"हाथी नही गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है.."
जंगल का सबसे ताकतवर, विशालकाय, इंटेलिजेंट, सामाजिक, शाकाहारी जीव, जिसे ऐसे गगनभेदी नारों से बेवकूफ बनाकर सवारी गांठी जाती है। हाथी सिकंदर के दौर से, राजाओं की लड़ाइयां लड़ता रहा है, उनका हौदा पीठ पर ढोता रहा है।
शीश का दान कर, वह पूजनीय बन सकता है, मगर राजा नही।
नो पॉलिटिक्स- ऑनली वाइल्डलाइफ सीरीज में गिरगिट, शेर, गैंडे, जंगली गधे, मगरमच्छ, उल्लू, गिद्ध पर बात हो चुकी, मगर हाथी यहां भी उपेक्षित रह गया। तो आज बात हमारी, याने हाथी की..
धरती पर चलने वाला सबसे विशालकाय मेमल, हाथी है। संस्कृत के हस्ति शब्द से इसका प्रादुर्भाव है। जहां सारे हाथी पकड़कर सेवा में लाये जायें, वह माइथोलॉजिकल शहर हस्तिनापुर कहलाया।
अंग्रेजी में एलिफेंट कहते है, जो ग्रीक शब्द एलिफ़ास से बनता है।
एलिफ़ास का मतलब है आइवरी, याने वो दांत, जो बड़े कीमती होते हैं। नाम हिंदी हो या ग्रीक, उसका नाम ही उसके शोषण से ही उपजा है।
हाथी का बच्चा 22 माह के गर्भकाल के बाद, जन्मते ही 100 किलो का रहता है। किसी की मदद के बगैर कुछ ही देर में खड़ा होकर चलने लगता है।
तो आत्मनिर्भरता की मिसाल तो हाथी का बच्चा है..
शाह का नही। खैर..
हाथी विकसित होता है, मगर लम्बा वक्त लगता है। असल मे साठ सत्तर साल की कुल उम्र में आधे वक्त बढ़ता ही रहता है। शरीर मे, अनुभव में..
उसका दिमाग बड़ा होता है, बेहद बड़ा। वह भूलता नही, सब कुछ याद रखता है। बेहद पुरानी बातें, मामूली बातें, अनुपयोगी बातें.. और इन यादों का गुलाम भी बनता है।
वो ऐसे कि जिस राह से वह आता जाता है, उसकी स्मृति इतनी परफेक्ट होती है, की वह उसी राह से आयेगा-जाएगा।
तो हाथी पकड़ने वाले उसी राह में गड्ढा खोदते हैं, कीलें बिछाते हैं, जाल फैलाते है। हाथी पकड़ा जाता है।
छुटपन से पकड़े गए हाथी को, शाखा में ले जाकर, मोटे खूंटे और मोटी रस्सी से बांध दिया जाता है। तमाम कसमसाहट के बाद बाद जब हाथी हार मान ले, उसी वक्त वो गुलाम हो जाता है।
अब वह पतली सी, धुनी हुई रस्सी भी तोड़ने की कोशिश नही करता। उसका आत्मा,उसकी ताकत, उसका हाथीत्व अब पालतू हो जाता है। पालतू हाथी और पालतू कुत्ते में ज्यादा अंतर नही होता।
मगर "कुत्ते भौके हजार, हाथी चले बाजार" वाली कहावत तो है ही। पर यह भी सच है कि हाथी का बाजार में कोई काम नही।
बाजार तो उस पर बैठे सेठ, शाह और हृदय सम्राट जाते हैं।
हाथी से अगर पूछा जाए, तो वह हरे हरे झुरमुटों की तरफ जाना चाहेगा। प्रकृति के करीब.. इसलिए कि हाथी शाकाहारी है। घास, पौधे, पत्ते खाकर खुश रहता है। खून खच्चर, मार-काट, शिकार, घात, छल कपट से कोसों दूर।
बोलता कम है। असल ने ईश्वर ने दो बड़े कान दिए, तो मुंह सिल दिया।
- अपने ऊपरी होठ को उठाकर नाक से चिपकाइये।
- कल्पना कीजिये कि दोनों का जोड़ लम्बा होता जा रहा है..
- पाइप की तरह बेहद लम्बा बढ़ता जा रहा है..
- और बढ़ने दीजिये। जब वह छह फीट की हो जाये, पैरों से टकराने लगे,
तब समझिए कि मूंह पर सूंड लटका होना आपको कैसे चुप कर देता है।
न फील किया तो कोई बात नही,
आप तो सूंड़ के बगैर ही चुप हैं।
मगर हाथी ने सूंड़ को बहुत डेवलप कर लिया।
इससे वह हवा का रुख सूंघ सकता है। उसमे वह कई लीटर पानी भर सकता है।
इसे स्नोर्केलिंग पाइप की तरह ऊपर कर वह गोता लगा सकता है, पानी मे तैर सकता है। जमीन से सुई या कील उठा सकता है, उखाड़ सकता है।
हाथी ऐसा चुप भी नही रहता। वह कम्युनिकेट करता है। वह जमीन को अपने पैरों से थपकता है, वह सिस्मिक वेव से कम्युनिकेट करता है।
वह भाव भंगिमा और स्पर्श से कम्युनिकेट करता है। वह इंफ्रासोनिक साउंड से कम्युनिकेट करता है। रो कर कम्युनिकेट करता है।
हाथी का संदेश समझने के लिए शांति को समझना, और सिस्मिक वेव को पहचानना जरूरी है। शोरगुल के आदी लोग अक्सर हाथी को चुप और मजबूर समझ लेते हैं।
उन्हें हाथी के पैरों तले आते देखा गया है।
इसलिए कहावतों पर मत जाइए।
वह न चूहे से डरता है, न चींटी से, न शेर से। उसका गुस्सा प्रलयंकारी है। तब वह चिंगाड़ता है, और तमाम जंगल हिल जाता है। गुस्से मे आया हाथी वह आपको दौड़ा सकता है, कोई 25 से 30 किमी प्रतिघन्टे की रफ्तार से।
याद रहे, अगर हाथी दौड़ाए तो ऊँचा न चढ़ें, ढलान की ओर भागें। ढलान सुरक्षित है, हाथी को सेंटर ऑफ ग्रेविटी मेंटेन करने में कठिनाई होगी। मगर ऊपर आप चढ़े, तो हाथी को कम्फर्ट है, और आपका भगवान मालिक है।
कहने को भगवान भी हाथी के ही करीब है।
कभी हजार साल के आर्तनाद के बाद श्री हरि भी हाथी के त्राण को आ जाते हैं। मगर शोषण देवताओं ने भी कम नही किया। ऐरावत को समुद्र मंथन इसे निकला रत्न घोषित किया गया, फिर इंद्र ने ही सवारी गांठ ली।
आप भी पूजन की शुरआत भले श्रीगणेश से करते हैं, मगर फिर फटाक से लक्ष्मी को प्रसन्न
करने के मंत्र की ओर स्विच कर जाते हैं।
मृत्युलोक में भी हाथियों के साथ धोखे ही हुए। पालतू हाथी को मालिक शराब पिलाकर मदमस्त कर देता, फिर आंखे फोड़, शत्रुओं पर छोड़ देता। दर्द से चीखता हाथी जब कत्लेआम मचा देता, मालिक की जीत होती।
पोरस से हैंनिबाल तक दुश्मनों पर फतह तब तक पाते रहे, जब तक उनके हाथी को दुश्मन ने सम्भालना न सीख लिया। हाल में अमेरिका में गधे ने हाथी को हरा दिया। भारत मे भी गधे ही हाथी पर चढ़कर सवार हो मैदान लूट रहे हैं।
असल मे बारी बारी से जंगल के सारे जानवर हाथी को साधकर,चढ़कर उसकी सवारी का
आनंद लेते रहे हैं।
हाथी हम है, हम भारत के लोग हैं। आदतों से लाचार है। जंगल का सबसे ताकतवर जीव, जिसे अंकुश और कोड़ो से नही, गगनभेदी नारों से बेवकूफ बनाकर सवारी गांठी गयी है।
हमे जरा थमना चाहिए। गर्दन पर चढ़े महावत के बरसते अंकुश का दर्द, और पीठ पर बैठी गधा
मंडली के नारों को क्षण भर को इग्नोर करना चाहिए।
हाथी को याद करना चाहिए,कि आखरी बार भरपेट कब खाया था।कब सुकून से सोया था। कब सूंड से सूंड मिलाकर अपने परिवार और कुनबे के साथ बैठा था।
सोचना चाहिए कि इन नारों के जोश में वह किस युद्ध मे जा रहा है? किससे लड़ने,और क्यों जा रहा है??
वह मरा, तो मर जायेगा।
जीता- तो राज्याभिषेक .. किसका होगा??
हाथी का..?
सोचना जरूरी है। रुकना होगा। हां, माना कि हाथी इस वक्त जरा कमजोर है, कैप्टिविटी में है, मजबूर है। मगर वह हाथी है, गजराज है, जन है, गण है,
गणेश है।
वह तो .. ब्रम्हा विष्णु, महेश है।
कालाधन और जाली नोट रोकने में मो+दी फेल
2000 रुपये के नोट चलन से वापस लेने से साफ पता चलता है कि यह सरकार कालेधन और जाली नोट के धंधे पर लगाम लगाने में फेल हो गई है। नोटबंदी के समय मोदी और उनके चाटुकार भले ही यह अंदाजा लगाने में नाकाम रहे कि बड़े नोट नकद लेन-देन में ज्यादा उपयोगी
होने से न कालेधन का कारोबार रोका जा सकेगा और न ही जाली नोट छापना बंद हो जायेगा लेकिन सारे देश की जनता को यह भली-भांति मालूम था।
जिस दो हजार रुपए के नोट पर जटिल सिक्योरिटी फीचर्स होने से उसकी अनधिकृत छपाई असम्भव प्रचारित की गई, उसकी धज्जियां मोदी के गृहराज्य गुजरात में एक
पखवाड़े के भीतर ही जालसाजों द्वारा भारी संख्या में जाली नोट छापकर उड़ा दी गईं थीं। इसके अलावा चंडीगढ़ के दो युवा नौसिखिया भाई-बहन ने एक महीने में दो हजार के डेढ़ करोड़ रुपए के जाली नोट छाप कर उनमें से कुछ बाजार में चला भी दिये थे।
क्या आप सोचते हैं कि नोटबंदी का कदम मोदी सरकार का मूर्खतापूर्ण कदम था? तो मोदी नहीं आप अपनी मूर्खता का जश्न मनाईये , नहीं तो दिमाग की बत्ती जलाइये और सोचिये कि इस नोटबंदी से कौन कमजोर हुआ और कौन मजबूत हुआ? तब आपकी आँखे खुल जायेगी कि मोदी मूर्ख है कि नहीं लेकिन आप की मूर्खता
पर कोई शक नहीं होना चाहिये. संघ का लक्छ्य दिल्ली की सरकार पर इस संविधान के तहत काबिज होना नही है बल्कि किसी की सरकार रहे जिसमे मनुस्मृति सोच मजबूत हो। अंत मे समय आने पर मनुस्मृति का चितपावनी संविधान लागू हो.दूसरी बात इनके लिये व्यक्ति प्रधान नही , इनके लिये सोच प्रधान है.
गोलवलकर को पढ़िये उनकी आर्थिक सोच क्या थी ? देश की दो चार लोगों के पास होनी चाहिये, जिनपर सरकार या शासक का कब्जा हो, आम आदमी केपास सामान्य जीवन जीने से ज्यादा धन नही होना चाहिये।
उसी सोच का पहला कदम नोटबंदी था और वह कदम रूका नहीं है चल रहा है उसका दूसरा कदम 2000 की वापसी।
नोटबंदी २ के बाद जब दोनो नरक में पहुंचे तो चारो तरफ शोर हुआ,"चिप वाले आ गए,,,चिप वाले आ गए,,,"
चित्रगुप्त बाहर निकलकर प्रहरी से पूछे,,क्या दोनो आ गए,,?
जी महाराज,,।
ठीक है, दोनो को खास वाला सम्मान देकर यहां लाओ,, उनका हिसाब अभी ही करना है। बही खाता पहले से तैयार है।
जी महाराज,,
और फिर दोनो को खास वाला सम्मान अर्थात गले में माइक की तार लपेट कर घसीटते हुए ले गए चित्रगुप्त जी के पास,,,,।
आओ आओ चिप वालों,, आओ
दोनो खुश भी हुए की प्रहरी भले ही ना पहचानते हों, गले में तार लपेट कर घसीट कर लाए,,, किंतु चित्रगुप्त जी पहचानते हैं। जान बचेगी।
चित्रगुप्त जी बोले,, तुम्हारे सभी गुनाह माफ कर दिए गए हैं, तुम्हारे सारे पाप, झूठ सभी माफ कर दिए गए हैं। क्योंकि तुम्हारे एक खास गुनाह के सामने अन्य सारे गुनाह तुच्छ साबित हुए। अतः माफ़,,,,,,।
तुम्हारे द्वारा पत्रकारिता के दौरान बोले गए झूठ,,,तुम्हारी मक्कारी,,,
एक होती है गुफा, एक होता है मानव ..गुफा में मानव होता है तो उसे गुफा मानव कहते है। अंग्रेज उसे केवमैन कहते है। इंडियन उसे बाबाजी समझते है।
केव मैन कहिये, या बाबाजी .. गुफा में प्राकृतिक जीवन का आनंद प्राप्त करते है। फालोवर्स उनके सुख में सुखी होते है।
इस तरह मिलजुलकर, सौजन्य से एक शुद्ध और बेहतर समाज का विकास होता है।
मगर विकास की प्री कंडीशन होती है अन्वेषण।
विकास का अविष्कार होता हैखोज होती है। मनुष्य का विकास से पहला एनकाउंटर तब हुआ,जब गुफा मानव ने आग खोज निकाली। फिर उसने वीड एनर्जी खोजी,और दम लगाकर आग लगाने निकल पड़ा।
यह बात अधिक पुरानी नही है। आपको पता है 2014 तक हम गुफा से बाहर नही आ पाए थे।
तो साहबान, वो गुफा मानव जो था, पत्थरों के बीच रहता था। अपने दिल की बाते पत्थरो पर लिखता, चित्र बनाता, जो जी मे आता, लिख लेता, रंग देता, गोद देता।
2018 में राहुल गांधी का "लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स" (LSE) में दिया गया भाषण भारतीय अर्थव्यवस्था पर आजतक की सबसे सटीक भविष्यवाणी थी..आज भी यूट्यूब पर सुन सकते है👇
1. राहुल गांधी ने LSE में बोला था कि भारत मे "स्ट्रक्चरल मंदी" आ चुकी है..यानी डिमांड सप्लाई का हर रिश्ता खत्म..
2. भारत की अर्थव्यवस्था का "बेसिक स्ट्रक्चर" 2016 में नोटबन्दी के द्वारा मोदी ने तहसनहस कर दिया है..आज सामने है..
3. नोटबन्दी/GST के कारण भारत मे "स्ट्रक्चरल बेरोजगारी" पैदा होगी..यानी दशकों तक बेरोजगारी रहेगी..आज?
4. राहुल ने 4 मुख्य रास्ते सुझाए थे
- NYAY योजना
- 7 करोड़ MSME को बचाना
- कृषि/इंफ्रास्ट्रक्चर/शिक्षा पर ज्यादा खर्च
- खाली सरकारी पदों की भर्ती करना
5. राहुल गांधी को 32 देशों के छात्रों ने सवाल पूछा था..एक सवाल के जवाब में राहुल ने कहा था : भारत को तय करना है कि "BM" चाहिए या "AM" चाहिए