फौजी तैयारी और कूटनयिक जलवा। मजबूत आर्थिकी दोनो को ताकत देती है। आजाद भारत की शुरुआत तीनो मोर्चो पर शून्य से हुई थी।
पांच लाख की फौज में से एक लाख ब्रिटिश स्वदेश लौट गए। डेढ़ लाख ने पाकिस्तान ऑप्ट किया।
ढाई लाख की फौज के पास अनगिनत मोर्चे थे।
कश्मीर, नवनिर्मित रेडक्लिफ़ लाइन, बंगाल में बने नए बॉर्डर, जूनागढ़, हैदराबाद, सीमाओं के भीतर जगह जगह दंगे.. लेकिन लीड करने वाले अफसर अमूमन पाकिस्तान या ब्रिटेन में थे।
हाथ मे हथियारों के नाम पर दूसरे विश्वयुद्ध का भंगार था। दर्जन भर छोटे प्लेन थे, लगभग शून्य नेवी थी। क़ानून व्यवस्था सम्हालने के लिए स्थानीय पुलिस, खासकर रजवाड़ों में अक्षम थी। कोई पैरामिलिट्री सन्गठन न था। न बीएसएफ, न सीआरपी..
और बंटवारे का खूनी मंजर था।
पहला दशक फौजी बिल्डअप का था। ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज, नए प्लेन, नए टैंक, गोला बारूद, नई नई आर्मी कोर.. सेना सुसज्जित हुई, आकार बढा।
1954 में भारत का नक्शा बना। सर्वे ऑफ इंडिया ने पहली बार डिफाइंड बार्डर दिए। उन स्थानों पर भी, जहां ब्रिटिश ने " बॉर्डर अनडिफाइंड" लिखा था।
अक्साई चिन और मैकमैहन लाइन पर चीन से तनाव शुरू हो गया।
भारत सरकार ने एक तरफ कूटनीतिक नेगोशिएशन किया दूसरी ओर नक्शों में क्लेम किये गए बॉर्डर की तरफ सेना बढाई। चीनी फ़ौज बीच मे अड़ गई। उनकी एक महत्वपूर्ण सड़क, भारत के क्लेम्ड बॉर्डर के भीतर जो थी।
आजादी के बाद, ब्रिटेन को लगा था कि भारत उसका पिछलग्गू बनकर रहेगा। भारत ने कॉमनवेल्थ की सदस्यता ली भी। मगर ब्रिटिश के फॉलोवर नही बने।
सबसे दूरी, सबसे दोस्ती।
अमेरिका से दोस्ती, खूब अनाज लिया। रूस से दोस्ती, खूब हथियार लिए। ब्रिटिश कॉमनवेल्थ में तो थे ही।
लेकिन अब एक अनोखी चाल चली गयी - गुट निरपेक्षता।
दो गुट वाले विश्व मे एक तीसरी ताकत, तीसरा गुट।
जिसका नाम था- निर्गुट।
यह मास्टरस्ट्रोक था। 1961 के बांडुंग सम्मेलन में 100 से ऊपर देश जुड़े। भारत अपनी औकात से ऊपर पंच मार रहा था। हर ताकत भारत को खुश रखना चाह रही थी।
इस वक्त भारत ने गोआ जीत लिया।
इंडिया शाइन हो रहा था। फील गुड का दौर था। सैनिक सफलता और और विदेश नीति का पीक, नेहरू सरकार का पीक। और पीक के बाद अक्सर ढलान होती है।
पर इस बार गहरी खाई थी। चींन मौके की ताक में था। ऐसा मौका, जब भारत के ताकतवर दोस्त उसकी मदद न कर सकें।
जैसे ही रूस और चीन क्यूबा मिसाइल क्राइसिस में उलझे। चीन ने बिना युद्ध की घोषणा किए, हमला बोल दिया।
जैसे ही क्यूबन मिसाइल क्राइसिस खत्म हुआ, रूस और अमेरिका मदद को दौड़े। मगर इसके पहले चीनचीन पीछे हट गया। इसके पहले 18 दिनों में भारत सरकार का जो मान मर्दन किया, वह इतिहास है।
भारत ने सबक सीखा।
आने वाले दशकों में और भी युद्ध हुए। पाकिस्तान से 1965 का युद्ध टाई रहा, 1967 में चीन से बदला लिया गया। 1971 में पाकिस्तान को सबक सिखाया गया। 1974 में परमाणु परिक्षण हुआ।
सेना बढ़कर 14 लाख हो गयी। अर्धसैनिक बल मिलाकर 24 लाख जवान सीमाओं की पहरेदारी
कर रहे थे। कूटनीति के स्तर पर गुटनिरपेक्ष का चोला तो हमने पहने रखा, आत्मा मार दी। पाकिस्तान अमेरिका की गोद मे था, हमने से मैत्री संधि की। हम कम्युनिस्ट ब्लॉक का हिस्सा माने जाने लगे।
हमने चीन से डरना छोड़ दिया, ठेंगा दिखाकर सिक्किम का विलय किया, अरुणाचल को भारतीय राज्य
का दर्जा दिया। सियाचिन पर चढ़ बैठे, मालदीव में सेना उतार दी, लंका में पीस कीपिंग फ़ौज भेजी। अपने अस्त्र खुद बनाने शुरू किए-पृथ्वी, अग्नि, आकाश, नाग, अर्जुन, तेजस, ब्रह्मोस ..
यह दौर लिबरलाइजेशन के पहले तक था।
बाजार खुला, व्यापार खुला। व्यापार ही विदेश नीति का अहम हिस्सा हो गया। रूस टूटा, उस पर भरोसा घटा, अमरीका पास आने लगा। दूसरे परमाणु परीक्षण के बाद लगे प्रतिबंध ने, हमे उसकी तरफ खुलकर झुकने को मजबूर किया।
अमेरिका ने समझौता किया, हम मान्य न्यूक्लियर पावर बने।
लेकिन अब दुनिया में ताकत का टैक्टोनिक शिफ्ट हो रहा है। चीन, हमारा पड़ोसी,अपनी विशाल सेना, अर्थव्यवस्था,और पैसे के बूते, ग्लोबल पावर बन चुका था।
हमारी उससे पुरानी अदावत थी।
नया युग है, नई परिस्थितियां है, नए खिलाड़ी और नया खेल है। तीन न्यूक्लियर पावर हिमालय के गिर्द बैठी हैं।
उनमे से दो साथ साथ हैं तीसरी दोनो के खिलाफ..
साथ साथ चीन और पाकिस्तान हैं। दोनो के बीच, दोनो के खिलाफ हम !!! अमेरिका चाहता है हम एशिया में चीन को बैलेंस करें। वह क्वाड में हमे घसीट ले गया है। जी 7 मे बुलाता है। ट्रेड सरप्लस देता है, कूटनीतिक फायदे देता है।
20 साल से दे रहा है। मगर उसे मिला कुछ नही है। भारत चीन से न मुकाबला कर रहा है, न करने की हिम्मत जुटा पा रहा है। बकौल विदेशमंत्री- उनकी इकॉनमी तो हमारी इकॉनमी से बहुत बड़ी है।
बकौल पीएम- न कोई घुसा है, न कोई आया है।
और रक्षा मंत्री .. वे दिखते नही।
कूटनीति का पहला फलसफा है- कम बोलो। यह एक्शन से जाहिर करो। हमारा एक्शन यह था कि रूसी तेल को सस्ते में लेकर, यूरोप में महंगा बेच दिया। अब यूरोप खफा है, रूस भी। अमेरिका पहले ही डिसइल्यूजण्ड हो रहा है।
इस युद्ध ने दुनिया को दो खेमों में फिर से बांट दिया है।
हमे पता नही, हम किस ओर हैं, क्योकि हमे यह नही पता कि हमारा फायदा किस ओर है। अतएव हम दोनों ही ओर हैं।
सैनिक मोर्चे पर, सबसे बड़ा सत्य यह है कि भारत हैवी आर्सनल के निर्माण की क्षमता कभी बना नही सका। हमारे हथियार, आधे रूस से आयातित हैं, आधे दुनिया के अनेक देशों से।
किसी लड़ाई की अवस्था मे पुर्जे आने बन्द हो जायेंगे।
मगर चुनावी मौसम में बालाकोट ललचाता है। अब चाहे पाकिस्तान हो या चीन, किसी हमले के हालात में तुरन्त जीत मुमकिन नही। और लड़ाई लम्बी लड़ सकें, इसके लिए न हथियारों का भंडार तैयार है, न इकॉनमी।
क्योकि इकॉनमिक ग्रोथ मंथर है, व्यापार घाटा सर के ऊपर तक बढ़ रहा है। कोई मेजर ट्रेड समझौता हुए 12 साल हो चुके हैं। ग्रोथ के इंजन रहे आईटी और सर्विस सेक्टर संतृप्त हो चुके है।
किसी अन्य सेक्टर में हमारा वर्चस्व बनता नही दिखता। देश का कर्ज, साल दर साल दोगुना होता जा रहा है।
बेरोजगारों की फौज बढ़ रही है।
पोस्ट किसी नेता, पार्टी को दोष या क्रेडिट देने के लिए नही लिखी गयी। उद्देश्य यह है कि हिन्दू मुसलमान, मन्दिर, मस्जिद, बाबा, बुलडोजर, पप्पू फेंकू और श्रीराम से आगे, राष्ट्रीय विमर्श के जो असल पहलू हैं, आपके जेहनो दिमाग से दूर हैं।
इस पोस्ट से सहमत हों, या असहमत, एक बार सोचिये। जो भी नेता हो आपका, उससे इस पर सवाल पूछिये। फिर वही सेम सवाल उसके विरोधी से भी पूछिये। क्योकि ..
राष्ट्रीय सुरक्षा के दो अस्त्र होते हैं-फौजी तैयारी और कूटनयिक जलवा। मजबूत आर्थिकी दोनो को ताकत देती है।
आजाद भारत की शुरुआत तीनो मोर्चो पर शून्य से हुई थी।
94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने पर किराए के मकान से निकाल दिया।बूढ़े के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन,एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई सामान था।बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया।
पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी, और उन्होंने मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए कुछ समय देने के लिए मना लिया। मकान मालिक ने अनिच्छा से ही उसे किराया देने के लिए कुछ समय दिया।
बूढ़ा अपना सामान अंदर ले गया।
रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया, ”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।”
बेचारा आदमी, जो अपने कार्यकाल में लार्ड डलहौजी का फैलाया रायता समेटता ही रह गया।
सावरकर पर आई मूवी का जबरन प्रोमो यू ट्यूब पर देखना पड़ता है। स्किप करने के पहले इस मे एक डायलॉग सुना, तो ठिठक गया-
"गाँधीजी बुरे आदमी नही थे। लेकिन वे अपनी अहिंसा की नीति की जिद नही करते, तो देश 35 साल पहले आजाद हो जाता.. "
अबे??
खैर। बात कैनिंग की। जॉइन किए 6-8 माह ही हुए थे कि देश मे रिवोल्ट फूट गया। अंग्रेजो की सिट्टी पिट्टी गुम थी। देश भर में एक लाख से कम अंग्रेज थे,
और चारो ओर करोड़ो होस्टाइल पब्लिक थी।
जैसे तैसे रिवोल्ट से निपटे। शांति कायम हुई, कम्पनी को हटाकर रानी ने सीधा शासन कायम किया। कसम खाकर बोली कि अब और राज्य अनेक्स नही किये जायेंगे। सारे रजवाड़ो को अनुच्छेद 370 दिया। एक दो अनेक्स किये राज्य भी वापस लौटा दिये।
गोदिमीडिया का कमाल देखिए : इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) को "मुस्लिम लीग" में तब्दील कर दिया..
अमेरिका में राहुल गांधी से सवाल पूछा गया कि आप "IUML" के बारे में क्या सोचते हैं? राहुल ने जवाब दिया कि "IUML" एक सेक्युलर पार्टी है..
और गोदिमीडिया कहने लगा कि राहुल ने मुस्लिम लीग की हिमायत की है..
~ IUML केरल की पार्टी है.
~ इसका जन्म 10 मार्च 1948 को हुआ..
~ IUML "भारतवादी" मुसलमानो की पार्टी है
~ IUML जिन्नाह को राक्षस मानती रही है..
~ IUML बनाने वालों ने मुल्क की आज़ादी में क़ुरबानी दी थी
IUML के पहले सद्र थे महम्मद इस्मा'इल साहेब जो पूरी ज़िंदगी जिन्नाह के ख़िलाफ़ रहे..इनकी देशभक्ति पर वही सवाल उठाते है जो आडवाणी, अटल के जिन्नाह की मज़ार पर जाने का समर्थन करतें है..
एक समय था, जब स्त्रियों को संगिनी के रूप में हासिल करना बड़ी प्रतिस्पर्धा का कार्य था। तब यह सहज एवोल्यूशनरी चाहना पुरुष के मन में आयी कि बल, पौरुष और पराक्रम से हासिल हुई स्त्री उसकी इज्जत करे, सिर्फ उसकी बन कर उसे परमेश्वर का दर्जा दे, उसकी भक्ति करे।
इस व्यवस्था से स्त्री को भोजन/आश्रय उपलब्ध कराते पुरुष का अहं भी संतुष्ट, परिवार नामक संस्था भी संतुलित रही।
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अब धीरे-धीरे आधुनिक काल आया। स्त्रियां भ्रष्ट हुईं, परमेश्वर पदच्युत हुए, भक्तिकाल का अंत हुआ। आज की नामाकूल महानगरीय स्त्रियां भरण-पोषण उपलब्ध कराने के आधार पर मर्दों
को परमेश्वर का दर्जा देना ही नहीं चाहती, बराबरी के हक की मांग करती हैं। मन-वाणी-कर्म से ये मर्द के सामने दबना ही नहीं चाहतीं। इनके देखा-देखी छोटे शहर की लड़कियां भी समानतावाद का झंडा बुलंद कर रही हैं।
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बेचारा मर्द क्या करे। मन में तो वही परमेश्वर कहलाए जाने की आदिम चाह, पर इन
#SnoopGate कांड और #DainikBhaskar पर रेड
तस्वीर में जो लडकी नजर आ रही है..वह मानसी सोनी है... यह वही लडकी है जिस पर साहब जी फिदा थे.. साथ में जो आदमी नजर आ रहा है वह पूर्व IAS अधिकारी प्रदीप शर्मा है.
साहब जी ने मानसी सोनी को पहली बार अहमदाबाद के किसी कॉलेज के कार्यक्रम में
देखा था.. देखते ही मानसी सोनी से प्यार हुआ.. साहब ने मानसी सोनी को प्रायवेट सेक्रेटरी बनने का ऑफर दिया...मानसी सोनी ने यह ऑफर स्वीकार भी कर लिया... कुछ दिनों बाद साहब जबरन मानसी सोनी का शारिरीक शोषण करने लगे..उसके बाद साहब ने अपने ऑफिस से निकाल फेंका... मानसी सोनी ने साहब को
धमकी देते हुए कहा मेरे पास तेरे सारे कारनामों का चिट्टा है.. साहब काफी परेशान हुए और अपने अफसरों से मानसी सोनी पर नजर रखने को कहा...यहाँ तक कि उनके मोबाईल की कॅाल भी रिकार्ड करवाई जाने लगीं (snoopgate) l मानसी सोनी और पूर्व IAS ऑफिसर प्रदीप शर्मा के रेग्युलर टच में थी
पानी मे जले मेरा गोरा बदन
मछली पानी के बाहर ज़्यादा देर नहीं जी सकती । इसी तरह सेंदुर और प्रवाल भी सिर्फ जल में उतपन्न होते हैं , थल पर नहीं ।
जल और थल , दोनों पर विचरण करने का अभ्यास मनुष्य के सिवा मेंढक को भी है । स्वयं को मेंढक से अलग करना है ,
तो पेड़ पर भी चढो । मेंढक पेड़ पर नहीं चढ़ सकता । लेकिन पेड़ पर तभी चढ़ोगे , जब अपने आसपास पेड़ रहने दोगे ।
अन्यथा बिजली के खम्भों पर चढ़ दिल की लगी उतारनी होगी । झटका खाओगे । पता हो कि बिजली दो तरह के झटके मारती है । पहले चिपकाती है , फिर झटके से दूर फेंक देती है ।
लड़कियों की तरह । जब तुम्हारे खीसा में पिज्जा बर्गर का पैसा है , तो सटेगी , सटायेगी । जब खत्म होगा तो झटके से दूर पटक देगी , तुम्हे अधमरा कर । आकाशीय तड़ित की बात और है । वह जिस पर गिरती है , उसे सीधा निबटा देती है । एसी और डीसी करंट का कोई चक्कर नहीं ।