#धर्मसंसद
आज का प्रश्न दिलीप मंडलों हंसराज मीनाओं को जबाव देने के लिए किया गया था जो कहते हैं कि दलितों को उच्च जातियों विशेषकर ब्राह्मणों ने पढ़ने नहीं दिया। कथा छांदोग्य उपनिषद में आई है और त्रेतायुग की है।उन दिनों महर्षि गौतम का गुरुकुल बहुत प्रसिद्ध था। उनके
गुरुकुल में एक भील बालक पढ़ने के लिए आया। ऋषि गौतम सर्व वर्ग समभाव में विश्वास करते थे।बालक के मुख पर अंकित तेज को देखकर बड़े प्रभावित हुए और बोले बेटा मैं तुममें एक विलक्षण प्रतिभा देख रहा हूं। मैं तुम्हें अवश्य पढ़ाऊंगा पर मेरे गुरुकुल का नियम है कि किसी छात्र
का नाम लिखने के पिता का नाम जानना आवश्यक है तो तुम्हारे पिता का नाम क्या है।बालक ने कहा कि मेरे पिता नहीं हैं पर मैं मां को साथ लेकर आऊंगा। मां ही बताएगी कि मेरे पिता कौन हैं। ऋषि ने कहा कि जाओ अपनी मां से पूछकर आओ कि तुम्हारे पिता कौन हैं।
दूसरे दिन बालक फिर आया और बताया कि गुरु देव मेरी मां ने कहा है कि युवावस्था में मैं अनेकों गृहस्थों के घर में चौका बरतन का काम करती थी और मेरा संबंध कई पुरुषों से रहा है इसलिए मैं नहीं बता सकती कि उनमें से तुम किसके पुत्र हो। हां मां ने कहा है कि अपने गुरु से कहना
कि मेरा नाम जबाला है। अगर मेरे नाम से काम चल जाए तो यही लिखकर तुम्हें पढ़ा दें।बालक की सच्चाई से ऋषि गौतम बहुत प्रभावित हुए और कहा कि वत्स आज से तुम्हारा सत्यकाम हुआ। अपनी माता के नाम पर संसार तुम्हें सत्यकाम जाबाल के रूप में जानेगा। इन्हीं सत्यकाम जाबाल की माता
थीं भीलनी जबाला। गोत्र के रूप में ऋषि गौतम ने अपना गोत्र दे दिया। आज़ जिसे हम गोत्र कहते हैं वह इस कारण कि हमारे पूर्वज किस ऋषि के वंशज या फिर शिष्य रहे हैं। एक गुरुकुल में अध्ययन करने वाले सभी छात्रों का गोत्र वही होता है जो उस गुरुकुल के कुलपति का होता है।जब
कोई ब्राह्मण कहता है कि वह भारद्वाज गोत्र का है तो उसका अर्थ है कि वह ऋषि भारद्वाज का वंशज है। वहीं अगर कोई क्षत्रिय या वैश्य कहता है कि उसका गोत्र भारद्वाज है तो इसका मतलब है कि उसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज के शिष्य थे । धन्यवाद जय
कुछ मिथक और उनकी सच्चाई।
मिथक- चरखे से आजादी मिली थी
सच्चाई- चरखे नहीं बल्कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के प्रयास से और क्रांतिकारियों के बलिदान से आजादी मिली थी ।
मिथक- चाचा नेहरू बच्चों को बहुत प्यार करते थे ।
सच्चाई- यह गलत है चाचा नेहरू बच्चों से उनकी मम्मियों
से प्यार करते थे
मिथक- 1919-20 का खिलाफत आंदोलन देश की आजादी के लिए किया गया था
सच्चाई- जी नहीं यह सरासर झूठ है यह आंदोलन मौलाना मुहम्मद अली जौहर शौकत अली और अबुल कलाम आजाद के कहने पर तुर्की के खलीफा की पुनर्स्थापना के लिए किया गया था जो असफल रहा
मिथक- 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में अटल बिहारी वाजपेई ने इंदिरा गांधी को दुर्गा का अवतार कहा था।
सच्चाई- नहीं यह भी झूठ है।अटल जी ने ऐसा कुछ नहीं कहा था।
मिथक- एक पूर्व प्रधानमंत्री बड़े वीर थे।
सच्चाई- नहीं वे वीर नहीं थे। युद्ध के दौरान छुट्टी लेकर ससुराल चले गए थे।
कहानी आकाशवाणी की।
भले ही हम अपने देश को भारत कहें पर कहने से क्या भारत बन जाएगा।नीलकोटे ने कापी पेस्ट संविधान लिखा है उसमें देश का आधिकारिक नाम है India that is Bharat. माने यह इंडिया है और इसमें भारत शब्द पुछल्ले की तरह जोड़ दिया गया है।मन में आए तो कहें नहीं तो नहीं
कुछ ऐसा ही हुआ था भारत की रेडियो प्रसारण संस्था का।इसका नाम आल इंडिया रेडियो रखा गया था। इसकी स्थापना 8 June 1936 को हुई थी।आल इंडिया रेडियो के आकाशवाणी बनने में
21 वर्ष का समय लग गया। निराला जी के समकालीन कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा के कहने पर इसका नाम आकाशवाणी 1957 में रखा गया
फिर भी केवल हिन्दी भाषी राज्यों और कुछ क्षेत्रीय रेडियो स्टेशनों को छोड़कर बाकी सभी जगह अभी तक वही आल इंडिया रेडियो ही चलता रहा है। 3 मई 2023 की तारीख इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित की जाएगी क्योंकि इसी दिन सूचना प्रसारण विभाग को संचालित करने वाली एजेंसी
किसी पुरानी हिंदी फिल्म का गाना है "
तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो
कौन सा गम है जो छुपा रहे हो।
कुछ पार्टियों और नेताओं का आज यही हाल हुआ है। इनमें प्रमुख हैं ममता बनर्जी नीतीश कुमार तेजस्वी यादव हेमंत सोरेन अखिलेश यादव और के चंद्रशेखर राव। कुछ हद तक जगनमोहन रेड्डी भी है
पर अभी उनके यहां समस्या इतनी गंभीर नहीं हुई है। और यह समस्या पैदा हुई है कर्नाटक चुनाव से। हालांकि इसका प्रभाव लोकसभा चुनाव पर नहीं पड़ेगा पर प्रदेशों के चुनाव में तो पड़ेगा ही। ऐसा नहीं है कि कर्नाटक में भाजपा इसलिए हारी है कि उसे कम वोट मिला है। भाजपा का 36% वोट तो
उसके साथ इंटैक्ट रहा। गड़बड़ी जद एस के वोट में हो गई। अभी तक जद एस की जीत के आधार दो तरह के वोटर रहे वोक्कालिंगा और मुस्लिम। अबकी बार ऐसा हुआ कि जदद एस के 5 % मुस्लिम वोट खिसककर कांग्रेस की ओर चले गए और कांग्रेस के वोट 37 से बढ़कर
42% हो गया। सीधा सा मतलब है कि
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जितने भी नियमित लेखकों ने उत्तर दिया अच्छा और विस्तृत उत्तर दिया। आज का प्रश्न किसी ऐसे महत्वपूर्ण पात्र के विषय में नहीं था जिसका उल्लेख किसी ग्रंथ में किया गया हो। वज्रज्वाला रावण के भाई कुंभकर्ण की पत्नी थी। राजा बलि की पुत्री तथा बाणासुर की यह बहन
अपने समय की वैज्ञानिक प्रतिभा संपन्न महिला थी। कुंभकर्ण के विषय में यह जो भ्रांति है कि वह छः महीने तक सोता था गलत है।
रामचरितमानस में तो संक्षेप में वर्णन किया गया है पर वाल्मीकि रामायण में कुंभकर्ण की मृत्यु के बाद रावण का सुनने लायक है। वहां रावण रोते हुए
कहता है कि भाई तुम तो मेरी दायीं भुजा थे। मेरे हर विजय अभियान में मेरे साथ रहे। राज्यों को जीत कर लंका की प्रतिष्ठा बढ़ाने में हमेशा बढ़-चढ़कर भाग लेते रहे। यदि एक क्षण के लिए मान लिया जाए कि कुंभकर्ण छः महीने सोता था तो फिर प्रश्न उठता है कि रावण के साथ दिग्विजय
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सूर्पनखा- रावण की बहन और रामायण की असली खलनायिका। वैसे कुछ लोग मुख्य खलनायिका कैकेई को मानते हैं पर मैं ऐसा नहीं मानता। इसके विषय में काफी कुछ जानकारी तो सबको पता होगी। कुछ अन्य बातें जानिए।इसका नाम सूर्पनखा नहीं था।यह तो मजाक में रखा गया था जो कालांतर में
प्रसिद्ध हो गया।इसका वास्तविक नाम बज्रमणि था।इसकी आंखें बड़ी सुंदर थीं और इसीलिए इसकी इसकी नानी सुकेशी ने बचपन में इसका नाम मीनाक्षी रखा था। यह अपने समय की फैशनेबल महिला थी। बड़े-बड़े नाखून रखना और उसे प्राकृतिक रंगों से रंगना इस महिला का शौक था। इसीलिए मजाक मजाक में
लोग इसे सूर्पनखा कहने लगे। रावण बड़ा अहंकारी था यह इससे सिद्ध होता हैं कि उसने अपनी दोनों बहनों के विवाह के विषय में सोचा ही नहीं। मंदोदरी आदि द्वारा समझाए जाने पर कहता था कि मेरे बराबर वीर कोई असुर दैत्य दानव यक्ष किन्नर नाग वंश में है नहीं और मनुष्यों और देवताओं को
क्या आप जानते हैं कि शिवकुमार के बजाय सिद्धारमैया को कर्नाटक का मुख्यमंत्री क्यों बनाया गया है?
तो ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि डीके शिवकुमार एक बड़े हिंदू हैं।वे पूरी भक्ति भाव से मंदिर मंदिर जाते हैं। उन्होंने चुनाव बाद कर्नाटक के हर जिले में हनुमान मंदिर
बनवाने का संकल्प लिया था। इसके विपरीत सिद्धारमैया की विचारधारा गांधी परिवार से अधिक मिलती है। गांधी फेमिली की ही तरह सिद्धारमैया कट्टर कम्युनिस्ट और नास्तिक हैं। इससे भी बढ़कर एक योग्यता और है कि वह कट्टर हिन्दू द्रोही हैं। तुष्टिकरण के वोट इसीलिए कांग्रेस को मिला था
कि उन्हें भरोसा दिया गया था कि उनके प्रिय नेता सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बनेंगे। बाकी तो वोक्कालिंगा समुदाय को घिस्सा देने के लिए नौटंकी हो रही थी। यह बात चुनाव के पहले ही तय हो चुकी थी। प्रचंड बहुमत के कारण शिवकुमार चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते। यही फार्मूला अगले आम चुनाव