क्या महाराजा जयचंद्र गद्दार थे?

भारतीय इतिहास में कई सारे नाम आए, जो अपने कुछ कार्यों के कारण इतिहास में काले अक्षरों से लिखे गए हैं। राजा जयचंद एक ऐसा ही नाम हैं!

उन्हें देश का गद्दार तक कहा जाता है। कहते हैं कि वह पृथ्वीराज चौहान से अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी का बदला लेने (1/20) Image
के लिए मोहम्मद गौरी से जा मिले थे।

हालांकि, उनके किरदार को लेकर कई ऐसे मत हैं, जो उन्हें गद्दार कहने पर सवाल खड़े करते हैं! वह सवाल कौन से आईए जानने की स्पष्ट कोशिश करते हैं...

राजा की बेटी ने टकराव का कारण बना दिया:

जैसा कि आप जानते ही हैं कि राजा पृथ्वीराज चौहान ने (2/20)
अन्य राजपूत राजाओं के साथ मिलकर वर्ष 1191 में मोहम्मद गौरी को तेहरान की पहली लड़ाई में करारी मात दी थी। इस हार को मोहम्मद गौरी पचा नहीं पाया और उसने पृथ्वीराज से इसका बदला लेने की ठान ली। इसी दौरान पृथ्वीराज चौहान को राजा जयचंद की बेटी संयोगिता से प्रेम हो गया।

लेकिन राजा (3/20)
जयचंद इस रिश्ते के खिलाफ थे, जिसके कारण पृथ्वीराज चौहान संयोगिता को भगाकर अपने साथ ले गए और उससे शादी ली। पृथ्वीराज की इस हरकत के चलते जयचंद ने उसे साथ किया हुआ समझौता तोड़ दिया और उनके खिलाफ जंग छेड़ दी।

इसके परिणाम स्वरूप राजा जयचंद और पृथ्वीराज चौहान युद्ध के मैदान में (4/20)
कई बार आमने सामने हुए। इन युद्धों में यकीनन पृथ्वीराज की जीत हुई, लेकिन इसकी कीमत के तौर पर पृथ्वीराज के कई बहादुर सेनापति मारे गए।

वहीं राजा की संयोगिता को इस तरह भगाकर शादी करने की इस हरकत का प्रभाव अन्य राजपूत राजाओं पर भी पड़ा और उन्होंने पृथ्वीराज से अपने सभी (5/20)
समझौते तोड़ दिए।

अपमान का बदला चाहता था जयचंद:

इतिहास के अनुसार पृथ्वीराज के हाथों युद्ध में हार के बाद राजा जयचंद बदले की आग में झुलस रहा था, वह किसी भी कीमत पर पृथ्वीराज से बदला लेना चाहता था। बदले की यही चाहत जयचंद को मोहम्मद गौरी के दरवाजे तक ले गई। जयचंद ने गौरी (6/20)
को पृथ्वीराज पर हमला करने का न्यौता दिया और साथ युद्ध के दौरान सैन्य ताकत देने का वायदा किया। जयचंद की बात मानकर गौरी की सेना एक बार फिर से भारत की ओर कूच कर दी। जब पृथ्वीराज को इस आक्रमण का पता चला, तो उसने अन्य राजाओं से मदद मांगी, राजा जयचंद के कहने पर किसी ने (7/20)
पृथ्वीराज की मदद नहीं की।

अपितु वह सब राजा के खिलाफ यानी गौरी के पक्ष में खड़े हो गए। हालांकि, इसके बावजूद पृथ्वीराज के पास 3 लाख सैनिकों की विशाल सेना थी। वही इसके मुकाबले गौरी के पास केवल 1 लाख 20 हजार सैनिक थे। परिणाम स्वरूप वर्ष 1192 में तराइन का दूसरा युद्ध हुआ।
(8/20)
इस युद्ध की शुरुआत में तो पृथ्वीराज की सेना का पलड़ा भारी रहा, लेकिन कुछ देर बाद गौरी की आपदा टुकड़ी ने अपनी सेना बना ली। उन्होंने पृथ्वीराज की सेना के हाथियों को तीरों से इस कदर घायल कर दिया कि वे बौखला कर यहां वहां भागने लगे। इसका नतीजा यह रहा कि उन्होंने अपने ही (9/20)
सैंकड़ो सैनिकों को कूचल दिया। अंतत: पृथ्वीराज की हार हुई और उन्हें बंदी बना लिया गया और फिर बाद में उसे मार दिया गया।

पृथ्वीराज के बाद आई जयचंद की बारी:

पृथ्वीराज की हार के बाद भारत में मुस्लिम शासन की नींव रख दी गई। इस दौरान कुतुबद्दीन ऐबक को भारत का गवर्नर नियुक्त (10/20)
किया गया। पृथ्वीराज की हार से पश्चात जयचंद अब उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली राजा बन गया था।

लेकिन जयचंद की खुशी ज्यादा समय तक बरकरार नहीं रह पाई, क्योंकि खैबर के रास्ते मोहम्मद गौरी एक बार फिर भारत आ गया था। इस दौरान गौरी ने कुतुबद्दीन ऐबक के साथ मिलकर कन्नौज पर आक्रमण (11/20)
कर दिया। उनका सामना करने के लिए जयचंद खुद सेना का नेतृत्व करने के लिए युद्ध के मैदान में उतरें। इस युद्ध में तीर लगने से राजा जयचंद की मौत हो गई और इस तरह कन्नौज राज्य भी गौरी के अधीन हो गए।

जयचंद की सिंहासन को लेकर मत:

यहां तक ​​की कहानी में तो राजा जयचंद एक गद्दार ही (12/20)
साबित होते हैं, लेकिन राजा जयचंद एक इस किस्से पर शोध करने वाले इतिहासकार इस कहानी से इत्तेफाक नहीं रखते। लेखक डाॅ आनंद शर्मा की माने तो उन्होंने राजा जयचंद के जीवन पर काफी शोध किया है। वहाँ पाया कि उन्हें कहीं राजा की बेटी संयोगिता का जिक्र नहीं मिला।

किसी भी लेख, (13/20)
दस्तावेज या पुस्तक में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि राजा की कोई संयोगिता नाम की बेटी भी थी। अगर यह मान लिया जाए कि राजा की कोई बेटी ही नहीं थी, तो संयोगिता हरण की बात पूरी तरह से झूठी साबित होती है!

हां! हो सकता है कि उनके बीच के आपसी मतभेदों की कोई और वजह रही हो, लेकिन (14/20)
उससे संबंधित कोई दस्तावेज़ भी इतिहास में नहीं मिलता है।

इसके अलावा जो बात को लेकर राजा जयचंद को देशद्रोही कहा जाता है। यानी गौरी को भारत पर आक्रमण का न्योता देने वाला तथ्य, उसको लेकर भी कोई प्रमाणित लेख मौजूद नहीं है। जयचंद की कहानी को लेकर एक मत यह भी है कि तहराइन के (15/20)
पहले युद्ध में जयचंद और पृथ्वीराज दोनों एक साथ लड़े थे, हालांकि इसके कहीं साक्ष्य नहीं मिलते हैं!

दस्तावेजों पर भी कई सवाल उठते हैं!

दरअसल तहराइन के पहले युद्ध के समय पृथ्वीराज ने राजा जयचंद जैसे छोटे राजाओं तक को युद्ध के लिए आमंत्रित किया। जबकि, जयचंद को इसकी कोई (16/20)
खबर नहीं दी गई। ऐसे में जयचंद ने तहरीन युद्ध में अपनी कोई भागीदारी नहीं की।

दूसरे युद्ध में भी कुछ ऐसा ही हुआ, जिसके कारण पृथ्वीराज को युद्ध में हार के साथ मौत नसीब हुई। इस जीत के साथ ही दिल्ली और अजमेर में गौरी का शासन हो गया, लेकिन गौरी अपना शासन कुतुबद्दीन ऐबक को (17/20)
सौंपकर गजनी वापस चला गया था। हालांकि, एक साल बाद वह फिर से लौटा और जयचंद पर हमला कर उसे भी हरा दिया।

ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि अगर तहराइन के पहले युद्ध में जयचंद ने गौरी की मदद की थी तो बाद में गौरी ने जयचंद को क्यों मारा। जबकि, उसने उसे भारत में अपना गवर्नर बनाकर (18/20)
अपने देश लौट गया था। जयचंद द्वारा गौरी की सहायता का भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद नहीं है, जिससे यह तथ्य भी साबित नहीं हो पाता है।

जय चंद क्या गद्दार था?

यही कारण है कि ऐतिहासिक कहानियों में चाहे राजा जयचंद को गद्दार कहा गया है, लेकिन इतिहास में ऐसा साक्षय मौजूद (19/20)
नहीं है, जो इस तथ्य को पूरी तरह से प्रमाणित कर सकेगा!

इस पर आपकी राय क्या है?

#साभार
(20/20)
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