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Ajmer Files 1992 ( Truth'of jihad)
आप सभी के केरला स्टोरी देख चुके हैं चलिए अब आपको "अजमेर स्टोरी" से रूबरू करवाते हैं।
आपको लगता है लव जिहाद जैसी चीजें हाल फिलहाल में शुरू हुई है तो आपकी सोच बदल जाएगी इस देश में "बलात्कार जेहाद" भी हो चुका है।जी हां बलात्कार जेहाद ऐसा सच आपकी ImageImage
रूह कांपा दें "इस्लाम" के नाम पर ये जेहाद का रूप जो आपको बताएगा की सांस्कृतिक नरसंहार कैसे किया जाता है ऐसी कहानी जिसकी एक पटकथा बहुत पहले लिख ली गई थी पर उसे अंजाम दिया गया लेकिन नियति देखिए इंसाफ ना मिला।
Ajmer Files 1992 ( Truth'of jihad)
लगभग 12 साल पहले की बात है मैं गूगल पर
कुछ सर्च कर रहा था तभी मुझे एक कंटेंट मिला अजमेर काण्ड के नाम से मुझे इस बात को जानने की बड़ी उत्सुकता हुई आखिर क्या हुआ था ऐसा जब तक मैं अजमेर कांड के बारे में ना तो कुछ सुना था ना कभी ऐसा कुछ सामने आया जब मैंने उस काण्ड के बारे में पढ़ा तो यकीन मानिए मेरे पैरों के नीचे से जमीन
खिसक गई मेरा रोम रोम कांप पर रहा था क्योंकि उस वक्त तक मुझे निठारी कांड सबसे बड़ा और दर्दनाक घटना पता दे उसे सोच कर भी मेरी आत्मा मानो कांप जाती थी निठारी काण्ड और अजमेर कांड में जमीन आसमान अंतर था निठारी कांड अपनी हवस को मिटाने के लिए किया गया गुनाह था और
अजमेर कांड अपनी हवस के
साथ-साथ इस्लामिक जिहाद को बढ़ावा देने और उसे जमीन पर उतारने के लिए रची गई एक भयानक साजिश थी जिसमें हिंदुओं की सैकड़ों बच्चियां बर्बाद हो गई या मारी गई..
पहले मैं आपको अजमेर फाइल्स की आरोपियों की की जानकारी आपके सामने रख दूं आगे में पूरे कांड को तार रूप में आपके सामने रखूंगा...
अजमेर फाइल्स के आरोपी कोई और नहीं अजमेर दरगाह चिस्तकी के "वंशज" फारूक चिश्ती, और नफीस यूथ कांग्रेस के प्रभावशाली नेता हुआ था जो राष्ट्रीय नेता के रूप मे जाना जाता था..अजमेर दरगाह अनुमान कमिटी के जॉइंट सेक्रेटरी मोसब्बिर हुसैन ने एक बार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से बात करते हुए कहा था कि
ये हमारे शहर पर लगा एक बदनुमा धब्बा है संतोष गुप्ता ने इस केस का खुलासा अप्रैल 1992 को किया था।उन्होंने लड़कियों पर हुए अत्याचार की व्यथा को देश के सम्मुख रखा था।कौन लोग थे, जिन्होंने इस शहर पर ऐसा दाग लगाया था? ये यहीं के लोग थे,खादिम थे। प्रभावशाली थे,अमीर थे और सफेदपोश थे।वो
अपराधी नहीं दिखते थे, वो समाजसेवी के कलेवर में थे। कुल 8 लोगों के खिलाफ शुरुआत में मामला दर्ज किया गया था। इसके बाद जाँच हुई और 18 आरोपित निकले।
ये वही लोग थे, जिन पर सूफी फ़क़ीर कहे जाने वाले ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह की देखरेख की जिम्मेदारी थी। ये वही लोग थे, जो ख़ुद को
चिश्ती का वंशज मानते हैं। उन पर हाथ डालने से पहले प्रशासन को भी सोचना पड़ता। अंदरखाने में बाबुओं को ये बातें पता होने के बावजूद इस पर पर्दा पड़ा रहा।
चेन के बारे में तो आपको पता ही होगा। एक के बाद एक को जोड़ कर चेन या श्रृंखला बनाई जाती है। मजहबी ठेकेदार के वेश में रह रहे दरिंदों
ने यही तरीका अपनाया था। किसी युवती को अपने जाल में फँसाओ, उससे सम्बन्ध बनाओ, उसकी नग्न व आपत्तिजनक तस्वीरें ले लो, फिर उसका प्रयोग कर के उसकी किसी दोस्त को फाँसो, फिर उसके साथ ऐसा करो और फिर उसकी किसी दोस्त के साथ- यही उस गैंग का तरीका था।
ओमेंद्र भारद्वाज तब अजमेर के डीआईजी थे,
जो बाद में राजस्थान के डीजीपी भी बने। वो कहते हैं कि आरोपित वित्तीय रूप से इतने प्रभावशाली थे और सामाजिक रूप से ऐसी पहुँच रखते थे कि पीड़िताओं को बयान देने के लिए प्रेरित करना पुलिस के लिए एक चुनौती बन गया था।
कोई भी पीड़िता आगे नहीं आना चाहती थी। उनका भी परिवार था, समाज था,जीवन
था और ये लड़ाई उन्हें हाथी और चींटी जैसी लगती थी। केस लड़ने, आरोपितों के ख़िलाफ़ बयान देने और पुलिस-कचहरी के लफड़ों में पड़ने से अच्छा उन्होंने यही समझा कि चुप रहा जाए।
इस रेप-कांड की शिकार अधिकतर स्कूल और कॉलेज जाने वाली लड़कियाँ थीं। लोग कहते हैं कि इनमें से अधिकतर ने तो
आत्महत्या कर ली।जब ये केस सामने आया था,तब अजमेर कई दिनों तक बन्द रहा था।लोग सड़क पर उतर गए थे और प्रदर्शन चालू हो गए थे। जानी हुई बात है कि आरोपितों में से अधिकतर समुदाय विशेष मुस्लिम थे और पीड़िताओं में सामान्यतः हिन्दू ही थीं।28 साल से केस चल रहा है।कई पीड़िताएँ अपने बयानों से
भी मुकर गईं। कइयों की शादी हुई, बच्चे हुए, बच्चों के बच्चे हुए। 30 साल में आखिर क्या नहीं बदल जाता?
हमारी समाजिक संरचना को देखते हुए शायद ही ऐसा कहीं होता है कि कोई महिला अपने बेटे और गोद में पोते को रख कर 30 साल पहले ख़ुद पर हुए यूँ जुर्म की लड़ाई लड़ने के लिए अदालतों का चक्कर
लगाए।
शायद उन महिलाओं ने भी इस जुल्म को भूत मान कर नियति के आगोश में जाकर अपनी ज़िंदगी को जीना सीख लिया है और उनमें से अधिकतर अपने हँसते-खेलते परिवारों के बीच 30 साल पुरानी दास्तान को याद भी नहीं करना चाहतीं।
90 के दशक का अजमेर। पत्रकार संतोष गुप्ता अपने दफ्तर में बैठे रहते थे।
वहाँ लोगों का आना-जाना लगा रहता था, जो अचानक से ही बढ़ गया था।
पूर्व में किया भारत की लड़कियों के साथ बलात्कार करके और धमकियां देकर उन से निकाह किया और बच्चे पैदा की गई इन्होंने उसी तरीके की एक सोची समझी जिहादी तैयारी से इतने बड़े कांड को अंजाम दिया इसमें कांग्रेस के रहमों करम
शामिल रहे जिन कांग्रेसी नेताओं को कांड के बारे में पता नहीं था उन्होंने खुलकर बचाव किया और जो इसमें शामिल थे उन्होंने आखिरी तक सभी का साथ दिया आजाद भारत का सबसे दर्दनाक कांड में कांड कहूंगा जिसमें दर्जनों इस्लामिक आरोपी शामिल थे मगर सत्ता के रहमों करम से सजा तो मिलना दूर खुले में
घूमते नजर आ रहे हैं शायद उनमें से कोई आज आपका हमारा नेता और मंत्री भी हो बात से इंकार नहीं किया जा सकता जो आंकड़े आपको दिए गए हैं वह जो सामने आए आत्महत्या करने वाली लड़कियों या फिर कहें सामने आने वाली लड़कियां बहुत कम रही होगी उस वक्त तक इस तरह के मामले छुपाए जाते थे परिवार वालों
के द्वारा भी आज हमें कहा जाता है कि जिहाद जैसा कुछ नहीं हम और हमारी पीढ़ी इसबात को मान भी नहीं आप सभी मां बाप से एक अनुरोध करूंगा कृपा अपने बच्चों बच्चियों अजमेर कांड के बारे में जरूर शिक्षा दें और उन्हें इस्लामिक जिहाद के बारे में समझाएं
#अजमेरदरगाह #चिश्ती #सेक्सकाण्ड #कोंग्रेस

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May 25
#RasbihariBose क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस / जन्म दिवस - 25 मई

बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में प्रत्येक देशवासी के मन में भारत माता की दासता की बेडि़याँ काटने की उत्कट अभिलाषा जोर मार रही थी। कुछ लोग शान्ति के मार्ग से इन्हें तोड़ना चाहते थे, तो कुछ जैसे को तैसा वाले मार्ग को अपना Image
कर बम-गोली से अंग्रेजों को सदा के लिए सात समुन्दर पार भगाना चाहते थे। ऐसे समय में बंगभूमि ने अनेक सपूतों को जन्म दिया, जिनकी एक ही चाह और एक ही राह थी - भारत माता की पराधीनता से मुक्ति।

25 मई, 1885 को बंगाल के चन्द्रनगर में रासबिहारी बोस का जन्म हुआ। वे बचपन से ही
क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आ गये थे। हाईस्कूल उत्तीर्ण करते ही वन विभाग में उनकी नौकरी लग गयी। यहाँ रहकर उन्हें अपने विचारों को क्रियान्वित करने का अच्छा अवसर मिला, चूँकि सघन वनों में बम, गोली का परीक्षण करने पर किसी को शक नहीं होता था।

रासबिहारी बोस का सम्पर्क दिल्ली, लाहौर
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May 25
सन 1996 में मैं दिल्ली में लोधी कालोनी में रहता था और मेरा पड़ोसी था यासीन मलिक. यासीन के बारे में सबने सुना था, कुख्यात आतंकवादी, JKLF का हेड. खूब हिंसा का तांडव मचाने के पश्चात अब वह दिल्ली आ गया था इस वादे के साथ कि अब वह खुद हिंसा नहीं करेगा लेकिन दिल्ली में रह कर शांति
पूर्ण तरीक़े से कश्मीर को भारत से आज़ाद कराएगा.

हम लोग तो राजनैतिक बच्चे थे. पर इतनी अक़्ल हमें भी थी कि इसने पहले खुद मार काट की, काश्मीरी पंडितों को भगाया, अपना संगठन बड़ा किया. अब यह इस लेवेल पर है कि इसे खुद बंदूक़ चलाने की ज़रूरत नहीं, बस पैसा भेजना है आदेश करना है. पर
हमारी दिल्ली की सरकारें इतनी 'भोली' होती थीं कि उन्होंने यह सच मान लिया था. स्वयं ही न्यायाधीश बन कर वर्डिक्ट भी दे दिया था. याशीन मलिक को दिल्ली की सबसे पॉश कालोनी में भारत सरकार VVIP सुविधाएँ देकर रखती थी. हम टैक्स पेयर थे, स्थानीय नागरिक थे, हमें विशेष ID दिए गए थे, अपने घर भी
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May 24
सिंदूर का पेड़ भी होता है, यह सुन आपको आश्चर्य ही होगा। लेकिन यह सत्य है, हमारे पास सब कुछ प्राकृतिक था, पर अधिक लाभ की लालसा ने हमे केमिकल युक्त बना दिया। हिमालयन क्षेत्र में मिलने वाला दुर्लभ #कमीला यानी सिंदूर का पौधा अब मैदानी क्षेत्रों में भी उगाया जाने लगा है।
कमीला को रोली Image
सिंदूरी, कपीळा, कमु, रैनी, सेरिया आदि नामो से जाना जाता है, वहीँ संस्कृत में इसे कम्पिल्लत और रक्तंग रेचि भी कहते हैं। जिसे देशभर की सुहागिनें अपनी मांग में भरती हैं। जो हर मंगलवार और शनिवार कलयुग के देवता राम भक्त #हनुमान को चढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि वन प्रवास के दौरान मां
सीता कमीला फल के पराग को अपनी मांग में लगाती थीं
बीस से पच्चीस फीट ऊंचे इस वृक्ष में फली गुच्छ के रूप में लगती है। फली का आकार मटर की फली की तरह होता है व #शरद_ऋतु में वृक्ष फली से लद जाता है। वैसे तो यह पौधा हिमालय बेल्ट में होता है, लेकिन विशेष देख-रेख करके मैदानी क्षेत्रों में
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May 24
इस तरह होते हैं घोटाले ...

किसी सरकारी संस्था के नाम से मिलता-जुलता संगठन बना लीजिए और जनता में भ्रम पैदा करके घोटाले करते रहिए...कौन रोक पाएगा ? जनता समर्थन देगी सो अलग !
ऐसा ही एक संगठन है, वक्फ बोर्ड
इस संगठन की कार्यप्रणाली, डोनेशन और सरकारी जमीनों पर अंधाधुंध कब्जा करने
की जांच चल रही है..!! यह बोर्ड पांव फैलाता है और जिलों के हिसाब से नाम रख लेता है..जैसे दिल्ली वक्फ बोर्ड ..जिसे तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने भंग कर दिया था...सरकारी विभाग को भंग किया जा सकता है क्या ?

सोचिये ..यदि यह सरकारी संगठन होता तो इसकी जांच क्यों की जाती ? नमाज़
पढ़ने के बहाने करोड़ों की सरकारी जमीनों पर कब्जा क्यों किया जाता ? एक सरकारी विभाग अपने लिए जमीन सरकार से भी मांग सकता है..जैसे डीडीए, नगर निगम आदि !
अब ये सुनिए...जांच कौन कर रहा है ?
सरकार का एक विभाग है केंद्रीय वक्फ परिषद..यह अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अधीन है...जबसे
Read 4 tweets
May 22
भगवान श्री कृष्ण, जब अपनी माता देवकी व अपने पिता वसुदेवजी की को कंस के चंगुल से छुड़ाने गए,
तब उनकी उम्र 14 वर्ष की थी उनकी माता ने पूछा कि बेटा तुम तो भगवान हो...!!
तो तुम हमे पहले ही कंस के चुंगल से छुड़ा सकते थे, तुमने इतनी देर क्यों कर दी...तो कृष्ण जी ने कहा माता
क्या पिछले Image
जन्म में आपने मुझे 14 वर्ष का वनवास नही दिया था..!!
माता हैरान रह गईं यह क्या कह रहे है आप..??
तब कृष्ण जी ने बताया, कि पिछले जन्म में
मैं राम था...!!
और आप थी माता कैकई...!!
और आप ने ही तो मुझे 14 वर्ष का वनवास दिया था..!!
और कर्म फल से कोई नही बच सकता माता..!!
इसलिए आपको 14
वर्ष का यह दुःख सहना पड़ा..!!
तब आश्चर्य चकित होते हुए माता ने पूछा,
तो फिर यशोदा पिछले जन्म में कौन थी..??
कृष्ण जी ने बताया वह थी माता कौशल्या..!!
जो 14 वर्ष तक अपने पुत्र से अलग रही, जिन्होंने दुःख को सहा था,
इसलिए इस जन्म में मैं 14 वर्ष तक उनके साथ रहा..!!
और मेरे साथ रहने
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May 22
ये हम उत्तरप्रदेश वालों का पतन है या दुर्भाग्य ?
(17 मई को बलिदान दिवस के अवसर पर विशेष रूप से प्रकाशित)
एटा-कासगंज जिले के एक महान क्रांतिकारी को आसपास के जिले वाले लोग भी नही जानते..
अंडमान की सेलुलर जेल में लगी ये प्रतिमा एटा के #महावीर_सिंह जी की है , ये भारत के एक Image
महान क्रांतिकारी थे.
उनका जन्म 16 सितम्बर 1904 को उत्तर प्रदेश के एटा जिले के शाहपुर टहला नामक एक छोटे से गाँव में उस क्षेत्र के प्रसिद्ध वैद्य कुंवर देवी सिंह और उनकी धर्मपरायण पत्नी श्रीमती शारदा देवी के पुत्र के रूप में हुआ था| प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही
प्राप्त करने के बाद महावीर सिंह ने हाईस्कूल की परीक्षा गवर्मेंट कालेज एटा से पास की थी...
1925 में उच्च शिक्षा के लिए महावीर सिंह जब डी. ए. वी. कालेज कानपुर गए तो चन्द्रशेखर आज़ाद के संपर्क में आने पर उनसे अत्यंत प्रभावित हुए और उनकी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोशिएसन
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