पीटर औऱ मरिट्ज़ को पसन्द आयी। यहां जमीन का एक टुकड़ा लेकर बसना चाहते थे। लेकिन आसपास रहने वाले जुलु कबीलों की मर्जी के बगैर वहां रहा नही जा सकता था।
पीट रेटिफ और गर्ट मरिट्ज़ ने जुलु चीफ से मिलने का निर्णय किया।
सन्देश भेजा तो अनुमति मिल गयी। उन्हें भोज पर बुलाया गया। बात सुनी गई।
और काट डाला गया।
यह 1830 के आसपास की बात है। इस जगह पर बसी बस्ती पीटरमारितज़बर्ग के नाम से जानी गयी थी। एक रेल लाइन यहां से बनी, और गुजरी। कोई 63 साल बाद एक ठंडी रात को एक ट्रेन...
इस ट्रेक से गुजर रही रही थी।
फर्स्ट क्लास केबिन में एक भारतीय वकील बैठा था। उस केबिन में एक अंग्रेज की सीट थी। काले आदमी के साथ वह भला कैसे बैठ सकता था। सो टीटी को बुला लाया।
टीटी ने उस काले को समझाने की कोशिश की। लेकिन काला आदमी तो बड़ी बड़ी बातें करने लगा।
कहा कि उसमे इंगलैंड से बैरिस्टरी पास की है। बार का मेम्बर है।उसके पास फर्स्ट क्लास का वैलिड टिकट है।वह कतई थर्ड क्लास में जाकर न बैठेगा।
दुबले पतले इस काले आदमी की हिमाकत देखकर टीटी के गुस्से का ठिकाना न रहा। ट्रेन इस वक्त पहाड़ चढ़ रही रही थी।पीटर मारितज़बर्ग स्टेशन सामने था।
गाड़ी ठहरी।
तो टीटी ने उस काले आदमी को ट्रेन से उतार दिया। सामान फेंक दिया।
ट्रेन चल पड़ी।
मोहनदास करमचंद गांधी ट्रेन को गुजरते देखते रहे। फिर सामान समेटकर आगे बढ़े। वह अपमान, वह ठंडी रात, वह वीरान स्टेशन, वेटिंग रूम..
"मैं अपनी जान के लिए डरा हुआ था। उस अंधेरे वेटिंग रूम में गया।वहां एक गोरा भी था। मैं उससे डरा हुआ था।मेरा कर्तव्य क्या है??
मैंने पूछा अपने आपसे??क्या मैं भारत लौट जाऊं?? या मैं ईश्वर को अपने साथ,अपना सहायक जानकर आगे बढूँ,औऱ सामना करूं उसका जो किस्मत ने मेरे ललाट पर लिखा है?
मेरी सक्रिय अहिंसा, असहयोग का उस दिन जन्म हुआ"
सात जून 1893 की रात एक नए आदमी का जन्म हुआ।
महात्मा गांधी ने आगे कभी लिखा- आई वाज बोर्न इन इंडिया, बट आई वाज मेड इन साउथ अफ्रीका।वह दौर था, जब ब्रिटेन के राज में सूरज नही डूबता था। भारत उस राज का क्राउन ज्वेल था।
काले वकील ने वह ताज उतार लिया।
15 अगस्त 1947 में वह कहानी पूरी हुई, जिसकी शुरुआत 7 जून 1893 को पीटर मारितज़बर्ग स्टेशन से हुई थी।
वेटिंग रूम अब एक म्यूजियम है। गांधी की महक वहां ताजी है। उस मगरूर गोरे, उस घमंडी टिकट चेकर को कोई नही जानता।
लेकिन ट्रेन से उतारे गए उस काले वकील को दुनिया सलाम करती है। उनकी मूर्ति पीटर मारितज़बर्ग के स्टेशन पर आज भी लगी है। जब उनकी जन्मभूमि से ...
अकबर भी कम पढ़ालिखा था. मतलब अनपढ़ था....
ऐसा समझलो वर्तमान समय का चौथी पास राजा था....
उसने फर्जी डिग्री नहीं ली ...वह मानता था मैं अनपढ़ हूँ यह स्विकार भी करता था स्विकार करने के बाद कभी यह नहीं कहा मैंने एंटियरपालिटिकल साइंस की पढ़ाई की है...
उसने कभी असंभव होने वाले आविष्कारों से जनता को बेवकूफ भी नहीं बनाया
उसने कभी पूरे नहीं होने वाले वादे किए, नाहीं कभी नहीं पूरी होने वाली योजनाओं का शिलान्यास किया
उसके मंत्रिमंडल में सिर्फ 9 व्यक्ति थे जिनको नवरत्न कहता था हमेशा उनकी राय मानता था...
अपने आपको महान यशस्वी कभी नहीं कहा
कभी मैं मैं मैरा मैरा मुझे मुझे नहीं कहा यह कभी नहीं कहा मुझे महाराणा प्रताप ने 91 गालियाँ दी.
कभी खुद को नालायक, गंदी नाली का कीड़ा, गधा, कुत्ता, सांप , बिच्छू, सूवर इत्यादि नहीं बताया.
नही, साहित्य, भाषा औऱ धर्म की फिलॉसफी पर न जाइये। इसका पोलिटिकल मतलब क्या है??
दरअसल सम्विधान आपको धर्मान्तरण की छूट देता है। जो चाहे धर्म, मत, सम्प्रदाय का अनुकरण करें, अंगीकार करें। स्वेच्छा से अदलें बदलें, कोई रोकटोक नही।
कानूनी बैन इस बात पर है कि धोखे से, लालच देकर, आप किसी का धर्म नही बदलवा सकते। लालच देकर हिन्दू बनाना, डराकर मुसलमान बनाना, या चावल बोरी पैसा देकर क्रिश्चियन या सिख या पारसी बौद्ध बनाना, अपराध है।
मगर स्वेच्छा से तो बदला जा सकता है। ऐच्छिक धर्मान्तरण की इजाजत है।
जब से हिन्दू खतरे में आया है, धर्मान्तरण पर हड़बोंग है। मुस्लिम लड़के से ब्याह करे, तो लड़की मुसलमान हो जाएगी। लेकिन लड़की हिन्दू से ब्याह करे, तो भी लड़का ही मुसलमान बनेगा।
यह बड़ी आसानी से स्वीकार की जा चुकी धारणा है। यहीं से लव जिहाद की थ्योरी निकली है।
आपने कई तरह के पर्यटन के बारे में सुना तो होगा ही। लेकिन क्या आपने कभी "प्रेग्नेंसी टूरिज्म" नाम के बारे में सुना है? जी हां, आपने सही सुना।
और ये गर्भावस्था पर्यटन हमारे भारत देश के लद्दाख में हो रहा है। एक दावे के मुताबिक दुनिया में शुद्ध आर्य के जो कुछ समुदाय बचे रह गए हैं,
उनमें से एक है लद्दाख में बसा ब्रोकपा समुदाय।
लद्दाख लेह से लगभग 200 किमी दूर स्थित चार गांव धा, हनु, गारकॉन और दारचिक गर्भावस्था पर्यटन के लिए विदेशी महिला पर्यटकों में लोकप्रिय हैं। इन गांवों में ब्रोकपा/ब्राकपा की आबादी है जिसे आर्य जाति का सबसे शुद्ध नमूना माना जाता है।
ताजा रिसर्च में बताया गया है कि लद्दाख के क्षेत्र में बसा यह आदिवासी समूह ही आर्यनों की वास्तविक प्रजाति है। जर्मन वैज्ञानिक अरसे से उन पर शोध कर रहे हैं। वे शोध के लिए यहां के बाशिंदों के जेनेटिक मैटिरियल तक जर्मनी ले जा चुके हैं
सुनो रे किस्सा, Suno Re Kissa
"जो हया न करो, तो चाहे जो करो"
अमत्त बाबू, बैकुंठ प्रसाद का बात गाँठ बाँध लीजिये, कोई कहा है की जो हया न करिये,तो चाहे जो करिये, अरे कौन फिर लाज,सरम किसी की बहिन,महतारी रही, जितनी जल्दी मरे उतना बेहतर, दरोगा से डी-एस-पी का सफर
बिना मनों के योग, विशुद्ध सहयोग और सर्व कल्याण के बिना मृग मरीचिका से अधिक कुछ नहीं, ये जो धकाधक सिगरेट खींचते हैं न जी, समझिये की सब फिरंगी का देन है, अरे महाराज साजिश है, अपने यहाँ तो भाँग,धतूरा,अफीम और इस झंखुवा के हाथ का खींचा ताड़ी ही नसा रहा न,
अंगेज सब देसी नसा बैन कर दिया, और अफीम का स्मगलर खुद्दे बन बइठा, चीन को सप्लाई किया के नहीं, इतिहास साक्षी है जी, अब फिरंगी का सिगरेट पकड़ियेगा तो बिजनेस काहें छोड़ियेगा, कलेक्टरवा मरा जा रहा है दो परसेंट के लिये, दो परसेंट आप भी पकड़िये, अब डकैत फकैत तो सब लाल बत्ती
‘पूछेगी तो जरूर!’
‘तू कैसे जानता है कि उसे कफन न मिलेगा? तू मुझे चूतिया समझता है? साठ साल की उमर गान मराकर नही काटी? उसको कफ़न मिलेगा बरोबर कफन मिलेगा!और वैसे भी ऊपर वो हमसे कफन के विषय में नही बल्कि राहुल गांधी के विषय में पूछेगी।
नंदू को विश्वास न आया. बोला,‘कौन देगा? रुपये तो तुमने चट कर दिये. वह तो मुझसे पूछेगी. उसकी मांग में तो सेंदुर मैंने डाला था. कौन देगा, बताते क्यों नहीं?’
‘वही लोग देंगे, जिन्होंने अबकी दिया. हां, अबकी रुपये हमारे हाथ न आएंगे.’
‘ज्यों-ज्यों अंधेरा बढ़ता था और सितारों की
चमक तेज़ होती थी, मधुशाला की रौनक भी बढ़ती जाती थी. कोई गाता था, कोई डींग मारता था, कोई अपने संगी के गले लिपटा जाता था. कोई अपने दोस्त के मुंह में कुल्हड़ लगाये देता था.
वहां के वातावरण में सरूर था, हवा में नशा. कितने तो यहां आकर एक चुल्लू में मस्त हो जाते थे.