#धर्मसंसद
यह तो बहुत आसान सा सवाल था। महाभारत के विषय में कुछ भी जानने वाले इन पुरुरवा को जानते होंगे। विशेषकर पुरुरवा और देवलोक की अप्सरा उर्वशी के प्रेम प्रसंग के विषय में। जिसने भी उत्तर दिया है ठीक दिया है। पुरुरवा के बहाने द्वापरयुग के कुछ प्रमुख पात्रों के
विषय में बताना उद्देश्य है।समझ लें कि आज से महाभारत पर प्रश्नों की श्रृंखला की शुरुआत हो गई है। पुरुरवा का चंद्र वंश में वही स्थान है जो सूर्य वंश में महाराज इक्वाकु का है। अत्रि ऋषि के पुत्र चंद्रमा के पौत्र बुध और इला के पुत्र महाराज पुरुरवा चंद्रवंशियों के
आदि पुरुष माने जाते हैं। सूर्य वंशी राजाओं की तरह ही चंद्र वंशी राजा भी देवासुर संग्रामों में देवताओं की सहायता के लिए जाया करते थे। ऐसे अनेक उदाहरण पुराणों में वर्णित हैं। धन्यवाद जय
चोल कालीन शेंगोल और हिन्दू विरोधी नेहरू
ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए करता है। मोदी न आए होते तो कौन जानता था कि शेंगोल क्या चीज़ होती है। इसे तो कट्टर हिन्दू द्रोही जवाहरलाल नेहरू ने अतल गहराई में डुबो रखा था। इतिहास में भी इस घटनाक्रम की घोर उपेक्षा की गई है।
कम ही लोग जानते होंगे कि 14 June 1947 को हुआ क्या था। अंग्रेजों ने भारत को सत्ता सौंप कर जाने की तैयारी कर लिया था।15
अगस्त 1947 का दिन निर्धारित हो चुका था तभी लार्ड माउंटबेटन ने नेहरू को बुलाकर पूछा कि भारत में ऐसी कोई चीज जिसे प्रतीकात्मक रूप से देकर कहा जाय
कि सत्ता सौंप दी गई है। अब यह ठहरे पक्के हिंदूद्रोही। उन्हें क्या पता था इतिहास का तो उन्होंने राजाजी
(चक्रवर्ती राजगोपालाचारी) से पूछा। राजाजी ने बताया कि तंजावुर के परियावा मठ में चोल साम्राज्य के समय का शेंगोल रखा है।यही राजदंड के रूप में एक के बाद दूसरे राजा
एक निजी ट्वीट जिस पर कमेंट करना अनिवार्य नहीं है। आज से ठीक तीन वर्ष पहले 26-5-2020
को मैं ट्विटर पर आया था। अनुभव न होने के कारण डीपी में अपनी वृद्धावस्था की ओरिजनल फोटो और बायो में अपनी वास्तविक आयु और काम लिख दिया था। अब सोचता हूं कि मैंने गलत किया या सही पता नहीं।
आप लोगों का बहुत स्नेह मिला। एक अनजान सा रिश्ता बन गया। किसी का दादा किसी का चाचा किसी का बड़ा भाई, बेटियों का बाप, बहनों का बड़ा भाई बहुओं के लिए बाबूजी बन गया तो उधर कांग्रेसियों के लिए खूसट बुड्ढा, कम्युनिस्टों के लिए bsdk और
चुल्लों बुल्लों के लिए नफरती चिंटू
और पता नहीं क्या क्या बन गया।राह में फूल आए।आप लोगों ने सिर माथे बिठाया तो कुछ लोग गाली देते हुए भी नहीं अघाए। मैंने आते ही देखा कि राजनीतिक ट्वीट, एक दूसरे की ट्रोलिंग जिसे हमारी अवधी भाषा में एक दूसरे की टांग खिंचाई कहते हैं अधिक थी। मैंने एक अनोखा विषय चुना
आज कांग्रेसियों को संविधान बहुत याद आ रहा है।जिसे देखो वही संविधान विशेषज्ञ बना हुआ है। कहते हैं कि राष्ट्रपति संविधान के अनुसार राष्ट्रप्रमुख होता है।सारी विधायी शक्तियां उसी में निहित होती हैं पर शायद नहीं जानते कि संविधान में ही अधिकार का बंटवारा हो चुका है
इसके अनुसार राष्ट्रपति प्रमुख तो होता है पर वह मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करता है। वैसे तो राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का प्रमुख होता है।जीत और हार दोनों की जिम्मेदारी राष्ट्रपति पर होनी चाहिए पर ऐसा कभी हुआ नहीं।1962 में लद्दाख और अरुणाचल में हुई भीषण हार की जिम्मेदारी
नेहरू ने ली थी।तब किसी ने नहीं कहा था कि यह हार भारत के राष्ट्रपति की हार है। ठीक वैसे ही
1971 के युद्ध में जीत का श्रेय इंदिरा गांधी को मिला था न कि राष्ट्रपति को। किसी ने नहीं कहा था कि यह राष्ट्रपति की जीत है। आज सबको राष्ट्रपति का सम्मान बहुत याद आता है।उस समय
नगरी नगरी द्वारे द्वारे ढूंढूं मैं सांवरिया।पिया पिया रटते रटते हो गई रे बावरिया। आजकल सड़ जी की फिल्म मदर इंडिया की नरगिस जैसी हो गई है।कभी जिस शरद पवार लालू यादव मुलायम सिंह यादव को भ्रष्ट बताते थक नहीं रहे थे।जिस सोनिया गांधी को जेल भेजने के लिए दस दिन तक अनशन पर बैठे थे
आज उन्हीं के घर पर माथा रगड़ रहे हैं कि दिल्ली विधानसभा अध्यादेश के खिलाफ समर्थन दें। ऐसा नहीं है कि सड़ जी को पता नहीं है मोदी कच्ची गोली नहीं खेलते। अध्यादेश लाने के पहले ही उसे उस राज्यसभा में पास कराने की पूरी व्यवस्था कर लिया होगा। राज्यसभा में किसी बिल को
पास कराने के लिए कुल 119 सदस्यों की आवश्यकता है और भाजपा के पास आलरेडी 112
सदस्य हैं।शेष ७ की व्यवस्था करना कोई मुश्किल काम नहीं है।बिल तो तब पास करा लिया था जबकि भाजपा के पास एक तिहाई सदस्य ही थे। वास्तव में केजरीवाल का उद्देश्य बिल को रोकने का है ही नहीं बल्कि
ऊसर मरन विदेश गमन तौनौं पै कछु और। यही हुआ राहुल गांधी के साथ। पहले तो हेट स्पीच में संसद सदस्यता खत्म हो गई।आठ साल तक चुनाव लडने पर प्रतिबंध लग गया और अब पासपोर्ट बनवाने की भी समस्या आ खड़ी हुई है। संजय सदस्य होने के कारण राजनीतिक पासपोर्ट की सुविधा खत्म हो गई
अब सामान्य नागरिक के रूप में पासपोर्ट के लिए आवेदन दिया। उन्हें टूल किट तैयार करने के दस दिन के लिए अमेरिका जाना था। उन्होंने मंगलवार को कोर्ट में याचिका दाखिल कर पासपोर्ट के लिए नो ड्यूज सर्टिफिकेट (अनापत्ति प्रमाणपत्र) जारी करने की मांग की।इस पर डाक्टर सुब्रमण्यम स्वामी
ने राउज एवेन्यू कोर्ट पहुंचकर विरोध कर दिया। चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट वैभव मेहता की कोर्ट में पेश होकर कहा कि यह नेशनल हेराल्ड केस के मुलजिम हैं।अगर इन्हें पासपोर्ट मिल गया तो यह साहब हेराल्ड केस की जांच को प्रभावित कर सकते हैं। मामले की सुनवाई अब 26 मई को होगी।
कुछ मिथक और उनकी सच्चाई।
मिथक- चरखे से आजादी मिली थी
सच्चाई- चरखे नहीं बल्कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के प्रयास से और क्रांतिकारियों के बलिदान से आजादी मिली थी ।
मिथक- चाचा नेहरू बच्चों को बहुत प्यार करते थे ।
सच्चाई- यह गलत है चाचा नेहरू बच्चों से उनकी मम्मियों
से प्यार करते थे
मिथक- 1919-20 का खिलाफत आंदोलन देश की आजादी के लिए किया गया था
सच्चाई- जी नहीं यह सरासर झूठ है यह आंदोलन मौलाना मुहम्मद अली जौहर शौकत अली और अबुल कलाम आजाद के कहने पर तुर्की के खलीफा की पुनर्स्थापना के लिए किया गया था जो असफल रहा
मिथक- 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में अटल बिहारी वाजपेई ने इंदिरा गांधी को दुर्गा का अवतार कहा था।
सच्चाई- नहीं यह भी झूठ है।अटल जी ने ऐसा कुछ नहीं कहा था।
मिथक- एक पूर्व प्रधानमंत्री बड़े वीर थे।
सच्चाई- नहीं वे वीर नहीं थे। युद्ध के दौरान छुट्टी लेकर ससुराल चले गए थे।