#धर्मसंसद
बी आर चोपड़ा जी को बहुत बहुत धन्यवाद जिनके सीरियल द्वारा महाभारत की कथा जन-जन तक पहुंच गई। आज महाभारत न पढ़ने न जानने वाले भी इसके मुख्य मुख्य पात्रों के विषय में जानते हैं। महर्षि वेदव्यास जी चारो वेदों के विभाजनकर्ता समस्त पुराणों के रचयिता श्रीमद्भागवत
और महाभारत के लेखक के रूप में विश्व विश्रुत हैं।काफी दिनों तक पश्चिमी विद्वानों को लगता था कि महाभारत युद्ध एक मिथक है।कवि की कल्पना की उड़ान है ऐसा कोई युद्ध कभी हुआ ही नहीं।ऐसी ही ग्रीक साहित्य में महाकवि होमर द्वारा लिखित काव्य इलियड के विषय में भी था क्योंकि
दोनों ही महाकाव्यों की कथावस्तु काफी कुछ मिलती-जुलती है। दोनों ही युद्ध नारी के सम्मान की रक्षा हेतु लड़े गए थे। पश्चिमी विद्वानों का भ्रम तब टूट गया जब जर्मन पुरातत्ववेत्ता हेनरिक श्लीमान तुर्की के समुद्र तट पर हिर्सालिक क्षेत्र में प्राचीन ट्राय नगर का उत्खनन
कर लिया। वहां एक अमूल्य कोश हाथ लगा जिसे "प्रियम कोश' कहते हैं। यही प्रियम इलियड के नायक पेरिस का पिता था। एक और भ्रांति भी दूर हो गई। पहले यूरोपीय विद्वान कहते थे कि महाभारत और कुछ नहीं बल्कि होमर के काव्य इलियड की नकल है। परंतु काल गणना यह। और कार्बन डेटिंग के आधार पर
ट्राय की सभ्यता 1194-1184 ईसा पूर्व पाई गई जबकि महाभारत का रचना काल।3174 ईसा पूर्व माना जाता है।इस प्रकार यह निश्चित रूप से कहा जाता है कि महाभारत युद्ध इलियड के पहले लड़ा गया था और इलियड और ओडिसी महाभारत की नकल मात्र है।अब आते वेदव्यास जी के जन्म पर तो आप सबने
बड़े विस्तार से जानकारी दिया है कि इनका जन्म निषादराज की कुमारी कन्या सत्यवती और ऋषि पाराशर के संसर्ग से हुआ था।इनका जन्म गंगा नदी के एक द्वीप पर हुआ था। सत्यवती ने लोकलाज के भय से द्वीप पर बालक व्यास को जन्म दिया पर ऋषि पाराशर ने अपने कर्तव्य का पालन किया।बालक
को अनाथ अवस्था में छोड़कर भाग नहीं गये बल्कि बालक के पालन-पोषण और शिक्षा की व्यवस्था किया। सबसे बड़ा काम यह किया कि बालक को अपना नाम दिया। लोगों को गर्व से कहा कि व्यास मेरा पुत्र है। आगे चलकर यह बालक वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बचपन का नाम कृष्ण था। ऐसा इसलिए क्योंकि
बालक व्यास का रंग काला था। द्वीप पर जन्म लेने के कारण इनका नाम कृष्ण द्वैपायन पड़ा। द्वापरयुग का समाज कितना उदार था इसका एक अप्रतिम उदाहरण वेदव्यास जी हैं।आगे चलकर चंद्रवंशी राजाओं की सामाजिक उदारता का वर्णन और इसके प्रभाव दुष्प्रभाव पर चर्चा होगी। इसलिए आज इतना ही धन्यवाद जय
क्षत्रियों राजस्थान के राजपूतों दुःखी मत होना। इतिहास की चोरी केवल तुम्हारे तक ही सीमित नहीं है बल्कि सार्वदेशिक है। उत्तर भारत में तो तुर्क मुगल आक्रांताओं ने सब कुछ नष्ट कर दिया। मंदिर किले महल बाद बगीचे सब कुछ मिटा दिया।शेष काम कट्टर कम्युनिस्ट मानसिक रूप से
मुस्लिम नेहरू ने कर डाला। एक के बाद एक पांच जेहादी मानसिकता वाले मजहबी लोगों को शिक्षा मंत्रालय सौंप दिया। भारतीय इतिहास परिषद कम्युनिस्टों को सौंप दिया जिन्होंने मूल इतिहास ही
गायब कर दिया और केवल मुगलों का इतिहास ही भारत का इतिहास बता दिया। दक्षिण भारत में तो
और भी बुरा हाल हुआ।चोल पल्लव चेर पांड्य चालुक्य राष्ट्रकूट वंश के विषय में आप कितना जानते हैं? इनके पूरे इतिहास के एक ही अध्याय में समाप्त कर दिया गया।
सोचिए कि राजराजेश्वर बृहदेश्वर मंदिर न होता तो आप क्या मानते कि राजराज चोल राजेंद्र चोल कौन थे।महामल्लपुरम के
सेंगोल और कांग्रेसी नेता
यह तो है घर कांग्रेस का खाला का घर नाहिं।
शीश(स्वाभिमान) उतारै भुइं धरै तब पइठै घर माहिं।
कांग्रेसी होने के लिए देशद्रोही होना अनिवार्य शर्त है और अगर वह हिंदू विरोधी है तो फिर क्या कहना।सोने पे सुहागा है। ऐसे ही एक नेता हैं जयराम रमेश
जनाब कर्नाटक से आते हैं और जाति गौरव क्षेत्र गौरव से विहीन हैं।इनका कहना है कि सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सेंगोल लार्ड माउंटबेटन को नहीं दिया गया था। यही तो अमेरिका में बैठकर राहुल गांधी ने भी कहा है कि नये संसद भवन में सेंगोल की स्थापना एक नाटक था पर
यह तो सभी कांग्रेसी नेता मानते हैं कि नेहरू को सेंगोल दिया गया था। पर यह नहीं बता पा रहे हैं कि इसे नेहरू को क्यों दिया गया था। पांच फुट की यह छड़ी नेहरू को टहलने के लिए तो नहीं ही दी गई थी जैसा कि बाद में दावा किया था।सेंगोल अगर नेहरू को नहीं दिया गया था तो यह
Secularism(धर्मनिरपेक्षता) क्या है?
सेक्युलरिज्म का अर्थ होता है कि राजनीति को धर्म से अलग रखा जाय। सरकार किसी धर्म पंथ संप्रदाय का fever(समर्थन) न करे और न ही विरोध। सामान्य जन के लिए सेक्युलरिज्म का अर्थ है सभी धर्मों का सम्मान करना किसी धर्म या संप्रदाय का
अंध समर्थन या अंध विरोध न करना। परंतु व्यावहारिक रूप में भारत में इसका अर्थ ही बदल दिया गया है या यों कहें कि उल्टा कर दिया गया है। यहां सरकारी सेक्युलरिज्म का अर्थ है हिंदुओं का विरोध ही नहीं बल्कि संभव हो तो दमन करना। एक अब्राहमिक मजहब का समर्थन देना उसे वोट बैंक के लिए
बढ़ावा देना ही सेक्युलर है। व्यक्तिगत रूप से तो इसका मतलब और भी भयंकर होता है। यहां सेक्युलर का अर्थ है हिंदुओं का विरोध करना उन्हें गालियां देना। उनके धर्म ग्रंथों प्रतीकों देवी-देवताओं के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करना ही सेक्युलरिज्म माना जाता है।इसी
भारत की न्याय व्यवस्था क्या स्वतंत्र है? इसका उत्तर है नहीं। इसीलिए तो वकील अश्विनी उपाध्याय लगातार मांग कर रहे हैं कि अंग्रेजों के बनाए हुए कानूनों को बदलना ही नहीं बल्कि कुछ को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। भारत के संविधान में अधिकतर दूसरे देशों का कापी पेस्ट
अधिक है। इंग्लैंड से आयरलैंड के संविधान की नकल अधिक की गई है। संविधान हूबहू इंग्लैंड के वेस्ट मिनिस्टर संविधान की भोंडी नकल है। विशेषकर भारतीय संविधान की दंड संहितामें जिसे IPC इंडियन पीनल कोड कहते हैं एकदम से ब्रिटिश सरकार के इंडियन पीनल कोड 1861 के सारे प्रावधान
जस के तस रखे गए हैं। आज़ भी न्याय व्यवस्था आईपीसी1861 से संचालित होती है। इसके लिए न्यायिक सुधार आयोग गठित किया गया था। आयोग ने रिपोर्ट दे दिया था पर अफसोस कि किसी भी सरकार ने उसे लागू करवाने की हिम्मत नहीं जुटाई। वह रिपोर्ट आज भी कहीं विधि मंत्रालय की
कहा जाता है कि किसी सभ्यता को नष्ट करने के लिए उसके प्रतीकों को नष्ट करना आवश्यक होता है। नष्ट न भी करो तो कम से कम उसे विकृत ही कर दो। प्रभास की आनेवाली फिल्म आदि पुरुष ऐसा ही एक भोंडा प्रयास है। हनुमानजी की दाढ़ी तो पर मूंछें गायब हैं। वानरों भालुओं को
वास्तविक रूप में न दिखाकर गुरिल्ला सेना बताना क्या आपको हास्यास्पद नहीं लगता? मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की।पहला ट्रेलर देखते ही लोग उबल पड़े थे। तब निर्माता निर्देशक ने कहा था कि संशोधन करेंगे। परंतु संशोधन के नाम पर फिर वही लीपापोती की गई है।बची खुची कसर
पूरी कर दिया सीता का रोल निभाने वाली कृति शैनन ने। प्रोमोशन करते समय इसके निर्देशक ने कृति शैनन को बालाजी मंदिर प्रांगण में सीता की भूमिका निभाने वाली कृति शैनन को सार्वजनिक रूप से चूम करके पूरी कर दिया। धार्मिक फिल्मों का कबाड़ा करना कोई इस आदि पुरुष के निर्माता निर्देशक
इस नये कल्चर को क्या कहा जाए सूरत न सीरत।पा गया मूरत।कल मुंबई में एक नर पिशाच पकड़ा गया है मनोज साने नामक इस शैतान न तीन साल से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही सरस्वती वैद्या की निर्मम तरीके से हत्या कर दिया था। पता नहीं क्यों क्यों लड़कियों को समझ में नहीं आता कि
इस तरह का संबंध न तो सामाजिक रूप से मान्य है और न ही सुरक्षित होता है।उस मृत महिला ने इस प्रेत जैसे आदमी में क्या देखा जो इस पर मर मिटी। उसके माता-पिता भी कम दोषी नहीं हैं जिन्होंने इस महिला को समझाने की कोशिश नहीं की और न ही ध्यान रखा कि उनकी लड़की क्या कर रही है
लिव इन रिलेशन पश्चिमी सभ्यता की नकल जो अब हमारे देश में भी बढ़ रही है। संयुक्त परिवार का टूटना माइक्रो फेमिली की अवधारणा समाज को पता नहीं किस गर्त में ले जा रही है। शहरों में यह फैशन हो गया है जिसे गांवों में रखैल रखना कहते हैं। समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है