#SnoopGate कांड और #DainikBhaskar पर रेड
तस्वीर में जो लडकी नजर आ रही है..वह मानसी सोनी है... यह वही लडकी है जिस पर साहब जी फिदा थे.. साथ में जो आदमी नजर आ रहा है वह पूर्व IAS अधिकारी प्रदीप शर्मा है.
साहब जी ने मानसी सोनी को पहली बार अहमदाबाद के किसी कॉलेज के कार्यक्रम में
देखा था.. देखते ही मानसी सोनी से प्यार हुआ.. साहब ने मानसी सोनी को प्रायवेट सेक्रेटरी बनने का ऑफर दिया...मानसी सोनी ने यह ऑफर स्वीकार भी कर लिया... कुछ दिनों बाद साहब जबरन मानसी सोनी का शारिरीक शोषण करने लगे..उसके बाद साहब ने अपने ऑफिस से निकाल फेंका... मानसी सोनी ने साहब को
धमकी देते हुए कहा मेरे पास तेरे सारे कारनामों का चिट्टा है.. साहब काफी परेशान हुए और अपने अफसरों से मानसी सोनी पर नजर रखने को कहा...यहाँ तक कि उनके मोबाईल की कॅाल भी रिकार्ड करवाई जाने लगीं (snoopgate) l मानसी सोनी और पूर्व IAS ऑफिसर प्रदीप शर्मा के रेग्युलर टच में थी
ऐसा कॉल रिकॉर्ड निकालने बाद पता चला.. मोदी और अमित शाह को शक हुआ की कोई विडियो क्लिप तो इनके पास मौजूद नहीं..
आज लडकी का कोई पता नहीं जिंदा है या मर गई.. प्रदीप शर्मा पर फर्जी भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उनको संस्पेड कराया गया ... !!
पिछले दिनों दैनिक भास्कर ने इस जासूसी कांड को एक बार फिर छापा था उसी समय अंदाजा हो गया था दैनिक भास्कर पर हमला होने वाला है आज वो अंदाजा सही निकला !
Vinay Singh July 2021
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फौजी तैयारी और कूटनयिक जलवा। मजबूत आर्थिकी दोनो को ताकत देती है। आजाद भारत की शुरुआत तीनो मोर्चो पर शून्य से हुई थी।
पांच लाख की फौज में से एक लाख ब्रिटिश स्वदेश लौट गए। डेढ़ लाख ने पाकिस्तान ऑप्ट किया।
ढाई लाख की फौज के पास अनगिनत मोर्चे थे।
कश्मीर, नवनिर्मित रेडक्लिफ़ लाइन, बंगाल में बने नए बॉर्डर, जूनागढ़, हैदराबाद, सीमाओं के भीतर जगह जगह दंगे.. लेकिन लीड करने वाले अफसर अमूमन पाकिस्तान या ब्रिटेन में थे।
हाथ मे हथियारों के नाम पर दूसरे विश्वयुद्ध का भंगार था। दर्जन भर छोटे प्लेन थे, लगभग शून्य नेवी थी। क़ानून व्यवस्था सम्हालने के लिए स्थानीय पुलिस, खासकर रजवाड़ों में अक्षम थी। कोई पैरामिलिट्री सन्गठन न था। न बीएसएफ, न सीआरपी..
94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने पर किराए के मकान से निकाल दिया।बूढ़े के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन,एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई सामान था।बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया।
पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी, और उन्होंने मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए कुछ समय देने के लिए मना लिया। मकान मालिक ने अनिच्छा से ही उसे किराया देने के लिए कुछ समय दिया।
बूढ़ा अपना सामान अंदर ले गया।
रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया, ”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।”
बेचारा आदमी, जो अपने कार्यकाल में लार्ड डलहौजी का फैलाया रायता समेटता ही रह गया।
सावरकर पर आई मूवी का जबरन प्रोमो यू ट्यूब पर देखना पड़ता है। स्किप करने के पहले इस मे एक डायलॉग सुना, तो ठिठक गया-
"गाँधीजी बुरे आदमी नही थे। लेकिन वे अपनी अहिंसा की नीति की जिद नही करते, तो देश 35 साल पहले आजाद हो जाता.. "
अबे??
खैर। बात कैनिंग की। जॉइन किए 6-8 माह ही हुए थे कि देश मे रिवोल्ट फूट गया। अंग्रेजो की सिट्टी पिट्टी गुम थी। देश भर में एक लाख से कम अंग्रेज थे,
और चारो ओर करोड़ो होस्टाइल पब्लिक थी।
जैसे तैसे रिवोल्ट से निपटे। शांति कायम हुई, कम्पनी को हटाकर रानी ने सीधा शासन कायम किया। कसम खाकर बोली कि अब और राज्य अनेक्स नही किये जायेंगे। सारे रजवाड़ो को अनुच्छेद 370 दिया। एक दो अनेक्स किये राज्य भी वापस लौटा दिये।
गोदिमीडिया का कमाल देखिए : इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) को "मुस्लिम लीग" में तब्दील कर दिया..
अमेरिका में राहुल गांधी से सवाल पूछा गया कि आप "IUML" के बारे में क्या सोचते हैं? राहुल ने जवाब दिया कि "IUML" एक सेक्युलर पार्टी है..
और गोदिमीडिया कहने लगा कि राहुल ने मुस्लिम लीग की हिमायत की है..
~ IUML केरल की पार्टी है.
~ इसका जन्म 10 मार्च 1948 को हुआ..
~ IUML "भारतवादी" मुसलमानो की पार्टी है
~ IUML जिन्नाह को राक्षस मानती रही है..
~ IUML बनाने वालों ने मुल्क की आज़ादी में क़ुरबानी दी थी
IUML के पहले सद्र थे महम्मद इस्मा'इल साहेब जो पूरी ज़िंदगी जिन्नाह के ख़िलाफ़ रहे..इनकी देशभक्ति पर वही सवाल उठाते है जो आडवाणी, अटल के जिन्नाह की मज़ार पर जाने का समर्थन करतें है..
एक समय था, जब स्त्रियों को संगिनी के रूप में हासिल करना बड़ी प्रतिस्पर्धा का कार्य था। तब यह सहज एवोल्यूशनरी चाहना पुरुष के मन में आयी कि बल, पौरुष और पराक्रम से हासिल हुई स्त्री उसकी इज्जत करे, सिर्फ उसकी बन कर उसे परमेश्वर का दर्जा दे, उसकी भक्ति करे।
इस व्यवस्था से स्त्री को भोजन/आश्रय उपलब्ध कराते पुरुष का अहं भी संतुष्ट, परिवार नामक संस्था भी संतुलित रही।
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अब धीरे-धीरे आधुनिक काल आया। स्त्रियां भ्रष्ट हुईं, परमेश्वर पदच्युत हुए, भक्तिकाल का अंत हुआ। आज की नामाकूल महानगरीय स्त्रियां भरण-पोषण उपलब्ध कराने के आधार पर मर्दों
को परमेश्वर का दर्जा देना ही नहीं चाहती, बराबरी के हक की मांग करती हैं। मन-वाणी-कर्म से ये मर्द के सामने दबना ही नहीं चाहतीं। इनके देखा-देखी छोटे शहर की लड़कियां भी समानतावाद का झंडा बुलंद कर रही हैं।
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बेचारा मर्द क्या करे। मन में तो वही परमेश्वर कहलाए जाने की आदिम चाह, पर इन
पानी मे जले मेरा गोरा बदन
मछली पानी के बाहर ज़्यादा देर नहीं जी सकती । इसी तरह सेंदुर और प्रवाल भी सिर्फ जल में उतपन्न होते हैं , थल पर नहीं ।
जल और थल , दोनों पर विचरण करने का अभ्यास मनुष्य के सिवा मेंढक को भी है । स्वयं को मेंढक से अलग करना है ,
तो पेड़ पर भी चढो । मेंढक पेड़ पर नहीं चढ़ सकता । लेकिन पेड़ पर तभी चढ़ोगे , जब अपने आसपास पेड़ रहने दोगे ।
अन्यथा बिजली के खम्भों पर चढ़ दिल की लगी उतारनी होगी । झटका खाओगे । पता हो कि बिजली दो तरह के झटके मारती है । पहले चिपकाती है , फिर झटके से दूर फेंक देती है ।
लड़कियों की तरह । जब तुम्हारे खीसा में पिज्जा बर्गर का पैसा है , तो सटेगी , सटायेगी । जब खत्म होगा तो झटके से दूर पटक देगी , तुम्हे अधमरा कर । आकाशीय तड़ित की बात और है । वह जिस पर गिरती है , उसे सीधा निबटा देती है । एसी और डीसी करंट का कोई चक्कर नहीं ।