वतन की फ़िक्र कर नादाँ, मुसीबत आने वाली है
तिरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में..!
~ अल्लामा इक़बाल
#कश्मीरी जर्नलिस्ट #Mir_Suhail ने ख़ुद से बनाए इस चित्र को 8 मई 2021 को #फेसबुक पर साझा किया था .. यह वह समय था जब हम लोग #लॉकडाउन के बाद '#अनलॉक - 1' से गुज़र रहे थे ..
#कोरोना महामारी का कहर जारी था.. अभी भी रोजाना हज़ारों लोग #ऑक्सीजन, #वेंटीलेटर जैसी ज़रूरी चीज़ों की गैर मौजूदगी में अपनी जानें गंवा रहे थे..
जबकि लॉकडाउन के दौरान ही #देश की #इकोनॉमी को बनाए रखने और कोविड से निपटने के लिए #सोनियागांधी समेत और
कई #विपक्षी_नेताओं ने #प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर सलाह दी थी कि #संसद भवन निर्माण से लेकर देश में और जो भी '#विकास कार्य' हो रहे हैं, उसे फ़िलहाल रोककर उस मद का पैसा लोगों की ज़िंदगियों पर ख़र्च किया जाए ..
नतीजा रहा लाखों मासूम लोग घुट-घुटकर बेमौत मार दिए गए.. बिना किसी गैस चैम्बर के.. और आज तो तानाशाह उन्हीं लाखों लोगों की लाशों की बुनियाद पर तैयार नए इमारत में '#जम्हूरियत का #जश्न' मना रहा है ।
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1950 के दशक में लंदन - कलकत्ता - लंदन से बस की सवारी? हाँ इसकी असली
1950 के दशक के उत्तरार्ध में लोगों को लंदन, इंग्लैंड से कलकत्ता, भारत (अब कोलकाता) के लिए एक भव्य बस यात्रा की पेशकश की, जिसे दुनिया का सबसे लंबा बस मार्ग माना जाता है।
तस्वीर विक्टोरिया कोच स्टेशन, लंदन में यात्रियों को 'अल्बर्ट' पर सवार होते हुए दिखाती है, जाहिर तौर पर लंदन-कलकत्ता-लंदन मार्ग के बीच पहली बार चलने से ठीक पहले।
1957 में शुरू की गई इस सेवा को बेल्जियम, यूगोस्लाविया और पश्चिमी पाकिस्तान के रास्ते भारत भेजा गया था।
इस मार्ग को हिप्पी रूट के नाम से भी जाना जाता है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, बस को लंदन से कलकत्ता पहुंचने में करीब 50 दिन लगे। यात्रा 32669 किमी (20300 मील) लंबी थी। यह 1976 तक सेवा में था। यात्रा की लागत £85 थी। इस राशि में भोजन, यात्रा और आवास शामिल हैं।
हजारों वर्ष पूर्व एक ऐसा भी समय था, जब एक छोटी सी गलत जानकारी आपकी जिंदगी पर भारी पड़ सकती थी। शिकार करते वक़्त रणनीति में थोड़ी चूक हो जावे, अथवा जंगल से लौटते वक्त गलत पहचान कर जहरीले बेर ले आइये, अथवा रास्ता भटक के शेर की मांद के सामने से गुजर जाइए...
और आपकी वंशबेल का जीनपूल से सफाया तय था। सो हर समूह का ध्येय होता था कि सही सूचना को भावी पीढ़ियों तक पहुंचाया जाए। कभी लिखकर तो कभी श्रुति परंपरा के अंतर्गत पीढ़ी दर पीढ़ी सूचना को मौखिक रूप से ट्रांसफर किया जाता था। यह वो युग था जब जीवन की सुरक्षा के लिए सूचना का सही होना
अनिवार्य था। इसलिए सूचना/जानकारी/ज्ञान का संरक्षण करने वाले समाज में सबसे ऊंचे पायदान पर विराजते थे। ज्ञान एक दुर्लभ कमोडिटी की तरह था, जो सबको सहज उपलब्ध नहीं था।
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आज हम उस युग में हैं, जब सूचना हर किसी को सहज ही उपलब्ध है। एक क्लिक करिए और अरस्तू से लेकर आइंस्टीन तक का
प्राकृतिक रूप से दुनिया के सर्वाधिक सुरक्षित देशों में एक, था। स्थिति ऐसी कि मानो चारो ओर किले के दीवार, और पानी भरी खाई से सुरक्षित हो।
खैबर और बलूचिस्तान के जरिये एक रास्ता पश्चिम में खुलता है। मगर पूरे इतिहास में उधर से सिकन्दर,
और कासिम के अलावे कोई नही आया। विश्व इतिहास के रंगमंच, याने यूरोप और पश्चिम एशिया से उसकी अत्यधिक दूरी भी फायदेमंद थी।
मध्यकाल के संघर्षों और दोनो विश्वयुद्ध की विभीषिका से भारत दूर रहा।
इस किले के भीतर ही पर्याप्त विशाल भूभाग, और वैविध्य था।
तो 1000 साल जो भी सँघर्ष हुए, आंतरिक ही रहे। राजा और राजवंश, इस किले के भीतर ही सत्ता कायम करके संतुष्ट थे।
खास हालात में फंसे राजेन्द्र चोल और जयपाल को छोड़, किसी ने इस किले से बाहर निकलने की जरूरत न महसूस की। पर शांति के इस दौर में हमारी रवायतें कुछ ऐसी रही,
ऐसा नही है कि इस सरकार के खिलाफ गम्भीर आंदोलन नही हुए। बल्कि मुझे लगता है कि जितने छोटे छोटे आंदोलन पिछले आठ 9 साल में हुए है, उसका औसत पिछली सरकारों तुलना में ज्यादा है।
मगर इनमे से कोई वांछित नतीजे नही ला सका। किसान आज भी MSP के लिए इंतजार में है,
CAA लागू है, वन रैंक वन पेंशन आयी नही, कर्ज माफ हुए नही, अग्निवीर योजना सिरे चढ़ चुकी है, रिक्रूटमेंट हों रहे हैं।
पहलवान भी अपने मेडल बहाकर कर न्याय पा सकेंगे, कोई गारंटी नही। इन सारे फेल रहे आंदोलनों का एक खास फीचर है
-ये सारे गैर राजनीतिक आंदोलन थे।
कहने को ये जनता के आंदोलन है, पीड़ितों के आंदोलन हैं। विपक्ष के दलों का इनमे कहीं पार्टिसिपेशन नही रहा। बल्कि आंदोलन करने वाले किसान, पहलवान, युवा खुद कहते रहे- वी डोंट वांट पॉलिटिक्स..
Repost,
शायद अब भारत में भी जागरूकता आने लगी है.....
आज से लगभग 12 साल पहले दुनिया भर में एक क्रांति हुयी, जिसमे सोडियम लाइट का सामान्य चिरपरिचित पीला प्रकाश क्रिस्प सफ़ेद रौशनी वाली एल ई डी स्ट्रीट लाइट से बदल दिया गया । इसमें कोई शक नहीं कि इन ऊर्जा दक्ष एल ई डी
स्ट्रीट लाइट ने कार्बन उत्सर्जन और ऊर्जा संरक्ष्ण के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। परन्तु जैसे हर आने वाली तकनीक के साथ होता है अनेक फायदों के साथ साथ नुकसान की एक लम्बी फेहरिस्त भी साथ मिलती है। ''Science'' पत्रिका के एक अध्ययन के अनुसार 2011 से 2022 के बीच
एक सामान्य औसत रात्रिकालीन आकाश की चमक में 9.6 % में वृद्धि हो गयी है। ये वृद्धि विशेषज्ञों द्वारा आंकी गयी वृद्धि से कहीं ज्यादा रही। मौसम उपग्रहों को एल ई डी स्ट्रीट लाइट से उत्पन्न नीली रौशनी रुपी नए प्रकाश प्रदुषण ने लगभग अँधा बना दिया है।
fb.watch/dboVJe6zDU/
बीसवीं कड़ी: बुढापा वरदान... या अभिशाप ??जापान: चौथा भाग
जापान के लोगों की उम्र लंबी क्यों होती हैं, उसका सबसे बड़ा कारण है जापान की लाइफ स्टाइल और साथ ही उनका खानपान,
जबकि अमेरिका के लोग खानपान और लाइफ स्टाइल के मामले में बिलकुल ही उलटे हैं.
खाओ-पीओ और मौज करो, बीमार हो जाओ तो डाक्टर के पास जाओ और दवा ले लो, ज्यादा बीमार हो जाओ, तो सर्जरी द्वारा अपना अंग बदलवा लो....
ये अमेरिका की लाइफस्टाइल है, और जापानी खानपान और लाइफ स्टाइल बिलकुल विपरीत.
हमारे जीवन में टेक्नोलॉजी का बहुत बड़ा महत्व है.
एक और जहां पर टेक्नोलॉजी हमारे लिए बहुत ही ज्यादा सुविधाजनक है. वहीं दूसरी तरफ यह टेक्नोलॉजी हमें बहुत हानि भी पहुंचा रही हैं क्योंकि आज की आधुनिक टेक्नोलॉजी के कारण हमारे शरीर की एक्टिविटी बहुत कम होती है. इसलिए हमारे शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियां उत्पन्न हो जाती है,