#बेटियाँ ....
एक गर्भवती स्त्री ने अपने पति से कहा, "आप क्या आशा करते हैं लडका होगा या लडकी ...?"
पति-"अगर हमारा लड़का होता है, तो मैं उसे गणित पढाऊगा, हम खेलने जाएंगे, मैं उसे मछली पकडना सिखाऊगा ...!"
पत्नी - "अगर लड़की हुई तो ...?"
पति- "अगर हमारी लड़की होगी तो, मुझे उसे
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कुछ सिखाने की जरूरत ही नही होगी ...!"
"क्योंकि, उन सभी में से एक होगी जो सब कुछ मुझे दोबारा सिखाएगी, कैसे पहनना, कैसे खाना, क्या कहना या नही कहना ....!"
"एक तरह से वो, मेरी दूसरी मां होगी ...!
वो मुझे अपना हीरो समझेगी, चाहे मैं उसके लिए कुछ खास करू या ना करू ...!"
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जब भी मै उसे किसी चीज़ के लिए मना करूंगा तो मुझे समझेगी ! वो हमेशा अपने पति की मुझ से तुलना करेगी ...!"
"यह मायने नही रखता कि वह कितने भी साल की हो पर वो हमेशा चाहेगी की मै उसे अपनी baby doll की तरह प्यार करूं ...!"
"वो मेरे लिए संसार से लडेगी, जब कोई मुझे दुःख देगा वो उसे
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कभी माफ नहीं करेगी ..!"
पत्नी -"कहने का मतलब है कि, आपकी बेटी जो सब करेगी वो आपका बेटा नहीं कर पाएगा ...!"
पति- "नहीं, नहीं क्या पता मेरा बेटा भी ऐसा ही करेगा, पर वो सिखेगा ...
"परंतु बेटी, इन गुणों के साथ पैदा होगी ..!
किसी बेटी का पिता होना हर व्यक्ति के लिए गर्व की बात है
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पत्नी - "पर वो हमेशा हमारे साथ नही रहेगी ...?"
पति- "हां, पर हम हमेशा उसके दिल में रहेंगे ...!"
"इससे कोई फर्क नही पडेगा चाहे वो कही भी जाए, बेटियाँ परी होती हैं ...!"
"जो सदा बिना शर्त के प्यार और देखभाल के लिए जन्म लेती है ...!"
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बेटीयां सब के भाग्य में कहाँ होती हैं
जो घर भगवान को हो पसंद वहां पैदा होती हैं बेटियाँ ....!
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नर मादा के गहरे मिलन से ही अस्तित्व सम्भव है !!
सोचें ज़रा !
क्या बिना गहरे के,
बिना गहरे सम्भोग के,
किसी का जन्म सम्भव है ?
राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध,
कबीर, नानक, मोहम्मद
कैसे पैदा हुए ?
इनके माँ-बाप का मिलन,
केवल वासना मात्र नहीं था !
वो था एक अद्भुत प्रेम मिलन !
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आज के बच्चे बिना प्रेम के पैदा हो रहे हैं !
हर स्त्री पुरुष एक दूसरे को सेक्स की मशीन समझ रहे हैं ।जब तक दोनों में प्रेम पैदा नहीं होगा, तब तक सिर्फ शारीरिक मिलन ही सम्भव है ।
जब तक वासना रहेगी
तब तक प्रेम पूर्वक मिलन हो ही नहीं सकता ।
और जहाँ प्रेम नहीं वहाँ कैसे उम्मीद
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कर सकते हैं कि
फिर से राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, कबीर, नानक,
मोहम्मद पैदा होंगे !
उलटा इससे बुद्धू जरूर पैदा होंगे !
तभी तो बच्चे मानसिक रूप से बीमार, अपङ्ग,
पागल पैदा हो रहे हैं ।
अगर अभी भी सेक्स पर ध्यान नहीं दिया गया
तो 21 वीं सदी के अन्त तक दुनिया में
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क्या प्यार में सेक्स करना जरूरी है?
ये एक ऐसा विषय है, जिस पर सभी लोगो की अलग अलग राय है।कुछ लोग सही मानते हैं तो कुछ लोग गलत
आज इस विषय पर बात करूंगा,मगर उससे पहले सेक्स के अलग अलग भाव पर बात करूंगा
सेक्स,हवस और वासना तीनों एक जैसे होने के बावजूद भी तीनों एक दूसरे से अलग है 1/2
वासना और हवस:-ये सेक्स का वो मानसिक विकृति है जो ना तो नर-नारी, पशु-पक्षी, छोटे-बड़े आदि मे भेद नहीं करता जब ये विकृति मन में सवार होती है तो वासना से ग्रसित इंसान किसी के साथ कुकृत्य कर देता है
सामने वाले के इच्छा के विरूद्ध उसके साथ जोड़ जबरदस्ती कर सामने वाले का शारीरिक और
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मानसिक रूप से क्षति पहुंचाता है।
सीधे शब्दों में कहूं तो जिसके अंदर हवस और वासना पाई जाती है, वो जानवर होते हैं और उन्हें प्रेम से कोई लेना देना नहीं होता है।
वहीं सेक्स कि बात करूं तो ये दो लोगों की रजामंदी से किया जाने वाला वो सुख है, जिसे न पाने वाला अतृप्त रहता है। ये
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एक प्रश्न मन में काफ़ी समय से सड़ रहा है
प्रगाढ़ संबंधो का मापदंड
सिर्फ़ संभोग है?
क्या देह से देह का घर्षण ही
उनका आख़िरी पड़ाव है
शायद नहीं...
बिलकुल भी नहीं
कोई तो अदृश्य बल होता होगा
जो उनको आकर्षित करता होगा
एक दूसरे की ओर
कि वो सात फेरो में भी न रहे
फिर भी बँधे रहे 1/4
या फिर यूँ कहूँ कि
कोई तो तेज़ाब होगा
जो गला देता होगा
सारे दक़ियानूसी रूढ़ियों की रस्सियाँ
एक स्त्री और पुरुष
कुत्रीमता के आडंबर से परे होकर
देह स्पर्श हो या ना हो
दोनो एक दूसरे की आत्माओ को स्पर्श कर ले
यूँ भी तो संभव है कि
उनका साथ
सृष्टि के अलिखित संविधान में
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एक नया अनुच्छेद जोड़ दे
जो पहले कभी न पढ़ा गया हो
न सुना गया हो
और हो सकता है कि
प्रेम ने अपनी यात्रा में
एक नया गंतव्य निर्धारित किया हो
जो देह मिलन से उन्मुक्त हो
जहाँ आश्रु की कोई वजह ही नहीं
प्रेम दोनो को सुख दुःख से पर्रे ले जाय
जहाँ एक दूसरे के मनो में पसरे ख़ालीपन
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सेक्स इतना बुरा नहीं है जितना सेक्स का चिन्तन
जो व्यक्ति चिन्ता नहीं करता,
अतीत की स्मृतियों में नहीं डूबा रहता,
भविष्य की कल्पनाओं में नहीं डूबा रहता,
जीता है अभी और यहीं वर्तमान में…
इसका यह मतलब नहीं है कि
हमको कल सुबह ट्रेन से जाना हो तो
आज टिकिट नहीं खरीदेंगे ।
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लेकिन कल की टिकिट खरीदनी आज का ही काम है ।
लेकिन आज ही कल की गाड़ी में सवार हो जाना
खतरनाक है ।
और आज ही बैठ कर
कल की गाड़ी पर क्या-क्या मुसीबतें होंगी और
कल की गाड़ी पर बैठ कर क्या-क्या होने वाला है,
इस सबके चिन्तन में खो जाना खतरनाक है ।
सेक्स इतना बुरा नहीं है
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जितना सेक्स का चिन्तन बुरा है ।
सेक्स तो सहज, प्राकृतिक घटना भी हो सकती है,
लेकिन उसका चिन्तन बड़ा अप्राकृतिक और पर्वर्जन है,
वह विकृति है ।
एक आदमी सोच रहा है,
सोच रहा है,
योजनाएँ बना रहा है,
चौबीस घण्टे सोच रहा है ।
और कई बार तो ऐसा हो जाता है,
होता है,
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