What's on your mind. वैसे तो आज माइंड में बहुत कुछ चल रहा है । मगर सब कुछ बताना सम्भव भी कहाँ है । सुबह सुबह उठकर नहा धोकर घर से करीब 30 किलोमीटर दूर 'रिसड़ा' गये थे कुछ काम से वाहन था tata ace वही जिसे प्यार से लोग छोटा हाथी कहते हैं
। वैसे पता नहीं आप लोगों को पता भी है की नहीं हाथी जब पैदा होता है उस वक्त भी वो एक भैंसे के बराबर ही होता है । आज कल जे सी बी का बड़ा शोर है , मगर जब जे सी बी नहीं थी तब हाथी से ही जे सी बी का काम भी लिया जाता था । जे सी बी, से याद आया की हाइवे से आते हुए
रास्ते में मैने ढेरों जे सी बी देखी मगर अफसोस की बात ये है की किसी भी जे सी बी , के सामने भीड़ नहीं थी जबकी आज छुट्टी का भी दिन था । शायद मेरे शहर में अब जे सी बी, की अहमियत खत्म हो गई है । खैर काम से फ़ारिग होकर मैं करीब 12 बजे घर पहुँचा ।
तब तक हुलिया काफ़ी बिगड़ चुका था , थोड़ी देर में बरसात भी शुरु हो चुकी थी बच्चों की जिद थी बरसात में नहाने की तो उन्हे लेकर छत पर चला गया और खुद भी बरसात में भीगने का मोह ना त्याग सका ।
बरसात से याद आया की आज राज कपूर साहब की पुण्य तिथी है । क्या बेहतरीन अदाकार थे
राज साहब उन्ही की कालजयी फिल्म थी #बरसात । इस फिल्म से पहले राज साहब ने आग नाम की एक फिल्म बनाई थी । जिसका निर्देशन उन्होने खुद किया था । ये फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हुई थी । इसके बाद राज साहब ने बरसात का निर्माण शुरु किया फिल्म की नायिका #निम्मी , संगीतकार शंकर जयकिशन,
गीतकार शैलेंद्र और हशरत जयपुरी और साथ ही तक्निसीयन भी सब नये चेहरे थे सारे नये लोगों के साथ राज साहब एक नई फिल्म जो उस वक्त के दुसरे निर्माताओं के सोच के भी बाहिर थी उसे बनाने का जोखिम उठा चुके थे । आलोचकों और निंदकों का कहना था की पहले ही 'आग' में काफ़ी कुछ जला चुका है ,
अब जो बाकी बचा है उसे बरसात में बहाने की तैयारी कर रहा है । मगर फिल्म बनी , और साहब पुछिए मत की क्या फिल्म बनी अपने वक्त से कोषों आगे की फिल्म और फिल्म का संगीत । ओ हो हो क्या मखमली गीत थे हर अंदाज के गीत बिल्कुल बादे शबा की ठण्डक लिये फ़िजाओँ में गूंजते हुए तराने , ,,
जिया बेकरार है छाई बहार है ,,,, । ,,,, बरसात में तुमसे मिले हम ओ सजन बरसात में ,,,,,, । ,,,,, मेरी आंखों में बस गया कोई रे ,,,,,, हवा में उड़ता जाये मेरा लाल दुपट्टा मलमल का होजी होजी,,,, , या फिर ,,,,,,,पतली कमर है तिरछी नजर है ,,,,,,। सब एक से उपर एक उम्दा बेहतरीन ।
फिल्म गोल्डन जुबली हिट और इसी के साथ भारतीय फिल्म इतिहास को उसका सबसे बड़ा शो मैन भी मिल चुका था । जी हां बरसात ही वो फिल्म थी जिसने राज कपूर को राज साहब बना दिया था । और जो आधे दर्जन नये नवेले लोग फिल्म से जुड़े थे सब स्टार बन चुके थे ।
#शैलेंद्र, #हशरत_जयपुरी , और #शंकर_जयकिशन तो अपने दौर के सबसे आला गीतकारों और संगीतकारों में शुमार हुए ।
तो ऐसी थी फिल्म बरसात के पर्दे के पीछे की कहानी । एक बिना छत वाली कार पर घूमता हुआ हिरो जिसके सामने एक दिन पुरा आसमां छोटा दिखने लगा ।
खास कर 'आवारा' के बाद तो भारत गणराज्य (उस वक्त मुश्किल से साल भर पुराना ही था अपना गणराज्य ) में जवाहरलाल #नेहरू के बाद राज साहब दुसरे भारतीय थे जिनकी पहचान सोवियत रूस और मिडिल ईस्ट के देशों तक थी । उदारवादी समाजवाद की गाथा में ढला फिल्म #आवारा' देश काल की समस्त सीमायें
लाँघ चुका था । और क्या कहुँ । हां आज दो जुन है तो आप सबसे गुजारिस है की #दो_जुन की रोटी जरुर खा लीजियेगा । और जो बन्धु पढ़ते हुए यहाँ तक आ पहुंचे हैं उनके लिये खास एक शेर अर्ज़ है ।
ये जो इतनी हिकारत से तुम आवारा कहते हो हमें ।
तुम्हें क्या पता कितनी अज़िज़ है हमें आवारगी अपनी ।
Sagar Sagar
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9 साल पहले मैं जहां कहीं भी जाना चाहता था, ट्रेन पहली प्राथमिकता होती थी। प्लेन, अगर समयाभाव हो, तभी लेता था। अब ..
(1) ट्रेन की संख्या कम हो गयी है, अधिकाशं ट्रेन या तो बन्द है, या फेरे कम हैं। भीड़ ज्यादा है।
(2) रिजर्वेशन मिलने में पहले से ज्यादा कठिनाई है। तत्काल का तो खुदा ही मालिक है।
(3) प्राइज इतना हो गया कि थोड़ा और मिला लें, तो फ्लाइट बुक हो जाती है। वंदे भारत की प्राइजिंग देखता हूँ तो लगता है, कौन मूर्ख इस कीमत पर ट्रेन में बैठेगा। फ्लाइट न ले लेगा?
(4) हर ट्रेन में चार पांच घण्टे का न्यूनतम विलम्ब है। 300 किलोमीटर के टोटल रन वाली जनशताब्दी, 8-8 घण्टे प्रतिदिन लेट है। गंतव्य से ही 4 घण्टे लेट निकलती है।
(6) पहले बेड रोल कम्बल मिलना तय था। अब पता नही होता कि, मिलेगा, या नही मिलेगा।
राजनीति के अपराधीकरण की स्क्रिप्ट हर जगह एक ही होती है।पहले नेता एक गुंडा चुनता है। उसकी मदद से दबदबा कायम करता है।
और चुनाव जीतता है।
फिर एक वक्त गुंडा समझ जाता है कि जो जो काम,वह इल्लीगल पॉवर,औऱ बड़े रिस्क के साथ करता है,वही चीज लीगल पॉवर और बिना रिस्क के नेताजी कर लेते हैं।
हनुमानजी की तरह गुंडे को जब अपनी ताकत का अंदाजा हो जाये, थोड़े बहुत गुर सीख जाये, तो वो खुद के लिए काम करता हैं। बुद्धिमान गुंडे जल्द ही नेता, विधायक, मंत्री और सरकार बनते हैं।
अखबारों में प्रशस्ति छपवाते हैं। राजनीति करते हैं। और अपने गुरु को ही चुनौती देते हैं।
भारत मे तिजारती कम्पनियों को, सिर चढ़ाकर मिल्ट्री पावर बनाने वाले, हमारे ही राजे महाराजे थे। डूप्ले, याने फ्रेंच के अर्काट के साथ सम्बंध, आप जान चुके हैं। वहीं अंग्रेजो को भारतीय राजनीति की घुट्टी, मराठों से मिली।
इस वक्त मुगल तख्त, मोहम्मद शाह "रंगीला" के हाथ मे था।
एक #मदमस्त "हे_रामी" मौजी #राजा था.
उसने "अपने केयर फंड" के लिये "हर महीने टैक्स का ऐलान कर दिया".
भक्त जनता ने चुपचाप हर महीना टैक्स देना शुरू कर दिया.
दो महीने बाद राजा ने एलान किया कि "टैक्स हर हफ़्ते देना होगा."
महीने भर बाद राजा ने उस टैक्स को "रोज़ वसूलने का एलान कर दिया".
फिर राजा ने एलान किया कि "टैक्स के साथ अब सर पर एक जूता भी लगेगा",
अब एक दिन #तुगलकी_तानाशाही ने
अपने प्यारे देशवासियों और भाइयों बहनों से अपने संघलैंगिक प्रेम और भक्ति को दुनिया को
दिखावे दिखाने के लिये कैमरे लगवाऐ और भक्त जनता से पूछा कि_
प्यारे #भभूतियो भक्तों, आपको इस टैक्स से कोई परेशानी तो नहीं है..??
तब एक पके हुए बड़ी #निक्कर वाले #नारंगी भक्त आगे और बोले_महाराज एक गुज़ारिश है.
राजा ने भक्त को गले लगाया और रुंधें गले
से पूछा_बोलो क्या चाहते हो.??
एक तरफ बृजभूषण शरण सिंह जिसपर सत्ता का छत्ता है...दूसरी तरफ ख़ाप पंचायत....बृजभूषण शरण सिंह तथाकथित बाहुबली अपराधी हैं तो ख़ाप पंचायत का चरित्र कोई दूध का धुला नहीं है। खाप पंचायते भी संविधान की अक्सर धज्जियां उड़ाती रहती है।
संविधान की अवहेलना इनका भी चरित्र है, बृजभूषण शरण सिंह तो अकेला है, लेकिन ये खाप पंचायते लंपटो . अनपढ़ो के गिरोह ( जो औरत को अपनी जूती से ज्यादा ना समझे ) जो है, को बेटियों के इज्जत के बहाने अपने गिरोह का दबदबा काम करने का एक मौका के अलावाकुछ नहीं, अगर सरकार F I R के बाद भी
गिरफ्तारी नही करती है तो उसी कोर्ट के उसी जज के पास जाना चाहिये कि नहीं, अगर संविधान को मानते हो ,न्यायालय के फैसलों को मानना बाध्यकारी होगा सबको। लेकिन नहीं लड़कियों के मुखौटे में खाप पंचायत को आगे रखकर गूजर जाट पंजाबी की वोट की राजनिति हो रही है,दूसरी तरफ सरकार भी उ.प्र. मे
टिकैत, खाप, किसान आंदोलन वग़ैरह पर अब 1 पैसे का भरोसा नहीं रहा..इन लोगों ने क्या किया :
1. सपा को उत्तरप्रदेश में हरवाया 2. कांग्रेस को पंजाब में हरवाया 3. इन के हर क़दम से बीजेपी मज़बूत हुई है
टिकैत क्या कर लेंगे 9 ज़ुन के बा'द? वही धरना और लंबे लंबे भाषण? पर उससे क्या होगा?
ये सियासी लड़ाई है..इसमें पहलवानों और किसानों को एक पार्टी के साथ आना होगा..खुल कर सरकार से लड़ना होगा..बिना सियासी ताक़त बाक़ी सब बेकार होगा..
मैं मज़लूम पहलवानों के साथ हूँ क्योंकि उनकी लड़ाई अस्मत की है..पर मेडल जीतने वाले पहलवान आज भी बीजेपी के साथ है, मोदी के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोले..तो मैं इन के साथ नहीं हूँ..ये सब भरोसे के क़ाबिल ही नहीं है..