#धर्मसंसद
जैसा कि मैंने प्रश्न करते हुए ही बता दिया था कि यह पात्र बहुत प्रचलित है।इस प्रश्न की विस्तृत व्याख्या बहन शशिबाला राय, प्रेरक अग्रवाल नीलम सत्यवती आदि ने किया है।
इसके पहले कि मैं कुछ और कहूं एक बात कहना चाहता हूं कि मेरी व्यक्तिगत व्याख्या तर्कसंगत
और वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में होती है।ऐसा इसलिए क्योंकि पुराणों में अधिकांश बातें लाक्षणिक अर्थ लिए होती हैं। यह पाठक की बुद्धि पर निर्भर करता है कि वह क्या समझता। इसलिए यह मत सोचिए कि मैंने तो कथावाचक जी से यह सुना है, वह पढ़ा है,फलाना ढिकाना आदि। कहीं से भी
किसी को शंका हो तो निस्संकोच पूछिएगा। यथासंभव समाधान की कोशिश करूंगा। पिछले कुछ दिनों तक सर्दी ज़ुकाम से परेशान रहा और उत्तर नहीं दे पाया।कल कुंती वाले उत्तर पर आप लोगों को प्रतिक्रिया उत्साहजनक रही। आज का जहां तक सवाल है द्रौपदी के विषय में कुछ कहना सूर्य को
दीपक दिखाने जैसा होगा। द्रौपदी के विषय में लिखने के लिए एक पूरा ग्रन्थ कम पड़ जाएगा। बहुत संक्षेप में इतना ही जानिए कि यही महाभारत महाकाव्य की नायिका थीं। आमतौर पर देखा गया है कि किसी कथा कहानी काव्य महाकाव्य में नायक और नायिका पति-पत्नी होते हैं। महाभारत इस
नियम का अपवाद है। यहां नायक तो सर्वमान्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण हैं पर नायिका न तो राधा हैं न रूक्मिणी सत्यभामा जामवंती है और ना ही कुंती गांधारी हैं। यहां नायक नायिका आपस में मुंहबोले भाई बहन श्रीकृष्ण और द्रौपदी हैं।है न विचित्र बात? हां पर सत्य यही है। संपूर्ण
कथा तो शशिबाला राय ने कहा ही है। एक और विशेषता इन दोनों में ही है। भगवान श्रीकृष्ण को किसी ने पुत्र रूप में माना जैसे कि माता यशोदा, देवकी कुंती सांदीपनि गुरु की पत्नी आदि कुछ ने पति या प्रेमी के रूप में माना जैसे कि राधा रानी और ब्रज की गोपियां, रुक्मिणी आदि आठों
रानियां आदि। एकमात्र स्त्री पात्र द्रौपदी हैं जिन्होंने श्रीकृष्ण को सख्य भाव से पाया था। महाभारत में अनेक स्थानों पर श्रीकृष्ण द्रौपदी को बहन कहने के बजाय सखी ही कहते हैं। भक्ति मार्ग का राधास्वामी संप्रदाय इसी सख्य भाव पर आधारित है।पुनश्च द्रौपदी द्वापरयुग की
एकमात्र स्त्री पात्र हैं जो अयोनिजा हैं अर्थात इनका और इनके भाई धृष्टद्युम्न का जन्म यज्ञ मंडप में हुआ था बिना माता-पिता के सहवास के। दूसरे अर्थों में कहा जाय तो कहेंगे कि द्रौपदी विज्ञान का एक चमत्कारिक आविष्कार थीं। नाम भी द्रौपदी नहीं था। सरसरी तौर पर महाभारत
पढ़ने वाले भी समझ नहीं पाएंगे कि द्रौपदी का असली नाम क्या है। इनका असली नाम कृष्णा था।यज्ञ से उत्पन्न होने के कारण इन्हें याज्ञसेनी भी कहते हैं। कहते हैं कि द्रौणाचार्य पूर्व जन्म में द्वापरयुग की बहन थीं जिनका अवतरण ही दुष्ट दलन और द्वापरयुग के समापन के लिए हुआ था।
एकमात्र भक्तिन जिसके एक हाथ के आंचल के टुकड़े के प्रतिदान में नारायण ने साड़ियों का ढेर लगा दिया था जो इतिहास में भूतो न भविष्यति सिद्ध हुआ। बड़ा उलझा हुआ चरित्र है द्रौपदी का जिसका विश्लेषण आज के बड़े-बड़े मनोवैज्ञानिक नहीं कर सकते हैं। आदर्श माता आदर्श पत्नी
आदर्श बहू आदर्श बहन और यहां तक कि आदर्श सौत भी थीं। कृष्ण की अनन्य भक्त जो न कभी हुई और न आगे होगी भी। गर्ग ऋषि द्वारा प्रेरित किये जाने पर सूर्य की आराधना करके अक्षय पात्र पात्र करना कोई आसान बात नहीं है। सबके भोजन करने के बाद ही गृहिणी को भोजन करना चाहिए यह परंपरा
वैसे तो सतयुग से चली आ रही थी पर उसे एक अनिवार्य नियम का रूप द्रौपदी ने ही दिया है। इसीलिए शायद सुमित्रानंदन पंत ने कहा है कि बज्रादपि कठोर तुम कुसुमादपि सुकुमारी।हर काल समय के अनुरूप अपने को ढाल लेने वाली को द्रौपदी कहते हैं। कहने के लिए तो बहुत है पर रात हो गई है
किसी के पास पढ़ने के लिए फुर्सत नहीं है धन्यवाद।जय
माननीय सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसले जो इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाएंगे। किसी ने शायद ही ध्यान दिया होगा कि हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने तीन ऐतिहासिक महत्व का फैसला सुनाया है जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी।
१- केरला स्टोरी पर फैसला। बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने
फिल्म द केरला स्टोरी पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया था कि इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार की दलील नकारते हुए फिल्म पर प्रतिबंध को रद्द कर दिया। सबसे बड़ी बात सुप्रीम कोर्ट का यह कहना रहा कि हम लोग भी फिल्म देखेंगे।आप फिल्मों में पंडितो
पुजारियों का मज़ाक उड़ाते हैं तो अच्छा लगता है और कोई मुस्लिम आतंकवादी की आलोचना करे तो बुरा क्यों लगता है।
२- तमिलनाडु में जलीकट्टू और महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़ पर २०११
से लगा प्रतिबंध हटा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सब त्योहार देश की संस्कृति के लिए
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माधवी- विश्व की सबसे पहली सरोगेट मदर जिसका अक्षतयौवना का वरदान ही उसके लिए अभिशाप बन गया। विस्तृत वर्णन बाबूलाल टेलर ने भीष्म साहनी के इसी नाम पर लिखे गए उपन्यास से और पौराणिक आख्यानों के अनुसार प्रेरक अग्रवाल, सत्यवती और आधा अधूरा शशिबाला राय ने किया है
इस विषय पर पिछले दो सालों में दो बार मैं एक कथा लिख चुका हूं। बार-बार उसी को दोहराने में आनंद नहीं आता। शब्द विन्यास बदल जाते हैं।माधवी चंद्र वंश के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट ययाति और अप्सरा चित्त वृहिती की अनुपम सुन्दरी कन्या थी। दुर्वासा ऋषि ने उसके भक्ति भाव और
सेवा से प्रसन्न होकर अक्षतयौवना रहने का वरदान दिया था। साथ-साथ माधवी की कुंडली देखकर बता दिया था कि कन्या चार महान सम्राटों को जन्म देगी। संयोग कहें कि दुर्योग असम के एक गरीब ब्राह्मण का पुत्र गालव ऋषि विश्वामित्र के गुरुकुल से पढ़कर निकला और गुरु से हठ करने लगा
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पंच कन्याओं में चौथी कुंती को कौन नहीं जानता। जिसने न भी जाना होगा वह बी आर चोपड़ा के कालजयी सीरियल महाभारत के कारण जान गया होगा। महाराज पांडु की पत्नी सूर्य पुत्र कर्ण युधिष्ठिर भीम और अर्जुन की माता महाभारत की एक प्रमुख पात्र रही हैं।सभी पंच कन्याओं में
एक बात कामन रही है कि यह सभी चिरयौवना होने के साथ-साथ एक दुर्भाग्य भी रखती थी। तारा मंदोदरी कुंती कुंती को विधवा होना पड़ा। अहिल्या विधवा तो नहीं हुई पर उससे भी भयंकर यातना सहती रहीं। द्रौपदी को भरी जवानी में पति के साथ वन विभाग घूमना पड़ा। फिर भी यह सनातन धर्म की
विशेषता कही जाएगी कि यह सभी
प्रात: स्मरणीय हैं। पांडवों की माता कुंती के विषय में सब कुछ जानते होंगे पर एक बात जो शायद सबको न ज्ञात हो उसे मैं बता रहा हूं।इनका कुंती नाम जो बहुत प्रचलित है वह इनका असली नाम नहीं है।इनका असली नाम पृथा था। श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन के लिए
चाय का इतिहास
आपने वह विज्ञापन तो देखा ही होगा जिसमें मशहूर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन तबला बजाने के बाद चाय पीने के बाद कहते हैं वाह ताज। इससे यह मत समझ लीजिए कि ताजमहल ब्रांड चाय किसी भारतीय कंपनी की है।ना ना ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। टाटा आदि को छोड़कर बाकी
अन्य बड़े-बड़े ब्रांड जैसे लिप्टन,रेड लेबल, ब्रुक बांड डंकन, ताजमहल,ट्वीनिंग जैसे बड़े-बड़े ब्रांड सब विदेशी हैं।असम दार्जिलिंग कुमायूं गढ़वाल कुल्लू मनाली मैं तमाम बड़े-बड़े चाय बागान विदेशी कंपनियों के हैं। चाय का आविष्कार भी बड़े रोचक ढंग से हुआ है।
ईसा पूर्व 2700 वर्ष में चीन में एक सम्राट शेन नुंग अपने बगीचे में गर्म पानी पी रहे थे कि अचानक एक पत्ती कहीं से उड़कर आई और उनके गिलास में पड़ गई। गर्म पानी पत्ती का स्पर्श पाते ही लाल रंग की हो गई और स्वाद बदल गया। चाय की शुरुआत यहीं से हुई। पहले तो इसे औषधि के रूप में
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कुछ अपरिहार्य कारणों से पिछले दिनों प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सका । वैसे भी बहुत कुछ कहने के लिए था नहीं क्योंकि उन सभी पात्रों के विषय में आप सबको अच्छी जानकारी थी। अहिल्या की चर्चा एक बार पहले भी हो चुकी थी पर पंच कन्याओं की श्रृंखला में पहला स्थान
होने के कारण आरंभ उन्हीं से करना उचित था। यह पांचों कन्याएं अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती और द्रौपदी प्रात:स्मरणीया हैं।इनकी विशेषता है कि यह पांचों सदा युवा रहती थीं। एक से अधिक विवाह अथवा जाने अंजाने कई पुरुषों से संबंध होने के बाद भी यह सभी पवित्र मानी जाती थी
जैसे कि अहिल्या का बलात्कार इंद्र ने किया था जिससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची थी पर देर सबेर इन्हें सामाजिक मान्यता भगवान श्रीराम के द्वारा प्राप्त हुई थी। जहां तक तारा कौन थीं का प्रश्न है तारा नाम की दो स्त्री पात्र रही हैं। एक बृहस्पति की पत्नी तारा
मालूम होई ओहि दिन।बहलोल भजइब जेहि दिन। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को जिताने के बाद कांग्रेसी वोटर यही गाएंगे। शायद आप लोग बहलोल का अर्थ नहीं जानते होंगे। पुराने जमाने में धन ज़मीन में गाड़ कर सुरक्षित रखा जाता था क्योंकि तब बैंक नहीं हुआ करते थे। चोरी डकैती बहुत
होती थी। इसीलिए धन को सोने चांदी के सिक्कों में बदलकर जमीन में गाड़ दिया जाता था पर इसमें बहुत व्यस्त की समस्या आती थी। इसलिए लोग सुधारों से सिक्कों के बदले बहलोल खरीद कर सुरक्षित रखा करते थे। बहलोल एक सोने की गुल्ली के आकार का स्वर्ण पिंड होता था।कभी कभी कुछ सुनार
धोखा देने के तांबे की गुल्ली पर सोने का पत्तर चढ़ाकर बेंच देते थे। जब जरूरत पड़ने पर लोग बाजार में बेचने जाते थे तब पता चलता था कि यह बहलोल तो नकली है। कांग्रेस ने कर्नाटक के मतदाताओं को रिझाने के लिए जिन पांच वादों की गारंटी दिया है वह कभी पूरी नहीं कर सकेगी