2000 की नोटबन्दी, गुजरात/मुम्बई के सोना, चांदी और हीरा का व्यापार..मेरा "कमीना दिमाग़" कुछ कहता है..
1. पूरे मुल्क में कैश में गहने ख़रीद ओ फ़रोख़्त किए जाते है ये सबको मा'लूम है..
2. गुजरात/मुम्बई इस व्यापार का सबसे बड़ा मुक़ाम है..
3. इस वक़्त अगर कोई भी सिर्फ़ 2000 के नोट दे कर किसी भी तरह के गहने ख़रीदता है तो भाव 15%-20% ऊपर है..ख़ुद आज़मा लीजिए..
4. मान लीजिए, लगभग 1.5-2 लाख करोड़ के नोट गहनों में खपेंगे..पिछले 2 दिनों में गहना बाज़ारों का जो रूख़ है उसके हवाले से बोल रहा हूँ..
5. सारे नोटों को आख़िर बैंक में ही आना है..गुजरात/मुम्बई के हर व्यापारी के बैंक का डेटा चोर गिरोह के पास है..रोज़ के जमा' का हिसाब आसानी से मिलेगा..
6. चोर को पता चल जाएगा कि कितने के गहने 2000 के नोटों में बिके हैं..सब सेटिंग से हो रहा है..
7. कमीशन : 1.5-2 लाख करोड़ का 20% = 30-40 हज़ार करोड़ (कम से कम)
अगर आपको ये कहानी लगती है तो मैं कुछ नहीं कर सकता..जब RBI का डेटा आएगा तो चेक कर लीजिएगा कि 2000 के सबसे ज़्यादा नोट इन 2 ह्ल्क़ों मे जमा" हुए हैं.. #krishiyer कृष्णन अय्यर
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अपनी सौतेली मां से प्रताड़ित एक किशोर, बिहार के एक सूबेदार के यहां नौकरी पर लग जाता है। एक दिन शिकार के वक्त जब उस सूबेदार के सामने शेर आ जाता है,तब वो लड़का उस शेर को निहत्थे ही मार देता है। इसके बाद उस बच्चे का नाम फरीद से शेर खां पड़ जाता है।
आगे चल के यही लड़का तब के मुगल बादशाह बाबर के यहां सैनिक के रूप में भर्ती होता है।एक लड़ाई के बाद जब सारी सेना साथ में खाना खा रही थी,तब ये लड़का वहीं बैठा आराम से बकरे की टांग चबा रहा था। उसके खाने के अंदाज़ को देख बादशाह बाबर ने अपने बेटे हुमायूं से कहा "इस लड़के को देखकर ऐसा
लगता है,जैसे ये एक दिन मुगलिया सल्तनत को खदेड़ देगा। इसे आज रात ही मार दो"
दूर बैठे उस लड़के ने बाबर के हिलते होंठ पढ़ लिए,और इस रात हुमायूं के हमला करते ही भाग गया। भागते हुए उसने परकोटे की दीवार पर चढ़कर कहा "ए हुमायूं यदि मैं ज़िंदा रहा और किस्मत ने मेरा साथ दिया
बिल क्लिंटन ने अपने इलेक्शन कैंपेन में इसे टैगलाइन बनाया था। पर उसके पन्द्रह साल पहले, राजीव गांधी इस बात को समझ गए थे। केवल पांच साल में देश की धारा बदलने वाला यह शख्स जानता था कि विकास का मतलब अर्थव्यवस्था है।
वित्तमंत्री के रूप में एक बार बजट पेश किया राजीव ने, वित्त वर्ष 1987-88 का। और वो देश का अनोखा बजट था - शून्य आधारित बजट।
हार्ड वर्क वाले इसे नही जानते, रॉ विज़डम वालो को नही पता, मगर ये एक मैनेजमेंट टूल है, खर्चो पर नियंत्रण का। पारंपरिक बजट में, होता ये है,
की पिछले साल जो खर्च अनुमत था, इस साल भी सही मान लिया जाता है। बहस सिर्फ उसमे कुछ घट बढ़ की होती है।
इसका नुकसान यह है कि आज भी पुलिस वालों को 15 रुपये घोड़ा'चना एलाउंस मिलता है। बगैर जस्टिफिकेशन, पुराने साल की परंपरा ले आधार पर अरबों का बजट निकाल देना,
आज शहीद राजीव गांधी याद आ गए..इस बदतमीजी भरे शोरशराबे में एक सभ्य, सौम्य व्यक्तित्व जिन्होंने चुपचाप देश को एक ऐसा हथियार दिया जिससे आज पूरा विश्व कांप रहा है..
हथियार का नाम है : KALI - "किलो एम्पेयर लीनियर इंजेक्टर"..ये भारत का सबसे खतरनाक और सीक्रेट हथियार है जिसपर ज्यादा
बात नहीं की जाती।
✋ शहीद राजीव गांधी ने 1985 में KALI बनाने के आदेश दिए थे..KALI मिसाइल या लेज़र बम नही है..ये एक "इलेक्ट्रॉन बीम" है जो लेजर से लाखो गुना ज्यादा खतरनाक है..
डॉ आर चिदम्बरम ने इसे 1989 में शुरू किया
डॉ चिदम्बरम विख्यात भारतीय वैज्ञानिक है
रक्षा रिसर्च, परमाणु परीक्षण से जुड़े रहे है
BARC, DRDO ने KALI विकसित किया
आज "KALI 10000" गीगावाट विकसित हो चुका है..
श्रीमती सोनिया गांधी और डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व में "KALI 5000" गीगावाट का परीक्षण अक्टूबर 2004 में किया गया..
अट्ठारहवीं कड़ी: बुढापा वरदान... या अभिशाप ?? जापान: तीसरा भाग
जापान के बारे में थोड़ी रोचक बातें और बता दूं, ताकि आप स्वयं भी समझ सकें कि वास्तव में ही जापानियों के लिए बुढापा वरदान ही है, ना कि हमारी तरह अभिशाप
सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि जापानी हम लोगों की तरह अपने इतिहास का रोना कभी भी नहीं रोते बल्कि एकबार उससे सीख लेकर हमेशा के लिए आगे बढ़ जाते हैं, फिर कभी भी इतिहास को मुड़कर नहीं देखते, सारे का सारा ध्यान अपने वर्तमान और भविष्य पर ही केन्द्रित कर देते हैं.
अमेरिका द्वारा परमाणु बम बरसाने के बावजूद जापान नें कभी भी अमेरिका से घृणा नहीं की, बस स्वयं को उस महा-त्रासदी को झेलने, काबिल बनाने में जुट गए, हमारी तरह पाकिस्तान-मुसलमान-नेहरू का रोना ही रोते नहीं रहे.
#भारतीय#राजनीति का गैर इरादतन #राजनीतिक समझा गया #चेहरा जिसे #नेता होने के लिए #समय ने #मौका दिया पर जो हो ना सका !
मेरे #जवानी की दहलीज़ की और बढ़ते क़दमों के दौर का ये खुशमिजाज चेहरा मुझे आज भी अपनी और आकर्षित करता हैं जिसे अपनी जिंदगी को जीने के लिए और कोई बेहतर पड़ाव
मिल सकतें थे पर भारत की नियति ने इसे अपघाती नेता बना दिया ! कई बार सोचता हूँ कि गर राजीव नेता होते तो सच बोलने का साहस नहीं रख पाते कि जनता की भलाई के लिए तय पैसे में दसवा हिस्सा ही हम तलक पहुंचता हैं और श्रीलंका में शांति सेना को ना भेजते कि भविष्य का भारत अपने आधुनिक
स्वप्नदृष्टा को सपनों को हकीकत में तब्दील होने तक साथ देखना चाहता हैं ! अपनी मौत के मानिंद किसी कागज़ पर दस्तख़त करना हर किसी के बस की बात नही कि आपने लिट्टे को ख़त्म करने सेना को नहीं भेजा था बल्कि अपने डेथ वारंट को हासिल करने के लिए ये जानलेवा कदम उठाया था !
बीमारी: अनूप मणि त्रिपाठी की लघुकथा
हमारा दिल भले ही कितना भी सख़्त क्यों न हो जाए, पर शरीर के दूसरे अंगों का संवेनशील होना बताता है कि हम अभी भी इंसान ही हैं. एक डॉक्टर और मरीज़ के बीच की मज़ेदार बातचीत इसी सच्चाई को बयां करती है.
एक दिन परेशान होकर वह डेंटिस्ट के पास पहुंचा.
‘डॉक्टर साहब कुछ ठंडा-गरम खाओ, तो दांत में लगता है!’ उसने अपनी समस्या बताई.
डॉक्टर ने उसे ग़ौर से देखा. फिर वह मास्क लगाकर उसके दांतों का मुआयना करने लगा.
डॉक्टर को मास्क लगाए देख वह मुस्कुराया. सोचा,’यहां तो हम बिना मुंह ढंके ही काम कर देते हैं!’
‘चिंता की कोई बात नहीं!’ डॉक्टर बोला.
‘पर हुआ क्या!’ उसने पूछा.
‘सेंस्टीविटी है बस!’ डॉक्टर बोला.
‘ये क्या बला है डॉक्टर साहब!’ उसने समझने का प्रयास किया.
‘अरे कुछ नहीं….आपके दांत संवेदनशील हो गए हैं!’ डॉक्टर ने वैज्ञानिक कारण न बताकर सेंस्टीविटी का हिंदी तर्जुमा कर दिया.