स्त्री ने कभी यह घोषणा ही नहीं की कि
मेरे पास भी आत्मा है ।
वह चुपचाप पुरूष के पीछे चल पड़ती है ।
युधिष्ठिर जैसा अद्भुत आदमी
द्रौपदी को जुए में दाँव पर लगा देता है !
फिर भी कोई यह नहीं कहता कि
हम कभी युधिष्ठिर को धर्मराज नहीं कहेंगे ।
नहीं, कोई यह नहीं कहता !
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बल्कि कोई कहेगा तो हम कहेंगे कि
अधार्मिक आदमी है ।
नास्तिक आदमी है, इसक़ी बात मत सुनो !
स्त्री को जुए पर, दाँव पर लगाया जा सकता है,
क्योंकि भारत में स्त्री सम्पदा है, सम्पत्ति है ।
हम हमेशा से कहते रहें हैं, स्त्री सम्पत्ति है और
इसीलिए तो पति को स्वामी कहते हैं ।
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स्वामी का मतलब आप समझते हैं, क्या होता है ?
अगर हिन्दुस्तान की स्त्री में
थोड़ी भी अक्ल होती तो एक—एक शब्द से उसे
‘#स्वामी’ निकाल बाहर कर देना चाहिए ।
कोई पुरुष कोई स्त्री का स्वामी नहीं हो सकता
स्वामी का क्या मतलब होता है ?
स्त्री दस्तखत कर देती है अपनी चिट्ठी में
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‘ #आपकी_दासी ’
और पति देव बहुत प्रसन्न हो कर पढ़ते हैं ।
बड़े आनन्दित होते हैं कि बड़ी प्रेम की बात लिखी है ।लेकिन इसका पता है कि
स्वामी और दास में कभी प्रेम नहीं हो सकता ।
प्रेम की सम्भावना समान तल पर हो सकती है
स्वामी और दास में क्या प्रेम हो सकता है ?
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इसलिए हिन्दुस्तान में
प्रेम की सम्भावना ही समाप्त हो गयी ।
हिन्दुस्तान में स्त्रीपुरुष साथ रह रहे हैं और
साथ रहने को प्रेम समझ रहे हैं !वह प्रेम नहीं है
हिन्दुस्तान में प्रेम का सरासर धोखा है साथ रहना भर प्रेम नहीं है किसी तरह कलह कर के 24 घण्टे गुजार देना,प्रेम नहीं है ।
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ज़िन्दगी गुजार देनी प्रेम नहीं है ।
प्रेम की पुलक और है ।
प्रेम की प्रार्थना और है ।
प्रेम की सुगन्ध और है ।
प्रेम का सँगीत और है ।
लेकिन वह कहीं भी नहीं !
असल में गुलाम और दास में,
मालिक में और स्वामी में,
कोई प्रेम नहीं हो सकता ।
लेकिन हमारे खयाल में नहीं है यह बात कि
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पूरब की स्त्री नेहु विशेष कर भारत की स्त्री ने
अपनी आत्मा का अधिकार ही स्वीकार नहीं किया है ।
आत्मा की आवाज भी नहीं दी है ।
उसने हिम्मत भी नहीं जुटायी कि
वह कह सके कि ‘#मैं_भी_हूँ !
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प्यार बस कम्फर्ट लेवल है --
" प्यार तो बहुत है तुमसे और हमेशा रहेगा पर फैमिली प्रेशर है और जिम्मेदारीया बहुत है जान ..."
ऐसा कहकर सो कोल्ड " जान " बोलकर जाने वाले,,
तो जाने दो ना , कुछ नहीं रखा किसी बहस में।इस दुनिया में किसी का भी प्यार तभी तक है ,
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जब तक किसी भी इंसान का कम्फर्ट लेबल डिस्टर्ब नहीं होता..!
अब वो कम्फर्ट लेवल चाहे एक साथ एक घर में रहना हो, एक बिज़नेस हो, एक परिवार हो , नौकरी हो, समाज हो, जात हो, या सोच हो , खून का रिश्ता हो या दिल का रिश्ता हो या कुछ भी हो..!
और इस कम्फर्ट लेवल की भेंट हर तरह का
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प्यार चढ़ता है फिर चाहे वो पिता का हो, पति का हो, प्रेमी का जानू , जान , जाना वाला प्यार हो। बेटी का हो, मां का हो, भाई का हो, दोस्त का हो किसी का भी प्यार हो जब तक कम्फर्ट लेवल बना है,प्यार बना रहेगा..!
कम्फर्ट लेवल मानसिक,शारीरिक , सामाजिक,पारिवारिक और अंत में ज़मीर,
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रात के 1:30 बजे फोन आता है, बेटा फोन उठाता है तो माँ बोलती है-
"जन्म दिन मुबारक लल्ला"
बेटा गुस्सा हो जाता है और माँ से कहता है -
सुबह फोन करतीं, इतनी रात को नींद खराब क्यों की? कह कर फोन रख देता है।
थोडी देर बाद पिता का फोन आता है।
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बेटा पिता पर गुस्सा नहीं करता बल्कि कहता है- सुबह फोन करते
फिर पिता ने कहा - मैनें तुम्हें इसलिए फोन किया है कि "तुम्हारी माँ पागल है" जो तुम्हें इतनी रात को फोन किया। वो तो आज से 25 साल पहले ही पागल हो गई थी।
जब उसे डॉक्टर ने ऑपरेशन करने को कहा और उसने मना किया था।
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वो मरने के लिए तैयार हो गई पर ऑपरेशन नहीं करवाया।
रात के 1:30 बजे को तुम्हारा जन्म हुआ। शाम 6 बजे से रात 1:30 तक वो प्रसव पीड़ा से परेशान थी। लेकिन तुम्हारा जन्म होते ही वो सारी पीड़ा भूल गयी। उसके ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।
तुम्हारे जन्म से पहले डॉक्टर ने दस्तखत करवाये थे
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नर मादा के गहरे मिलन से ही अस्तित्व सम्भव है !!
सोचें ज़रा !
क्या बिना गहरे के,
बिना गहरे सम्भोग के,
किसी का जन्म सम्भव है ?
राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध,
कबीर, नानक, मोहम्मद
कैसे पैदा हुए ?
इनके माँ-बाप का मिलन,
केवल वासना मात्र नहीं था !
वो था एक अद्भुत प्रेम मिलन !
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आज के बच्चे बिना प्रेम के पैदा हो रहे हैं !
हर स्त्री पुरुष एक दूसरे को सेक्स की मशीन समझ रहे हैं ।जब तक दोनों में प्रेम पैदा नहीं होगा, तब तक सिर्फ शारीरिक मिलन ही सम्भव है ।
जब तक वासना रहेगी
तब तक प्रेम पूर्वक मिलन हो ही नहीं सकता ।
और जहाँ प्रेम नहीं वहाँ कैसे उम्मीद
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कर सकते हैं कि
फिर से राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, कबीर, नानक,
मोहम्मद पैदा होंगे !
उलटा इससे बुद्धू जरूर पैदा होंगे !
तभी तो बच्चे मानसिक रूप से बीमार, अपङ्ग,
पागल पैदा हो रहे हैं ।
अगर अभी भी सेक्स पर ध्यान नहीं दिया गया
तो 21 वीं सदी के अन्त तक दुनिया में
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क्या प्यार में सेक्स करना जरूरी है?
ये एक ऐसा विषय है, जिस पर सभी लोगो की अलग अलग राय है।कुछ लोग सही मानते हैं तो कुछ लोग गलत
आज इस विषय पर बात करूंगा,मगर उससे पहले सेक्स के अलग अलग भाव पर बात करूंगा
सेक्स,हवस और वासना तीनों एक जैसे होने के बावजूद भी तीनों एक दूसरे से अलग है 1/2
वासना और हवस:-ये सेक्स का वो मानसिक विकृति है जो ना तो नर-नारी, पशु-पक्षी, छोटे-बड़े आदि मे भेद नहीं करता जब ये विकृति मन में सवार होती है तो वासना से ग्रसित इंसान किसी के साथ कुकृत्य कर देता है
सामने वाले के इच्छा के विरूद्ध उसके साथ जोड़ जबरदस्ती कर सामने वाले का शारीरिक और
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मानसिक रूप से क्षति पहुंचाता है।
सीधे शब्दों में कहूं तो जिसके अंदर हवस और वासना पाई जाती है, वो जानवर होते हैं और उन्हें प्रेम से कोई लेना देना नहीं होता है।
वहीं सेक्स कि बात करूं तो ये दो लोगों की रजामंदी से किया जाने वाला वो सुख है, जिसे न पाने वाला अतृप्त रहता है। ये
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#बेटियाँ ....
एक गर्भवती स्त्री ने अपने पति से कहा, "आप क्या आशा करते हैं लडका होगा या लडकी ...?"
पति-"अगर हमारा लड़का होता है, तो मैं उसे गणित पढाऊगा, हम खेलने जाएंगे, मैं उसे मछली पकडना सिखाऊगा ...!"
पत्नी - "अगर लड़की हुई तो ...?"
पति- "अगर हमारी लड़की होगी तो, मुझे उसे
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कुछ सिखाने की जरूरत ही नही होगी ...!"
"क्योंकि, उन सभी में से एक होगी जो सब कुछ मुझे दोबारा सिखाएगी, कैसे पहनना, कैसे खाना, क्या कहना या नही कहना ....!"
"एक तरह से वो, मेरी दूसरी मां होगी ...!
वो मुझे अपना हीरो समझेगी, चाहे मैं उसके लिए कुछ खास करू या ना करू ...!"
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जब भी मै उसे किसी चीज़ के लिए मना करूंगा तो मुझे समझेगी ! वो हमेशा अपने पति की मुझ से तुलना करेगी ...!"
"यह मायने नही रखता कि वह कितने भी साल की हो पर वो हमेशा चाहेगी की मै उसे अपनी baby doll की तरह प्यार करूं ...!"
"वो मेरे लिए संसार से लडेगी, जब कोई मुझे दुःख देगा वो उसे
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