★ नज़ीर अकबराबादी के "आदमीनामा" नज़्म को थोड़ा सा बदलने का गुनाह किया है..आख़िरी 3 लाइन नहीं बदली है..सबकुछ वही हो रहा है जो नज़ीर साहेब लिख गए..👇
हिंदुस्तान में बादशाह है, सो है, वह भी आदमी
और बादशाह नीच सा है, सो है, वो भी आदमी
अडानी चोर है, सो है, वो भी आदमी
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जो तुम्हारा खा रहा है, सो है, वो भी आदमी
जो उद्योगपतियों के टुकड़े चबा रहा है, सो है, वो भी आदमी
मसजिद, मन्दिर भी आदमी ने बनाई है यां मियां
मस्जिद को जलाता है, सो है, वो भी आदमी
गाय को खाता है, सो है, वो भी आदमी
गाय के नाम पर क़त्ल करता है, सो है, वो भी आदमी
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और बादशाह ही प्रेस से चुराता है नज़रें
मुल्क को लुटता है, सो है, वो भी आदमी
गोदिमीडिया सुब्ह ओ शाम झुट बोलता है, सो है,
जो ग़ुमराह हो जाता है वो भी आदमी
यां 'औरत पै जान को वारे है आदमी
और अपनी 'औरत को छोड़ कर भागे है आदमी
पहलवानों की आबरू भी उतारे है आदमी
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गोदिमीडिया चिल्ला के हमे उकसाए है आदमी
और "बिलक़ीस" की सुनके जो नहीं दौड़ता है, सो है, वो भी आदमी
अच्छा भी बुरा आदमी ही कहाता है ए "नज़ीर"
और पुलवामा में जवानों का ख़ून पीए है, सो है, वो भी आदमी
तुम्हारा मुक़द्दर संवारेगा एक आदमी
जिसे तुमने नकारा है वो भी आदमी
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नंगा खड़ा उछलता है होकर जलीलो ख़्वार।
सब आदमी ही हंसते हैं देख उसको बार-बार
और वह जो मसखरा है सो है वह भी आदमी
सदियों से शक्तिशाली साम्राज्य रहा रूस और रूस की जनता जिसने कई मानवता विरोधी तानाशाहो को उनके अंजाम तक पहुँचाया !
एक दिन न केवल खुद बिखर गया अपितु उसके साथ ही पूर्वी यूरोप का एक बड़ा भाग बिखर गया ।
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सोवियत संघ के पतन मे एक ऐसे छोटे से देश ने अहम भूमिका निभाई थी जो कल तक हम ही थे ।
विषय ये हैं कि इतना बड़ा साम्राज्य टूटा और बिखरा कैसे जबकि किसी बाहरी देश ने उस पर हमला भी नहीं किया था ना ही उसके अंदर कोई सैनिक या असैनिक विद्रोह हुआ ।
जिनकी निगाह में सोवियत गुट चुभता था
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उन्होंने एक ऑब्जेक्ट डेवलेप किया मिखाईल गौरवाचेफ़, वो नये नए वायदे, योजनाए और सबके विकास के ख्वाब बेचकर सत्ता पर काबीज़ हो गया ।
देश की अर्थव्यवस्था के साथ नित नये तजुर्बे करने लगा और उसके समय में माफिया तथा केजीबी की भूमिका सिर्फ वसूली तक सीमित हो गई।
कहते हैं कि जो बेईमान होता है वो सबसे ज्यादा कसमे खाता है,हमारा एक मित्र तो सड़क पर मूत्र विसर्जन करते हुए भी जल की कसम और बीड़ी से अग्नि की कसम खा लेता था।
जो शक्तियाँ दुनियां में लोकतंत्र और मानवाधिकारों की ठेकेदार होने का दावा करती है
सबसे ज्यादा ताना शाहों को समर्थन उन्ही ने दिया है ।
उधर अंकल सैम ने फ़ौज और हकुमत प्लांट की लेकिन आवाम ने पुरानी रिवायत छोड़ कर आवाज़ उठानी शुरु कर दी।
नताइज ये है कि हालात बिगड़ते देख कर और ज़लील होते हुए सरकार ने विपक्षी नेताओं को जेल में भरना शुरु कर दिया, कार्यकर्ताओ पर
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क्रेक डाउन शुरु कर दिया तथा योजनाबद्ध तरीके से अपने देश को 1970 मे गये जिसका टूटना तय है ।
दिल्ली पुलिस को एक शिकायत प्राप्त हुई है जिसके अनुसार कोंग्रेस अध्यक्ष श्री खड़गे जी एवं आप सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल को समुदायों के बीच नफरत / वेमनस्य फैलाने का आरोपी बताया गया है ।।
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सबसे पहला प्रश्न ये आया कि क्या वर्तमान सरकार के प्रमुख या किसी मंत्री ने अभी तक इसे "संसद भवन" कहकर सम्बोधित किया है ?
इसे सेन्ट्रल विष्टा जैसे किसी नाम से ही बुलाया जा रहा है (लोकतंत्र भवन या कुछ और भी कहा जा सकता था )
अपने स्वाभाविक
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मूर्खतापूर्ण या अहंकारी निर्णय पर जब संयुक्त विपक्ष द्वारा बहिष्कार का आह्वान किया गया और किरकिरी होनी शुरु हुई तो राजदंड जैसे निरर्थक विषय को उभारने की कोशिश हुई।
क्या संभावना हो सकती है ?
महामहिम को तो नही ही बुलाया जायेगा क्योकि उनके आने से प्रोटोकॉल के तहत इनका नंबर
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तीसरा हो जाएगा और फोटू का जी7बन जाएगा।
लेकिन ये फिर कोई डरामा करेगा और अंतिम क्षणों मे किसी मजदूर को बुलाकर नेहरू जी की नकल करेगा
बनारसमें पैर धुलाई याद है?
कुछ ऐसा ही फिर हो सकता है लेकिन राजदंड और प्रतिक चिन्हों के विवाद से दूर अपने लोकतंत्र की चिंता करे 3/3 @parmodpahwaInd