#धर्मसंसद
प्रश्न इतने सुपरिचित पात्र पर था कि जबाव देने की बहुतों ने आवश्यकता नहीं समझी। फिर भी नियमित लेखकों प्रेरक अग्रवाल सत्यवती शशिबाला राय नीलम मिश्रा ने विस्तृत रूप से उत्तर दिया है। जैसा कि आप लोगों ने रामायण सीरियल में देखा होगा या रामचरितमानस में पढ़ा
होगा कि सुलोचना रावण की पुत्रवधू और मेघनाद की पत्नी थीं। यह नागराज वासुकी की कन्या थी। अब यह मत सोचिए कि एक सरीसृप प्रजाति के प्राणी वासुकी नाग की कन्या एक सुंदर स्त्री कैसे हो सकती है? जान लीजिए और और जरूरत पड़ने पर वामपंथियों को जबाव देने लायक ज्ञान पाइए कि नाग
कौन थे। यह एक मानव जाति थी जो प्रकृति पूजक थी।नाग इनके कुलदेवता होते थे।नाग पालना उसके विष से अनेकों प्रकार के अस्त्र शस्त्र बनाना और विष से औषधि बनाना इस जाति का मुख्य उद्यम था।आज के भर खरवार केवट मल्लाह इन्हीं नागों के वंशज हैं। इतिहास उठाकर देखेंगे तो पाएंगे कि
नागों के ग्राम नगर राज्य बहुधा नदियों के किनारे पाए जाते हैं। नागों का रोटी बेटी का संबंध अक्सर दानव, दैत्य या राक्षस जाति से रहा है। कालांतर में इनका संबंध मनुष्य जाति से भी हुआ था। महाभारत में कुंती को नागराज वासुकी की पालित पुत्री कहा गया है। स्वयं अर्जुन ने
एक विवाह नागालैंड की राजकुमारी उलूपी के साथ किया था।ऐसे अनेक उदाहरण खोजने पर मिल सकते हैं। रामायण में सुलोचना कुछ उन भद्र पात्रों में से एक रहीं थी जिसकी प्रसंशा स्वयं श्रीराम ने भी किया था। द्वापरयुग में भीष्म पितामह द्वारा पूछे गए प्रश्न के उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण ने
कहा था कि त्रेतायुग में रावण के परिवार में मंदोदरी और सुलोचना जैसी विदुषी नारियां माल्यवान जैसे विद्वान पुरुष और विभीषण जैसे भक्त हुए थे। कुछ और जानिए कि रावण का संबंध मातृकुल से विख्यात दैत्य कुल हिरण्यकश्यप के वंश से था।रावण वर्ण संकर था। उसके रक्त में आर्य
असुर दानव और दैत्य वंश का सम्मिश्रण था जो उसे महान सम्राट बनाता था। रावण के तीन नाना थे सुमाली,माली और माल्यवान। रावण के परनाना का नाम सिवदान था।इसी सिवदान एक राज्य स्थापित किया था जिसे उसके नाम पर सिवदान रखा गया था। कालांतर में यही सिवदान आज का सूडान गणराज्य बन गया
सुमाली ने सुमालीलैंड बसाया था जिसे आजकल सोमालिया कहते हैं। दूसरे नाना माली ने माली देश बसाया था जिसे आज भी माली गणतंत्र कहते हैं।रावण के तीसरे नाना माल्यवान ने मलावी राज्य बसाया था जिसे आज भी मलावी ही कहते हैं जिसकी राजधानी बमाको है। पांचवें देवासुर संग्राम में
जिसमें देवताओं का नेतृत्व विष्णु ने वाराह अवतार द्वारा किया था और दैत्यों का नेतृत्व हिरण्यकश्यप के छोटे भाई हिरण्याक्ष ने किया था। यह महासमर कश्यप सागर जिसे आज कल कैस्पियन सी कहते हैं के किनारे हुआ था। इसमें दैत्यों की भीषण पराजय हुई थी। परिणाम स्वरूप हिरण्याक्ष
तो मारा ही गया उसका परदौहित्र राक्षसराज माली भी मारा गया था।बाद इसी माली का बड़ा पुत्र प्रहस्त रावण का प्रधानमंत्री बना। रावण परिवार की एक विशेषता इस परिवार का अहंकार रहा जो बहुत कुछ परवर्ती मुगलों से मिलता-जुलता है।वह है अपनी लड़कियों का विवाह न कर पाना।रावण की
दोनों बहनों सूर्पनखा और कुंभनिशा का विवाह स्वयं रावण ने नहीं किया था बल्कि इन दोनों ने भागकर अपने से विवाह कर लिया था।समय का अभाव है वरना कुछ और जानकारी देता। धन्यवाद जय
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सूर्पनखा- रावण की बहन और रामायण की असली खलनायिका। वैसे कुछ लोग मुख्य खलनायिका कैकेई को मानते हैं पर मैं ऐसा नहीं मानता। इसके विषय में काफी कुछ जानकारी तो सबको पता होगी। कुछ अन्य बातें जानिए।इसका नाम सूर्पनखा नहीं था।यह तो मजाक में रखा गया था जो कालांतर में
प्रसिद्ध हो गया।इसका वास्तविक नाम बज्रमणि था।इसकी आंखें बड़ी सुंदर थीं और इसीलिए इसकी इसकी नानी सुकेशी ने बचपन में इसका नाम मीनाक्षी रखा था। यह अपने समय की फैशनेबल महिला थी। बड़े-बड़े नाखून रखना और उसे प्राकृतिक रंगों से रंगना इस महिला का शौक था। इसीलिए मजाक मजाक में
लोग इसे सूर्पनखा कहने लगे। रावण बड़ा अहंकारी था यह इससे सिद्ध होता हैं कि उसने अपनी दोनों बहनों के विवाह के विषय में सोचा ही नहीं। मंदोदरी आदि द्वारा समझाए जाने पर कहता था कि मेरे बराबर वीर कोई असुर दैत्य दानव यक्ष किन्नर नाग वंश में है नहीं और मनुष्यों और देवताओं को
क्या आप जानते हैं कि शिवकुमार के बजाय सिद्धारमैया को कर्नाटक का मुख्यमंत्री क्यों बनाया गया है?
तो ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि डीके शिवकुमार एक बड़े हिंदू हैं।वे पूरी भक्ति भाव से मंदिर मंदिर जाते हैं। उन्होंने चुनाव बाद कर्नाटक के हर जिले में हनुमान मंदिर
बनवाने का संकल्प लिया था। इसके विपरीत सिद्धारमैया की विचारधारा गांधी परिवार से अधिक मिलती है। गांधी फेमिली की ही तरह सिद्धारमैया कट्टर कम्युनिस्ट और नास्तिक हैं। इससे भी बढ़कर एक योग्यता और है कि वह कट्टर हिन्दू द्रोही हैं। तुष्टिकरण के वोट इसीलिए कांग्रेस को मिला था
कि उन्हें भरोसा दिया गया था कि उनके प्रिय नेता सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बनेंगे। बाकी तो वोक्कालिंगा समुदाय को घिस्सा देने के लिए नौटंकी हो रही थी। यह बात चुनाव के पहले ही तय हो चुकी थी। प्रचंड बहुमत के कारण शिवकुमार चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते। यही फार्मूला अगले आम चुनाव
दमड़ी की हांडी गई कुत्ते की जाति पहचानी गई।२००० के नोट तो वैसे ही चलन में नहीं थे क्योंकि इसकी छपाई ही 2018 में बंद हो गई थी और बैंकों को निर्देश दिया गया था कि जितने भी ऐसे नोट आएं उन्हें फिर किसी को न दिए जायं। सीधे आरबीआई को वापस कर दिया जाय। कुल 6.30 लाख करोड़ के
नोट छापे गए थे जिसमें से करीब आधे नोट बैंक में वापस आ गए थे।बचे थे केवल 3 करोड़ 19 लाख नोट जिसका पता नहीं चल रहा था कि यह नोट हैं कहां। ज्यों ही आरबीआई ने घोषणा किया कि दो हजार के नोट अब 30 सितंबर के बाद नहीं चलेंगे कि बिल में पानी घुस गया। कीड़े मकोड़े की तरह
बिलबिलाते हुए नेता सामने आ गये। फिर वही पुराना रोना-धोना शुरू हो गया कि अर्थव्यवस्था बिगड़ जाएगी। उद्योग व्यापार चौपट हो जाएगा। कोई नेता यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि अगले चुनाव के लिए रखे गए इन नोटों का क्या होगा।पुरानी बात रही भी नहीं जब लोग सोचते थे कि चलो
माननीय सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसले जो इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाएंगे। किसी ने शायद ही ध्यान दिया होगा कि हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने तीन ऐतिहासिक महत्व का फैसला सुनाया है जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी।
१- केरला स्टोरी पर फैसला। बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने
फिल्म द केरला स्टोरी पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया था कि इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार की दलील नकारते हुए फिल्म पर प्रतिबंध को रद्द कर दिया। सबसे बड़ी बात सुप्रीम कोर्ट का यह कहना रहा कि हम लोग भी फिल्म देखेंगे।आप फिल्मों में पंडितो
पुजारियों का मज़ाक उड़ाते हैं तो अच्छा लगता है और कोई मुस्लिम आतंकवादी की आलोचना करे तो बुरा क्यों लगता है।
२- तमिलनाडु में जलीकट्टू और महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़ पर २०११
से लगा प्रतिबंध हटा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सब त्योहार देश की संस्कृति के लिए
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माधवी- विश्व की सबसे पहली सरोगेट मदर जिसका अक्षतयौवना का वरदान ही उसके लिए अभिशाप बन गया। विस्तृत वर्णन बाबूलाल टेलर ने भीष्म साहनी के इसी नाम पर लिखे गए उपन्यास से और पौराणिक आख्यानों के अनुसार प्रेरक अग्रवाल, सत्यवती और आधा अधूरा शशिबाला राय ने किया है
इस विषय पर पिछले दो सालों में दो बार मैं एक कथा लिख चुका हूं। बार-बार उसी को दोहराने में आनंद नहीं आता। शब्द विन्यास बदल जाते हैं।माधवी चंद्र वंश के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट ययाति और अप्सरा चित्त वृहिती की अनुपम सुन्दरी कन्या थी। दुर्वासा ऋषि ने उसके भक्ति भाव और
सेवा से प्रसन्न होकर अक्षतयौवना रहने का वरदान दिया था। साथ-साथ माधवी की कुंडली देखकर बता दिया था कि कन्या चार महान सम्राटों को जन्म देगी। संयोग कहें कि दुर्योग असम के एक गरीब ब्राह्मण का पुत्र गालव ऋषि विश्वामित्र के गुरुकुल से पढ़कर निकला और गुरु से हठ करने लगा
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जैसा कि मैंने प्रश्न करते हुए ही बता दिया था कि यह पात्र बहुत प्रचलित है।इस प्रश्न की विस्तृत व्याख्या बहन शशिबाला राय, प्रेरक अग्रवाल नीलम सत्यवती आदि ने किया है।
इसके पहले कि मैं कुछ और कहूं एक बात कहना चाहता हूं कि मेरी व्यक्तिगत व्याख्या तर्कसंगत
और वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में होती है।ऐसा इसलिए क्योंकि पुराणों में अधिकांश बातें लाक्षणिक अर्थ लिए होती हैं। यह पाठक की बुद्धि पर निर्भर करता है कि वह क्या समझता। इसलिए यह मत सोचिए कि मैंने तो कथावाचक जी से यह सुना है, वह पढ़ा है,फलाना ढिकाना आदि। कहीं से भी
किसी को शंका हो तो निस्संकोच पूछिएगा। यथासंभव समाधान की कोशिश करूंगा। पिछले कुछ दिनों तक सर्दी ज़ुकाम से परेशान रहा और उत्तर नहीं दे पाया।कल कुंती वाले उत्तर पर आप लोगों को प्रतिक्रिया उत्साहजनक रही। आज का जहां तक सवाल है द्रौपदी के विषय में कुछ कहना सूर्य को