नंगेली का नाम केरल के बाहर शायद किसी ने न सुना हो....किसी स्कूल के इतिहास की किताब में उनका ज़िक्र या कोई तस्वीर भी नहीं मिलेगी !
लेकिन उनके साहस की मिसाल ऐसी है कि एक बार जानने पर कभी नहीं भूलेंगे, क्योंकि नंगेली ने स्तन ढकने के अधिकार के लिए अपने ही स्तन काट दिए थे !
केरल के इतिहास के पन्नों में छिपी ये लगभग सौ से डेढ़ सौ साल पुरानी कहानी उस समय की है जब केरल के बड़े भाग में ब्राह्मण त्रावणकोर के राजा का शासन था !
जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी थीं और निचली जातियों की महिलाओं को उनके स्तन न ढकने का आदेश था !
उल्लंघन करने पर उन्हें 'ब्रेस्ट टैक्स' यानी 'स्तन कर' देना पड़ता था !
केरल के श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में जेंडर इकॉलॉजी और दलित स्टडीज़ की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. शीबा केएम बताती हैं कि ये वो समय था जब पहनावे के कायदे ऐसे थे कि एक व्यक्ति को देखते ही उसकी जाति की
पहचान की जा सकती थी ।
डॉ. शीबा कहती हैं, "ब्रेस्ट टैक्स का मक़सद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था ! ये एक तरह से एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी ! इस कर को बार-बार अदा कर पाना इन ग़रीब समुदायों के लिए मुमकिन नहीं था !
केरल के हिंदुओं में जाति के ढांचे में नायर जाति को शूद्र माना जाता था जिनसे निचले स्तर पर एड़वा और फिर दलित समुदायों को रखा जाता था ।
कर मांगने आए अधिकारी ने जब नंगेली की बात को नहीं माना तो नंगेली ने अपने स्तन ख़ुद काटकर उसके सामने रख दिए !
लेकिन इस साहस के बाद ख़ून ज़्यादा बहने से नंगेली की मौत हो गई ! बताया जाता है कि नंगेली के दाह संस्कार के दौरान उनके पति ने भी अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी थी ! उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि सारी औरतों के लिए ये कदम उठाया था !
नंगेली आपकी अमर गाथा लिखी जाएगी सुनहरे अक्षरो मे मनुवाद और ब्राह्मणवाद का यह ऐसा कर्कश दृश्य था कि एक औरत को उसकी जाती के आधार पर उसके स्तन तक को न ढकने दिया हो । सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है ।
#हमसे ना पूछे इस जातिवाद के जख्म #हमने सीने चिर कर खून से दिये हैं कर 😥
नोट - ये कुप्रथा महान टीपूँ सुल्तान ने बंद करवाई थी।
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अलार्मिंग
हत्यारा विकास !
वैली रांन ते सौ काम्म 🥹
सोचा चंडीगढ़ तक का सफऱ किया जाये, उठे और निकल पड़े लेकिन घर से चंद किमी चलते ही टोल प्लाजा पर स्वागत बैरियर ऐसे लगा था जैसे आजकल द्वार पर दूल्हे को रोकने के लिए सालियां रीबन बाँध देती है ।
नई नियमावली के अनुसार पहले जिन्हे टोल पर छुट थी वो समाप्त हो गई थी और सूची बहुत सिमित कर दी गई थी । क्योंकि हम तो अपनी गाडी से आते जाते नहीं तो फास्ट टैग भी नहीं था जिसके कारण डोगुना लगान देना पड़ा ।
कुल मिलाकर दिल्ली से चंडीगढ़ तक की यात्रा में लगभग 1500 तावान भरना पड़ा .
ये टोल टैक्स क्यों देना पड़ता है ? वसूली कम्पनियां इसका क्या हिसाब देती है ? जो टोल पहले दिल्ली से चंडीगढ़ तक केवल एक जगह थी वो छह जगह कैसे हो गई ? NH - 1 पर हम लगातार दिल्ली - वाघा जाते थे तो 40 और 60 रुपये टोल वसूला जाता था ( इस हिसाब से दो से तीन हजार हो सकता है )
व्यंग्य / एक महाभारत कथा और
महासमर में कौरवों का विनाश हो चुका था। कुरुक्षेत्र क्षत-विक्षत शवों से पटा था। विजय के पश्चात भी पांडुपुत्र अपने स्वजनों-परिजनों की मृत्यु के कारण अवसाद में डूबे हुए थे। पांडवों को सांत्वना देने के पश्चात कृष्ण सम्राट धृतराष्ट्र से मिलने जा पहुंचे।
पुत्र-वियोग में शोकाकुल धृतराष्ट्र उन्हें देखते ही आर्तनाद करने लगे। कृष्ण कुछ देर शांत होकर उन्हें देखते रहे। सम्राट का रुदन थमा तो कृष्ण ने उनका हाथ हाथ में लेकर कहा - 'इस महाविनाश का अनुमान तो आपको युद्ध के आरम्भ से ही था। मैंने ही नहीं, महामंत्री विदुर ने भी
आपको युद्ध के दुष्परिणामों की चेतावनी दी थी। अब इस विलाप का क्या अर्थ, कुरुनंदन ?'
धृष्टराष्ट्र ने कोई उत्तर देने की जगह उनसे सीधा प्रश्न कर डाला - 'माधव, युद्ध में मारे गए मेरे पुत्रों को क्या मुक्ति मिलेगी ?'
झींटीया: की कहानी का अंतिम भाग
बंधुओ, मैनें कहा था ना कि हममें से बहुतों नें ये कहानी अपने बड़ों से सुनी हुई है और कुछ नें तो इसका अगला भाग बता भी दिया
तो फिर चलिए, जिन्हें पता है, वे अपनी स्मृतियाँ ताजी कर लें और जिन्हें नहीं पता वे जान लें कि
एक मारवाड़ी बनिए के बच्चे को कैसे कहानियों के माध्यम से बचपन में ही समझदार बना दिया जाता है.
झींटीया नें 'नानी के मनें जाय आण दे, दही रोटियों खाय आण दे, मोटो ताजो होय आण दे, फेर तू मनें खा लीजे' ..... का झांसा देकर सभी जानवरों से स्वयं को बचाता हुआ नानी के घर पहुँच गया.
वहाँ सभी नें उसे खूब प्यार-दुलार दिया और एक महीने में दही-रोटी खा कर खूब मोटा ताजा हो गया.
लेकिन अब उसे घर की याद आनी लगी और नानी से वापस जाने की इच्छा बताई, लेकिन साथ ही आते समय जानवरों से हुई बात भी बताई और चिंता भी व्यक्त की.
एकज़िट पोल जाय भाड़ में ।
नतीजा तो पहले ही आ गया , उसने पहले अस्त्र फेंके , फिर शस्त्र फेंके , फिर कपड़े के बाहर जा कर चिल्लाने लगा - “इस युद्ध में हम कहीं नहीं थे , यह जंग तो उसकी थी ।” इशारा किया एक वर्गाकार काया की ओर ।
पदयात्री “रुका , उसकी दशा देखा , मुस्कुराया - मित्र ! युद्ध में नैतिकता से बड़ा कोई हथियार नहीं होता , वह तो तुम्हारे पास है ही नहीं । इतिहास पलट कर देखो ,तुमसे पहले इसी मुक़ाम पर पश्चिम का एक महान साम्रज्यवादी शासक भी तख़्त नशीं था , उसे भी ग़ुरूर था , अपने लूट की पूँजी पर ,
वो भी व्यापार कर्ता था , लालची ग़द्दारों का , जुनून था- सूरज नहीं डूबता था उसके साम्राज्य में । जुल्म और ज़्यादती जब बहुत बढ़ गई , एक फ़क़ीर उठा , अकेला तनहा , बांस के डंडे के सहारे चल पड़ा पगडण्डियों पर , गाँव गाँव , शहर शहर , जन जन तक ।
एक बेहतरीन समीक्षा....👏👏
इस फ़िल्म के बारे में सोच रहा हूँ। और हॉल से बाहर निकलते लोगों में जो नफ़रत और घृणा देख रहा हूँ, जो भद्दे जुमले सुन रहा हूँ, तो
पुरुषोत्तम अग्रवाल जी के उपन्यास "नाकोहस" की वो एक लाइन बार-बार मुझे कुरेद रही है ... "मन में बैठा दिये गए डर का जोड़ ग़ुस्से के किसी ख़ास पल के साथ बैठ जाए,
फिर मन में बैठे डर को हमले का रूप लेने में देर कितनी लगनी है?"
पैटर्न समझिये :
तारीख : 8 नवम्बर 2016
फैसला : नोटबंदी
प्लानिंग : शून्य। किसी मंत्री को छोड़िये RBI अधिकारीयों को भी जानकारी नहीं थी इस लिए वो ATM मशीनों में छोटे नये नोट निकालने का बंदोबस्त नहीं कर पाए।
नियत: भाजपा नेता की बेटी की एयरपोर्ट पर 2000 के नये नोटों की पैकेट वाली फोटो वाइरल हुईं (मतलब कुछ को पहले से खबर थी)।
भाजपा को फायदा : जय शाह की कम्पनी ने करोड़ों बनाये। रिलायंस जिओ में पैसा खपा और वो बढ़ गया। बाबा रामदेव के ट्रस्ट में अकूत चंदा आया जिन्होंने
भाजपा के लिए प्रचार किया। भाजपा का 700 करोड़ का हेडक्वाटर औरर लगभग हर जिले में आलीशान कार्यालय बन गया। भाजपा दुनियां की अमीर पार्टी बन गयी।
अर्थव्यवस्था : खुदरा व्यापार गिरा, रियल एस्टेट्स सेक्टर डूब गया, कई कम्पनियाँ कंगाल हो गयी, सूरत का कपड़ा उद्योग, बर्तन उद्योग,