साधारण सा महज 36 हजार का झक सफ़ेद कुर्ता पैजामा, पैरों में मात्र 19 हजार की सैंडल, न चेहरे पर मेकअप, न सिर पर मुकुट / ताज, न हाथों में सेंगोल, बालों तक में कंघी नहीं की थी। देखकर ही अंदाज़ा हो जाए कि हो न हो बंदा जरूर किसी गमी में जा रहा होगा। ऐसी सादगी पर कौन न मर जाए।
हुआ भी यही। 288 लाशों के ढेर से सिर्फ "मोदी, मोदी" की आवाजें आ रही थीं। छोटे रेल मंत्री के सख्त आदेश के बाद यात्रियों ने मरना भी त्याग दिया था। गिनती 288 पर टिक गई थी। यमराज पेड़ के नीचे बैठे सुस्ता रहे थे। उधर #बालासोर का रेलवे स्टेशन जून की गर्मी में तप रहा था।
ऐसे में उन लाशों को बस एक ही चिंता थी कि कहीं उनके चहेते सुल्तान के माथे पर पसीना न आ जाए!
जब लाशों ने देखा कि मंत्री संतरी छोड़ो, चित्रा पंडिताइन ऐसे पत्तलकार तक सुल्तान जलीलेइलाही की तरफ ध्यान नहीं दे रहे तो कैमरे के सामने 13 लाशें उठीं और सुल्तान के लिए एक साधारण सा
बिजली से चलने वाला पावर एसी, कुछ ग्लास अनार का जूस, काजू की रूखी सूखी रोटी और मशरुम की बेस्वाद सब्जी और पीने के लिए शीतल जल लेकर आईं। आप प्रजा को याद हो तो मृतकों की संख्या 288 से 275 हो गई थी। इन्हीं 13 लाशों को इनकी सुल्तान के प्रति संवेदना देखकर छोटे रेल मंत्री ने ख़ुशी
के मारे जीवित घोषित कर दिया गया था शायद!
अब जब सुल्तान खुद मौजूद थे तो साधारण सी सिग्नल और लॉकिंग सिस्टम की लापरवाही से हुई दुर्घटना को ऐसे कैसे मान लेते? चुंकि भगवान जगन्नाथ का इलाका था तो श्री राम और बजरंगबली को ग्रीष्म अवकाश देकर, जगन्नाथ को पलकों पर बैठाया गया
और विश्व के महानतम जासूसों को भगवान का नाम लेकर जाँच के लिए निमंत्रण दिया गया। इन महानतम जासूसों से भले पुलवामा न सुलझा हो, लेकिन महानता में कोई कमी नहीं आई थी। सुल्तान का सख्त आदेश था कि पहली से लेकर सौंवी कोशिश किसी अल्पसंख्यक या उनके प्रार्थना स्थल को ढूंढ,
दुर्घटना का जिम्मेदार ठहराना है। साथ चेतावनी भी दे दी कि और किसी भी नतीजे पर पहुँचने का हश्र रातों रात सीबीआई के निज़ाम को बदलने तक का हो सकता है। आखिर हिन्दू मुस्लिम करे हुए भी तो 20-25 दिन हो गए थे!
अब 15 दिन के अंदर कोई इमरान, इरफ़ान, असलम टाइप "निर्मम हत्यारा" पकड़ा जाएगा।
उसके पास से इस्लाम साहित्य, ज़ाकिर नाइक की फ़ोटो, कुछ देसी तमंचे और कुछ फुंके हुए कारतूस मिलेंगे। चित्रा सपरिवार टीवी पर राहुल गाँधी से सवाल पूछेंगी। सुरेश चव्हाणके इसे रेल जिहाद या लाश जिहाद टाइप कुछ बोलेंगे और भक्त भद्दे मीम बनाकर अल्पसंख्यकों का जीना हराम कर देंगे।
सीबीआई के जासूस अपने फर्ज की इति समझेंगे। सुल्तान मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी निकट आती सत्ता को देखकर हल्की सी मुस्कुराहट के साथ सुल्तान अगली आपदा का इंतज़ार करेंगे।
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अकबर भी कम पढ़ालिखा था. मतलब अनपढ़ था....
ऐसा समझलो वर्तमान समय का चौथी पास राजा था....
उसने फर्जी डिग्री नहीं ली ...वह मानता था मैं अनपढ़ हूँ यह स्विकार भी करता था स्विकार करने के बाद कभी यह नहीं कहा मैंने एंटियरपालिटिकल साइंस की पढ़ाई की है...
उसने कभी असंभव होने वाले आविष्कारों से जनता को बेवकूफ भी नहीं बनाया
उसने कभी पूरे नहीं होने वाले वादे किए, नाहीं कभी नहीं पूरी होने वाली योजनाओं का शिलान्यास किया
उसके मंत्रिमंडल में सिर्फ 9 व्यक्ति थे जिनको नवरत्न कहता था हमेशा उनकी राय मानता था...
अपने आपको महान यशस्वी कभी नहीं कहा
कभी मैं मैं मैरा मैरा मुझे मुझे नहीं कहा यह कभी नहीं कहा मुझे महाराणा प्रताप ने 91 गालियाँ दी.
कभी खुद को नालायक, गंदी नाली का कीड़ा, गधा, कुत्ता, सांप , बिच्छू, सूवर इत्यादि नहीं बताया.
नही, साहित्य, भाषा औऱ धर्म की फिलॉसफी पर न जाइये। इसका पोलिटिकल मतलब क्या है??
दरअसल सम्विधान आपको धर्मान्तरण की छूट देता है। जो चाहे धर्म, मत, सम्प्रदाय का अनुकरण करें, अंगीकार करें। स्वेच्छा से अदलें बदलें, कोई रोकटोक नही।
कानूनी बैन इस बात पर है कि धोखे से, लालच देकर, आप किसी का धर्म नही बदलवा सकते। लालच देकर हिन्दू बनाना, डराकर मुसलमान बनाना, या चावल बोरी पैसा देकर क्रिश्चियन या सिख या पारसी बौद्ध बनाना, अपराध है।
मगर स्वेच्छा से तो बदला जा सकता है। ऐच्छिक धर्मान्तरण की इजाजत है।
जब से हिन्दू खतरे में आया है, धर्मान्तरण पर हड़बोंग है। मुस्लिम लड़के से ब्याह करे, तो लड़की मुसलमान हो जाएगी। लेकिन लड़की हिन्दू से ब्याह करे, तो भी लड़का ही मुसलमान बनेगा।
यह बड़ी आसानी से स्वीकार की जा चुकी धारणा है। यहीं से लव जिहाद की थ्योरी निकली है।
आपने कई तरह के पर्यटन के बारे में सुना तो होगा ही। लेकिन क्या आपने कभी "प्रेग्नेंसी टूरिज्म" नाम के बारे में सुना है? जी हां, आपने सही सुना।
और ये गर्भावस्था पर्यटन हमारे भारत देश के लद्दाख में हो रहा है। एक दावे के मुताबिक दुनिया में शुद्ध आर्य के जो कुछ समुदाय बचे रह गए हैं,
उनमें से एक है लद्दाख में बसा ब्रोकपा समुदाय।
लद्दाख लेह से लगभग 200 किमी दूर स्थित चार गांव धा, हनु, गारकॉन और दारचिक गर्भावस्था पर्यटन के लिए विदेशी महिला पर्यटकों में लोकप्रिय हैं। इन गांवों में ब्रोकपा/ब्राकपा की आबादी है जिसे आर्य जाति का सबसे शुद्ध नमूना माना जाता है।
ताजा रिसर्च में बताया गया है कि लद्दाख के क्षेत्र में बसा यह आदिवासी समूह ही आर्यनों की वास्तविक प्रजाति है। जर्मन वैज्ञानिक अरसे से उन पर शोध कर रहे हैं। वे शोध के लिए यहां के बाशिंदों के जेनेटिक मैटिरियल तक जर्मनी ले जा चुके हैं
सुनो रे किस्सा, Suno Re Kissa
"जो हया न करो, तो चाहे जो करो"
अमत्त बाबू, बैकुंठ प्रसाद का बात गाँठ बाँध लीजिये, कोई कहा है की जो हया न करिये,तो चाहे जो करिये, अरे कौन फिर लाज,सरम किसी की बहिन,महतारी रही, जितनी जल्दी मरे उतना बेहतर, दरोगा से डी-एस-पी का सफर
बिना मनों के योग, विशुद्ध सहयोग और सर्व कल्याण के बिना मृग मरीचिका से अधिक कुछ नहीं, ये जो धकाधक सिगरेट खींचते हैं न जी, समझिये की सब फिरंगी का देन है, अरे महाराज साजिश है, अपने यहाँ तो भाँग,धतूरा,अफीम और इस झंखुवा के हाथ का खींचा ताड़ी ही नसा रहा न,
अंगेज सब देसी नसा बैन कर दिया, और अफीम का स्मगलर खुद्दे बन बइठा, चीन को सप्लाई किया के नहीं, इतिहास साक्षी है जी, अब फिरंगी का सिगरेट पकड़ियेगा तो बिजनेस काहें छोड़ियेगा, कलेक्टरवा मरा जा रहा है दो परसेंट के लिये, दो परसेंट आप भी पकड़िये, अब डकैत फकैत तो सब लाल बत्ती
‘पूछेगी तो जरूर!’
‘तू कैसे जानता है कि उसे कफन न मिलेगा? तू मुझे चूतिया समझता है? साठ साल की उमर गान मराकर नही काटी? उसको कफ़न मिलेगा बरोबर कफन मिलेगा!और वैसे भी ऊपर वो हमसे कफन के विषय में नही बल्कि राहुल गांधी के विषय में पूछेगी।
नंदू को विश्वास न आया. बोला,‘कौन देगा? रुपये तो तुमने चट कर दिये. वह तो मुझसे पूछेगी. उसकी मांग में तो सेंदुर मैंने डाला था. कौन देगा, बताते क्यों नहीं?’
‘वही लोग देंगे, जिन्होंने अबकी दिया. हां, अबकी रुपये हमारे हाथ न आएंगे.’
‘ज्यों-ज्यों अंधेरा बढ़ता था और सितारों की
चमक तेज़ होती थी, मधुशाला की रौनक भी बढ़ती जाती थी. कोई गाता था, कोई डींग मारता था, कोई अपने संगी के गले लिपटा जाता था. कोई अपने दोस्त के मुंह में कुल्हड़ लगाये देता था.
वहां के वातावरण में सरूर था, हवा में नशा. कितने तो यहां आकर एक चुल्लू में मस्त हो जाते थे.