सेंगोल क्या है !! हर किसी को ये सवाल पूछना चाहिए क्यूँकि आम भारतीय जनता आज तक इसके बारे में “पं नेहरू को भेंट, सुनहरी छड़ी” से ज़्यादा और कुछ नहीं जानती थी ! जो की इसका सच नहीं था
फिर 1947 से आज तक इसके सच को क्यूँ छुपाया गया?
ये किस परम्परा का प्रतीक थी और बाद में उसका पालन बाद में क्यूँ नहीं किया गया?
महान चोल राजाओं के समय सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक, जिसके शीर्ष पर विराजमान हैं महाराज "नन्दी"। नन्दी अर्थात् वृषभ को शास्त्रों में धर्म का स्वरूप माना गया है। सेंगोल को भगवान शिव के आशीर्वाद का प्रतीक
माना जाता है। पर प्रश्न यह है की धर्म और सत्ता हस्तनान्तरण के इस प्रतीक को मात्र एक वक्तिगत भेंट के रूप में क्यूँ नेहरू के प्रयागराज स्थित आवास ( जो की अब एक म्यूज़ियम है) में सजा कर क्यूँ रख दिया गया और आम लोगों को इसके महत्व इस प्रतीक से वंचित रखा गया
सेंगोल के इतिहास के बारे में बताया गया है कि जब भारत आजाद हो रहा था तो अंतिम वाययराय जनरल लॉर्ड माउंटबेटन के सामने एक बड़ा सवाल यह खड़ा हुआ कि भारतीयों को स्वराज कैसे सौंपा जाए। भारत जैसे देश के संबंध में हाथ मिलाकर सत्ता का हस्तातंतरण करना उचित नही था।
ऐसे में उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू से अपनी यह दुविधा बताई। उन्होंने पंडिच नेहरू से पूछा कि इस गौरवशाली क्षण के लिए कौन सी रस्म निभाई जाए। पंडित नेहरू ने इसके बारे में राजाजी के नाम से जाने जाने वाले सी राजगोपालचारी से इस बारे में चर्चा की। राजाजी तमिलनाडु से आते थे।
नेहरू को उनकी विद्वता और भारतीय परंपराओं और सभ्यताओं पर उनके अध्ययन पर पूरा भरोसा था। इसके बाद राजगोपालचारी ने कई ग्रंथों का अध्ययन किया। काफी अध्ययन के बाद उन्हें इसका उपाय भारत के गौरवशाली इतिहास में मिला।
अध्ययन और शोध के दौरान राजाजी ने तमिलनाडु के चोल साम्राज्य में सत्ता के
हस्तांतरण के लिए अपनाई जाने वाली रस्म को इस अवसर के लिए तय किया।
चोल साम्राज्य भारत के प्राचीनतम और लंबे समय तक चलने वाले साम्राज्य में एक था. इस साम्राज्य में एक राजा से दूसरे राजा में सत्ता का हस्तांतरण एक सेंगोल सौंपकर किया जाता था जो कि नीति परायणता का उदाहरण माना जाता था।
सेंगोल को सौंपते वक्त भगवान शिव का आह्नान किया जाता था, क्योंकि चोला साम्राज्य शिव का भक्त था। सी.राजगोपालाचारी ने इसी परंपरा का सुझाव नेहरू जी को दिया जिसे पंडित नेहरू ने माना।
इसके बाद राजाजी ने बिना संमय गंवाए प्रमुख धार्मिक मठ तिरुवा वर्दुरई आदिनम से संपर्क किया।
थिरुववदुथुराई आदिनम 500 वर्ष से अधिक पुराना है और अभी भी इसने पूरे तमिलनाडु में 50 शाखा मठों के साथ काम करना जारी रखा है। आदिनम के तत्कालीन महंत ने तुरंत 'सेंगोल' (पांच फीट लंबाई) की तैयारी के लिए चेन्नई में जौहरी वुम्मिदी’ और ‘बंगारू चेट्टी’ को नियुक्त किया।
तब जिस सेंगोल का निर्माण किया गया उसके शीर्ष पर नंदी विराजमान थे, जिन्हें शक्ति, सत्य और न्याय का प्रतीक माना जाता है। सेंगोल बनाने वाले वुम्मिदी बंगारू चेट्टी ने बताया कि इसे चांदी से बनाया गया था। जिसके उपर सोने की परत थी। उन्होंने कहा कि “अधीनम के सानिध्य में इस निर्माण से
जुड़कर हम बेहद उत्साहित थे। स्वतंत्रता हम सभी के लिए गौरवशाली क्षण था, लेकिन सेंगोल का निर्णाण से जुड़कर हमारे लिए उस क्षण का गौरव बढ़ गया था।”
14 अगस्त, 1947 को सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी कराने के लिए तीन लोगों को विशेष रूप से तमिलनाडु से लाया गया था।
इनमें अधीनम के उप महायाजक श्री लै श्री कुमार स्वामीतमीरान, आश्रम के ओडुवर और नादस्वरम वादक राजरथिनम पिल्लई (गायक) थे। वे अपने साथ सेंगोल लेकर आए थे।
14 अगस्त 1947 की रात को श्री लै श्री कुमार स्वामीतमीरान ने रीतिअनुसार सेंगोल को अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटेन को सौंपा,
इसके बाद उसे वापस लिया गया और फिर उस पर पवित्र जल छिड़का गया। इसके बाद सेंगोल को एक शोभायात्रा में पंडित जवाहरलाल नेहरू के पास ले जाया गया। वहां आश्रम के ओडुवार ने तमिल संत थिरुग्नाना संबंदर द्वारा रचित श्लोंकों का पाठ किया। और फिर नेहरु को पवित्र सेंगोल सौंपा गया।
एक हजार साल पुरानी परंपरा का पालन करते हुए जो मंत्र तमिल में कहा गया और इस सेंगोल पे नक़्काशित है उसका अर्थ है - ये हमारा आदेश है कि ईश्वर के अनुयायी राजा स्वर्ग के समान शासन करेंगे।
इस प्रकार उत्तर और दक्षिण के असाधारण एकीकरण द्वारा राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोते हुए
सत्ता का हस्त्तांतरण किया गया। इस मौके पर नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद और कई अन्य नेताओं की उपस्थिति में सेंगोल को स्वीकार किया।
तमिल विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एस. राजावेलु ने कहा दो महाकाव्यों – सिलपथिकारम और मणिमेकलई – में सेंगोल के महत्व का उल्लेख किया गया है।''
राजावेलु ने कहा कि संगम काल से ही 'राजदंड' का उपयोग खासा प्रसिद्ध रहा है। उन्होंने कहा कि तमिल काव्य 'तिरुक्कुरल' में सेंगोल को लेकर एक पूरा अध्याय है।
अब आप ये तो समझ ही रहे होंगे कि सभी इस्लामिक पार्टियां उद्घाटन समारोह का बहिष्कार क्यों कर रही हैं।
सेंगल का महत्व और बाद में इस पवित्र सेंगल को क्या स्वरूप दे दिया गया वो आप सभी के सामने है
क्या ये सब एक विशेष पंथ को खुश करने के लिए किया गया ? और ऐसी कितनी बातें इस परिवार में अपनी राजनैतिक लाभ और ख़ुद की असली पहचान छुपाने के लिए दबाई होंगी ज़रा सोचिए!
और इस तरह हमारे धर्म के न जाने कितने प्रतीक एवं चिन्ह एक पंथ के तुष्टिकरण की भेंट चढ़ा दिए गए!
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Why the Ancient Vedic Rishis created the Gotra system, why did they bar marriage between a boy and a girl belonging to the same Gotra and why only son carries the gotra of father why not daughter ?
The Gotra is a system which associates a person with his most ancient or root ancestor in an unbroken male lineage. So Gotra refers to the root person (मूल पुरुष) in a person's male lineage.
The word Gotra is formed from the two Sanskrit words Gau (Cow) and Trahi (meaning Shed).
So Gotra means Cowshed, where in the context is that Gotra is like the Cowshed protecting a particular male lineage.
A Bride and a Bridegroom belonging to the same Gotra are considered to be siblings. The reason given was since they belonged to the same ancestor,.
A Hindu temple is a divine and yogic representation of a human being with the Deity in the temple representing the God as indweller in humans and all beings.
👆🏼This analogy is shown through the representation of various chakras namely ‘Moolaadhara’ to ‘Sahasraara’ in the body to various locations in the temple.
The yogis' who peered deep into this human instrument, beheld seven important chakras known
as Moolaadhaara, Swaadhishthaana, Manipura, Anaahata, Vishuddhi, Aajnya, and Sahasraara.
These centres are like seven gateways to experience the divine power within us.
और कहते हैं की इन भिखारियों ने भारत निर्माण में सहयोग दिया था!
जिस जौहर कुंड में 16000 क्षत्राणियों और वीरांगनाओं नें अपने धर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए धधकते अग्निकुंड में जौहर स्नान किया।
उस जौहरकुंड की राख से अल्लाउद्दीन ख़िलजी ने "सवा चौहत्तर मन सोना" (1 मन= 40kg) लूटा था
जौहर की गाथाओं से भरे पन्ने, भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं। ऐसे अवसर एक नहीं, कई बार आये हैं जब हिन्दू वीरांगनाओं ने अपनी पवित्रता की रक्षा के लिए “जय हर-जय हर” कहते हुए हजारों की संख्या में सामूहिक अग्नि प्रवेश किया था। यही उद्घोष आगे चलकर ‘जौहर’ बन गया।
जौहर की गाथाओं में सबसे चर्चित वर्णन चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का है, जिन्होंने 26 अगस्त, 1303 को 16,000 वीरांगनाओं के साथ जौहर किया था।
जौहर की ज्वाला शांत होने के बाद अलाउद्दीन ने उस विशाल चिता को भी नहीं छोड़ा।
युद्ध में विजय की सम्भावना ख़त्म होने पर सभी राजपूतानियाँ
इस विषय की गंभीरता को पढ़ें और समझें।
यदि कोई mazहबी व्यक्ति सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हो जाता है तो उसकी मृत्यु के बाद शरिया के अनुसार उसकी 4 पत्नियाँ हैं, तो उसे पेंशन कैसे दी जाती है?
उत्तर- नामांकनों को देखा जाता है और यह तय किया जाता हैकि किसको कितना प्रतिशत देना है।
यदि कोई नामांकन नहीं होता है, तो चारों के बीच 25% वितरित किया जाता है।
यदि पत्नियों में से एक की मृत्यु हो जाती है, तो अन्य तीन को 33.33 प्रतिशत भुगतान करना होगा।
यदि दूसरी पत्नी की मृत्यु हो जाती है, तो शेष दो का 50% हिस्सा होता है।
अगर तीसरी पत्नी की मृत्यु हो जाती है, तो
बाद वाली को 100% पेंशन मिलती है।
अब सोचो!
वह यदि पहली पत्नी की आयु ६० वर्ष, दूसरी की ५० वर्ष, तीसरी की ४० वर्ष की तथा चौथी की ३० वर्ष की है, और यदि सभी की जीवन आयु ७० वर्ष है, तो उनकी कुल पेंशन वर्ष -
आसिफ़ा बीबी ने अपने Religion की इन खूबियों को तो बताया ही नहीं ?
शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज के मरने के बाद अपनी बेटी जहाँनारा को अपनी पत्नी बनाया! क्या आपने इस्लाम की इन खूबियों के बारे में कभी इतिहास में कहीं पढ़ा?
नहीं! #TheKeralaStory
क्यूँकि ये अपने धर्म की इन घिनौनी सच्चाईयों को कभी नहीं बतायेंगे
देखिए कैसे कुछ अति विशिष्ट श्रेणी के इतिहासकारों ने हवस में डूबे मुगलों को प्रेम का मसीहा बताया जिसमे से एक शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए,
आठ हजार औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो इनके हिसाब से उसे प्यार ही कहा जाएगा।
आप यह जानकर हैरान हो जाएँगे कि मुमताज का नाम मुमताज महल था ही नहीं, बल्कि उसका असली नाम ‘अर्जुमंद-बानो-बेगम’ था और तो और
एक आदमी अपने सुअर के साथ नाव में यात्रा कर रहा था।उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था।
सुअर ने पहले कभी नाव में यात्रा नहीं की थी, इसलिए वह सहज महसूस नहीं कर रहा था।
ऊपर और नीचे जा रहा था, किसी को चैन से बैठने नहीं दे रहा था।
नाविक इससे परेशान था और चिंतित था कि यात्रियों की दहशत के कारण नाव डूब जाएगी।अगर सुअर शांत नहीं हुआ तो वह नाव को डुबो देगा।
वह आदमी स्थिति से परेशान था, लेकिन सुअर को शांत करने का कोई उपाय नहीं खोज सका।
दार्शनिक ने यह सब देखा और मदद करने का फैसला किया।
उसने कहा: "यदि आप अनुमति दें, तो मैं इस सुअर को घर की बिल्ली की तरह शांत कर सकता हूँ।"
दार्शनिक ने दो यात्रियों की मदद से सुअर को उठाया और नदी में फेंक दिया।
सुअर ने तैरते रहने के लिए ज़ोर-ज़ोर से तैरना शुरू कर दिया।यह अब मर रहा था और अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहा था।