#धर्मसंसद
पंच कन्याओं में चौथी कुंती को कौन नहीं जानता। जिसने न भी जाना होगा वह बी आर चोपड़ा के कालजयी सीरियल महाभारत के कारण जान गया होगा। महाराज पांडु की पत्नी सूर्य पुत्र कर्ण युधिष्ठिर भीम और अर्जुन की माता महाभारत की एक प्रमुख पात्र रही हैं।सभी पंच कन्याओं में
एक बात कामन रही है कि यह सभी चिरयौवना होने के साथ-साथ एक दुर्भाग्य भी रखती थी। तारा मंदोदरी कुंती कुंती को विधवा होना पड़ा। अहिल्या विधवा तो नहीं हुई पर उससे भी भयंकर यातना सहती रहीं। द्रौपदी को भरी जवानी में पति के साथ वन विभाग घूमना पड़ा। फिर भी यह सनातन धर्म की
विशेषता कही जाएगी कि यह सभी
प्रात: स्मरणीय हैं। पांडवों की माता कुंती के विषय में सब कुछ जानते होंगे पर एक बात जो शायद सबको न ज्ञात हो उसे मैं बता रहा हूं।इनका कुंती नाम जो बहुत प्रचलित है वह इनका असली नाम नहीं है।इनका असली नाम पृथा था। श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन के लिए
जो बार बार पार्थ शब्द आया है वह इसी पृथा के पुत्र होने के कारण है। यह भगवान श्रीकृष्ण की बुआ और वसुदेव जी की पांच बहनों में सबसे बड़ी थीं।पृथा कुंती कैसे बनीं यह एक रोचक कहानी है। हुआ ऐसा कि जब पृथा किशोरावस्था में थीं तभी सबसे पराक्रमी योद्धा भीष्म पितामह अपने
अंधे भतीजे धृतराष्ट्र के लिए वधू ढूंढ रहे थे। चूंकि तत्कालीन कुरु साम्राज्य की बात यादव गणराज्य टाल नहीं सकता था इसलिए समस्या पैदा हुई कि पृथा को भीष्म पितामह की कुदृष्टि से कैसे बचाया जाय क्योंकि यादव कमजोर थे।इसी समय वसुदेव जी की इस चिंता का समाधान करने पांचाल राज
कुंतिभोज आ गये। कुंतिभोज वसुदेव जी की बुआ के लड़के थे और उस समय तक निस्संतान थे। उन्होंने पृथा को गोद ले लिया और अपनी पुत्री की तरह पालन पोषण किया।उस समय केवल पांचाल राज्य ही ऐसा था जिस पर हमला करने की कुरु साम्राज्य में भी साहस नहीं था।इसका कारण था पांचाल राज
की भौगोलिक स्थिति। पांचाल राज्य आज कल फर्रुखाबाद से लेकर देहरादून की पहाड़ियों तक स्थित था। पहाड़ी राज्य होने के कारण यह पांचों राज्य छापामार शैली का युद्ध करते थे जिसका सामना मैदानी क्षेत्रों के लोग नहीं कर सकते थे। भीष्म पितामह की हिम्मत नहीं हुई कि पांचालों
से भिड़ें। इसलिए एक और कमजोर राज्य गांधार पर हमला करके राजा सुबल को विवश कर दिया कि अपनी पुत्री गांधारी का विवाह अंधे धृतराष्ट्र के साथ कर दें। धृतराष्ट्र का विवाह हो जाने के बाद राजा कुंतिभोज ने स्वयं राजा पाण्डु के साथ अपनी पुत्री कुंती का विवाह कर दिया। एक बात और भी
ध्यान दें कि जहां भी पांचाल राज्य की बात आती है तो लोग सीधे-सीधे राजा द्रुपद को ही समझ लेते हैं जबकि ऐसी बात थी नहीं। पांचाल पांच राज्यों का समूह था जिसकी अध्यक्षता द्रुपद करते थे। अन्य चार राजा थे कुंतिभोज, युधामन्यु,पुरुजित और चेकितान।इन पांचों राज्यों को मिलाकर
पांचाल कहते हैं। वर्तमान में फर्रुखाबाद की नगरी रामनगर पांचाल राज्य की राजधानी थी। दूसरी राजधानी बरेली जिले में अहिछत्र थी। धन्यवाद जय
चाय का इतिहास
आपने वह विज्ञापन तो देखा ही होगा जिसमें मशहूर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन तबला बजाने के बाद चाय पीने के बाद कहते हैं वाह ताज। इससे यह मत समझ लीजिए कि ताजमहल ब्रांड चाय किसी भारतीय कंपनी की है।ना ना ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। टाटा आदि को छोड़कर बाकी
अन्य बड़े-बड़े ब्रांड जैसे लिप्टन,रेड लेबल, ब्रुक बांड डंकन, ताजमहल,ट्वीनिंग जैसे बड़े-बड़े ब्रांड सब विदेशी हैं।असम दार्जिलिंग कुमायूं गढ़वाल कुल्लू मनाली मैं तमाम बड़े-बड़े चाय बागान विदेशी कंपनियों के हैं। चाय का आविष्कार भी बड़े रोचक ढंग से हुआ है।
ईसा पूर्व 2700 वर्ष में चीन में एक सम्राट शेन नुंग अपने बगीचे में गर्म पानी पी रहे थे कि अचानक एक पत्ती कहीं से उड़कर आई और उनके गिलास में पड़ गई। गर्म पानी पत्ती का स्पर्श पाते ही लाल रंग की हो गई और स्वाद बदल गया। चाय की शुरुआत यहीं से हुई। पहले तो इसे औषधि के रूप में
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कुछ अपरिहार्य कारणों से पिछले दिनों प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सका । वैसे भी बहुत कुछ कहने के लिए था नहीं क्योंकि उन सभी पात्रों के विषय में आप सबको अच्छी जानकारी थी। अहिल्या की चर्चा एक बार पहले भी हो चुकी थी पर पंच कन्याओं की श्रृंखला में पहला स्थान
होने के कारण आरंभ उन्हीं से करना उचित था। यह पांचों कन्याएं अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती और द्रौपदी प्रात:स्मरणीया हैं।इनकी विशेषता है कि यह पांचों सदा युवा रहती थीं। एक से अधिक विवाह अथवा जाने अंजाने कई पुरुषों से संबंध होने के बाद भी यह सभी पवित्र मानी जाती थी
जैसे कि अहिल्या का बलात्कार इंद्र ने किया था जिससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची थी पर देर सबेर इन्हें सामाजिक मान्यता भगवान श्रीराम के द्वारा प्राप्त हुई थी। जहां तक तारा कौन थीं का प्रश्न है तारा नाम की दो स्त्री पात्र रही हैं। एक बृहस्पति की पत्नी तारा
मालूम होई ओहि दिन।बहलोल भजइब जेहि दिन। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को जिताने के बाद कांग्रेसी वोटर यही गाएंगे। शायद आप लोग बहलोल का अर्थ नहीं जानते होंगे। पुराने जमाने में धन ज़मीन में गाड़ कर सुरक्षित रखा जाता था क्योंकि तब बैंक नहीं हुआ करते थे। चोरी डकैती बहुत
होती थी। इसीलिए धन को सोने चांदी के सिक्कों में बदलकर जमीन में गाड़ दिया जाता था पर इसमें बहुत व्यस्त की समस्या आती थी। इसलिए लोग सुधारों से सिक्कों के बदले बहलोल खरीद कर सुरक्षित रखा करते थे। बहलोल एक सोने की गुल्ली के आकार का स्वर्ण पिंड होता था।कभी कभी कुछ सुनार
धोखा देने के तांबे की गुल्ली पर सोने का पत्तर चढ़ाकर बेंच देते थे। जब जरूरत पड़ने पर लोग बाजार में बेचने जाते थे तब पता चलता था कि यह बहलोल तो नकली है। कांग्रेस ने कर्नाटक के मतदाताओं को रिझाने के लिए जिन पांच वादों की गारंटी दिया है वह कभी पूरी नहीं कर सकेगी
आखिरकार कर्नाटक केजरीवाल फार्मूला काम कर गया। मुफ्त की रेवड़ी में बिक गए मतदाता। उधर भाजपा जिन पसमांदा मुसलमानों के भरोसे रही उन्होंने वोट तो छोड़ो पसम भी नहीं दिया गया। कहां गया वह लाभार्थी वर्ग जो कहता था कि हमें तो घर मिला है उज्जवला ज्योति में मुफ्त सिलेंडर मिला
मुफ्त बिजली कनेक्शन मिला है।हम तो वोट मोदी को ही देंगे। भाजपा के वोट प्रतिशत में बहुत कमी नहीं हुई। इसके वोटर पार्टी के प्रति प्रतिबद्ध रहे। यहां भी ठग लिया बेंगलुरु में काम करने वाले उत्तर भारतीय साफ्टवेयर इंजीनियरों ने। यह लोग पिकनिक मनाने चले गए और अपना वोट
ही नहीं दिया।शेष बचे अकुशल श्रमिक वर्ग तो यह मुफ्त की बिजली और बेगारी भत्ते के लालच में हाथ कटा बैठा।ऐसी बात नहीं है कि मोदी,शाह इस बात को जानते नहीं थे। खूब जानते थे कि भयानक एंटीइंकैम्बीसी थी फिर भी जी जान से लगे रहे पर हार गए उनसे जो
1757 में प्लासी की लड़ाई में
आखिरकार केजरीवाल अपने रहने के लिए ४५ करोड़ रुपए का शीशमहल क्यों न बनवाएं जब उन्हें पता है कि वे आजीवन दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहेंगे और मरने के बाद उनके वंशजों का ही दिल्ली पर राज रहेगा।2 करोड़ की आबादी वाले दिल्ली में मुख्य निवासियों की संख्या केवल 15% है।
35% पाकिस्तानी शरणार्थी और पंजाबी रहते हैं जिनमें पंजाबी ब्राह्मण खत्री जाट गूजर वैश्य और सिक्ख लोग रहते हैं। यह लोग मुख्य रूप से चाणक्य पुरी मयूर विहार बसंत विहार ग्रेटर कैलाश जैसी दिल्ली की पाश कालोनियों में एसी कमरों में रहते हैं जो कभी भी वोट नहीं देने जाते हैं।
शेष ५० लाख यूपी बिहार के दिहाड़ी मजदूर और ४०लाख रोहिंग्या बंग्लादेशी मुस्लिम रहते हैं जिन्होने ने २०० युनिट बिजली और
२०० लीटर मुफ्त पानी के लिए अपने स्वाभिमान को केजरीवाल के हाथों गिरवी रख दिया है।याद रखें कि पूर्वांचल और बिहार के यह वही मजदूर हैं जिन्हें कोरोना के समय
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कल और आज के प्रश्न एक दूसरे के पूरक हैं। बिना कद्रू के विनता की और बिना विनता के कद्रू की कहानी अधूरी है।इन दोनों के विषय में कल से शुरू हो कर आज तक बहुत कुछ बताया जा चुका है। विशेषकर प्रेरक अग्रवाल जो अपनी वैज्ञानिक व्याख्या के लिए जाने जाते हैं ने बहुत
विस्तार से जानकारी दिया है।नीलम मिश्रा सत्यवती का उत्तर भी सराहनीय रहा है। कहानी तो पता ही है कि सूर्य के घोड़े की पूंछ काली है कि सफेद इसी पर छुआ खेला गया था और इसमें छल से बड़ी बहन कद्रू जीत गई थी जिसके कारण विनता को आजीवन कद्रू की दासी बनना पड़ गया था।इसी
दासत्व से मां विनता को मुक्त कराने के लिए गरुड़ जी को इंद्र से युद्ध करके अमृत कलश लाकर नागों को देना पड़ा था। यह और बात है कि नारद मुनि के सुझाव के अनुसार गरुड़ जी नागों को अमृत पीने नहीं दिया और वचन के अनुसार मां विनता को कद्रू के दासत्व से मुक्त करा लिया था।