इस कार्टून में दिख रहे काली टोपी वाले, के जन्मदिन का तोहफा ..
हमारी नई संसद है।
सन 45 में 'अग्रणी' की तस्वीर है, अखण्ड भारत का तीर है, टोपी-चश्मे में संधानरत सावरकर 'वीर' है। बिन टोपी, साथ मे संधानरत श्यामा प्रसाद मुखर्जी उर्फ 'शहीद-ए-कश्मीर' है।
कंपकपाते दशानन हैं, छूटती लाठी है। मुखमण्डल भयभीत है। मुख्य आनन गांधी हैं, दाहिने हाथ नेहरू, बाएं हाथ अबुल कलाम हैं। नेहरू के बगल में राजगोपालाचारी हैं, उनके बगल में सरदार पटेल, अंत में आचार्य कृपलानी।
कलाम के बाएं सुभाष हैं, अंत तीन की शिनाख्त आप करें।
संधानरत 'वीर' का नाम 1909 से 1948 तक, तीन संधानों में आया। मगर उन्होंने इस कार्टून के अलावा और कभी भी खुद ट्रिगर पुल नहीं किया।
एक बार मदनलाल धींगरा, एक बार अनंत कन्हारे और एक बार नाथूराम गोडसे ने निशाना साधा था। वे बेचारे फांसी चढ़े।
वीर ने पल्ला झाड़ लिया।
संधानरत शहीद-ए-कश्मीर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी -
■ सर्वप्रथम 5 साल कांग्रेस विधायक थे।
■ फिर अगले पांच साल अपनी पार्टी बना ली।
■ फिर अगले पांच साल बाद हिन्दू महासभा में
■ फिर बंगाल की मुस्लिम लीग की सरकार में शामिल
■ फिर नेहरू की कैबिनेट में शामिल हुए।
■ फिर आरएसएस में शामिल हुए।
■ फिर जनसंघ में शामिल हुए।
जो CAA उनके उत्तराधिकारी आज लेकर आये हैं, उसी तरह, बंटवारे के बाद बाद भारत आये लोगो को नागरिकता देने वाले, नेहरू के एक बिल के विरोध में श्यामा ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था।
इसके बाद कश्मीर में छोटा-मोटा प्रदर्शन करते हुए जीवन में पहली बार जेल गए। डल झील के किनारे एक बंगले में हाउस अरेस्ट के दौरान, हार्ट अटैक से स्वर्गवासी हुए।
कम लोगों को पता है, इस कार्टून में 'अखण्ड भारत' का तीर चलाने वाले मुख़र्जी साहब ने सन 46 में माउंटबेटन को पत्र लिख कर 'पृथक बंगाल देश' की मांग की थी।
मोटिव, हत्या का इरादा, संधान की योजना, तो प्लानर के जेहन में उपजता है और अपराध उसी वक्त हो जाता है।
केवल कारित होना बचता है जो मौके, किस्मत, हथियार और हत्यारे के उपलब्ध होने का इंतजार कर रहा होता है। यह कार्टून उस हत्यारी सोच, उस जेहन का दस्तावेजी स्मारक है।
कार्टून 1945 में छपा था। अर्थात गांधी की हत्या की सोच सन 45 में मुकम्मल हो चुकी थी।
इसलिए इसे गोडसे के बयान में आये झूठ- बंटवारा, दंगे, गलियारे या पाकिस्तान को वादा किये गए पैसे जारी करने से मत जोड़िए।
दशानन के सिरों का क्रम उस वक्त कांग्रेस के नेतृत्व क्रम को भी बताता है। गांधी के बाद नेहरू, कलाम, राजगोपालाचारी और फिर जाकर सरदार पटेल।
सरदार की मूर्ति ऊँची कर देना भी गांधी/नेहरू का संधान था। देश की नई संसद सावरकर के जन्मदिवस 26 मई को राष्ट्र को समर्पित किए जाने का कार्यक्रम तय हुआ है।
गोडसे सम्पादित मैगजीन "अग्रणी' में छपा वह क्रूर कार्टूनी प्रहसन, आज भी जारी है।
एक बात नोट करें। तीरों की दिशा ऊपर है। कार्टूनिस्ट को पता था, किसका कद ऊंचा है,
मुल्ला नसीरुद्दीन का नाम किसने नहीं सुना है। बगदाद के रेगिस्तान में 800 वर्ष पूर्व घूमने वाले मुल्ला परमज्ञानी थे।परंतु ज्ञान बांटने के उनके तरीके बड़े अनूठे थे। वे लेक्चर नहीं देते थे बल्कि हास्यास्पद हरकत करके समझाने की कोशिश करते थे। उनका मानना था कि हास्यास्पद तरीके से समझाई
बात हमेशा के लिए मनुष्य के जहन में उतर जाती है। बात भी उनकी सही है, और मनुष्यजाति के इतिहास में वे हैं भी इकलौते ज्ञानी जो हास्य के साथ ज्ञान का मिश्रण करने में सफल रहे हैं। आज मैं उनके ही जीवन का एक खूबसूरत दृष्टांत बताता हूँ।
एक दिन मुल्ला बगदाद की गलियों से गुजर रहे थे। प्रायः वे गधे पर और वह भी उलटे बैठकर सवारी किया करते थे। और कहने की जरूरत नहीं कि उनका यह तरीका ही लोगों को हंसाने के लिए पर्याप्त था। खैर, उस दिन वे बाजार में उतरे और कुछ खजूर खरीदे। फिर बारी आई दुकानदार को मुद्राएं देने की।
आज के दैनिक हिंट में। जी आभार Shambhunath Shukla सर।
"धर्म खतरे में है"
अरे दद्दा कहाँ से आ रहे हो?
कहीं नहीं, बस यहीं चक्की पर घानी पिराने गए थे और साथ ही शाम के लिए थोड़ी सब्जी भी ले आए। घर में तेल बिलकुल ख़त्म हो गया था,
तुम्हारी भौजी कल से तबा किये थीं। मैंने अपनी घरेलू जिम्मेदारियों से उसको प्रभावित करना चाहा।
पर वह अप्रभावित रहा।
क्या आप भी दद्दा सिर्फ़ घरेलू कामों में ही उलझे रहते हैं। कभी देश, समाज और धर्म की भी सुध ले लिया करिये।
मैं इस इस अप्रत्याशित लांछन से हकबका गया और साइकिल से उतरकर खड़ा हो गया। झेंप को दबाते हुए उससे पूछा, काहे देश, समाज और धर्म को क्या हुआ? सब तो ठीकै है।
अरे कहाँ ठीक है! आप लोगों को तो बस लोन, तेल औ लकड़ी के आगे सूझता ही कहाँ है!
कुछ मित्रों ने पाप ओुआ गिनी के संबंध में जानना चाहा है तो कुछ मित्र ऑस्ट्रेलियन सम्मान की बाबत जानकारी चाहते है ।
पाप ओुआ गिनी ऑस्ट्रेलिया के उपर इंडोनेशिया के सुदूर एक छोटा सा द्वीप है जिसकी कुल आबादी 80 से 90 लाख है।
वहाँ कुलमिलाकर 850 बोली भाषा इस्तेमाल होती है और वहाँ के साहब पर भी कई प्रकार के आरोप लगे थे। बाकी तो अधिकांश अफ़्रीकी देशों की तरह इनके यहाँ भी नून ब्रांड लोकतंत्र है। अर्थात राजा और उसके दो दोस्त खरबपति जनता भूखी, बेरोजगार .
अप्रत्यक्ष रूप से चीन ने पैसे के दम पर यहाँ कब्ज़ा किया हुआ है जैसा श्रीलंका या मालदीप समझ ले । चीन इस प्रकार के छोटे गुलामो के माध्यम से दलाली और अन्य राजनेताओं को खरीदने का भुगतान करता है या अवैध लेन देन करता है ।
2000 का नोट बंद होने पर देश की अधिकांश जनता की प्रतिक्रिया हमेशा की तरह कुछ ऐसी होगी 👇
एक राजा था जिसकी प्रजा सोई हुई थी ! बहुत से लोगों ने कोशिश की प्रजा जग जाए .. अगर कुछ गलत हो रहा है तो उसका विरोध करे, लेकिन प्रजा को कोई फर्क नहीं पड़ता था !
राजा ने तेल के दाम बढ़ा दिये प्रजा चुप रही राजा ने अजीबो गरीब टैक्स लगाए प्रजा चुप रही राजा ज़ुल्म करता रहा लेकिन प्रजा चुप रही
एक दिन राजा के दिमाग मे एक बात आई उसने एक अच्छे-चौड़े रास्ते को खुदवा के एक पुल बनाया ..
जबकि वहां पुल की कतई ज़रूरत नहीं थी .. प्रजा फिर भी चुप थी किसी ने नहीं पूछा के भाई यहा तो किसी पुल की ज़रूरत नहीं है आप काहे बना रहे है ?
राजा ने अपने सैनिक उस पुल पे खड़े करवा दिए और पुल से गुजरने वाले हर व्यक्ति से टैक्स लिया जाने लगा फिर भी किसी ने कोई विरोध नहीं किया !
अत्यंत अमीर नेहरू घराने का परिवारवाद .....
यह है परिवार वाद जिसके बारे में चर्चा करने की भक्तो की औकात ही नही है
1) मोतीलाल नेहरू को नमक सत्त्याग्रह में भाग लेने के कारण 2 वर्ष जेल का दंड भोगना पड़ा । 2) जवाहरलाल नेहरू को 9 वर्ष से अधिक जेल में रहना पडा़ ।
3) एक समय तो मोतीलाल जी और जवाहरलाल जी दोनो बापलेक कारागृह में साथ बंद थे , उस समय जवाहरलाल जी की माताश्री स्वरूपराणी नेहरू ने कॉग्रेस के काम का धुरा संभाली थीं. मोतीलाल नेहरू के निधन के बाद, जवाहरलालजी कारागृह में बंद थे तभी पोलिस के हल्ले से माता स्वरूपराणी नेहरू जख्मी
होकर रस्ते पर बेसुध स्थिति में पड़ी थीं और पोलिस हल्ला में उनके मृत होने की ख़बर फैल गयी थी. जवाहरलाल जी कारागृह में बंद होने के कारण घायल मां से मिलने जा नहीं पाए । 4) जवाहरलाल जी की पत्नी कमला नेहरूं की तबियत खराब होने के बावजूद 1 वर्ष कारागृह बंद रहे।
बहुचर्चित यूट्यूबर ध्रुव राठी ने मनगढ़ंत बातों को लेकर सुदीप्तो सेन द्वारा बनाई गई प्रोपेगैंडा फिल्म द केरला स्टोरी के झूठ का पर्दाफाश करने वाले तथ्यों के साथ एक वीडियो 'The Kerala story true or fake' यूट्यूब पर अपलोड किया है।
राठी ने अपने इस शोधपरक वीडियो में हिटलर और उसके सचिव जोसेफ गोयबल्स द्वारा झूठ को सच में बदलने वाली तरकीबों के माध्यम से ऐतिहासिक संदर्भों के साथ बताया है कि सुदीप्तो ने भी उन्ही टैक्टिक्स को अपनाते हुए जमीनी हकीकत के विरुद्ध इस फिल्म का ताना-बाना बुना है।
ध्रुव राठी के 22:28 मिनट के इस वीडियो को सिर्फ 12 दिनों में अब तक 1.4 करोड़ यानी देश की कुल जनसंख्या के एक फीसदी लोगों ने देखा है।