बिचारे भक्त के दुख की दास्तां 😂😂
माननीय साहब,
कर नाटक की जनता ने जो हाल आपकी पार्टी का किया वह निंदनीय तो जरूर है लेकिन अगर आप की पार्टी ढंग से विश्लेषण करेगी तो आप लोग अपनी गलती भी देख सकेंगे। एक अंधभक्त होने के नाते मैं आपकी गलतियाँ गिनाता हूँ। उम्मीद है आप ध्यान देंगे।
1. जूपी की तर्ज पर आप को कर नाटक में #बजरंगबली के विशाल #मंदिर की स्थापना करनी थीं। नहीं की। ना ही आपने किसी अपराधि तथाकथित संत को मुकमंत्री का चेहरा बनाया! फिर आपके #विहिप, #बजरंगदल, #आरएसएस ने #मस्जिदों की परिक्रमा कर कहीं भी #फव्वारे को #शिवलिंग नहीं बताया।
कर क्या रहे थे यह चिलगोजे? समझ नहीं आता की आप #चुनाव लड़ रहे थे या गिल्ली डंडा खेल रहे थे! हाँ मुझे मालूम है #दक्षिण भारतीय लोग #गोबरपट्टी के लोगों की तरह #अनपढ़ जाहिल नहीं होते हैं लेकिन फिर भी कोशिश तो करनी चाहिए ही थी! अब भुगतो!
2. दूसरे आप #कश्मीर वाला फार्मूला ही इस्तेमाल कर लेते। कर्नाटक के तीन टुकड़े करते, एक जहरीले #संघी, एक सुप्रीम कोर्ट के जज और एक ई डी के अफसर को तीनों राज्यों में अलग अलग #भाज्यपाल नियुक्त करते। #इंटरनेट बंद करते, किसी भी गैर भाजपाई नेता की एंट्री बैन करते और शान्ति से राज करते!
लेकिन आपको तो फूलों की बारिश करानी थी। साहब यह आपकी गलती है कि कन्नड़ी को गुज्जूओं जैसा ढक्क्न समझ लिया! अब भुगतो!
3. जिस #बोम्मई सरकार ने 5 साल 40% कमीशन खाया, गरीबों का खून चूसा उस सरकार ने #कांग्रेस के विधायक, नेता अपनी पार्टी में मिलाने क़ी कोई कोशिश तक नहीं की!
माना डी के #शिवकुमार आपकी पार्टी को महंगे पड़ते लेकिन दूसरों पर तो कोशिश हो सकती थी? आखिर पुर्वोत्तर में हो या #गुजरात में, यूपी में हो या बिहार में, सीट तो कांग्रेसी ही जीतते हैं। संघीयों को चुनाव जीतना कहाँ आता है वह तो सिर्फ जहर फैलाने के लिए पाले हैं आपने!
और कर्नाटक में यह छोटा सा काम भी नहीं हुआ इन से। अब भुगतो!
यह पहला चुनाव था जिसमें किसी विरोधी नेता की #सीडी सामने नहीं आई। शर्मनाक! आखिर यह फर्जी #चाणक्य और सस्ते #जेम्सबॉन्ड क्या कर रहे हैं? आपके लाड़ प्यार ने लगता है इन्हें जाहिल बना दिया है।
2013 तक जैसे आप फर्जी चाणक्य को बेंत और बेल्ट से इज़्ज़त नवाज़ते थे फिर से वही करिये! नहीं तो उल्टा सीधा बोलकर, समझाकर यह मप्र, #छत्तीसगढ़ और #राजस्थान भी हरवाएगा! खुद तो अपने बेटे के द्वारा करोड़ों डकार चुका है लेकिन हारे तो आपको वापस स्टेशन पर चाय...
सबसे बड़ी बात की #इमरती और #फ़लानी_बेन_पटेल भी आपको भूलने में देर नहीं करेंगी! आप तो जानते ही हैं कि यह सब इन्होंने आपसे ही सीखा है।जैसे आपने अडवाणी, जोशी, जसवंत, कल्याण इत्यादि को ठिकाने लगाया वैसे ही यह आपको ठिकाने लगा देंगी।यह मत भूलियेगा कि अगर सत्ता गई तो साथ में हवाई जहाज,
विदेश यात्रा, महंगे कपड़े, महंगा चश्मा, कलम सब चला जायेगा। जिस बेशर्मी से आपने नोटबंदी के समय अपनी माँ का इस्तेमाल किया था वैसा ही कुछ करियेगा। उम्मीद है आप इन बातों पर ध्यान देंगे और आगामी चुनावों में अपने विवेक मतलब जिद को तरजीह देंगे!
अगर आप संघ की सोच और उसके लक्छ्य को समझना चाहते हैं तो इनके बातको सुने , ये संघ के वर्तमान गोलवलकर हैं , इन्होने बहुत बारिकी से मनुस्मृति. का बिना नाम लिये हुये, जितना घृणा मुसलमानों के प्रति पाकिस्तान का नाम लेकर पैदा किये , हां ये जो चाहते है वो संविधान के चलते इनकी ही सरकार
नहीं कर पा रही है , ये मोदी सरकार से अब संतुष्ट नही है....ये बहुत परेशान है....अगर 2024 मे दिल्ली मे संघ की सरकार नही बनी और राहुल कंट्रोल्ड सरकार बनी तो राहुल इनके सपने को जो 100 से देखते आ रहे है को मिट्टी मे जमींदोज कर देंगे, उनपर पानी फिर जायेगा, फिर 100 इंतजार करना होगा,
इसलिये अपनी सुरक्छा के लिये प्रतिभाहीन, सरस्वतीविहन , लगनशील जोगी की तलाश कर चुके हैं , सरकार भले ही ली जाय लेकिन दबदबा रहे , अगला कदम स्थितियों के अनुसार ......इसके सुनने से यह साफ हो जायेगा कि ये जो चाहते थे मोदी सरकार से वह नही कर पाये,
छोटे नवाब का बहादुरी कारनामा क्रमांक 141 ...
ढेन टेनेंन !!!
रेडियो धूम ने बोला कि-जनाब, आपकी गजलो की पसंद बढिया है, जरा हमारी प्लेलिस्ट भी बनवाईये। तो भईया स्वयं बैठकर आजकल प्लेलिस्ट बना रहे हैं। एकदम खोद खोद के गहरे पानी पैठ ...
रेडियो धूम 89.6 पर रात के 9ः15 बजे।
एफएम इस वक्त गजल आधारित प्रोग्राम प्रसारित करता है। अब नए जमाने के रेडियो जॉकी तमाम फिल्मी, पंजाबी, और झम्मरझम गानों के एक्सपर्ट होते है, मगर गजल वजल की बात आए तो जरा झिझक जाते है।
स्टेशन हेड शुक्ला जी ने कभी कभार लिखी गजलो से जुड़ी मेरी पोस्ट देखी है।
तो इसी कार्यक्रम के लिए सेवाऐं मांग ली, जो दी जा रही हैं।
शर्ते लागू हैं। रेडियो के हिसाब से चलना होगा। अधिकांश लिसनर गजल के नाम पर "जिंदगी धूप-तुम घना साया", "ना उम्र की सीमा हो -ना जन्म का हो बंधन" ही जानते और पसंद करते हैं।
सिंधु घाटी बनाम हिन्दू घाटी ..
तो पहले बताइये कि सिंधु घाटी के अवशेषों को जब आपने बचपन मे पढ़ा, तो क्या समझा था? आपने सवाल भी परीक्षा में हल किया होगा- सिंधु घाटी के शहरों के प्रमुख गुण बताइये।
उत्तर लिखा- यहां अन्न के गोदाम थे, बंदरगाह थे, समकोण पर काटती सड़कें,
उनके किनारे दोनों तरफ जल निकासी की नाली, स्नानागार थे, बाजार थे, प्रशासनिक शहर अलग था, सीलें थी, नर्तकियां थी, बैलगाड़ी थी।
तो क्या सिंधु घाटी सभ्यता बड़े बड़े गांव की सभ्यता थी??
शहरीकरण एक सभ्यता का पिनाकल है-
सबसे उत्कृष्ट फल।
शहर का मलतब आसपास के गांवों का एक केंद्र। जो आसपास के गांव, बस्तियो, दस्तकारों और खेतों की उपज का एक्सचेंज करने वाला इंटरफेस।
शहर में खेत नही होते। तब फैक्ट्री नही होती थी। सब कुछ आसपास के गांवों से आता। यहां भंडारण होता, बल्किंग और ग्रेडिंग होती। देश विदेश भेजा जाता।
यह सही है कि सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके गुट के 15 अन्य विधायकों को अयोग्य नहीं ठहराया है। सर्वोच्च अदालत ने एकनाथ शिंदे सरकार को बर्खास्त करने और उद्धव ठाकरे को फिर मुख्यमंत्री बहाल करने से भी इनकार किया है। लेकिन इसके बावजूद यह फैसला दूरगामी
महत्व का है, क्योंकि सर्वोच्च अदालत ने पूरे मामले को लेकर राज्यपाल और स्पीकर के फैसलों को गैर कानूनी करार देते हुए जो बेहद तल्ख टिप्पणियां की हैं, वे परोक्ष रूप से राष्ट्रपति, केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर भी लागू होती हैं और उनकी गूंज दूर तक और देर सुनाई देती रहेगी।
न्यूज़क्लिक हिंदी- Newsclick Hindi पर मेरा लेख अनिल जैन
ये गलत धारणा है कि हमारे देश नें कभी विदेशी आक्रमण नहीं किये.
आक्रमण तो सदा से ही करते आये थे, लेकिन यातायात के साधन नहीं हो पाने के कारण एक रियासत दूसरी रियासत से ही लड़ती-मरती रही. इसके आगे की सोच ही नहीं थे, ना ही समझ ही थी, हैसियत ही नहीं थी.
इसलिए हमारे लिए तो युद्ध के नाम पर,विदेश के नाम पर बस आसपास की रियासतें ही थी, जिनसे हम परस्पर लड़ते ही रहते थे.
ना तो पानी के जहाज थे,ना ही घोड़े. राजा-महाराजाओं के पास बस रथ और हाथी की सवारी ही थी. उससे कितनी दूर जा पाते?
आम आदमी तो पैदल कभी ४ कोस से कभी आगे जा ही नहीं पाया.
कुछ हद तक मध्यकाल में चोल-गुप्त और मौर्य काल वंश ही एक सीमा तक बाहर जा पाए.
ये तो मुगलों के आने के बाद हमें तलवार का, और घोड़ों का ज्ञान हुआ और अंग्रेजों के बाद पानी के जहाज और बारूद का ज्ञान हुआ.
वरना हम तो सिर्फ तीर-कमान-भाले-गदा तक ही सीमित थे, उसके आगे जीरो थे.