#धर्मस़ंसद
जितने भी नियमित लेखकों ने उत्तर दिया अच्छा और विस्तृत उत्तर दिया। आज का प्रश्न किसी ऐसे महत्वपूर्ण पात्र के विषय में नहीं था जिसका उल्लेख किसी ग्रंथ में किया गया हो। वज्रज्वाला रावण के भाई कुंभकर्ण की पत्नी थी। राजा बलि की पुत्री तथा बाणासुर की यह बहन
अपने समय की वैज्ञानिक प्रतिभा संपन्न महिला थी। कुंभकर्ण के विषय में यह जो भ्रांति है कि वह छः महीने तक सोता था गलत है।
रामचरितमानस में तो संक्षेप में वर्णन किया गया है पर वाल्मीकि रामायण में कुंभकर्ण की मृत्यु के बाद रावण का सुनने लायक है। वहां रावण रोते हुए
कहता है कि भाई तुम तो मेरी दायीं भुजा थे। मेरे हर विजय अभियान में मेरे साथ रहे। राज्यों को जीत कर लंका की प्रतिष्ठा बढ़ाने में हमेशा बढ़-चढ़कर भाग लेते रहे। यदि एक क्षण के लिए मान लिया जाए कि कुंभकर्ण छः महीने सोता था तो फिर प्रश्न उठता है कि रावण के साथ दिग्विजय
अभियान में कब जाता होगा। हां यह सच है कि कुंभकर्ण अक्सर राजधानी से गायब रहता था। ऐसा वह अपनी गुप्त प्रयोगशाला में अस्त्र शस्त्रों के निर्माण के लिए करता था। उसके इस कार्य में वज्रज्वाला बढ़ चढ़कर भाग लेती थी।आप क्या सोचते हैं कि रामायण काल में राडार का आविष्कार नहीं हुआ
था? ऐसा सोचते हैं तो ग़लत सोचते हैं।याद करें जब हनुमानजी समुद्र के ऊपर से उड़ते हुए जा रहे थे एक मकरी जिसका नाम सिंहिका था उन्हें ऊपर से नीचे खींच लिया था। हां यही कुंभकर्ण द्वारा निर्मित रडार सिस्टम जो जो गाइडेड मिसाइल से लैस था। मिसाइल भी कोई ऐसी वैसी नहीं बल्कि
किसी पक्षी या मनुष्य को जीवित अवस्था में पकड़ कर वापस आ जाती थी। हां यह लंका की त्रिस्तरीय सुरक्षा घेरे का पहला भाग था। अगर बिभीषण साथ न होते लंका को जीतना लगभग असम्भव होता। एक और बात जिसके लिए प्रश्न किया था वह है रावण की राजनीतिक और कूटनीतिक बुद्धि का ज्ञान।
रावण पराक्रमी योद्धा तो था इसके अलावा एक सफल कूटनीतिज्ञ भी था।उसका उत्थान किसी धूमकेतु की तरह नहीं बल्कि कदम दर कदम कूटनीतिक चाल से संभव हुआ था। किसी भी राज्य के विस्तार के वैवाहिक संबंधों की बड़ी भूमिका सदा से रही है और रावण ने भी इसका पालन किया था। पड़ोसी देश
केरल के महापराक्रमी किंतु महत्त्वाकांक्षी विहीन राजा बलि की पुत्री वज्रज्वाला से भाई का विवाह कराना इसी कूटनीति की एक कड़ी थी। फिर पुत्र मेघनाथ का विवाह नागों के पराक्रमी सम्राट वासुकी की कन्या सुलोचना के साथ करना भी एक कूटनीतिक चाल ही थी। आगे जब देखा कि किष्किंधा
नरेश वानर राज बालि से पार पाना संभव नहीं है तो झुककर समझौता कर लिया। इसके बाद जब हैहय वंशी कार्तवीर्यार्जुन ने रावण को हराकर बंदी बना लिया तो झट से अपने दादा ऋषि पुलस्त्य को महिष्मति भेजकर सुलह कराना उत्कृष्ट कूटनीति का उदाहरण कहा जाएगा। अपनी लाख बुराइयों के बाद भी
कुछ तो अच्छाई रही जिसने खलनायक होते हुए भी श्रीराम के समक्ष तुलना की जाती है। रावण है तभी राम हैं और राम हैं तभी रावण है। ऐसा अन्योन्याश्रय संबंध और कहां देखने को मिलता है।देर हो चुकी है इसलिए आज बस इतना ही। धन्यवाद जय
कहानी आकाशवाणी की।
भले ही हम अपने देश को भारत कहें पर कहने से क्या भारत बन जाएगा।नीलकोटे ने कापी पेस्ट संविधान लिखा है उसमें देश का आधिकारिक नाम है India that is Bharat. माने यह इंडिया है और इसमें भारत शब्द पुछल्ले की तरह जोड़ दिया गया है।मन में आए तो कहें नहीं तो नहीं
कुछ ऐसा ही हुआ था भारत की रेडियो प्रसारण संस्था का।इसका नाम आल इंडिया रेडियो रखा गया था। इसकी स्थापना 8 June 1936 को हुई थी।आल इंडिया रेडियो के आकाशवाणी बनने में
21 वर्ष का समय लग गया। निराला जी के समकालीन कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा के कहने पर इसका नाम आकाशवाणी 1957 में रखा गया
फिर भी केवल हिन्दी भाषी राज्यों और कुछ क्षेत्रीय रेडियो स्टेशनों को छोड़कर बाकी सभी जगह अभी तक वही आल इंडिया रेडियो ही चलता रहा है। 3 मई 2023 की तारीख इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित की जाएगी क्योंकि इसी दिन सूचना प्रसारण विभाग को संचालित करने वाली एजेंसी
किसी पुरानी हिंदी फिल्म का गाना है "
तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो
कौन सा गम है जो छुपा रहे हो।
कुछ पार्टियों और नेताओं का आज यही हाल हुआ है। इनमें प्रमुख हैं ममता बनर्जी नीतीश कुमार तेजस्वी यादव हेमंत सोरेन अखिलेश यादव और के चंद्रशेखर राव। कुछ हद तक जगनमोहन रेड्डी भी है
पर अभी उनके यहां समस्या इतनी गंभीर नहीं हुई है। और यह समस्या पैदा हुई है कर्नाटक चुनाव से। हालांकि इसका प्रभाव लोकसभा चुनाव पर नहीं पड़ेगा पर प्रदेशों के चुनाव में तो पड़ेगा ही। ऐसा नहीं है कि कर्नाटक में भाजपा इसलिए हारी है कि उसे कम वोट मिला है। भाजपा का 36% वोट तो
उसके साथ इंटैक्ट रहा। गड़बड़ी जद एस के वोट में हो गई। अभी तक जद एस की जीत के आधार दो तरह के वोटर रहे वोक्कालिंगा और मुस्लिम। अबकी बार ऐसा हुआ कि जदद एस के 5 % मुस्लिम वोट खिसककर कांग्रेस की ओर चले गए और कांग्रेस के वोट 37 से बढ़कर
42% हो गया। सीधा सा मतलब है कि
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सूर्पनखा- रावण की बहन और रामायण की असली खलनायिका। वैसे कुछ लोग मुख्य खलनायिका कैकेई को मानते हैं पर मैं ऐसा नहीं मानता। इसके विषय में काफी कुछ जानकारी तो सबको पता होगी। कुछ अन्य बातें जानिए।इसका नाम सूर्पनखा नहीं था।यह तो मजाक में रखा गया था जो कालांतर में
प्रसिद्ध हो गया।इसका वास्तविक नाम बज्रमणि था।इसकी आंखें बड़ी सुंदर थीं और इसीलिए इसकी इसकी नानी सुकेशी ने बचपन में इसका नाम मीनाक्षी रखा था। यह अपने समय की फैशनेबल महिला थी। बड़े-बड़े नाखून रखना और उसे प्राकृतिक रंगों से रंगना इस महिला का शौक था। इसीलिए मजाक मजाक में
लोग इसे सूर्पनखा कहने लगे। रावण बड़ा अहंकारी था यह इससे सिद्ध होता हैं कि उसने अपनी दोनों बहनों के विवाह के विषय में सोचा ही नहीं। मंदोदरी आदि द्वारा समझाए जाने पर कहता था कि मेरे बराबर वीर कोई असुर दैत्य दानव यक्ष किन्नर नाग वंश में है नहीं और मनुष्यों और देवताओं को
क्या आप जानते हैं कि शिवकुमार के बजाय सिद्धारमैया को कर्नाटक का मुख्यमंत्री क्यों बनाया गया है?
तो ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि डीके शिवकुमार एक बड़े हिंदू हैं।वे पूरी भक्ति भाव से मंदिर मंदिर जाते हैं। उन्होंने चुनाव बाद कर्नाटक के हर जिले में हनुमान मंदिर
बनवाने का संकल्प लिया था। इसके विपरीत सिद्धारमैया की विचारधारा गांधी परिवार से अधिक मिलती है। गांधी फेमिली की ही तरह सिद्धारमैया कट्टर कम्युनिस्ट और नास्तिक हैं। इससे भी बढ़कर एक योग्यता और है कि वह कट्टर हिन्दू द्रोही हैं। तुष्टिकरण के वोट इसीलिए कांग्रेस को मिला था
कि उन्हें भरोसा दिया गया था कि उनके प्रिय नेता सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बनेंगे। बाकी तो वोक्कालिंगा समुदाय को घिस्सा देने के लिए नौटंकी हो रही थी। यह बात चुनाव के पहले ही तय हो चुकी थी। प्रचंड बहुमत के कारण शिवकुमार चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते। यही फार्मूला अगले आम चुनाव
दमड़ी की हांडी गई कुत्ते की जाति पहचानी गई।२००० के नोट तो वैसे ही चलन में नहीं थे क्योंकि इसकी छपाई ही 2018 में बंद हो गई थी और बैंकों को निर्देश दिया गया था कि जितने भी ऐसे नोट आएं उन्हें फिर किसी को न दिए जायं। सीधे आरबीआई को वापस कर दिया जाय। कुल 6.30 लाख करोड़ के
नोट छापे गए थे जिसमें से करीब आधे नोट बैंक में वापस आ गए थे।बचे थे केवल 3 करोड़ 19 लाख नोट जिसका पता नहीं चल रहा था कि यह नोट हैं कहां। ज्यों ही आरबीआई ने घोषणा किया कि दो हजार के नोट अब 30 सितंबर के बाद नहीं चलेंगे कि बिल में पानी घुस गया। कीड़े मकोड़े की तरह
बिलबिलाते हुए नेता सामने आ गये। फिर वही पुराना रोना-धोना शुरू हो गया कि अर्थव्यवस्था बिगड़ जाएगी। उद्योग व्यापार चौपट हो जाएगा। कोई नेता यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि अगले चुनाव के लिए रखे गए इन नोटों का क्या होगा।पुरानी बात रही भी नहीं जब लोग सोचते थे कि चलो
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प्रश्न इतने सुपरिचित पात्र पर था कि जबाव देने की बहुतों ने आवश्यकता नहीं समझी। फिर भी नियमित लेखकों प्रेरक अग्रवाल सत्यवती शशिबाला राय नीलम मिश्रा ने विस्तृत रूप से उत्तर दिया है। जैसा कि आप लोगों ने रामायण सीरियल में देखा होगा या रामचरितमानस में पढ़ा
होगा कि सुलोचना रावण की पुत्रवधू और मेघनाद की पत्नी थीं। यह नागराज वासुकी की कन्या थी। अब यह मत सोचिए कि एक सरीसृप प्रजाति के प्राणी वासुकी नाग की कन्या एक सुंदर स्त्री कैसे हो सकती है? जान लीजिए और और जरूरत पड़ने पर वामपंथियों को जबाव देने लायक ज्ञान पाइए कि नाग
कौन थे। यह एक मानव जाति थी जो प्रकृति पूजक थी।नाग इनके कुलदेवता होते थे।नाग पालना उसके विष से अनेकों प्रकार के अस्त्र शस्त्र बनाना और विष से औषधि बनाना इस जाति का मुख्य उद्यम था।आज के भर खरवार केवट मल्लाह इन्हीं नागों के वंशज हैं। इतिहास उठाकर देखेंगे तो पाएंगे कि