हिंदुस्तान की करेंसी क्या "गिनीपिग" है? करेंसी से छेड़छाड़ का नतीजा पूरी दुनिया ने देखा..MSME, रेड़ी पटरी, मध्यमवर्ग बरबाद कर दिया गया..आजतक हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था मोदी की नोटबन्दी वाली मूर्खता से उबर नहीं पाई है..
7 सालों बा'द एक और नोटबन्दी एक नई बरबादी ले कर आएगी..जब हमारी करेंसी ही स्थिर नहीं है तो अर्थव्यवस्था कैसे स्थिर होगी?
अब आपको अगर नोट बदलवाने है तो
1. बैंकों पर लाइन लगाइए 2. आधार कार्ड ले कर जाइए 3. रोज़ नए नए क़ानून आएंगे 4. रोज़ नया प्रोपोगंडा चलेगा
5. कामधंधा चौपट होगा 6. जो मुख़ालिफ़त करेगा वो देशद्रोही
इस देश को बरबाद करने के पीछे मोदी का दिमाग तो नहीं है क्योंकि मोदी के पास दिमाग़ जैसी कोई चीज़ है ही नहीं..मिनिमम दिमाग़ वाला ऐसी बेवकूफ़ी नहीं कर सकता..
कोई देशी, विदेशी ताक़तों का गिरोह है जो मोदी पर हावी है और हमारे देश को बरबाद किए बिना नहीं रुकेगा..और आप 'अवाम इसके बा'द भी मोदी जैसे भारत विरोधी सोच वाले को बर्दाश्त करते रहेंगे.. #कृष्णनअय्यर कृष्णन अय्यर काँग्रेस पेज
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
कालाधन और जाली नोट रोकने में मो+दी फेल
2000 रुपये के नोट चलन से वापस लेने से साफ पता चलता है कि यह सरकार कालेधन और जाली नोट के धंधे पर लगाम लगाने में फेल हो गई है। नोटबंदी के समय मोदी और उनके चाटुकार भले ही यह अंदाजा लगाने में नाकाम रहे कि बड़े नोट नकद लेन-देन में ज्यादा उपयोगी
होने से न कालेधन का कारोबार रोका जा सकेगा और न ही जाली नोट छापना बंद हो जायेगा लेकिन सारे देश की जनता को यह भली-भांति मालूम था।
जिस दो हजार रुपए के नोट पर जटिल सिक्योरिटी फीचर्स होने से उसकी अनधिकृत छपाई असम्भव प्रचारित की गई, उसकी धज्जियां मोदी के गृहराज्य गुजरात में एक
पखवाड़े के भीतर ही जालसाजों द्वारा भारी संख्या में जाली नोट छापकर उड़ा दी गईं थीं। इसके अलावा चंडीगढ़ के दो युवा नौसिखिया भाई-बहन ने एक महीने में दो हजार के डेढ़ करोड़ रुपए के जाली नोट छाप कर उनमें से कुछ बाजार में चला भी दिये थे।
क्या आप सोचते हैं कि नोटबंदी का कदम मोदी सरकार का मूर्खतापूर्ण कदम था? तो मोदी नहीं आप अपनी मूर्खता का जश्न मनाईये , नहीं तो दिमाग की बत्ती जलाइये और सोचिये कि इस नोटबंदी से कौन कमजोर हुआ और कौन मजबूत हुआ? तब आपकी आँखे खुल जायेगी कि मोदी मूर्ख है कि नहीं लेकिन आप की मूर्खता
पर कोई शक नहीं होना चाहिये. संघ का लक्छ्य दिल्ली की सरकार पर इस संविधान के तहत काबिज होना नही है बल्कि किसी की सरकार रहे जिसमे मनुस्मृति सोच मजबूत हो। अंत मे समय आने पर मनुस्मृति का चितपावनी संविधान लागू हो.दूसरी बात इनके लिये व्यक्ति प्रधान नही , इनके लिये सोच प्रधान है.
गोलवलकर को पढ़िये उनकी आर्थिक सोच क्या थी ? देश की दो चार लोगों के पास होनी चाहिये, जिनपर सरकार या शासक का कब्जा हो, आम आदमी केपास सामान्य जीवन जीने से ज्यादा धन नही होना चाहिये।
उसी सोच का पहला कदम नोटबंदी था और वह कदम रूका नहीं है चल रहा है उसका दूसरा कदम 2000 की वापसी।
नोटबंदी २ के बाद जब दोनो नरक में पहुंचे तो चारो तरफ शोर हुआ,"चिप वाले आ गए,,,चिप वाले आ गए,,,"
चित्रगुप्त बाहर निकलकर प्रहरी से पूछे,,क्या दोनो आ गए,,?
जी महाराज,,।
ठीक है, दोनो को खास वाला सम्मान देकर यहां लाओ,, उनका हिसाब अभी ही करना है। बही खाता पहले से तैयार है।
जी महाराज,,
और फिर दोनो को खास वाला सम्मान अर्थात गले में माइक की तार लपेट कर घसीटते हुए ले गए चित्रगुप्त जी के पास,,,,।
आओ आओ चिप वालों,, आओ
दोनो खुश भी हुए की प्रहरी भले ही ना पहचानते हों, गले में तार लपेट कर घसीट कर लाए,,, किंतु चित्रगुप्त जी पहचानते हैं। जान बचेगी।
चित्रगुप्त जी बोले,, तुम्हारे सभी गुनाह माफ कर दिए गए हैं, तुम्हारे सारे पाप, झूठ सभी माफ कर दिए गए हैं। क्योंकि तुम्हारे एक खास गुनाह के सामने अन्य सारे गुनाह तुच्छ साबित हुए। अतः माफ़,,,,,,।
तुम्हारे द्वारा पत्रकारिता के दौरान बोले गए झूठ,,,तुम्हारी मक्कारी,,,
एक होती है गुफा, एक होता है मानव ..गुफा में मानव होता है तो उसे गुफा मानव कहते है। अंग्रेज उसे केवमैन कहते है। इंडियन उसे बाबाजी समझते है।
केव मैन कहिये, या बाबाजी .. गुफा में प्राकृतिक जीवन का आनंद प्राप्त करते है। फालोवर्स उनके सुख में सुखी होते है।
इस तरह मिलजुलकर, सौजन्य से एक शुद्ध और बेहतर समाज का विकास होता है।
मगर विकास की प्री कंडीशन होती है अन्वेषण।
विकास का अविष्कार होता हैखोज होती है। मनुष्य का विकास से पहला एनकाउंटर तब हुआ,जब गुफा मानव ने आग खोज निकाली। फिर उसने वीड एनर्जी खोजी,और दम लगाकर आग लगाने निकल पड़ा।
यह बात अधिक पुरानी नही है। आपको पता है 2014 तक हम गुफा से बाहर नही आ पाए थे।
तो साहबान, वो गुफा मानव जो था, पत्थरों के बीच रहता था। अपने दिल की बाते पत्थरो पर लिखता, चित्र बनाता, जो जी मे आता, लिख लेता, रंग देता, गोद देता।
2018 में राहुल गांधी का "लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स" (LSE) में दिया गया भाषण भारतीय अर्थव्यवस्था पर आजतक की सबसे सटीक भविष्यवाणी थी..आज भी यूट्यूब पर सुन सकते है👇
1. राहुल गांधी ने LSE में बोला था कि भारत मे "स्ट्रक्चरल मंदी" आ चुकी है..यानी डिमांड सप्लाई का हर रिश्ता खत्म..
2. भारत की अर्थव्यवस्था का "बेसिक स्ट्रक्चर" 2016 में नोटबन्दी के द्वारा मोदी ने तहसनहस कर दिया है..आज सामने है..
3. नोटबन्दी/GST के कारण भारत मे "स्ट्रक्चरल बेरोजगारी" पैदा होगी..यानी दशकों तक बेरोजगारी रहेगी..आज?
4. राहुल ने 4 मुख्य रास्ते सुझाए थे
- NYAY योजना
- 7 करोड़ MSME को बचाना
- कृषि/इंफ्रास्ट्रक्चर/शिक्षा पर ज्यादा खर्च
- खाली सरकारी पदों की भर्ती करना
5. राहुल गांधी को 32 देशों के छात्रों ने सवाल पूछा था..एक सवाल के जवाब में राहुल ने कहा था : भारत को तय करना है कि "BM" चाहिए या "AM" चाहिए