#धर्मसंसद
कुछ अपरिहार्य कारणों से पिछले दिनों प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सका । वैसे भी बहुत कुछ कहने के लिए था नहीं क्योंकि उन सभी पात्रों के विषय में आप सबको अच्छी जानकारी थी। अहिल्या की चर्चा एक बार पहले भी हो चुकी थी पर पंच कन्याओं की श्रृंखला में पहला स्थान
होने के कारण आरंभ उन्हीं से करना उचित था। यह पांचों कन्याएं अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती और द्रौपदी प्रात:स्मरणीया हैं।इनकी विशेषता है कि यह पांचों सदा युवा रहती थीं। एक से अधिक विवाह अथवा जाने अंजाने कई पुरुषों से संबंध होने के बाद भी यह सभी पवित्र मानी जाती थी
जैसे कि अहिल्या का बलात्कार इंद्र ने किया था जिससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची थी पर देर सबेर इन्हें सामाजिक मान्यता भगवान श्रीराम के द्वारा प्राप्त हुई थी। जहां तक तारा कौन थीं का प्रश्न है तारा नाम की दो स्त्री पात्र रही हैं। एक बृहस्पति की पत्नी तारा
और दूसरी बालि की पत्नी तारा ।आप लोगों ने सही संदर्भ पकड़ लिया और अंगद की माता तारा के विषय में ही उत्तर दिया है। जहां तक तारा के जन्म की कथा है कहते हैं कि तारा का जन्म समुद्र मंथन के समय हुआ था पर जहां तक मैं समझता हूं यह एक भ्रामक तथ्य है जो पुराणों में मिलावट
का परिणाम है। हां इतना अवश्य है कि यह वानर राज सुषेण की पुत्री थीं। रामायण में इस महिला का नाम तीन बार आया है पर तीनों ही बार उनका चरित्र विशिष्ट दिखाई पड़ता है।याद रखें कि महासती अनुसुइया और सती सावित्री सती सुलोचना और यहां तक कि जगज्जननी जानकी को भी पंच कन्याओं
जैसा सम्मान नहीं प्राप्त हुआ था। समुद्र मंथन वाली बात इसलिए गलत है क्योंकि मंथन में दो ही स्त्री पात्र रमा अर्थात लक्ष्मी जी और हाथ में वारुणि (मदिरा) लिए हुए अप्सरा रम्भा का ही उल्लेख मिलता है।
तारा बिकल देखि रघुराया।
दीन्ह ज्ञान हरि लीन्ही माया।
इस एक ही चौपाई
से तारा का चरित्र चित्रण हो जाता है। पंचकन्याओं में से दो तारा और मंदोदरी को दो विवाह करना पड़ा था।बालि की मृत्यु के बाद तारा को सुग्रीव से और रावण की मृत्यु के बाद मंदोदरी ने विभीषण से विवाह किया था । ऐसा इन दोनों ही राजाओं को जो अपने अपने राज्यों के स्वाभाविक
उत्तराधिकारी नहीं थे को वैधता प्रदान करने के लिए करना आवश्यक था। इससे भी इनकी मर्यादा का हनन नहीं हुआ। कालांतर में यही प्रथा मिस्र के फराओ में भी चलती रही जहां नये राजा जो गद्दी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी नहीं थे दिवंगत सम्राट की पत्नी से विवाह करना अनिवार्य था।
विख्यात सम्राट खुफू जिसने गीजा का विशाल पिरामिड बनवाया था ने भी मृत सम्राट की पत्नी से विवाह किया था। कहा तो यहां तक जाता है कि मिस्र के महानतम सम्राट रेमेसिस द्वितीय ने अपनी सौतेली मां के साथ विवाह किया था। मिस्र का दूसरा सबसे बड़ा पिरामिड और कर्नाक के देव मंदिर
उसी ने बनवाया था। बाद में इस प्रथा में भी तत्कालीन समाज सुधारकों ने बड़ा सुधार किया था। आज बस इतना ही। धन्यवाद जय
चाय का इतिहास
आपने वह विज्ञापन तो देखा ही होगा जिसमें मशहूर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन तबला बजाने के बाद चाय पीने के बाद कहते हैं वाह ताज। इससे यह मत समझ लीजिए कि ताजमहल ब्रांड चाय किसी भारतीय कंपनी की है।ना ना ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। टाटा आदि को छोड़कर बाकी
अन्य बड़े-बड़े ब्रांड जैसे लिप्टन,रेड लेबल, ब्रुक बांड डंकन, ताजमहल,ट्वीनिंग जैसे बड़े-बड़े ब्रांड सब विदेशी हैं।असम दार्जिलिंग कुमायूं गढ़वाल कुल्लू मनाली मैं तमाम बड़े-बड़े चाय बागान विदेशी कंपनियों के हैं। चाय का आविष्कार भी बड़े रोचक ढंग से हुआ है।
ईसा पूर्व 2700 वर्ष में चीन में एक सम्राट शेन नुंग अपने बगीचे में गर्म पानी पी रहे थे कि अचानक एक पत्ती कहीं से उड़कर आई और उनके गिलास में पड़ गई। गर्म पानी पत्ती का स्पर्श पाते ही लाल रंग की हो गई और स्वाद बदल गया। चाय की शुरुआत यहीं से हुई। पहले तो इसे औषधि के रूप में
मालूम होई ओहि दिन।बहलोल भजइब जेहि दिन। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को जिताने के बाद कांग्रेसी वोटर यही गाएंगे। शायद आप लोग बहलोल का अर्थ नहीं जानते होंगे। पुराने जमाने में धन ज़मीन में गाड़ कर सुरक्षित रखा जाता था क्योंकि तब बैंक नहीं हुआ करते थे। चोरी डकैती बहुत
होती थी। इसीलिए धन को सोने चांदी के सिक्कों में बदलकर जमीन में गाड़ दिया जाता था पर इसमें बहुत व्यस्त की समस्या आती थी। इसलिए लोग सुधारों से सिक्कों के बदले बहलोल खरीद कर सुरक्षित रखा करते थे। बहलोल एक सोने की गुल्ली के आकार का स्वर्ण पिंड होता था।कभी कभी कुछ सुनार
धोखा देने के तांबे की गुल्ली पर सोने का पत्तर चढ़ाकर बेंच देते थे। जब जरूरत पड़ने पर लोग बाजार में बेचने जाते थे तब पता चलता था कि यह बहलोल तो नकली है। कांग्रेस ने कर्नाटक के मतदाताओं को रिझाने के लिए जिन पांच वादों की गारंटी दिया है वह कभी पूरी नहीं कर सकेगी
आखिरकार कर्नाटक केजरीवाल फार्मूला काम कर गया। मुफ्त की रेवड़ी में बिक गए मतदाता। उधर भाजपा जिन पसमांदा मुसलमानों के भरोसे रही उन्होंने वोट तो छोड़ो पसम भी नहीं दिया गया। कहां गया वह लाभार्थी वर्ग जो कहता था कि हमें तो घर मिला है उज्जवला ज्योति में मुफ्त सिलेंडर मिला
मुफ्त बिजली कनेक्शन मिला है।हम तो वोट मोदी को ही देंगे। भाजपा के वोट प्रतिशत में बहुत कमी नहीं हुई। इसके वोटर पार्टी के प्रति प्रतिबद्ध रहे। यहां भी ठग लिया बेंगलुरु में काम करने वाले उत्तर भारतीय साफ्टवेयर इंजीनियरों ने। यह लोग पिकनिक मनाने चले गए और अपना वोट
ही नहीं दिया।शेष बचे अकुशल श्रमिक वर्ग तो यह मुफ्त की बिजली और बेगारी भत्ते के लालच में हाथ कटा बैठा।ऐसी बात नहीं है कि मोदी,शाह इस बात को जानते नहीं थे। खूब जानते थे कि भयानक एंटीइंकैम्बीसी थी फिर भी जी जान से लगे रहे पर हार गए उनसे जो
1757 में प्लासी की लड़ाई में
आखिरकार केजरीवाल अपने रहने के लिए ४५ करोड़ रुपए का शीशमहल क्यों न बनवाएं जब उन्हें पता है कि वे आजीवन दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहेंगे और मरने के बाद उनके वंशजों का ही दिल्ली पर राज रहेगा।2 करोड़ की आबादी वाले दिल्ली में मुख्य निवासियों की संख्या केवल 15% है।
35% पाकिस्तानी शरणार्थी और पंजाबी रहते हैं जिनमें पंजाबी ब्राह्मण खत्री जाट गूजर वैश्य और सिक्ख लोग रहते हैं। यह लोग मुख्य रूप से चाणक्य पुरी मयूर विहार बसंत विहार ग्रेटर कैलाश जैसी दिल्ली की पाश कालोनियों में एसी कमरों में रहते हैं जो कभी भी वोट नहीं देने जाते हैं।
शेष ५० लाख यूपी बिहार के दिहाड़ी मजदूर और ४०लाख रोहिंग्या बंग्लादेशी मुस्लिम रहते हैं जिन्होने ने २०० युनिट बिजली और
२०० लीटर मुफ्त पानी के लिए अपने स्वाभिमान को केजरीवाल के हाथों गिरवी रख दिया है।याद रखें कि पूर्वांचल और बिहार के यह वही मजदूर हैं जिन्हें कोरोना के समय
#धर्मसंसद
कल और आज के प्रश्न एक दूसरे के पूरक हैं। बिना कद्रू के विनता की और बिना विनता के कद्रू की कहानी अधूरी है।इन दोनों के विषय में कल से शुरू हो कर आज तक बहुत कुछ बताया जा चुका है। विशेषकर प्रेरक अग्रवाल जो अपनी वैज्ञानिक व्याख्या के लिए जाने जाते हैं ने बहुत
विस्तार से जानकारी दिया है।नीलम मिश्रा सत्यवती का उत्तर भी सराहनीय रहा है। कहानी तो पता ही है कि सूर्य के घोड़े की पूंछ काली है कि सफेद इसी पर छुआ खेला गया था और इसमें छल से बड़ी बहन कद्रू जीत गई थी जिसके कारण विनता को आजीवन कद्रू की दासी बनना पड़ गया था।इसी
दासत्व से मां विनता को मुक्त कराने के लिए गरुड़ जी को इंद्र से युद्ध करके अमृत कलश लाकर नागों को देना पड़ा था। यह और बात है कि नारद मुनि के सुझाव के अनुसार गरुड़ जी नागों को अमृत पीने नहीं दिया और वचन के अनुसार मां विनता को कद्रू के दासत्व से मुक्त करा लिया था।
कहानी 'तेरे बाप ने मेरे बाप को गाली दिया था' । एक पहाड़ी नहीं के ऊपर की ओर एक भेड़िया पानी पी रहा था और नीचे की तरफ एक मेमना (भेंड़ के बच्चे को मेमना कहते हैं) । भेड़िया मेमने को खाना चाहता था इसलिए बहाना ढूंढ रहा था। कुछ देर सोचकर उसने मेमने से कहा कि मैं तुम्हें
खा जाऊंगा क्योंकि तुम मेरा पानी जूठा कर रहे हो। मेमने ने कहा हुजूर मैं तो धारा के नीचे पानी पी रहा हूं तो आपका पानी जूठा कैसे हो गया? निरुत्तर भेड़िया केजरीवाल की तरह डीठ था और तुरंत नया बहाना बनाया कि ६ महीने पहले तुमने मुझे गाली दिया था। मेमने ने फिर कहा हुजूर ६ महीने पहले
तो मेरा जन्म ही नहीं हुआ था। मैं तो अभी ३ महीने का हूं। अब तो भेड़िया एकदम बेहयाई पर उतर आया और कहा कि तूने नहीं बल्कि तेरे बाप ने मेरे बाप को गाली दिया था यह कहकर मेमने को खा गया। यह कहानी त्रेतायुग की है जो कलयुग में बदलकर हो गई है तेरे बाप ने मेरे को जज बनाया था