1. राहुल की सोच और सोच का समावेशी/मुश्तमिल होना लोगों के दिमाग़ में साफ़ हो चुका है..पिछले कुछ वक़्त में राहुल ने जिन यूनिवर्सिटी में बातचीत/गुफ़्तगु की है उन यूनिवर्सिटी की आवाज़ कहाँ तक जाती है और
कितना असर छोड़ती है ये हम सोच भी नहीं सकते..
2. राहुल ने कांग्रेस की आर्थिक नीतियों को जिस नज़रिए से "ग्लोबल इंटीग्रेशन" के सामने रखा है वो उद्योगपतियों के 90% हिस्से को क़ुबूल है..क्योंकि इस सरकार में कुछ एक के 'अलावा उद्योगपतियों की हालत सबसे ख़राब है..
3. राहुल ने कांग्रेस की "जनकल्याणकारी योजनाओं" को पुरज़ोर तरीक़े से पेश करते हुए बताया है कि ये सारी योजनाएं एक "इन्वेस्टमेंट" है जिसका रिटर्न बहुत बड़ा होता है..ये कोई फालतू ख़र्च नहीं है..
4. पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में कभी भी सामाजिक योजनाओं,
सब्सिडी वग़ैरह को "राष्ट्रवाद" से जोड़ कर नहीं देखा जाता..और वो लोग राहुल की इस बात से हमख़्याल है कि "अर्थव्यवस्था नीचे तबक़े से ऊपर" जाए..
5. हिंदुस्तानी 'अवाम में एक बेचैनी तो है..मंदिर, संसद वग़ैरह का असर ज़मीन पर बहुत कम है..'अवाम थकी हुई है..कुछ नई सोच की जगह बनी है..
राहुल गांधी इस वक़्त बहुत सधे तरीक़े से बातें आगे बढ़ा रहें हैं..सोशल मीडिया पर हमें भी इस वक़्त राहुल गांधी की बातों को ज़्यादा से ज़्यादा रखना है.. #कृष्णनअय्यर कृष्णन अय्यर काँग्रेस पेज
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साधारण सा महज 36 हजार का झक सफ़ेद कुर्ता पैजामा, पैरों में मात्र 19 हजार की सैंडल, न चेहरे पर मेकअप, न सिर पर मुकुट / ताज, न हाथों में सेंगोल, बालों तक में कंघी नहीं की थी। देखकर ही अंदाज़ा हो जाए कि हो न हो बंदा जरूर किसी गमी में जा रहा होगा। ऐसी सादगी पर कौन न मर जाए।
हुआ भी यही। 288 लाशों के ढेर से सिर्फ "मोदी, मोदी" की आवाजें आ रही थीं। छोटे रेल मंत्री के सख्त आदेश के बाद यात्रियों ने मरना भी त्याग दिया था। गिनती 288 पर टिक गई थी। यमराज पेड़ के नीचे बैठे सुस्ता रहे थे। उधर #बालासोर का रेलवे स्टेशन जून की गर्मी में तप रहा था।
ऐसे में उन लाशों को बस एक ही चिंता थी कि कहीं उनके चहेते सुल्तान के माथे पर पसीना न आ जाए!
जब लाशों ने देखा कि मंत्री संतरी छोड़ो, चित्रा पंडिताइन ऐसे पत्तलकार तक सुल्तान जलीलेइलाही की तरफ ध्यान नहीं दे रहे तो कैमरे के सामने 13 लाशें उठीं और सुल्तान के लिए एक साधारण सा
To
The CP Delhi Police
Beg to state that I an senior citizen living at sector 16rohini at tenent basis .
My professional experience is only consultancy since long,
Presently owning to recession not getting sufficient job. morover i am getting the rent to the landlord as and when
I get funds , since three months the son of landlord is visiting to me with fully dronken guys, they also threat me to kill
Today only received an threat from Akash Chauhan resident of same block, asked the beat officer to help
But the same was unavailable çoz of some network error or his own,kindly help me to overcome this problem or should I go to Pakistan?tell me now,
Subhash Sharma
I don't think this officer having glorious bachground would be in favour of some extra antisocial elements,i do remember I was scolded at the govt liquor promises,while I was having some business talk no liquor consumed
Today I got an threat from the regular law breaking person who claims,"sho क्या कर लेगामेरा?
@ACPNorthRohini @HMOIndia@CPDelhi ? landlord son is also involved,we are sinior cititzon if we enjoy such a behave govt should get us will to sucide
Local police station is not ready to hear even the beat officer has disabled his phone
एक सौ पच्चीस साल पहले यानी 7जून 1893 को दक्षिण अफ्रीका के एक रेल स्टेशन पीटरमेरिजबर्ग पर एक विद्रोही पैदा होता है और अपने मौत को अमरत्व देता है ,उसका नाम है मोहनदास करमचंद गांधी । हुआ कुछ नही था ,
सामान्य बात थी , अंग्रेज बहादुर के निजाम का दबदबा गोरी चमड़ी का रुआब , गोरो के डिब्बे में रंगीन लोग सफर नही कर सकते थे टिकट रहते हुए । आधीरात इसी जगह गांधी जी को ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया । स्टेशन के यात्री निवास में रात एक घायल मुसाफिर मर्म पर लगी चोट को सहलाता नही
उसे कुरेदता है भोर जब पौ फट रही थी वह उठ कर खड़ा हो गया , उसके अंदर एक हथियार उग आया था -
सिविल नाफरमानी । जालिम का कहा न मानना ही सिविल नाफरमानी है और जंग का एलान करता है । एक नया इतिहास शुरू हुआ । लुई फिसर लिखते हैं -
बॉडी लैंग्वेज की किताब में एलेन पेज, व्यक्ति की हर विजिबल एक्टिविटी के साथ, उसकी इनविजिबल एक्टिविटी का मिलान करके देखने की सलाह देते हैं।
याने व्यक्ति सच बोल रहा है, तो आई कॉन्टैक्ट करेगा, फ्लो में बोलेगा
देह की भाषा, और मुंह की बात में साम्य होगा। अगर दोनो में एकता नहीं, तो अगला झूठ बोल रहा है। ए-आई के दौर में, डिजिटल कम्युनिकेशन के दौर में हालांकि झूठ पकड़ना कठिन हो गया है। मगर कातिल कितना भी स्मार्ट हो, कुछ क्लू छोड़ देता है।
सामने एक कार्टून है। पहले जो बोला जा रहा है, उसे पढ़ें। कम्युनिज्म की डबल स्पीक, झगड़ा लगाने की प्रवृत्ति उजागर की गई है।
अब चित्र ध्यान से देखिए। किनारे के दो लोग, दोनो चित्रों में स्थिर हैं। मध्य का व्यक्ति, दोनो में मिरर इमेज है। इसलिए प्रथम में वह दाएं व्यक्ति
‘मैं सोचता हूं कोई बाल-बच्चा हुआ, तो क्या होगा? सोंठ, गुड़, तेल, कुछ भी तो नहीं है घर में!’
‘सब कुछ आ जाएगा. भगवान् दें तो! जो लोग अभी एक पैसा नहीं दे रहे हैं, वे ही कल बुलाकर पीएम केयर फंड खोलकर रुपये देंगे. मेरे नौ बच्चे हुए, घर में कभी कुछ न था; मगर भगवान् ने
किसी-न-किसी तरह बेड़ा पार ही लगाया.’
जिस समाज में रात-दिन मेहनत करने वालों की हालत उनकी हालत से कुछ बहुत अच्छी न थी, और किसानों के मुकाबले में वे लोग, जो किसानों को चूतिया बनाना जानते थे, कहीं ज़्यादा सम्पन्न थे, वहां इस तरह की मनोवृत्ति का पैदा हो जाना कोई अचरज की बात न थी.
हम तो कहेंगे, दामू किसानों से कहीं ज़्यादा विचारवान् था और किसानों के विचार-शून्य समूह में शामिल होने के बदले बैठकबाज़ों की कुत्सित मण्डली में जा मिला था. हां, उसमें यह शक्ति न थी, कि बैठकबाज़ों के नियम और नीति का पालन करता. इसलिए जहां उसकी मण्डली के और लोग गांव के सरगना