आसिफ़ा बीबी ने अपने Religion की इन खूबियों को तो बताया ही नहीं ?
शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज के मरने के बाद अपनी बेटी जहाँनारा को अपनी पत्नी बनाया! क्या आपने इस्लाम की इन खूबियों के बारे में कभी इतिहास में कहीं पढ़ा?
नहीं! #TheKeralaStory
क्यूँकि ये अपने धर्म की इन घिनौनी सच्चाईयों को कभी नहीं बतायेंगे
देखिए कैसे कुछ अति विशिष्ट श्रेणी के इतिहासकारों ने हवस में डूबे मुगलों को प्रेम का मसीहा बताया जिसमे से एक शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए,
आठ हजार औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो इनके हिसाब से उसे प्यार ही कहा जाएगा।
आप यह जानकर हैरान हो जाएँगे कि मुमताज का नाम मुमताज महल था ही नहीं, बल्कि उसका असली नाम ‘अर्जुमंद-बानो-बेगम’ था और तो और
जिस शाहजहाँ और मुमताज के प्यार की इतनी डींगे हाँकी जाती है वो शाहजहाँ की ना तो पहली पत्नी थी ना ही आखिरी ।
मुमताज शाहजहाँ की सात बीबियों में चौथी थी।इसका मतलब है कि शाहजहाँ ने मुमताज से पहले 3 शादियाँ कर रखी थी और मुमताज से शादी करने के बाद भी उसका मन नहीं भरा
उसके बाद भी उसने 3 शादियाँ और की, यहाँ तक कि मुमताज के मरने के एक हफ्ते के अन्दर ही उसकी बहन फरजाना से शादी कर ली थी। जिसे उसने र-खैल बना कर रखा था,
अगर शाहजहाँ को मुमताज से इतना ही प्यार था तो मुमताज से शादी के बाद भी शाहजहाँ ने 3 और शादियाँ क्यों की?
शाहजहाँ की सातों बीबियों में सबसे सुन्दर मुमताज नहीं बल्कि इशरत बानो थी, जो कि उसकी पहली बीबी थी। शाहजहाँ से शादी करते समय मुमताज कोई कुँवारी लड़की नहीं थी बल्कि वो भी शादीशुदा थी और उसका शौहर शाहजहाँ की सेना में सूबेदार था जिसका नाम ‘शेर अफगान खान’ था।
शाहजहाँ ने शेर अफगान खान की हत्या कर मुमताज से शादी की थी।
गौर करने लायक बात यह भी है कि 38 वर्षीय मुमताज की मौत कोई बीमारी या एक्सीडेंट से नहीं बल्कि चौदहवें बच्चे को जन्म देने के दौरान अत्यधिक कमजोरी के कारण हुई थी यानी शाहजहाँ ने उसे बच्चे पैदा करने की मशीन ही नहीं
बल्कि फैक्ट्री बनाकर मार डाला । शाहजहाँ कामुकता के लिए इतना कुख्यात था कि कई इतिहासकारों ने उसे उसकी अपनी सगी बेटी जहाँआरा के साथ संबंध बनाने का दोषी तक कहा
शाहजहाँ और मुमताज की बड़ी बेटी जहाँआरा बिल्कुल अपनी माँ की तरह लगती थी इसीलिए मुमताज की मृत्यु के बाद उसकी
याद में शाहजहाँ ने अपनी ही बेटी जहाँआरा से शारीरिक संबंध बनाना शुरू कर दिया था। जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार करता था कि उसने उसका निकाह तक होने न दिया।
बाप-बेटी के इस घिनौने संबंध को देखकर जब महल में चर्चा शुरू हुई, तो मुल्ला-मौलवियों की एक बैठक बुलाई गई और
उन्होंने इस पाप को जायज ठहराने के लिए एक हदीस का उद्धरण दिया और कहा – “माली को अपने द्वारा लगाए पेड़ का फल खाने का हक है।”
आप सोचिए कि जिस रिलिजन में औरत को इस्तेमाल ही किया जाता बल्कि उसे इस्तेमाल करने के हक़ में दलीलें भी दी जाती हैं वहाँ क्या हाल होगा औरतों का सोच के भी रूह
काँप जाती है
जहाँ पुरुषों के ज़िंदा रहने से लेकर मारने तक भी 72 हूरों का प्रावधान है पर औरत को कोई हक़ नहीं ! कहा जाता है कि एक बार जहाँआरा जब अपने एक आशिक के साथ इश्क लड़ा रही थी तो शाहजहाँ आ गया जिससे डरकर वह हरम के तंदूर में छिप गया, शाहजहाँ ने तंदूर में आग लगवा दी
और उसे जिन्दा जला दिया।
यहाँ आदमी अपनी बेटियों के साथ खुलेतौर पे सो भी सकते पर इनकी औरतें काले लिबास में एक बुत की तरह ढकी होनी चाहिए
ऐसे हवस के दरिंदो को वामपंथीइतिहासकारों ने प्रेम की मिसाल के रूप में देश के सामने पेश किया ये है इनकी कलाकारी
और आसिफ़ा और इन जैसी लड़कियाँ अपने रिलिजन की गंदगी साफ़ करने के बजाय सनातन धर्म पे प्रश्न चिन्ह लगाते और हमारे बच्चे अपने ही धर्म की जानकारी न होने की वजह से शालिनी से फ़ातिमा बा बन जाते
सनातनी भाई बहनों अगर आप को किसी प्रश्न का उत्तर ना मालूम हो तो
इनकी गंदगी में विश्वास करने से पहले कृपया अपने बड़ों या जानकारों से अपने धर्म और उनके पीछे के कारणों को जाने, याद रखें!! सनातन ही सत्य और एक मात्र धर्म है 🙏🏻🚩
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इस विषय की गंभीरता को पढ़ें और समझें।
यदि कोई mazहबी व्यक्ति सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हो जाता है तो उसकी मृत्यु के बाद शरिया के अनुसार उसकी 4 पत्नियाँ हैं, तो उसे पेंशन कैसे दी जाती है?
उत्तर- नामांकनों को देखा जाता है और यह तय किया जाता हैकि किसको कितना प्रतिशत देना है।
यदि कोई नामांकन नहीं होता है, तो चारों के बीच 25% वितरित किया जाता है।
यदि पत्नियों में से एक की मृत्यु हो जाती है, तो अन्य तीन को 33.33 प्रतिशत भुगतान करना होगा।
यदि दूसरी पत्नी की मृत्यु हो जाती है, तो शेष दो का 50% हिस्सा होता है।
अगर तीसरी पत्नी की मृत्यु हो जाती है, तो
बाद वाली को 100% पेंशन मिलती है।
अब सोचो!
वह यदि पहली पत्नी की आयु ६० वर्ष, दूसरी की ५० वर्ष, तीसरी की ४० वर्ष की तथा चौथी की ३० वर्ष की है, और यदि सभी की जीवन आयु ७० वर्ष है, तो उनकी कुल पेंशन वर्ष -
एक आदमी अपने सुअर के साथ नाव में यात्रा कर रहा था।उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था।
सुअर ने पहले कभी नाव में यात्रा नहीं की थी, इसलिए वह सहज महसूस नहीं कर रहा था।
ऊपर और नीचे जा रहा था, किसी को चैन से बैठने नहीं दे रहा था।
नाविक इससे परेशान था और चिंतित था कि यात्रियों की दहशत के कारण नाव डूब जाएगी।अगर सुअर शांत नहीं हुआ तो वह नाव को डुबो देगा।
वह आदमी स्थिति से परेशान था, लेकिन सुअर को शांत करने का कोई उपाय नहीं खोज सका।
दार्शनिक ने यह सब देखा और मदद करने का फैसला किया।
उसने कहा: "यदि आप अनुमति दें, तो मैं इस सुअर को घर की बिल्ली की तरह शांत कर सकता हूँ।"
दार्शनिक ने दो यात्रियों की मदद से सुअर को उठाया और नदी में फेंक दिया।
सुअर ने तैरते रहने के लिए ज़ोर-ज़ोर से तैरना शुरू कर दिया।यह अब मर रहा था और अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहा था।
महाभारत के युद्ध में भी एक व्यक्ति धर्म निरपेक्ष रहे हैं।
जब महाभारत युद्ध के समय दुर्योधन ने नारायणी सेना मांगी तथा अर्जुन ने वासुदेव को मांगा तो बात ‘बलराम’ जी पर गयी। पूछा गया कि बलराम जी किधर से युद्ध करेंगे।
बलराम जी से युद्ध के बारे में पूछा गया तो उन्होंने युद्ध मे तटस्थ रहने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि दोनों तरफ मेरे अपने हैं।
अर्जुन मेरा रिश्तेदार है तो दुर्योधन मेरा शिष्य है। इसलिए मैं दोनो तरफ से ही नहीं लड़ सकता क्योंकि मैं दोनो तरफ हूँ।
ऐसा कहकर बलराम जी युद्ध से मुह मोड़ लिए।
बस, यही वो निरपेक्षता है व्यक्ति की जो आज के समाज को खाये जा रही है। इसका परिणाम भी आपको ज्ञात होगा। महाभारत में धर्म की विजय हुई और जब भीम दुर्योधन को मार रहे थे तब बलराम जी अचानक आ पहुँचे।
#sick_ularism
पिता जी अपने सेक्युलर बेटे को कुछ समझाते हुए महाभारत का रेफरेंस दे रहे थे
”बेटा, Conflict को जहाँ तक हो सके, avoid करना चाहिए!
महाभारत से पहले कृष्ण भी गए थे दुर्योधन के दरबार में. यह प्रस्ताव लेकर, कि हम युद्ध नहीं चाहते तुम पूरा राज्य रखो पाँडवों को सिर्फ
पाँच गाँव दे दो, वे चैन से रह लेंगे, तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे.
बेटे ने पूछा – “पर इतना unreasonable proposal लेकर श्री कृष्ण गए क्यों थे ?
अगर दुर्योधन प्रोपोजल एक्सेप्ट कर लेता तो?
पिता- नहीं करता!!
भगवान श्री कृष्ण को पता था कि वह प्रोपोजल एक्सेप्ट नहीं करेगा
उसके मूल चरित्र के विरुद्ध था
फिर श्री कृष्ण ऐसा प्रोपोजल लेकर गए ही क्यों थे ?
वे तो सिर्फ यह सिद्ध करने गए थे कि दुर्योधन कितना अनरीजनेबल, कितना अन्यायी था.
वे पाँडवों को सिर्फ यह दिखाने गए थे,
कि देख लो बेटा!
युद्ध तो तुमको लड़ना ही होगा हर हाल में
Emergency: A dark chapter in the history of India.
(The Terrible Story Of An Actress Snehalatha Reddy Who Was Tortured Till Death).
On the night of 25th June 1975, the then Prime Minister Indira Gandhi declared the Emergency,
on the orders of Indira Gandhi, with the signing of President Fakhruddin Ali Ahmed, the Emergency was imposed on the country and suspended the fundamental rights of all citizens, which shook the nation's democratic foundations.
This emergency ended on 21 March 1977.
In 19 months, lakhs were imprisoned and tortured unnecessarily.
Thousands of column inches have been dedicated to articulating the horrors of Emergency, and the lessons it holds for future generations.
Why should the Aarti plate not be waved above the head of the Deity
The Aarti thali should not be waved above the head of the deity, but should be moved from the 'Anahat' (heart chakra) to the 'Agneya Chakra' (Ajna Chakra) of the deity.
Due to the influence of the king frequency (441Hz) arising from the aarti, friction with the ‘Sattva’ (one of the 3 gunas) particles develops in the happy versions related to the invisible divine principle (emanating from the head of the deity).
As a result, they can split before being transmitted. That is why the Aarti dish should not be placed on the head of the deity. Thus, the high-velocity frequency emitted from the Ajna chakra and the properties of the deities are supplemented by the king frequency