शालिनी उन्नीकृष्णन नर्सिंग कॉलेज में दाखिला लेती है जहां उसकी रूम मेट होती हैं गीतांजलि, नीमा मैथ्यूज औरआसिफा।
शालिनी एक धार्मिक परिवार से है जिसके परिवार में मां और दादी है।
गीतू के पिता एक communist है तो नास्तिक होने के कारण किसी भगवान को नहीं मानते,वही प्रभाव गीतू पर भी है।
नीमा एक क्रिश्चियन लड़की है और उसका जीसस पर पूरा विश्वास है।
जबकि दोनो हिंदू लड़कियों को अपने धर्म के बारे में कुछ भी नही पता।
हमारे धर्म में क्या क्या अच्छा है और हर चीज के पीछे क्या लॉजिक है, इस बारे में इन्हे किसी ने नहीं बताया और इसी का फायदा उठाती है आसिफा जिसका काम है
लड़कियों को बहला फुसला कर अपने मजहब में ले के आना ..
वो कहती है कि तुम्हारा एक भगवान हर किसी के साथ रास लीला करता फिरता है, एक भगवान इतना कमजोर है कि उसकी बीवी को एक राक्षस उठा के ले जाता है और उसे बंदरों की मदद लेनी पड़ती है और तुम उन बंदरों को भी पूजते हो ..
वो कहती है कि
तुम्हारा एक भगवान शिव अपनी मरी हुई बीवी के शव को लेके हर जगह घूमता है।
जब आसिफा ये सब विष वमन कर रही होती है तो दोनो हिंदू लड़कियों के पास इन सब बातों का कोई जवाब नही होता।
और मेरा मानना है कि आज भी बहुत सारी लड़कियों को अपने धर्म के विषय में कुछ नही पता इसीलिए उन्हें अपने धर्म
से विमुख करना बहुत आसान हो जाता है।
इसके विपरीत जब आसिफा जीसस के विषय में गलत टिप्पणी करती है तो नीमा उसका विरोध करती है।
एक दृश्य ये है कि जब चारों खाना खाती है तो नीमा प्रेयर करती है, आसिफा भी अल्लाह को याद करती है पर शालिनी और गीतू कुछ नही करती।
आसिफा कहती है कि तुम लोग खाना
खाने से पहले प्रेयर नही करते ?? शालिनी कहती है कि घर में अम्मा कुछ श्लोक तो पढ़ती है पर मुझे इस बारे में कुछ नही पता।
आसिफा और नीमा कहती है कि हम तो खाने से पहले अपने गॉड को धन्यवाद कहते हैं।
ये सीन देखते हुए ऐसा लग रहा था कि किसी ने हमारे मुंह पर कस के तमाचा मार दिया हो। आखिर
बच्चों को बताने की जिम्मेदारी किसकी है ? घर के माता-पिता ने कभी अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा ही नही दी या उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई ईसाई मिशनरी में करवाई।
जिन वृक्षों की जड़े कमजोर होती हैं वो जल्दी उखड़ते हैं। आज कल का दुर्भाग्य ये है कि हम आधुनिकता की दौड़ में कुछ हद तक धर्म
से विमुख हुए है ये एक सच्चाई है।
हम चाहे कितना भी आधुनिक हो पर अपनी जड़ों से जुड़े रहना अत्यंत आवश्यक है। पतंग तभी आसमान की ऊंचाई छूता है जबतक वो डोर से बंधा रहता है। हम धर्म रूपी डोर को छोड़ दिये है इसका नतीजा हम विधर्मियों के साधारण सवालों के जवाब नही दे पाते है।
इसलिए अपने
धर्म , संस्कृति , रीति रिवाज , देवी देवताओं के बारे में ज्ञान होना ही चाहिए। #TheKeralaStoryMovie
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कल दुबई में चार्टर्ड अकाउंटेंट और दुबई स्टॉक एक्सचेंज में कंसल्टेंसी करने वाले एक मित्र से व्हाट्सएप पर बहुत लंबी चर्चा हुई।उन्होंने बताया की यह जो तथाकथित राम कथा कहने वाले लोग हैं या भागवत कथा कहने वाले लोग हैं और इनकी कथाओं को जो कंपनियां स्पॉन्सर करती हैं आप कुछ सालों के बाद
उन कंपनियों की बैलेंस शीट देखिए वह कंपनी अचानक से इतनी ग्रो कैसे करने लगती है??
उन्होंने मुझे दो तीन कंपनियों का नाम भी बताया हालांकि मैं बगैर प्रूफ के उन कंपनियों का नाम नहीं लिखूंगा लेकिन यह कंपनियां राजस्थान और गुजरात की ही है और मैं खुद अपनी आंखों से देखा हूं कि 15 साल पहले
तक उन कंपनियों का कोई वजूद नहीं था लेकिन मात्र 15 साल में वह कंपनी आज 600 करोड़ से लेकर 800 करोड़ तक की टर्नओवर करने लगी है और कई प्रोडक्ट बनाने लगी है ।।
उन्होंने मुझे पूरा गणित बताया
ये तथाकथित संत यह तथाकथित कथावाचक दुबई आते हैं यहां पर सऊदी अरब के बहाबी लोगों के साथ उनकी
#स्थान: श्री हनुमान गढ़ी मंदिर अयोध्या जी मंदिर। #समय: साल 1998 का एक अघोषित दिन।
मंदिर परिसर में लगे ठंडे पानी की मशीन के पास बैठा एक छोटा सा वानर मुंह में दो बिजली के तारों को लिए चबाए जा रहा था,मानों कोई फल हो।पूरा मंदिर खाली करा लिया गया था,एक एक श्रद्धालु और एक एक दर्शनार्थी
केवल पुलिस बल और बम निरोधक दस्ता वहां उस समय हनुमान गढ़ी मंदिर के भीतर था, और वे सभी के सभी उस छोटे से वानर को बिजली का तार चबाते हुए देख रहे थे।
पर मंदिर पूरा खाली क्यों था और पुलिस के साथ में बम निरोधक दस्ता वहां क्या कर रहा था?
इसे थोड़े से में बता रहा हूं क्योंकि 1998 में
घटी ये सत्य घटना आज तक किसी अखबार या न्यूज चैनल में ये घटना दिखाई नही गई है अयोध्या के अति संवेदनशील होने के कारण।साल 1998 में करीब बीस किलो आरडीएक्स अयोध्या में आने की खबर उत्तरप्रदेश की एसटीएफ यानी विशेष पुलिस दस्ते को लगी थी, जिसमे से अधिकांशतः आरडीएक्स को समय रहते पुलिस
पश्चिमी रेगिस्तान की भूमि भले ही बंजर हो, लेकिन प्रकृति ने इस क्षेत्र को भी कुछ अनमोल सौगातें प्रदान की हैं। प्रचंड गर्मी की शुरुआत होते ही रेगिस्तान में विषम हालात पैदा हो जाते हैं। कई बार तापमान 50 डिग्री भी पार कर जाता है।
गर्मी की तीव्रता बढ़ने के साथ ही यहां कुछ ऐसे फल
उगते हैं, जो न केवल स्वादिष्ट होते हैं बल्कि अत्यधिक गर्मी से शरीर की रक्षा भी करते हैं। इन्हीं में एक फल है 'पीलू'।
रंग-बिरंगे पीलू से लदे वृक्ष बरबस ही लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं।
पीलू के पेड़ को स्थानीय भाषा में जाल के नाम से भी जाना जाता है। इसी जाल के पेड़ पर छोटे
छोटे रसीले पीलू के फल लगते हैं। यह फल मई व जून तथा हिन्दी के ज्येष्ठ व आधे आषाढ़ माह में लगते हैं। इसकी विशेषता यह है कि रेगिस्तान में जितनी अधिक गर्मी और तेज़ लू चलेगी पीलू उतने ही रसीले व मीठे होंगे। लू के प्रभाव को कम करने के लिए यह एक रामबाण औषधि मानी जाती है।
इसे खाने से
#RasbihariBose क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस / जन्म दिवस - 25 मई
बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में प्रत्येक देशवासी के मन में भारत माता की दासता की बेडि़याँ काटने की उत्कट अभिलाषा जोर मार रही थी। कुछ लोग शान्ति के मार्ग से इन्हें तोड़ना चाहते थे, तो कुछ जैसे को तैसा वाले मार्ग को अपना
कर बम-गोली से अंग्रेजों को सदा के लिए सात समुन्दर पार भगाना चाहते थे। ऐसे समय में बंगभूमि ने अनेक सपूतों को जन्म दिया, जिनकी एक ही चाह और एक ही राह थी - भारत माता की पराधीनता से मुक्ति।
25 मई, 1885 को बंगाल के चन्द्रनगर में रासबिहारी बोस का जन्म हुआ। वे बचपन से ही
क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आ गये थे। हाईस्कूल उत्तीर्ण करते ही वन विभाग में उनकी नौकरी लग गयी। यहाँ रहकर उन्हें अपने विचारों को क्रियान्वित करने का अच्छा अवसर मिला, चूँकि सघन वनों में बम, गोली का परीक्षण करने पर किसी को शक नहीं होता था।