"सेंगोल": व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की कहानी और सच.
14 अगस्त 1947 की रात..नेहरुजी के साथ कम से कम 300 सांसद थे..ये सब"संविधान सभा" के सदस्य थे.
इनमें सरदार पटेल,डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, राजगोपालाचारी जी, मदनमोहन मालवीय जी, श्यामाप्रसाद मुखर्जी,महम्मद ख़ालिक़ उल ज़मान जैसे लोग थे.
दुनियाभर के जर्नलिस्ट उस दिन सुब्ह से पूरी रात नेहरुजी के साथ थे..एक एक सेकेंड की घटना की VDO रिकॉर्डिंग हुई जो आज भी उपलब्ध है..बस सेंगोल से सत्ता हस्तांतरण की कोई रिकॉर्डिंग/फ़ोटो नहीं है..
किसी ने "सत्ता हस्तांतरण" के लिए तथाकथित "सेंगोल" की बात नहीं लिखी..और कोई नहीं तो राजगोपालाचारी, सरदार पटेल या श्यामाप्रसाद तो लिखते? सब छुपा गए?
14 अगस्त 1947 को नेहरुजी को हज़ारों की ता'दाद में तोहफ़े मिले थे..सेंगोल भी इन तोहफ़ात में से एक था..
मुल्क के PM को झुट बोलने और फैलाने से फ़ुरसत नहीं है..हिंदुस्तान किसी राजदंड से नहीं बल्कि 'अवाम की इच्छा से चलता है.. #कृष्णनअय्यर कृष्णन अय्यर
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
उर्वशी चार वर्ष तक पुरुरवा के साथ पत्नी की तरह रहकर एक दिन अंतर्धान हो गयी।
अब वह पुरुरवा से अधिक अपने मेमनों से प्यार करती थी। पुरुरवा उसके वियोग में पागल हो गया जंगल जंगल भटकने लगा। एक दिन रेगिस्तान में भटकते हुये एक पोखर में अपनी सखियों के साथ स्नान करती उर्वशी दिख गयी।
यह संवाद इसी पोखर के सन्निकट हुआ।
हे निष्ठुर, उर्वशी
क्या बातचीत के जरिये कोई रास्ता नहीं निकल सकता जिससे अपना जीवन पूर्व की तरह सुखमय हो जाये पुरुरवा ने उर्वशी से पूछा
निरर्थक बातचीत से क्या हासिल
मैं अब तुम्हारे लिये वायु की तरह दुर्लभ हूँ उर्वशी ने कहा
तुम्हारे बिना मैं बेकार हो गया
भुजाओं से बाण तक नहीं उठता
सब कुछ धूमिल है
भूल गया हूँ सिंह गर्जना
घर चलो, उर्वशी
हे, पुरुरवा
तुमने मुझे तीन बन्धनों में कसा है
मैं शरीर पर शासन करती थी
तुम्हारे जाने के बाद सब निस्तेज हो गया है
दूसरी अप्सराएं भी अब शोर मचाती नहीं आतीं
लाहौर के आकाश में तिरंगा धीरे धीरे ऊपर गया, और फिर खुलकर लहराने लगा। उपस्थित जनसमूह जोश में करतल ध्वनि कर रहा था। 1929 की सर्दियों की उस शाम, रावी के तट पर मौजूद हजारों आंखों में आजादी का सपना भर दिया गया था।
वहीं भीड़ में एक और नेहरू मौजूद था।
एक बूढ़ा नेहरू, जो कुछ दूर झंडा फहराते नेहरू का पिता था। और इस वक्त गर्व से दैदीप्यमान था। मोतीलाल का ये वह क्षण था, जिसे हर पिता अपने बच्चे के लिए चाहता तो है, मगर हासिल किस्मत वालों को होता है।
मोतीलाल किस्मत के धनी नही थे। अपने पिता की शक्ल नही देखी थी। बड़े भाई से सुना भर था, की गंगाधर नेहरू दिल्ली के शहर कोतवाल थे। 1857 के ग़दर में सब कुछ खोकर आगरे चले गए। वहीं प्राण त्याग दिए।
ये मेरी पोस्ट 26. मई.2019 की हैं मेरी ओल्ड आई.डी. लिखा था और मै आज भी कायम हूं ....इसपर....
EVM की जीत से जीतने वालों सुन लो...
कर्नाटक ? वाह हिटलरी सोच का जबाब नहीं।
अपार बहुमत मुझे न झांसा दे पाएगा और न धौंस। कभी कभी पूरा देश ही सन्निपात ग्रस्त हो जाता है।
1946 से 48 के बीच भी ऐसा ही हुआ था।
यीशु को सलीब पर टांग देते वक्त भी पूरा देश एकमत था। सुकरात को ज़हर दिये जाने के भी पक्ष में अपार जनमत था।था कि नहीं?
1948 में गांधी जब सांप्रदायिकता के विरुद्ध अपना अंतिम उपवास कर रहे थे,तब भी भारी बहुमत की यह चाह थी कि गांधी को मर जाने दो।
यदि इस देश की 120 करोड़ में से एक सौ उन्नीस करोड़ निन्यानबे लाख निन्यानबे हज़ार नौ सौ निन्यानबे जनता भी सांप्रदायिक होकर आत्मघात करने पर आमादा हो जाए, तब भी मैं सत्य का धर्म नहीं छोडूंगा।
मैं पाकिस्तान जैसे धर्मांध राष्ट्र-राज्य की स्थिति में नहीं रहना चाहता।
अगला भारत रत्न माफीबीर को , कोई रोक सके तो रोक। एक बार अटल ने देना चाहा , एक दलित राष्ट्रपति ने संविधान का मान रखा । क्या एक आदिवासी राष्ट्रपति इसको रोक पायेंगी ? उसी दिन तय हो जायेगा कि लोकतंत्र की सांस चल रही है कि स्वर्गवासी हो गयी। धीरे धीरे स्टेप वाइज चाल चला जा रहा है..
1. डाक टिकट जारी करवाना, वो भी श्रीमती को ब्लैकमेल करके।
2.अटल के राज में सावरकर का फोटो संसद मे लगवाना और भारत रत्न देवा था, फोटो तो लगवा दिये क्यूंकि किसी ने विरोध नहीं किया, आखिर बहुमत तो हिंदुओं का ही है न। लेकिन भारत रत्न पर विरोध हुआ, राष्ट्रपति के पास चिट्ठियों की बौछार
हो गयी. परिणाम असफल रहे लेकिन निराश नहीं। अब बारी आयी है 2024 में रहेंगे कि नही , अपना सावरकर एजेंडा पूरा करने की । संसद भवन उद्घाटन से शुरुवात है, फिर भारत रत्न .......
देखना है कि ऐक बहुत
दो दिन पहले एक पोस्ट नज़र से गुज़री "वेद मानव सभ्यता के लगभग सब से पुराने लिखित दस्तावेज़ है।वेदों की 28 हज़ार पांडुलिपियों भारत मे पुणे के भंडारकर ओरियंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट मे रखी हुई हैं। इस मे ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियॉ
बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची मे शामिल किया है।"
*मिस्र मे 2650 ई.पू. यानि 4700 साल पहले पहला पिरामिड बन्ने का इतिहास है जिस मे Hieroglyphics लिपि मे पत्थर पर लिखा आज भी मौजूद है।आज भी मिस्र मे 5000 से 7000 साल पुराना मंदिर मे समुंदर मंथन से
पैदा भगवान की मूर्ती मौजूद है।नीचे तस्वीर देखें।
*दुनिया मे मूल निवासियों के ग्रंथ मूल भाषा की लिपियों मे पाये जाते हैं, जैसे मिस्र के फेरऔन तुतनखामून (1332-1323 BC) के पुजारी उसरहत और उन की पत्नी नेफरतारी के सूरज भगवान की पूजा मे पढे श्लोक मिस्र की चित्रलिपि (Hieroglyphics)