीं रहेगा,
टॉलरेंस नहीं एक्सेप्टेंस का सुंदर चिंतन खत्म हो जायेगा, उपासना के वैविध्य की मिली स्वीकृति खत्म हो जायेगी, नास्तिकों के लिए ये दुनिया कत्लगाह बन जायेगी, चिंतन की स्वतंत्रता छीन जायेगी, दुनिया की तमाम आतंकित और पीड़ित जातियां अनाथ हो जाएंगी जो हिंदुत्व के उदार
और विशाल हृदय में स्थान पाकर भारत भूमि पर उन्नति करती हैं।
ये सवाल कल को आपसे न पूछा जाए इसकी कोई तैयारी है? अगर नहीं है तो इसकी तैयारी कर लीजिए।
- साभार
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●शीला रमानी
. स्टारडम ऐसा कि सड़क पर चलना हो जाता था मुश्किल और जब फिल्में छोड़ी तो मिली गुमनामी की मौत
देव आनंद के साथ 'फंटूश' और 'टैक्सी ड्राइवर' जैसी सुपरहिट फिल्मों में काम कर चुकीं 50 के दशक की अभिनेत्री ,
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शीला रमानी ने देव आनंद के साथ 'फंटूश' और 'टैक्सी ड्राइवर' जैसी फिल्मों में काम किया। टैक्सी ड्राइवर के बाद शीला रातों रात स्टार बन गईं। उनका स्टारडम कुछ ऐसे वक्त से साथ बढ़ता चला गया कि सड़क पर चलना मुश्किल हो गया। वो जहां जातीं फैंस की भीड़ उन्हें घेर लेती थी।
शीला रमानी की 1953 से 1962 तक मां बेटा (1962),रिटर्न ऑफ मिस्टर सुपरमैन (1960), जंगल किंग (1959), अंजलि (1957),सुल्ताना डाकू (1956), गुलाम बेगम बादशाह (1956), गुरु घंटाल (1956) जैसी फिल्मों के साथ विशेष संकलित सूची , टैक्सी ड्राइवर (1954), मीनार (1954), कलाकर (1954) नौकरी (1953)
#टाटा_बिड़ला_और_डालमिया ये तीन नाम बचपन से सुनते आए है मगर डालमिया घराना न कही व्यापार में नजर आया और न ही कहि ओर ,
डालमिया घराने के बारे में जानने की बहुत इच्छा थी
लीजिए आप भी पढ़िए की नेहरू के जमाने में खरब पति डालमिया को साजिशो में फंसा के नेहरू ने कैसे बर्बाद कर दिया
राष्ट्रवादी खरबपति सेठ रामकृष्ण डालमिया को नेहरू ने झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेज दिया तथा कौड़ी-कौड़ी का मोहताज़ बना दिया ।
दरअसल डालमिया जी ने स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ मिलकर गौहत्या एवम हिंदू कोड बिल पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे पर नेहरू से कड़ी टक्कर ले ली थी । लेकिन नेहरू ने हिन्दू भावनाओं का दमन करते हुए गौहत्या पर प्रतिबंध भी नही लगाया तथा हिन्दू कोड बिल भी पास कर दिया
बुद्ध एक कल्पना है बुद्ध एक कल्पना है। या
☺️ जिसे कनिष्क ने अपने समय स्थापित किया । असल में महावीर जैन ही बुद्ध है 😌 #एक_सवाल
बुद्ध का प्रमाण सिर्फ पत्थरों के स्तम्भ और बौद्ध ग्रंथो में ही मिलते है जो सिर्फ एक पत्थर पर कल्पना होनें के प्रमाण है नाकि बुद्ध के वास्तविक होने के!
बुद्ध का पूरा का पूरा Concept महावीर स्वामी से चुरा लिया गया है एवं जीवनी हिन्दू और जैन ग्रंथों से चुराया,
महावीर स्वामी का जन्म बुद्ध से पहले का है,आप भी देखे कैसे काल्पनिक बुद्ध को पैदा करवाया गया।
🤔1-महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ था तो बुद्ध का नाम भी सिद्धार्थ था।
🤔2-महावीर स्वामी इक्षवाकु वंश में पैदा हुए तो
बुद्ध को भी इक्षवाकु वंश में पैदा करवा दिया।
🤔3-महावीर स्वामी ने शादी के बाद राज,मोह,पत्नी, पुत्र त्याग करके संन्यास लिया तो
बुध्द ने भी शादी के बाद राज,मोह, पत्नी, पुत्र त्याग करके संन्यास लिया,न।
【गांधी जी की हत्या के वर्षो बाद सुब्रमण्यम स्वामी जी ने देश की संसद में ऐसे सवाल उठाए थे जिनका जवाब आज तक कोई कोंग्रेसी नेता न दे पाया
【प्रश्न 1】गांधी जी को गोडसे ने जिस इटालियन बरेटा पिस्टल से गोली मारी थी, वह सिर्फ अंग्रेज सैनिकों को उपलब्ध थी । फिर वह गोडसे के पास कैसे आई
इस बात की जांच क्यों नहीं करायी गयी।
【प्रश्न 2】 जब 20 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के प्रयास में गोडसे को गिरफ्तार किया गया था तो माउंटबेटन ने उसकी जमानत क्यूं करवायी ।
【प्रश्न 3】हत्या के बाद महात्मा गांधी की लाश का पोस्टमार्टम नहीं हुआ था,
इससे आधिकारिक तौर पर पता नहीं चल सका कि आख़िर नाथूराम ने उन पर कितनी गोलियां चलाई थीं। हालांकि गोडसे ने अपने बयान में कहा था कि वह गांधी जी पर दो ही गोली चलाना चाहता था, लेकिन तीन गोली चल गई, जबकि गांधी जी को तीन नहीं, कुल चार गोलियां लगी थीं।
'आरजू' में धर्मेंद्र को लेना चाहते थे रामानंद सागर, 1 वजह से हुआ इनकार, फिर राजेन्द्र कुमार ने ढूंढा खास चेहरा
जुबली स्टार राजेन्द्र कुमार की फिल्मों के लिए एक वक्त पर लाइनें लगा करती थीं.राजेन्द्र की फिल्में तब तक पर्दे से नहीं उतरती थीं जब तक उनकी दूसरी फिल्म रिलीज ना हो जाएं.
दर्शकों के लिए राजेन्द्र ऐसे एक्टर थे, जो उन्हें अपने से लगते थे. सादगी और एक्टिंग से वे सभी का दिल जीत लिया करते थे. ना सिर्फ पर्दे पर बल्कि असल जिंदगी में भी उनके रिश्ते सबसे अच्छे थे. साथ ही उनकी कोशिश रहती थी कि वे सभी के काम आ सकें.
रामानंद सागर 15 जनवरी 1965 को फिल्म ‘आरजू’ लेकर आए थे. जिंदगी की कहानी पर बनी यह फिल्म उस साल की हाइएस्ट ग्रॉसिंग मूवीज में से एक थी. फिल्म को लोगों ने काफी पसंद किया था. फिल्म में राजेन्द्र कुमार के अपोजिट साधना थीं. वहीं, सैकंड लीड के रूप में फिरोज खान नजर आए थे.
जिस 21 वर्षीय यशस्वी जयसवाल ने ताबड़तोड़ 98* रन बनाकर कोलकाता को IPL से बाहर कर दिया,उनका बचपन आंसुओं और संघर्षों से भरा था।यशस्वी जयसवाल मूलरूप से उत्तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं।वह IPL 2023 के 12 मुकाबलों में 575 रन बना चुके हैं और ऑरेंजकैप से सिर्फ 2 रन दूर हैं।
यशस्वी का परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते थे। ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ 10 साल की उम्र में यशस्वी मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था, लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते।
परेशानी में घिरे यशस्वी को एक डेयरी पर काम के साथ रहने की जगह भी मिल गई। नन्हे यशस्वी के सपनों को मानो पंख लग गए।
पर कुछ महीनों बाद ही उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया। यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया कि मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था।