प्रकृति ने हमें कान दो दिए हैं,लेकिन मुँह एक ही दिया। किसी ने इसकी व्याख्या करके बताया था कि प्रकृति की ओर से ये इस बात का संकेत है कि हम सुनें अधिक और बोलें कम।
बहुत ज्यादा बक-बक करने वाला, सोच-समझकर न बोलने वाला,जो भी ऊटपटांग मन में आ जाए वो बोल देने वाला, विषय का ज्ञान न होते
हुए भी जबरन बखान करने वाला और अक्सर झूठ बोलने वाला लज्जा का पात्र बनता है, ऐसा किसी न किसी शास्त्र में पक्का लिखा ही होगा। अब कौन से शास्त्र में ऐसा लिखा है, ये हमको नहीं पता, और यदि नहीं लिखा है, तो यही मान लें कि ये हमने लिखा है।
हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बहुत कम बोलते थे, और जो भी बोलते थे, एकदम नपा तुला बोलते थे। वो हँसते भी बहुत कम थे। आज उनकी एक फोटो दिखी हँसते हुए, उसको देखकर हँसी आई कुछ सोचकर, क्या सोचकर हँसी आई, वो नहीं बताएँगे। बस फोटो दिखा दे रहे। #ManmohanSingh जी 😜🤣
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
अपनी सौतेली मां से प्रताड़ित एक किशोर, बिहार के एक सूबेदार के यहां नौकरी पर लग जाता है। एक दिन शिकार के वक्त जब उस सूबेदार के सामने शेर आ जाता है,तब वो लड़का उस शेर को निहत्थे ही मार देता है। इसके बाद उस बच्चे का नाम फरीद से शेर खां पड़ जाता है।
आगे चल के यही लड़का तब के मुगल बादशाह बाबर के यहां सैनिक के रूप में भर्ती होता है।एक लड़ाई के बाद जब सारी सेना साथ में खाना खा रही थी,तब ये लड़का वहीं बैठा आराम से बकरे की टांग चबा रहा था। उसके खाने के अंदाज़ को देख बादशाह बाबर ने अपने बेटे हुमायूं से कहा "इस लड़के को देखकर ऐसा
लगता है,जैसे ये एक दिन मुगलिया सल्तनत को खदेड़ देगा। इसे आज रात ही मार दो"
दूर बैठे उस लड़के ने बाबर के हिलते होंठ पढ़ लिए,और इस रात हुमायूं के हमला करते ही भाग गया। भागते हुए उसने परकोटे की दीवार पर चढ़कर कहा "ए हुमायूं यदि मैं ज़िंदा रहा और किस्मत ने मेरा साथ दिया
बिल क्लिंटन ने अपने इलेक्शन कैंपेन में इसे टैगलाइन बनाया था। पर उसके पन्द्रह साल पहले, राजीव गांधी इस बात को समझ गए थे। केवल पांच साल में देश की धारा बदलने वाला यह शख्स जानता था कि विकास का मतलब अर्थव्यवस्था है।
वित्तमंत्री के रूप में एक बार बजट पेश किया राजीव ने, वित्त वर्ष 1987-88 का। और वो देश का अनोखा बजट था - शून्य आधारित बजट।
हार्ड वर्क वाले इसे नही जानते, रॉ विज़डम वालो को नही पता, मगर ये एक मैनेजमेंट टूल है, खर्चो पर नियंत्रण का। पारंपरिक बजट में, होता ये है,
की पिछले साल जो खर्च अनुमत था, इस साल भी सही मान लिया जाता है। बहस सिर्फ उसमे कुछ घट बढ़ की होती है।
इसका नुकसान यह है कि आज भी पुलिस वालों को 15 रुपये घोड़ा'चना एलाउंस मिलता है। बगैर जस्टिफिकेशन, पुराने साल की परंपरा ले आधार पर अरबों का बजट निकाल देना,
आज शहीद राजीव गांधी याद आ गए..इस बदतमीजी भरे शोरशराबे में एक सभ्य, सौम्य व्यक्तित्व जिन्होंने चुपचाप देश को एक ऐसा हथियार दिया जिससे आज पूरा विश्व कांप रहा है..
हथियार का नाम है : KALI - "किलो एम्पेयर लीनियर इंजेक्टर"..ये भारत का सबसे खतरनाक और सीक्रेट हथियार है जिसपर ज्यादा
बात नहीं की जाती।
✋ शहीद राजीव गांधी ने 1985 में KALI बनाने के आदेश दिए थे..KALI मिसाइल या लेज़र बम नही है..ये एक "इलेक्ट्रॉन बीम" है जो लेजर से लाखो गुना ज्यादा खतरनाक है..
डॉ आर चिदम्बरम ने इसे 1989 में शुरू किया
डॉ चिदम्बरम विख्यात भारतीय वैज्ञानिक है
रक्षा रिसर्च, परमाणु परीक्षण से जुड़े रहे है
BARC, DRDO ने KALI विकसित किया
आज "KALI 10000" गीगावाट विकसित हो चुका है..
श्रीमती सोनिया गांधी और डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व में "KALI 5000" गीगावाट का परीक्षण अक्टूबर 2004 में किया गया..
अट्ठारहवीं कड़ी: बुढापा वरदान... या अभिशाप ?? जापान: तीसरा भाग
जापान के बारे में थोड़ी रोचक बातें और बता दूं, ताकि आप स्वयं भी समझ सकें कि वास्तव में ही जापानियों के लिए बुढापा वरदान ही है, ना कि हमारी तरह अभिशाप
सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि जापानी हम लोगों की तरह अपने इतिहास का रोना कभी भी नहीं रोते बल्कि एकबार उससे सीख लेकर हमेशा के लिए आगे बढ़ जाते हैं, फिर कभी भी इतिहास को मुड़कर नहीं देखते, सारे का सारा ध्यान अपने वर्तमान और भविष्य पर ही केन्द्रित कर देते हैं.
अमेरिका द्वारा परमाणु बम बरसाने के बावजूद जापान नें कभी भी अमेरिका से घृणा नहीं की, बस स्वयं को उस महा-त्रासदी को झेलने, काबिल बनाने में जुट गए, हमारी तरह पाकिस्तान-मुसलमान-नेहरू का रोना ही रोते नहीं रहे.
#भारतीय#राजनीति का गैर इरादतन #राजनीतिक समझा गया #चेहरा जिसे #नेता होने के लिए #समय ने #मौका दिया पर जो हो ना सका !
मेरे #जवानी की दहलीज़ की और बढ़ते क़दमों के दौर का ये खुशमिजाज चेहरा मुझे आज भी अपनी और आकर्षित करता हैं जिसे अपनी जिंदगी को जीने के लिए और कोई बेहतर पड़ाव
मिल सकतें थे पर भारत की नियति ने इसे अपघाती नेता बना दिया ! कई बार सोचता हूँ कि गर राजीव नेता होते तो सच बोलने का साहस नहीं रख पाते कि जनता की भलाई के लिए तय पैसे में दसवा हिस्सा ही हम तलक पहुंचता हैं और श्रीलंका में शांति सेना को ना भेजते कि भविष्य का भारत अपने आधुनिक
स्वप्नदृष्टा को सपनों को हकीकत में तब्दील होने तक साथ देखना चाहता हैं ! अपनी मौत के मानिंद किसी कागज़ पर दस्तख़त करना हर किसी के बस की बात नही कि आपने लिट्टे को ख़त्म करने सेना को नहीं भेजा था बल्कि अपने डेथ वारंट को हासिल करने के लिए ये जानलेवा कदम उठाया था !