यह सेंगोला चोल साम्राज्य का राजदंड है इस साम्राज्य में महान #शैव राजराजेश्वर राजेन्द्र चोल हुए हैं । धर्मग्रंथों में #वृषभ को धर्म का स्वरूप कहा गया है इसीकारण चोलों ने सेंगोला में नंदी महाराज को ऊपर रखा था ।
सेंगोला में धर्मस्वरूपी #वृषभ शीर्ष में हैं जिसका अर्थ है चोलों की नीति अर्थात राजदंड धर्माधारित था न कि मनमुखि । चोलों के शाषनकाल में गौ वंश का संरक्षण हुआ है जबकि वर्तमान शासनप्रणाली #गौ_तस्कर है । चोल शिवोपासना में लीन रहते थें जबकि वर्तमान सरकार पूजा को पाखंड मानने वाली है।
चोलों की नीति #मनुस्मृति में आधारित थी जबकि वर्तमान में शासन मनुवाद का घोर विरोधी है। चोलों की सीमा मालदीव,थाईलैंड, सिंगापुर,श्रीलंका जैसे देशों को स्पर्श करती थी जबकि वर्तमान में तो भारतीय सीमा अपने अधिकृत क्षेत्र से ही घट रही है।
चोल धर्मनिष्ठ कश्यप गोत्रीय #सूर्यवंशी क्षत्रिय थें जबकि वर्तमान वाले तो कुल,गोत्र सबसे हीन हैं । चोलों के शासनकाल में ब्राह्मणों का बहुत सम्मान था जबकि वर्तमान में चोल व ब्राह्मणों को गाली देने वाले पेरियार का सम्मान है। राजदंड धर्मनिष्ठ क्षत्रिय को शोभा देता है न कि नराधमों को।
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बिंदु परंपरा का पालन करते हुए जब मैं पूर्वामान्य पुरी पीठाधीश्वर पूज्यपाद श्रीपुरीशंकराचार्य जगद्गुरु स्वामिश्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग जी से माघ मेला में #दीक्षा लेने गया था तब मन में यही प्रश्न था कि पूज्यपाद गुरुदेव से साधना संबंधित मार्गदर्शन किस प्रकार प्राप्त करें।
मेरा जन्म परंपरागत #स्मार्त ब्राह्मण परिवार में हुआ है। कुलपरंपरा अनुसार हम लोग पंचायतन पूजन करते हैं। पंचदेवों में किसका पंचायतन है यह कुलपरंपरा से संबंधित होने के कारण गोपनीय विषय है। हम स्मार्त ब्राह्मण शैव,वैष्णव,शाक्त,गाणपत्य और सौर्य होते भी हैं और नही भी होते हैं।
होते भी हैं का अर्थ है हम लोग पंचदेवों से संबंधित कोई भी मंत्र दे सकते हैं और नही भी होते हैं का अर्थ है कि किसी एक संप्रदाय को प्रमुखता भी नही दे सकते हैं। दीक्षा से पूर्व जब संगोष्ठी चल रही थी तब गुरुदेव ने साधना संबंधित मार्गदर्शन देते हुए कहा था । ......
गौतम बुद्ध से पहले सात ब्राह्मण बुद्ध हो चुके हैं। दीपंकर, मंगला, रेवता,अनोदस्सी,काकूसंध , कोंडगमन और कश्यप । सिद्धार्थ क्षत्रिय थे। गौतम गोत्र के कारण इन्हें गौतम बुद्ध बोला जाता है। अगले बुद्ध मैत्रेय नामक ब्राह्मण होंगे।
जातक कथा अनुसार ही गौतमबुद्ध की जन्मस्थली ब्राह्मण मुनि कपिल के नाम मे कपिलावस्तु थी/ है। धम्मपद जो कि गौतम बुद्ध की वाणी है उसका एक पूरा अध्याय ब्राह्मणो की स्तुति में है जिसे ब्रह्मानवाग्गो कहते हैं।
मज्जहिम निकाय में गौतम बुद्ध ब्राह्मणों की पाँच विशेषताएं बताते हैं ।सत्य,तपस्या,ब्रम्हचर्य, अध्यन और त्याग । महायान बुद्धिज्म मत के प्रवर्तक कश्यप ब्राह्मण हैं। थेरवादी बुद्धिज्म मत के प्रवर्तक नागार्जुन और अश्वघोष ब्राह्मण हैं। वज्रयानत के प्रवर्तक बुद्धघोष ब्राह्मण हैं।
प्रेम का अर्थ वासना हो गया, संभोग का अर्थ सेक्स हो गया और विवाह का अर्थ शादी हो गया बस इसी कारण हिंदुओ का पतन हो गया। पति का पत्नी के प्रति प्रेम "महाश्रृंगार" है, योद्धा का मातृभूमि के प्रति प्रेम "महानिर्वाण" है, शिष्य का गुरु के प्रति प्रेम "मोक्ष" है।
भक्त का भगवान के प्रति प्रेम " आत्मानुभूति " है और माँ का संतान के प्रति प्रेम " वात्सल्य" है। शाररिक आकर्षण कदापि प्रेम नही है ,प्रेम तो " एकनिष्ठता" का भाव है , "एकनिष्ठता" जीवन को मर्यादित और सफल बनाती है।
संभोग का अर्थ " देह तृप्ति " नही है बल्कि "काम" रूपी पुरुषार्थ की सिद्धि है,यह काम रूपी पुरुषार्थ ही उत्तम संतान को जन्म देने के लिए प्रेरित करता है अब " काम " का ही ज्ञान नही है तो संतान भला कहाँ से ज्ञानवान होगी और ग्रहस्थ आश्रम भी कैसे सफल होगा।