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चोर चोरी से जाय, हेराफेरी से नहीं !
कुछ अखबारों में खबरे आ रही हैं कि, सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शफी सादी, ने कर्नाटक में नई सरकार से डिप्टी सीएम का पद मुस्लिम समुदाय के लिए मांगा है। कर्नाटक वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष, बीजेपी सरकार द्वारा नियुक्त किए गए हैं,
और इस तरह की मांग देश में किसी भी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष द्वारा पहली बार की गई है।

मंत्री बनाना, विभाग देना, मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। यदि कोई शिकायत है तो पार्टी और पार्टी के विधायक करेंगे, न कि वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष।
दरअसल कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार महज एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी राजनीतिक दल की हार नहीं है बल्कि यह नरेंद्र मोदी के ब्रांड की विफलता है,जिसे दस साल से पार्टी के ऊपर स्थापित करके भरमाया जा रहा थाअब जब यह ब्रांड अपनी चमक खो रहा है तो इस तरह के पैंतरे आजमाए जा
रहे हैं।Sheetal P Singh जी की यह पोस्ट पढ़े,

बीजेपी के मीडिया में तैनात कारकुन और वक़्फ़ बोर्ड जैसे संस्थानों में तैनात चेहरे कर्नाटक के जनादेश को धुंधला/ धब्बेदार करने में जी जान से जुट गए हैं । संलग्न चित्रमाला को ध्यान से देखिए, कुछ कुछ नज़र आ जाएगा!
वक़्फ़ बोर्ड के बीजेपी द्वारा नियुक्त अध्यक्ष कांग्रेस की सरकार में मुस्लिम मुख्यमंत्री और मलाईदार कैबिनेट मंत्री के पद की माँग कर रहे हैं । कोई इनसे पूछे कि बीजेपी ने एक टिकट तक किसी मुसलमान को नहीं दिया तब इनका मांगपत्र जारी क्यों नहीं हुआ था?

#कर्नाटक #vss ImageImage

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May 17
*कर्नाटक की हार के बाद भाजपाई बौखलाए हैं। बिकाऊ और देश के गद्दार पत्रकार, सड़कछाप, दो कौड़ी के भाजपाई और फेंक न्यूज़ IT सेल वाले मिलकर जनता को माँ बहन की गालियां दे रहे हैं।*

*सोचिए, ये कितने बड़े हिंदू-हितैषी हैं कि 83% हिंदू आबादी वाले राज्य का ऐतिहासिक फ़ैसला इन्ह
स्वीकार नहीं है।*
*यह वही प्रदेश है जहां भाजपा की लूट ने लोगों की जान ली। जनता से लगातार सरकारी उगाही की गई। कारोबारियों ने आत्महत्याएं कीं। दो-दो असोसिएशन प्रधानमंत्री मोदी से शिकायत करते रहे लेकिन उन्होंने कान नहीं दिया। लूट जारी रही और जब चुनाव आया तो पहुँच गये- मैं कर्नाटक
का बेटा हूं, मेरा कर्नाटक से बचपन का रिश्ता है।*अटल बिहारी वाजपेयी एक चीनी कहावत बार-बार दोहराते थे, कि आप कुछ समय के लिए कुछ लोगों को मूर्ख बना सकते हैं। हमेशा के लिए सबको मूर्ख नहीं बना सकते। भाजपा ऐसी घटिया नीच पार्टी बन गई है जो अपने ही नेताओं और उनके अतीत से कुछ सीखने को
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May 17
देश के प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बनने से पहले भी मनमोहन सिंह भारत सरकार मे उच्च पदों पर रहे थे. उनके साथ उन दिनों उनके पर्सनल स्टॉफ मे काम करने वालो मे से एक से मुलाक़ात करने का अवसर मिला. उन्होंने एक रोचक बात बताई. मनमोहन सिंह से मिलने वालो मे सरकारी काम के सिलसले मे भी लोग
मिलते थे और निजी तौर पर भी. लेकिन जो लोग निजी तौर पर मिलते थे, उन्हें अपनी जेब से चाय पिलाते थे, सरकारी खर्चे से नहीं...

मै तो मनमोहन सिंह के इस काम को ईमानदारी मे भी नहीं रखता. कोई विरला शख्स ही होगा, जो ऐसा करता होगा. शायद मनमोहन सिंह, ईमानदारी से ज्यादा अपनी आत्मा की आवाज
को सुनने मे ज्यादा विश्वास करते होंगे..

वो भी चाहते तो राज्य सरकार के चुनावों मे जा जा कर अपने किये हुई उपलब्धियों का ढिंढोरा पीट कर वोट पा सकते थे. लेकिन जो व्यक्ति, अपने चाय के पैसे सरकारी खरचे से नहीं पिला सकता, वो प्रधानमंत्री रहते हुए, पार्टी वाला काम क्यो करेगा.
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May 17
चौथी फेल मंगलू राजा, दरबार में बैठा, मक्खियां मार रहा था, कि तभी दरबार में सूचनामंत्री का प्रवेश हुआ, मक्खी मारने का असफल प्रयास करते हुए मंगलू राजा उत्साहित होकर बोला-- बको सूचनामंत्री, क्या खबर लाये हो ? सूचनामंत्री राजा मंगलू की भाषा शैली से थोड़ा असहज हुआ,
पर राजा की चौथी फेल मार्कशीट का ध्यान आते ही सहज भाव से बोला --महाराज खबर अच्छी नहीं है, हम कर्नाटक दुर्ग हार चुके है। इतना सुनते ही मंगलू राजा अपनी सीट से उछल पड़ा, और कड़ककर सूचनामंत्री से बोला, ये कैसे हुआ ? कर्नाटक में तो मैंने जबरदस्त "नाटक" किया था ?
वहां तो जनता को " अंधभक्त" बनाने के लिए मैंने कितनी "रथ रैलियां" की थी ? फिर कैसे हार गये ? सूचना मंत्री आवेश में बोला--हां, की थी आपने "रथ रैलियां" ? पर वहां की जनता आपकी तरह चौथी फेल नहीं है, .... वो......
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May 17
खिचड़ी को जो भी कहो ये ट्रम्प कार्ड है, खिचड़ी पूरी तरह सेक्युलर है और हर भारतीय को प्रिय है।
मुगलों को और भगवान जगन्नाथ ,दुर्गा सबको प्रिय है,औरंगज़ेब तो रोज़ खिचड़ी ही खाता था अपनी टोपी बनाने और कुरान लिखने से हुई कमाई से।
दरअसल खिचड़ी उन चंद उर्दू लफ़्ज़ों में से है जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई।
खिच्चा मतलब चावल और दाल,इसी से खिचड़ी शब्द की उत्पत्ति हुई।सिकन्दर के मंत्री सेल्यूकस ने खिचड़ी का उल्लेख किया है इसा पूर्व।तेरहवीं सदी में इब्न बतूता और अन्य यात्रियों ने खिचड़ी
का उल्लेख किया।इसा पूर्व भारत में ज्वर,बाजरा,कोदो,रागी,मुंग,उड़द, चना वगैरह आम जनता खाती थी।
मुगलों ने इसमें गोश्त मिला दिया।बहुत तरह की खिचडिया बनती हैं।कर्नाटक का बिसिबेलेभाथ हो या तमिल पोंगल या बीफ या गोश्त के साथ पकी हलीम या हरयाणा का बाजरे का खीचड़ा,
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May 17
क्या आप जानते हैं की समयसूचक AM और PM का उद्गगम भारत में ही हुआ था …??

लेकिन हमें बचपन से यह रटवाया गया, विश्वास दिलवाया गया कि इन दो शब्दों AM और PM का मतलब होता है :

AM : Ante Meridian
PM : Post Meridian
एंटे यानि पहले, लेकिन किसके? पोस्ट यानि बाद में, लेकिन किसके? यह कभी साफ नहीं किया गया, क्योंकि यह चुराये गये शब्द का लघुतम रूप था।काफ़ी अध्ययन करने के पश्चात ज्ञात हुआ और हमारी प्राचीन संस्कृत भाषा ने इस संशय को साफ-साफ दृष्टिगत किया है। कैसे? देखिये...
AM = आरोहनम् मार्तण्डस्य
PM = पतनम् मार्तण्डस्य

सूर्य, जो कि हर आकाशीय गणना का मूल है, उसी को गौण कर दिया। अंग्रेजी के ये शब्द संस्कृत के उस वास्तविक ‘मतलब' को इंगित नहीं करते।

आरोहणम् मार्तण्डस्य यानि सूर्य का आरोहण या चढ़ाव। पतनम् मार्तण्डस्य यानि सूर्य का ढलाव।
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May 17
एक बादशाह ने अपने यहां " रफूगर " रखा हुआ था !

रफूगर का काम सिलाई करना नहीं था बल्कि बादशाह की बातों को रफू करना था !

दरअसल वह रफूगर बादशाह की हर बात की मरम्मत इस तरह करता कि जनता वाह वाह करती और तालियां बजाती ..!
एक दिन बादशाह दरबार लगाकर जनता को अपने जवानी की शिकार का किस्सा सुना रहे थे ..?

जोश में आकर कहने लगे ....

एक बार तो ऐसा हुआ कि मैंने आधे किलोमीटर दूर से एक हिरन पर निशाना लगाया ..! तीर सनसनाता हुआ गया और..
हिरन की बायीं आंख में लगकर दायें कान से होता हुआ पिछले पैर की
दायीं टांग के खुर में लगा ...

बादशाह को उम्मीद थी कि जनता वाह वाह करेगी !

परन्तु ये क्या !?
चारों तरफ शांति ..

बादशाह भी समझ गया कि मैंने ज्यादा लम्बी छोड़ दी ..!

बादशाह ने तुरंत रफूगर की ओर देखा ..!

रफूगर उठा और बोला :- हजरात में इस वाकए का चश्मदीद गवाह हूं !..
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