#धर्मसंसद
माधवी- विश्व की सबसे पहली सरोगेट मदर जिसका अक्षतयौवना का वरदान ही उसके लिए अभिशाप बन गया। विस्तृत वर्णन बाबूलाल टेलर ने भीष्म साहनी के इसी नाम पर लिखे गए उपन्यास से और पौराणिक आख्यानों के अनुसार प्रेरक अग्रवाल, सत्यवती और आधा अधूरा शशिबाला राय ने किया है
इस विषय पर पिछले दो सालों में दो बार मैं एक कथा लिख चुका हूं। बार-बार उसी को दोहराने में आनंद नहीं आता। शब्द विन्यास बदल जाते हैं।माधवी चंद्र वंश के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट ययाति और अप्सरा चित्त वृहिती की अनुपम सुन्दरी कन्या थी। दुर्वासा ऋषि ने उसके भक्ति भाव और
सेवा से प्रसन्न होकर अक्षतयौवना रहने का वरदान दिया था। साथ-साथ माधवी की कुंडली देखकर बता दिया था कि कन्या चार महान सम्राटों को जन्म देगी। संयोग कहें कि दुर्योग असम के एक गरीब ब्राह्मण का पुत्र गालव ऋषि विश्वामित्र के गुरुकुल से पढ़कर निकला और गुरु से हठ करने लगा
कि गुरु दक्षिणा मांगिए। विश्वामित्र ने बहुत समझाया कि तुम गरीब ब्राह्मण हो मुझे दक्षिणा देने की तुम्हारी हैसियत नहीं है। मैं तुम्हारी सेवा को ही गुरु दक्षिणा मानकर तुम्हें गुरुऋण से मुक्त करता हूं। शिष्य के बारंबार हठ करने पर ऋषि विश्वामित्र का क्षात्र मन उबल पड़ा
उन्हें लगा कि एक भिखमंगी जाति का बालक एक बड़े पूर्व सम्राट से दक्षिणा मांगने का हठ कर रहा सो क्रोधित होकर विश्वामित्र ने कहा कि दक्षिणा ही देना चाहते हो तो और मुझे 800 श्यामकर्ण घोड़े लेकर आओ।गालव को काटो तो खून नहीं। फिर भी साहस करके कहा कि गुरु देव मुझे समय दें
गुरु ने समय दें दिया। ऐसे समय गालव का मित्र पक्षिराज गरूड़ काम आये।गालव को पीठ पर बिठाकर सातों लोक चौदहों भुवन घूम आए पर कहीं पता नहीं चला। हार थक कर दोनों मित्र ययाति पुर
(वर्तमान में कानपुर में कस्बा जाजमऊ) में राजा ययाति से मिले और समस्या बताया। ययाति ने कहा कि
८०० श्याम कर्ण घोड़े तो नहीं मिल सकते क्योंकि जो अर्वुदेश का व्यापारी इन्हें लेकर समुद्र मार्ग से आ रहा था उनसका एक जलयान तूफान से प्रभावित होकर डूब गया जिसमें 200 घोड़े बह गए।शेष बचे घोड़ों में से 200-200 घोड़े आर्यावर्त के तीन महान सम्राटों अयोध्या के हर्यश्व
काशी नरेश दिवोदास और धारा के भोजराज उशीनर के पास हैं। संयोग से यह तीनों ही सम्राट निस्संतान हैं।आप मेरी परम रूपवती कन्या माधवी को ले जाइए और इन तीनों को बारी बारी से एक एक साल के देकर दो दो सौ घोड़े ले लेना। सबसे पहले गालव माधवी को लेकर अयोध्या के राजा हर्यश्व के
यहां पहुंचे और कहा कि महाराज इस गुणवती कन्या को एक साल के लिए अपने पास रखें और एक पुत्र प्राप्ति के बाद दो सौ घोड़े के साथ माधवी को मुझे वापस कर दीजिए। एक साल बाद उनके एक पुत्र वसुमान पैदा हो गया। प्रतिज्ञा के अनुसार राजा ने दो सौ घोड़े और माधवी को गालव को दे दिया
अब गालव काशी नरेश दिवोदास के यहां पहुंचे और इसी शर्त पर एक साल के लिए माधवी को दे दिया। इससे दिवोदास के एक पुत्र प्रतर्दन पैदा हुए। वहां से दो सौ घोड़े लेकर दोनों मित्र भोज राज उशीनर के पास पहुंचे और माधवी को एक साल के लिए दे आए।नियत अवधि में उशीनर के एक पुत्र
शिवि पैदा हुए जो अपने दान और परोपकार के लिए जाने जाते हैं।इस प्रकार छः सौ घोड़े लेकर गालव ऋषि विश्वामित्र के पास आए और कहा कि गुरु देव पृथ्वी पर उपलब्ध यह ६०० घोड़े रख लीजिए और शेष २०० घोड़े के ऐवज में माधवी को रख लीजिए। एक साल बाद कौशिक कुल में विश्वामित्र के
पुत्र अष्टक का जन्म हुआ। गालव अपने गुरु ऋण से मुक्त हो कर माधवी को राजा ययाति के पहुंचा आए। यहीं गालव से चूक हो गई।इन पांच वर्षों में न जाने कब गालव और माधवी को परस्पर प्यार हो गया। संकोच बस दोनों ने किसी से कुछ कहा नहीं। माधवी के पितृ गृह पहुंचने पर ययाति ने माधवी
का स्वयंवर रचाना चाहा पर माधवी ने इंकार कर दिया और वन में तप करने चली गई। आगे की कहानी भावुकता पूर्ण है। माधवी का वन गमन सुनकर गालव का सारा संकोच जाता रहा और वन में जाकर गालव ने कहा कि माधवी में तुमसे प्यार करता हूं और विवाह करना चाहता हूं। माधवी ने कहा कि गालव
मैं भी तुमसे प्यार करती हूं पर तुम तो कायर निकले। जिस प्रेम का प्रकटीकरण आज कर रहे हो उसे उसी समय करना चाहिए था जब मुझे लेकर विश्वामित्र के गुरुकुल से वापस आ रहे थे। अब देर हो चुकी है।इस जन्म हमारा पति-पत्नी बनकर रहना संभव नहीं है। तुम जाकर अपना विवाह करके गृहस्थी
बसा लो। गालव ऋषि इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसके बाद की भिन्न-भिन्न स्रोतों से भिन्न-भिन्न ज्ञात होती है। एक स्रोत के अनुसार माधवी सती हो गई थी और उसकी चिता को मुखाग्नि गालव ने ही दिया था।उसकी चिता की राख को गंगा में बहाकर विधिवत श्राद्ध कर दिया। ऐसा करने में तर्क वितर्क की
आवश्यकता नहीं है क्योंकि ऋषि और राजा को किसी का भी श्राद्ध कर्म करने का अधिकार होता है। निराश गालव ने गृहस्थाश्रम का मोह छोड़ दिया और संन्यासी हो गया।इस कथा में दोषी कौन है? राजा ययाति, ऋषि विश्वामित्र, शिष्य गालव या फिर माधवी। निर्णय आपके विवेक पर निर्भर करता है
उत्तर यदि संभव हो तो निस्संकोच दीजियेगा। धन्यवाद जय
#धर्मसंसद
सूर्पनखा- रावण की बहन और रामायण की असली खलनायिका। वैसे कुछ लोग मुख्य खलनायिका कैकेई को मानते हैं पर मैं ऐसा नहीं मानता। इसके विषय में काफी कुछ जानकारी तो सबको पता होगी। कुछ अन्य बातें जानिए।इसका नाम सूर्पनखा नहीं था।यह तो मजाक में रखा गया था जो कालांतर में
प्रसिद्ध हो गया।इसका वास्तविक नाम बज्रमणि था।इसकी आंखें बड़ी सुंदर थीं और इसीलिए इसकी इसकी नानी सुकेशी ने बचपन में इसका नाम मीनाक्षी रखा था। यह अपने समय की फैशनेबल महिला थी। बड़े-बड़े नाखून रखना और उसे प्राकृतिक रंगों से रंगना इस महिला का शौक था। इसीलिए मजाक मजाक में
लोग इसे सूर्पनखा कहने लगे। रावण बड़ा अहंकारी था यह इससे सिद्ध होता हैं कि उसने अपनी दोनों बहनों के विवाह के विषय में सोचा ही नहीं। मंदोदरी आदि द्वारा समझाए जाने पर कहता था कि मेरे बराबर वीर कोई असुर दैत्य दानव यक्ष किन्नर नाग वंश में है नहीं और मनुष्यों और देवताओं को
क्या आप जानते हैं कि शिवकुमार के बजाय सिद्धारमैया को कर्नाटक का मुख्यमंत्री क्यों बनाया गया है?
तो ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि डीके शिवकुमार एक बड़े हिंदू हैं।वे पूरी भक्ति भाव से मंदिर मंदिर जाते हैं। उन्होंने चुनाव बाद कर्नाटक के हर जिले में हनुमान मंदिर
बनवाने का संकल्प लिया था। इसके विपरीत सिद्धारमैया की विचारधारा गांधी परिवार से अधिक मिलती है। गांधी फेमिली की ही तरह सिद्धारमैया कट्टर कम्युनिस्ट और नास्तिक हैं। इससे भी बढ़कर एक योग्यता और है कि वह कट्टर हिन्दू द्रोही हैं। तुष्टिकरण के वोट इसीलिए कांग्रेस को मिला था
कि उन्हें भरोसा दिया गया था कि उनके प्रिय नेता सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बनेंगे। बाकी तो वोक्कालिंगा समुदाय को घिस्सा देने के लिए नौटंकी हो रही थी। यह बात चुनाव के पहले ही तय हो चुकी थी। प्रचंड बहुमत के कारण शिवकुमार चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते। यही फार्मूला अगले आम चुनाव
दमड़ी की हांडी गई कुत्ते की जाति पहचानी गई।२००० के नोट तो वैसे ही चलन में नहीं थे क्योंकि इसकी छपाई ही 2018 में बंद हो गई थी और बैंकों को निर्देश दिया गया था कि जितने भी ऐसे नोट आएं उन्हें फिर किसी को न दिए जायं। सीधे आरबीआई को वापस कर दिया जाय। कुल 6.30 लाख करोड़ के
नोट छापे गए थे जिसमें से करीब आधे नोट बैंक में वापस आ गए थे।बचे थे केवल 3 करोड़ 19 लाख नोट जिसका पता नहीं चल रहा था कि यह नोट हैं कहां। ज्यों ही आरबीआई ने घोषणा किया कि दो हजार के नोट अब 30 सितंबर के बाद नहीं चलेंगे कि बिल में पानी घुस गया। कीड़े मकोड़े की तरह
बिलबिलाते हुए नेता सामने आ गये। फिर वही पुराना रोना-धोना शुरू हो गया कि अर्थव्यवस्था बिगड़ जाएगी। उद्योग व्यापार चौपट हो जाएगा। कोई नेता यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि अगले चुनाव के लिए रखे गए इन नोटों का क्या होगा।पुरानी बात रही भी नहीं जब लोग सोचते थे कि चलो
#धर्मसंसद
प्रश्न इतने सुपरिचित पात्र पर था कि जबाव देने की बहुतों ने आवश्यकता नहीं समझी। फिर भी नियमित लेखकों प्रेरक अग्रवाल सत्यवती शशिबाला राय नीलम मिश्रा ने विस्तृत रूप से उत्तर दिया है। जैसा कि आप लोगों ने रामायण सीरियल में देखा होगा या रामचरितमानस में पढ़ा
होगा कि सुलोचना रावण की पुत्रवधू और मेघनाद की पत्नी थीं। यह नागराज वासुकी की कन्या थी। अब यह मत सोचिए कि एक सरीसृप प्रजाति के प्राणी वासुकी नाग की कन्या एक सुंदर स्त्री कैसे हो सकती है? जान लीजिए और और जरूरत पड़ने पर वामपंथियों को जबाव देने लायक ज्ञान पाइए कि नाग
कौन थे। यह एक मानव जाति थी जो प्रकृति पूजक थी।नाग इनके कुलदेवता होते थे।नाग पालना उसके विष से अनेकों प्रकार के अस्त्र शस्त्र बनाना और विष से औषधि बनाना इस जाति का मुख्य उद्यम था।आज के भर खरवार केवट मल्लाह इन्हीं नागों के वंशज हैं। इतिहास उठाकर देखेंगे तो पाएंगे कि
माननीय सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसले जो इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाएंगे। किसी ने शायद ही ध्यान दिया होगा कि हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने तीन ऐतिहासिक महत्व का फैसला सुनाया है जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी।
१- केरला स्टोरी पर फैसला। बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने
फिल्म द केरला स्टोरी पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया था कि इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार की दलील नकारते हुए फिल्म पर प्रतिबंध को रद्द कर दिया। सबसे बड़ी बात सुप्रीम कोर्ट का यह कहना रहा कि हम लोग भी फिल्म देखेंगे।आप फिल्मों में पंडितो
पुजारियों का मज़ाक उड़ाते हैं तो अच्छा लगता है और कोई मुस्लिम आतंकवादी की आलोचना करे तो बुरा क्यों लगता है।
२- तमिलनाडु में जलीकट्टू और महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़ पर २०११
से लगा प्रतिबंध हटा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सब त्योहार देश की संस्कृति के लिए
#धर्मसंसद
जैसा कि मैंने प्रश्न करते हुए ही बता दिया था कि यह पात्र बहुत प्रचलित है।इस प्रश्न की विस्तृत व्याख्या बहन शशिबाला राय, प्रेरक अग्रवाल नीलम सत्यवती आदि ने किया है।
इसके पहले कि मैं कुछ और कहूं एक बात कहना चाहता हूं कि मेरी व्यक्तिगत व्याख्या तर्कसंगत
और वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में होती है।ऐसा इसलिए क्योंकि पुराणों में अधिकांश बातें लाक्षणिक अर्थ लिए होती हैं। यह पाठक की बुद्धि पर निर्भर करता है कि वह क्या समझता। इसलिए यह मत सोचिए कि मैंने तो कथावाचक जी से यह सुना है, वह पढ़ा है,फलाना ढिकाना आदि। कहीं से भी
किसी को शंका हो तो निस्संकोच पूछिएगा। यथासंभव समाधान की कोशिश करूंगा। पिछले कुछ दिनों तक सर्दी ज़ुकाम से परेशान रहा और उत्तर नहीं दे पाया।कल कुंती वाले उत्तर पर आप लोगों को प्रतिक्रिया उत्साहजनक रही। आज का जहां तक सवाल है द्रौपदी के विषय में कुछ कहना सूर्य को