राजनीति के अपराधीकरण की स्क्रिप्ट हर जगह एक ही होती है।पहले नेता एक गुंडा चुनता है। उसकी मदद से दबदबा कायम करता है।
और चुनाव जीतता है।
फिर एक वक्त गुंडा समझ जाता है कि जो जो काम,वह इल्लीगल पॉवर,औऱ बड़े रिस्क के साथ करता है,वही चीज लीगल पॉवर और बिना रिस्क के नेताजी कर लेते हैं।
हनुमानजी की तरह गुंडे को जब अपनी ताकत का अंदाजा हो जाये, थोड़े बहुत गुर सीख जाये, तो वो खुद के लिए काम करता हैं। बुद्धिमान गुंडे जल्द ही नेता, विधायक, मंत्री और सरकार बनते हैं।
अखबारों में प्रशस्ति छपवाते हैं। राजनीति करते हैं। और अपने गुरु को ही चुनौती देते हैं।
भारत मे तिजारती कम्पनियों को, सिर चढ़ाकर मिल्ट्री पावर बनाने वाले, हमारे ही राजे महाराजे थे। डूप्ले, याने फ्रेंच के अर्काट के साथ सम्बंध, आप जान चुके हैं। वहीं अंग्रेजो को भारतीय राजनीति की घुट्टी, मराठों से मिली।
इस वक्त मुगल तख्त, मोहम्मद शाह "रंगीला" के हाथ मे था।
मराठा सूरज चढ़ी पर था। पेशवा की तलवार देश भर में चमक रही थी, मगर पेशवा सॉवरिन किंग तो नही था। सॉवरिन तो छत्रपति था, पेशवा उसका मुलाजिम..
तो पेशवा, पोलिटिकल एडजस्टमेंट से प्रभावी बना रहता।
याने सिंधिया, होल्कर, गायकवाड़ जैसे सरदारों के साथ छत्रपति को दबा देते।
इनका मिला जुला सत्ता तन्त्र उसी तरह से चलता, जैसे कोई गठबंधन सरकार चलती है।
याने एक के करप्शन पर दूसरा शांत रहता है। पेशवाई के दौर में पैसा खुदा तो नही था, मगर खुदा से कम भी नही था।
आपसी झगड़े थे। नानानी पेशवा प्रभाव बढाना चाहते थे। मगर अपने ही सरदारों की मदद के बगैर।
मसला था- तुलाजी आंग्रे।
तुलाजी नें विशाल नेवी तैयार कर ली थी। पेशवा की सुनता नही था। गोवा वाले पुर्तगालियों से सम्बन्ध भी जोड़ लिया था।
उससे भिड़ने का दम पेशवा में न था। तो पेशवा ने लार्ड क्लाईव की सेवा ली। मिलकर, दोनो तुलाजी पर हमला करते, जीते इलाके पेशवा को मिलते।
बेशुमार दौलत, और आंग्रे का पूरा नेवल फ्लीट, कम्पनी को दिया जाता।
1755 के इस समझौते के बाद, क्लाईव और नानाजी पेशवा ने मिलकर तुलाजी की चुनौती समाप्त कर दी। इसके साथ साथ शिवाजी की महान नेवी भी समाप्त हो गयी।
इस अनुभव में क्लाईव ने काफी सीखा। रजवाड़ों के इक्वेशन समझ आ गए।
कौन भविष्य में किसका साथ देगा, किसके खिलाफ न्यूट्रल रहेगा, क्लाईव को भारत राजनीति के गुर मिले। और हां, उसे यहां थैली की ताकत ठीक से समझ आ गयी।
पचास साल बाद अंग्रेज, उन्ही मराठों के पर कतर कर पेंशन देने वाले थे। मगर फिलहाल, क्लाईव ने थैली की ताकत का प्रयोग बंगाल जीतने में किया।
और इस क्रम में खुद, सबसे बड़ा थैलीशाह बन गया।
मगर लालच की सीमा कहाँ होती है।
मीरजाफर से एक बड़ा भूखण्ड अपने नाम कराया। उस भूखण्ड पर कम्पनी के ऑफिस और मिल्ट्री ठिकाने थे। जमीन के मालिक क्लाईव ने, कम्पनी के गवर्नर क्लाईव को .. यह प्रोपर्टी रेंट पर दे दी।
किराया सस्ता था- सालाना 27000 पाउंड.. ये एक लीगल इनकम थी। जो आई टी रिटर्न में दिखाने के काम आती।
प्लासी के बाद बंगाल में द्वेध शासन था। ठीक जैसे आजकल भारत के राज्यों में है। याने राज्य सरकार केवल फौजदारी देखती है, प्रशासनिक जिम्मा लेती है, जनता की गाली सुनती है।
उधर स्टेट से टैक्स का पैसा, कोई दूसरी सरकार उठा कर ले जाती है। राज्य को पैसा चाहिए, तो डबल इंजन की सरकार बनाओ। फिलहाल 1758 में डबल इंजन की सरकार बंगाल में थी। टैक्स वसूली, याने दीवानी कम्पनी के जिम्मे थी।
अब सबै अफसर, कम्पनी का वणिक व्यापार छोड़, लगान वसूलने लगे।
कम्पनी को बताते, की पैसा तो मीरजाफर गवर्मेन्ट को दे रहे हैं। और मीरजाफर को क्या बताते...
अरे भाई, बताते तब, जब वो पूछता।
मीरजाफर की औकात नही थी पूछने की।
कर्मचारी पोट्ट कमा रहे थे, और कम्पनी का मुनाफा नाक के बल गिर रहा था। 1760 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के 15% शेयर टूटे।
डायरेक्टर सुलिवान को तो पहले ही क्लाईव पर शक था।
उसे गवर्नर के पद से हटा दिया गया। क्लाईव झोला उठाकर लन्दन लौटे। महज 35-40 की उम्र, नाम था, शोहरत थी, इज्जत थी। मकान नही था।
झोला ठसाठस था, तो माल्या और नीरव के पड़ोस में (लन्दन में) एक महंगा मकान लिया।
ऐश से जीने लगे। अखबारों में अपनी प्रशंसा में लेख लिखवाने लगे।
और राजनीति में भाग लेने लगे।
अब सुलिवान को सबक सिखाने का वक्त था।
यो भाई जिम्बाब्वे से है, चीता एक्सपर्ट है, 27 चीते इसके दोस्त हैं, मगर एक खुद के साथ रखता,सभी 27 को टर्न वाई टर्न लेकर आता !!
कहानी शुरू जब हुई,जब यह बच्चा था, स्कूल जाता था, 8 किमी रोज वो भी जंगल के रास्ते !!
एक दिन इसे एक घायल चीता का बच्चा दिखा, उसकी मां उससे दूर बैठी थी,इस
बच्चे ने इस घायल बच्चे को उठाया और साथ लेकर घर चल दिया, घर पहुंचकर देखा तो चीता मां भी इसके पीछे आ गई,
गांव में घायल बच्चे को जंगली जङी बूटी से दो हफ्ते में फिट कर दिया, चीता मां रोज रात में आती और बच्चे को दूध पिलाकर वापस जंगल चली जाती !
जब शावक एकदम ठीक हो गया तो यह बच्चा उसे जंगल में उसी जगह छोङ आया !
रात में चीता मां व शावक इसके घर रोज आते, वहीं शावक को दूध पिलाकर सुलाकर वापस जंगल !!
कुछ हफ्तों बाद परिवार के मुखिया ने देखा कि घर के बाहर तीन चीते और वो शावक सो रहे हैं, यह क्रम रोज चलता, कभी दो,
यहां स्त्री का चीरहरण होता है
यहां भीष्म चुप्पियां मार बैठे होते हैं
यहां गुरु द्रोण देखते सब हैं लेकिन सत्ता से बंधे हैं
विदुर यहां नौकरी करते अपनी रीढ़ दरबार मे छोड़कर आते हैं
यहां दुःशासन चीर हरण करते हैं
दुर्योधन अट्टहास करते हैं नैतिकता पर
शकुनि पांसे में फांस लेते हैं न्याय
कर्ण दोस्ती को तरजीह देते हैं अस्मिता को नही
गांधारी न देखने का अभिनय करती है
कौरव सभा है यह
जहां सत्ता ही खेल है
जनता रखैल है
सत्ता सब है
सत्ता रब्ब है
और रब्ब कोने में खड़ा देख रहा है नंगई
कौरव सभा है यह
जनता जहां नदारद है
दबी है किसी जुए के नीचे
और दरबार को जूए से फुरसत नही
कौरव सभा है यह
कि स्त्री ने न्याय की गुहार लगाई है
स्त्री ने सबको पुकारा है एक एक करके
स्त्री ने अंधे राजा से बार बार कहा है
तुम अंधे हो बहरे नही हो
भीतर तक तुम्हारे कोई आह तो पहुंचती होगी
कोई तो चीत्कार सुनो राजन
#एक्सपर्ट्स का मानना है कि #प्रथम_दृष्टया गलती #मालगाड़ी की थी जो #लुपलाइन मे खड़ी थी, ट्रेनों का काम होता है चलना और चलते रहना लेकिन वो खड़ी थी ! दूसरी ये कि जब #कोरोमण्डल एक्सप्रेस का मूड हुआ कि उसको #मेनलाइन पर नहीं चलना है लूप लाइन में जाना है तो मालगाड़ी ने वहां से हट
जाना था,लेकिन वो ढीठ की तरह वहीं डटी रही!
फिर तीसरी गलती ये कि तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा होता है तो #अपशकुनी#तीसरा_ट्रैक वहां बनाया किसनेउसको पकड़ना चाहिएऔर तो और कोरोमण्डल एक्सप्रेस के वो नालायक डिब्बे जिनको मालगाड़ी से भिड़ना था वो नासपीटे तीसरे ट्रेक पर सेल्फी लेने निकल लिए !
अब #बेंगलुरु तो बेंगलुरु है वो कब किसके लिए रुकती है जो डिब्बे देखकर रुक जाती उड़ा दिया !
तो कुल मिलाकर गलती ट्रेनों की है, उनके लड़ाई झगड़ों के लिए हमने सरकार से कहकर एक अलग न्याय विभाग बनाने की मांग की है !
#लोहपथ गामिनी अंतरकलह वाद निवारण न्याय विभाग !
जय हिंद जय श्री राम
कमजोर
(वर्तमान भारतीय परिदृश्य में विचारणीय अन्तोन चेख़फ़ की एक मशहूर कहानी)
हाल ही में मैंने अपने बच्चों की अध्यापिका यूलिया वसिल्येव्ना को अपने दफ्तर में बुलाया। मुझे उनसे उनके वेतन का हिसाब-किताब करना था। मैंने उनसे कहा, "आइए...आइए...बैठिए। आपको पैसों की जरूरत होगी,
पर आप इतनी संकोची हैं कि जरूरत होने पर भी आप खुद पैसे नहीं मांगेंगी। खैर..हमने तय किया था कि हर महीने आपको तीस रूबल दिए जाएंगे।"
"चालीस"
"नहीं...नहीं...तीस।तीस ही तय हुए थे। मेरे पास लिखा हुआ है।वैसे भी मैं हमेशा अध्यापकों को तीस रूबल ही देता हूं। आपको हमारे यहां काम करते हुए दो
महीने हो चुके हैं...।"
"दो महीने और पांच दिन हुए हैं।"
"नहीं, दो महीने से ज्यादा नहीं। बस, दो ही महीने हुए हैं। यह भी मैंने नोट कर रखा है। तो इस तरह मुझे आपको कुल साठ रूबल देने हैं। लेकिन इन दो महीनों में कुल नौ इतवार पड़े हैं। आप इतवार को तो कोल्या को पढ़ाती नहीं हैं,
धर्म को सत्ता की सीढ़ी बनाने वालों ने मंदिर की जमीन खरीदी से लेकर उसके निर्माण और मूर्तियां बनाने तक में भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए प्रत्येक हिंदू घर से जो ईंट मंगवाई गई थीं, वे कहां गईं? इसका उत्तर देने को उस अभियान से जुड़ा
कोई भी व्यक्ति या तथाकथित साधू-संत देने को तैयार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जिस तरह राम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या में जमीन खरीदी में करोड़ों रुपए की घपलेबाजी की गई, वह सर्वविदित है।
मध्यप्रदेश में उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर परिसर में सप्त-ऋषियों की मूर्तियां
बनाने और उन्हें स्थापित करने में जैसा अनाचार किया गया है, उसकी पोल पट्टी हवा के एक मामूली झौंके ने खोल दी है। उसके बाद से तो इसमें हुई घपलेबाजी के अनेक रूप प्रकट होते जा रहे हैं।
मूर्तिपूजा के कुछ नियम निश्चित किये गये हैं जिनका पालन करना ये धर्म के धंधेबाज आवश्यक नहीं समझते
बर्कले स्क्वेयर पर क्लाईव का भव्य मकान था। बड़े लोगो से दोस्ती की। जनता में क्लाईव ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर हो गए।
वो बचपन से ही लार्ड बनना चाहते थे। मगर लार्ड का ओहदा तो, ब्रिटिश किंग देता है। क्लाईव तो वह स्वयम्भू baron बन गया।
कहीं भी जाता, एक चमचा चिल्लाता- बा अदब, बा मुलाहिजा, होशियार, .. बंगाल के भूतपूर्व गवर्नर, बैरोन ऑफ प्लासी, जनरल रॉबर्ट क्लाईव जी पधार रहे हैं।
मगर लड़े बगैर क्लाईव को डिप्रेशन आ जाता। यहाँ उसका दुश्मन ईस्ट इंडिया कम्पनी का डायरेक्टर लॉरेंस सुलिवान था।
क्लाईव ने प्रधानमंत्री पिट को चिट्ठी लिखी-
"ईस्ट इंडिया कम्पनी के मामलात इंडिया में बड़े हो रहे हैं। किसी कम्पनी को यह सब सम्हालने नही देना चाहिए। अच्छा होगा कि कम्पनी को हटाकर, ब्रिटिश क्राउन बंगाल का शासन हाथ मे लेले। अगर आप ऐसा करते हैं, तो मैं हिंदुस्तान