#धर्मसंसद
आज का प्रश्न ही द्वापरयुग की शुरुआत है जो क्रमशः महाभारत युद्ध के समापन की ओर ले जाएगी।ऊबिएगा मत क्योंकि हो सकता है कि आपको कोई प्रश्न दोहराव लगे और कहने लगें कि मिश्रा जी यह प्रश्न तो हो चुका है।नये लोगों को भी धर्म के विषय में जानने दीजिए। नहुष के विषय
में काफी कुछ जानकारी मैं समझता हूं कि सबको होगी । इसीलिए आज बहुत से नये उत्तरदाता आये। सभी नये प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए हर्ष हो रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ही सामान्य जन को धर्म संस्कृति संबंधी जानकारी देना है। इसमें सफलता असफलता का मूल्यांकन करने
का अधिकार आप सभी मित्रों को है।आज का आख्यान महाभारत के वन पर्व पर आधारित है। ममता पाइ काहि मद नाहीं का सुंदर उदाहरण है चंद्रवंशी राजा नहुष का चरित्र।काम लोभ मद किसी व्यक्ति को कितना नीचे गिरा देता है इस कहानी से सीख लेनी चाहिए। आगे और भी प्रश्न होंगे। बहनों शशिबाला राय
सत्यवती नीलम मिश्रा तथा प्रेरक अग्रवाल गोविंद मिश्र व अन्य सभी प्रतिभागियों का स्वागत व आभार व्यक्त करते हुए वाणी को विराम देता हूं। न जय
सेंगोल का एक और ही अर्थ कांग्रेस ने लगाया है जिसे किसी अन्य को नहीं बताया है। चूंकि इस सेंगोल को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में लार्ड माउंटबेटन ने नेहरू को दिया था इसलिए नेहरू गांधी (उधार लिया गया नाम) अपने को भारत का स्वाभाविक शासक मानता है ।
इस परिवार
का मानना है कि शासन की बागडोर हमेशा गांधी नेहरू परिवार के पास रहनी चाहिए क्योंकि अंग्रेजों ने सत्ता भारत को नहीं बल्कि नेहरू परिवार को सौंपी थी। किसी भी अन्य दल के प्रधानमंत्री को कांग्रेसी परिवार भारत देश का प्रधानमंत्री मानता ही नहीं। राजतंत्र में राजा को दैविक
अधिकार प्राप्त होता था।राजा की आज्ञा ही कानून माना जाता है। कांग्रेस ने कभी भी मोदी को देश का प्रधानमंत्री माना ही नहीं। मोदी को केवल भाजपा का एक नेता मात्र मानते हैं। कांग्रेस की नजर में देश का प्रधानमंत्री बनने की योग्यता केवल गांधी नेहरू परिवार के पास है।
गुड़ खाना और गुलगुले से परहेज करना कांग्रेस की पुरानी आदत है। आज कोई कांग्रेसी 14 अगस्त
1947 की तारीख को याद नहीं करना चाहता। कुछ लोग तो ऐसे बेवकूफ हैं जयराम रमेश जैसे जो कहते कि ऐसा कुछ उस समय हुआ ही नहीं था जबकि उस समय की तस्वीरें उस समय के उपस्थित लोग गवाह हैं।
सत्ता हस्तांतरण की तैयारी हो चुकी थी।उस समय लार्ड माउंटबेटन ने नेहरू से पूछा कि कि आपके यहां ऐसा कुछ है जिसे प्रतीक के रूप में ब्रिटिश सरकार की ओर मैं आपको सौंप सकूं। नेहरू जी की समझ में नहीं आया क्योंकि वे हिंदू धर्म के विषय में कुछ जानते ही थे और हिन्दू धर्म के
विरोधी भी थे। शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि नेहरू कहा करते थे कि धर्म एक हारिबुल मैटर है।पर मरता क्या न करता। लार्ड माउंटबेटन अड़ गए थे।ऐसे में नेहरू ने सी राजगोपालाचारी से पूछा कि ऐसा कुछ है? तब राजगोपालाचारी जी तमिलनाडु के अधीनम मठ से सेंगोल मंगवाया और बताया कि
गांव में रहने वाले जानते होंगे कि जब कोई गाय मरकही हो जाती है अथवा तेज दौड़ने लगती है तो मालिक उसके गले में एक लकड़ी का कुंदा बांध देते हैं। ठीक यही किया है गृहमंत्री अमित शाह ने। दिल्ली अध्यादेश मुद्दे पर समर्थन जुटाने के लिए जिससे कि राज्य सभा में बिल पास न हो सके
अरविंद केजरीवाल गली गली घूम रहे हैं हालत यह हो गई है कि हे खग मृग हे मधुकर स्रेनी। सबसे घूम कर समर्थन मांग रहे हैं।इस काम में उनके साथ बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं गैंडा स्वामी उर्फ टिकट ब्लैकिया संजय सिंह राघव चड्डी और भगवंत सिंह मान। तो अमित शाह ने केजरीवाल
सौरभ भारद्वाज और राघव चड्डी को छोड़कर भगवंत मान के गले कुंदा पहना दिया है। उनकी सुरक्षा के लिए खतरा बताकर उन्हें z+ की सुरक्षा दे दिया है। इसमें राज्य सरकार की पुलिस के अलावा केंद्रीय रिजर्व पुलिस के 55 जवान हमेशा साथ रहते हैं।यही सुरक्षा मान और केजरीवाल के जी का जंजाल
अहंकार जब टूटता है तो आवाज नहीं होती पर घाव बहुत गहरा लगता है।विशिष्टीकरण से सामान्यीकरण की प्रक्रिया बड़ी कष्टदायक होती है और यही हुआ है देश के तथाकथित प्रथम परिवार जिसे गांधी नेहरू परिवार कहते हैं के साथ। कहने के कल दो छोटी-छोटी घटनाएं हुई हैं पर इसका निहितार्थ बडा है
इन दोनों ही घटनाओं ने अपने को विशिष्ट समझने वाले परिवार को सामान्य श्रेणी में ला पटका है। इसका दर्द शायद अब कभी नहीं जाएगा क्योंकि वो पुराने दिन अब लौटकर नहीं आने वाले हैं।
१- राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म हो गई तो पासपोर्ट के लिए राजनयिक आवरण हट गया। उन्हें
राजनीतिक संरक्षण वापस करना पड़ा। यहीं तक सीमित होता तो गनीमत थी पर मुसीबत आगे मुंह बाए खड़ी हो गई। उन्हें दस दिन के लिए अमेरिका जाना था जिसके सामान्य नागरिक जैसा पासपोर्ट लेने की जरूरत थी। आमतौर पर हम आप जैसे लोग केवल एक अप्लिकेशन देकर कुछ सामान्य औपचारिकताएं पूरी
कांग्रेसियों के कष्ट का यह नहीं है कि इस संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी क्यों कर रहे हैं बल्कि कष्ट उस तारीख 28 मई से ज्यादा है।इसी दिन स्वातंत्र्य वीर सावरकर जी का जन्म हुआ था। जिस सावरकर के इतिहास को कांग्रेसी हमेशा से छिपाते आ रहे हैं वह खुल गया है।
जब तक यह संसद भवन रहेगा तब तक लोगों को और खासकर कांग्रेसियों को हमेशा याद रहेगा कि इसका उद्घाटन वीर सावरकर जी के जन्मदिवस पर हुआ था। एक और चीज भी कष्ट देगी। जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु 27 मई को हुई थी पर उनका अंतिम संस्कार इसी 28
मई को हुआ था। इसलिए नया संसद भवन
का उद्घाटन समारोह एक प्रकार से नेहरू आइडियोलॉजी की विदाई का भी दिन होगा। नेहरू के सपनों का अंत भी इसी २८ तारीख को हो जाएगा। यही कष्टदायक क्षण है कांग्रेस जिसकी साक्षी नहीं होना चाहती । बाकी दल तो कांग्रेस के बिछाए गए जाल में फंसकर अपनी बेइज्जती खुद करा रहे हैं।
चोल कालीन शेंगोल और हिन्दू विरोधी नेहरू
ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए करता है। मोदी न आए होते तो कौन जानता था कि शेंगोल क्या चीज़ होती है। इसे तो कट्टर हिन्दू द्रोही जवाहरलाल नेहरू ने अतल गहराई में डुबो रखा था। इतिहास में भी इस घटनाक्रम की घोर उपेक्षा की गई है।
कम ही लोग जानते होंगे कि 14 June 1947 को हुआ क्या था। अंग्रेजों ने भारत को सत्ता सौंप कर जाने की तैयारी कर लिया था।15
अगस्त 1947 का दिन निर्धारित हो चुका था तभी लार्ड माउंटबेटन ने नेहरू को बुलाकर पूछा कि भारत में ऐसी कोई चीज जिसे प्रतीकात्मक रूप से देकर कहा जाय
कि सत्ता सौंप दी गई है। अब यह ठहरे पक्के हिंदूद्रोही। उन्हें क्या पता था इतिहास का तो उन्होंने राजाजी
(चक्रवर्ती राजगोपालाचारी) से पूछा। राजाजी ने बताया कि तंजावुर के परियावा मठ में चोल साम्राज्य के समय का शेंगोल रखा है।यही राजदंड के रूप में एक के बाद दूसरे राजा