#धर्मसंसद
आज के प्रश्न का उत्तर तो आप सबने पढ़ा ही होगा। हमारे विद्वान लेखकों ने बहुत शोध करके विस्तार से जानकारी दिया है।राजा शांतनु का विवाह अब तक की सबसे बड़ी दुर्घटना रही जिसका दुष्परिणाम युगों युगों तक पीढ़ी दर पीढ़ी भोगना पड़ रहा है। इस एक विवाह ने महाभारत
युद्ध की पटकथा लिख दिया। भारत में दो ही राजवंश पौराणिक काल से अर्थात सतयुग से द्वापरयुग तक प्रसिद्ध रहे हैं सूर्य वंश और चंद्र वंश। दोनों में नैतिकता के पैमाने पर भिन्न मापदंड माना जाता है। जहां एक ओर सूर्य वंशी राजा विवाह करते समय कुल की मर्यादा का ध्यान रखते थे
विवाह सजातीय होते थे। वहीं दूसरी ओर चंद्र वंशी राजा इस मामले में उदार हुआ करते थे। बहुधा अंतर्जातीय विवाह कर लेते थे जिससे वर्णंसंकर संताने पैदा हो जाती थी। चंद्र वंश शादी विवाह के मामले में वर्जनाहीन होता था। इस वंश का संस्थापक ही कहें तो वर्णंसंकर था जो क्षत्रिय
पिता चंद्रमा और ब्राह्मण महिला तारा की अवैध संतान था। पीढ़ी दर पीढ़ी यह दोष बढ़ता चला गया। पुरुरवा ने एक अप्सरा उर्वशी से विवाह किया तो उनके पौत्र ययाति ने क्षत्रिय होते हुए दो के दोनों ही विवाह अंतर्जातीय किया जिसमें एक देवयानी ब्राह्मण शुक्राचार्य की पुत्री
और दूसरी असुर राज बृषवर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा के साथ किया जिसके पुत्र पुरु ने चंद्र वंश की नींव डाली थी।आगे चलकर यही काम इस वंश में एक और राजा दुष्यंत ने किया। यह जानने के बाद भी कि शकुंतला महर्षि कण्व की पालित पुत्री जिसके कुल गोत्र का अता-पता नहीं है ऋषि की
अनुपस्थिति में विवाह कर लिया। कण्व ऋषि के आने तक की प्रतीक्षा नहीं किया। इस तरह के विवाह संबंध तब सामाजिक रूप से मान्य थे क्योंकि द्वापरकालीन समाज उदार था। यद्यपि इस उदारता से समाज की हानि अधिक हुई और लाभ कम। महाभारत कथा लंबे समय तक चलने वाली है इसलिए इसके प्रश्नों
का एडवांस में उत्तर मत दिया करें। उत्तर को घटना विशेष तक ही सीमित रखें।कहा जाता है जो कथा महाभारत में नहीं है वह कहीं नहीं है। धैर्य रखें।नित नई जानकारी मिलती रहेगी। बीच-बीच में घटनाओं की पृष्ठभूमि और प्रभाव की समीक्षा भी होती रहेगी।आप क्या मानते हैं कि सचमुच
द्वापरकालीन समाज अत्यंत उदार था। नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। राजा शांतनु चंद्रवंशी राजा थे और सत्यवती एक निषाद कन्या।भले ही कुरु वंश के भय से समाज में किसी ने इस पर उंगली उठाने का प्रयास या साहस नहीं किया पर महान कुरु साम्राज्य की कुल प्रतिष्ठा धूलि धूसरति हो गई
तत्कालीन राज समाज ने इस साम्राज्य का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। शांतनु और सत्यवती के पुत्र विचित्र वीर्य को कोई राजा अपनी कन्या देने के लिए तैयार नहीं हुआ क्योंकि विचित्र वीर्य को मल्लाहिन का पुत्र कहा जाता था।इसी कारण इनके बड़े भाई भीष्म को काशीराज शैव्य की तीन
कन्याओं अम्बा अम्बिका और अम्बालिका का अपहरण करना पड़ा। इससे कुल की मर्यादा पर दाग लग गया और भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण भी बन गया।समय समय पर और भी समीक्षाएं होती रहेंगी। आज के लिए बस इतना ही। धन्यवाद जय
अगर आपसे पूछा जाए कि बज्जि स़ंघ क्या था तो उत्तर नहीं दे पाएंगे क्योंकि आपको इसके विषय में बताया ही नहीं गया है। संकेत में राष्ट्रवादी तो कहते ही हैं पर मजबूरी में कांग्रेसी भी कहते हैं भारत लोकतंत्र की जननी है। विश्व का सबसे पहला लोकतंत्र भारत में ही था पर नाम
नहीं जानते होंगे ।जी हां इस गौरवशाली गणतंत्र का नाम है वैशाली गणराज्य।इसे लिच्छवी गणराज्य भी कहते हैं क्योंकि 8
गणराज्यों के संघ का मुख्य राज्य लिच्छवी गणराज्य ही था। वैशाली गणराज्य वास्तव में आठ राज्यों का समूह था जिसे बज्जि स़ंघ या बज्जिका कहते थे।आठ राज्यों
का नाम इस प्रकार है।
१- वैशाली के लिच्छवी
२- कपिलवस्तु के शाक्य
३- कुशीनारा (वर्तमान में कुशीनगर के मल्ल)
४- कुंडिग्राम के ज्ञात्रिक
५- रामग्राम के कोलिय
६- सुंसुमारगिरि के मार्ग
७- पिप्पलीवन के मोरिय
८- मिथिला के विदेह जिनकी राजधानी जनकपुर वर्तमान में नेपाल में है।
मनुज बली नहिं होत है समय होत बलवान।ये क्या हो गया देखते-देखते।जो मुख्तार अंसारी खुली जीप में एके सैंतालीस लेकर मऊ की सड़कों पर घूम घूमकर दंगा करवाता था आज वही ह्वील चेयर पर बैठकर जान की भीख मांग रहा है। जिस हरिओम राय को उनके ही बाग में से आम नहीं तोड़ने देता था
अफजाल अंसारी आज उसी हरिओम राय ने पूरे बाग की नीलामी अपने नाम कर लिया। अतीक अहमद और अशरफ जैसे गुंडे जिनके पेशाब से इलाहाबाद में दिया जलता था दुनिया से चले गए।काली कमाई का साम्राज्य मिट्टी में मिल चुका है। जिस आजम खान की रामपुर में ही नहीं बल्कि पूरे पश्चिमी यूपी
में तूती बोलती थी,जो रामपुर के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को जूते की नोक पर रखता था वह आज रो रहा है।सारी अकड़ हवा में उड़ गई। मुन्ना बजरंगी और संजीव जीवा का आतंक खत्म हो गया। जहां शहरों सूर्यास्त में ही बाजार बंद हो जाते थे आज देर रात तक खुले रहते हैं। फिरौती
कहां राजा भोज कहां गंगू तेली।जानते हैं कि यह कहावत क्यों बनी है। लड़ते भिड़ते मातृभूमि की और सनातन हिन्दू धर्म की रक्षा करते हुए जब देश में क्षत्रियों की संख्या कम हो गई तो समाज चिंतित हो उठा कि इस संक्रमण काल में अरब की ओर से टिड्डी दल की विधर्मी सेनाएं जब कि
चढ़ी आ रही हैं तो मुठ्ठी भर बचे राजपूत क्या करेंगे।इसी समाज के जागरूक लोगों की सहायता से आबू पर्वत की ब्राह्मणों ने एक यज्ञ किया और घोषणा की गई जो भी क्षत्रिय धर्म पालन की क्षमता रखता हो आगे आए।उसे क्षत्रिय जाति में
दीक्षित किया जाएगा।जो भी लोग आए उन्हें चार कुल
में बांटकर क्षत्रिय बना दिया गया। यह चार कुल थे चालुक्य इन्हें गुजरात के सोलंकी भी कहते हैं,
शाकंभरी के चौहान मालवा के परमार और कन्नौज के प्रतिहार। मालवा के परमार राजाओं की राजधानी धारा नगरी थी जिसे आज कल जिला धार कहते हैं। इसमें सबसे प्रतापी राजा भोज हुए। राजा
धृतराष्ट्र द्वापरयुग में ही नहीं होते बल्कि आज भी पाए जाते हैं। बातें भले ही लंबी लंबी और ऊंचे आदर्श वाली की जाय जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है। आमतौर पर क्षेत्रीय दलों का एक अघोषित नियम हो गया है जहां बात समानता बंधुत्व समाजवाद की होती है।कहा जाता है कि हर कार्यकर्ता
अपने परिश्रम से आगे बढ़कर पार्टी के शीर्ष पद तक पहुंच सकता है पर हकीकत में ऐसा होता नहीं।जद यू अन्ना डीएमके बीजू जनता दल को छोड़ दें तो बाकी सबकी एक जैसी हालत है यहां यह मान लिया जाता है कि पार्टी संस्थापक के परिवार से ही कोई अध्यक्ष रहेगा तभी पार्टी रहेगी और आगे
चलेगी भी।इन का रोल मॉडल कांग्रेस पार्टी है जहां यह मान लिया गया है कि बिना नेहरू गांधी परिवार के पार्टी जीवित नहीं रह सकती। सोनिया गांधी लगातार २३ वर्षों तक कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बनी रहीं। लोकतंत्र के इतिहास में यह एक रिकॉर्ड है कि कोई एक व्यक्ति एक बड़ी और
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वैसे तो आज के प्रश्न का बड़ा विस्तार से उत्तर नीलम मिश्रा शशिबाला राय राधिका प्रेरक ने दे ही दिया है इसलिए उत्तर देने की जरूरत नहीं है। फिर भी आप लोग पता नहीं क्यों मेरे उत्तर की प्रतीक्षा करते हैं जबकि मैं बता चुका हूं कि अपने लेखकों की अपेक्षा मैं कम
ज्ञानी हूं। आज तो नीलम ने यदुकुल की पूरी श्रृंखला ही लिख दिया। शशिबाला राय का तो कहना ही क्या। भावपूर्ण वर्णन करने में सिद्धहस्त हैं। सरस्वती की मानस पुत्री हैं। शोधकर्ता की तरह लेख लिखना कोई प्रेरक अग्रवाल से सीखे। मैं भी इतना विस्तार से और लय ताल से नहीं लिख सकता
जैसा कि राधिका ने कहा है यदुकुल की व्याख्या दो तरह की की जाती है। एक तो महाभारत के अनुसार जिसमें राजा ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु के दूसरे ऋग्वेद में वर्णित दाशराज्ञ युद्ध के पंचजन यदु पुरु तुर्वसु अनु और द्रुह्यु के रूप में। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार महाभारत
शर्म और रोटी का संबंध।
सबेरे सबेरे चाय पीते हुए ड्राइंग रूम जिसे गांव में बैठका कहा जाता है अखबार पढ़ रहा था कि कानों में आवाज आई आम ले लो। सस्ते में दशहरी आम ले लो। बाहर निकल कर देखा तो एक बीस बाइस वर्षीय युवक साइकिल पर पके आम का कार्टून लिए आवाज दे रहा था।
चेहरा कुछ जाना-पहचाना लगा। पूछा कि तुम अमुक के लड़के हो? जबाव मिला हां। फिर मेरे मुंह से अकस्मात निकल पड़ा तुम ब्राह्मण होकर खटिकों वाला काम कर रहे हो शर्म नहीं आती? उसके उत्तर ने मुझे हतप्रभ कर दिया। उसने कहा कि पंडित जी शर्म से रोटी नहीं मिलती और रोटी के कर्म
करना पड़ता है। मैंने कहा फिर तो कोई और काम क्यों नहीं ढूंढ लिया। कहा कि पंडित जी बहुत ढूंढा था पर कौन गरीब ब्राह्मण की मदद करता। बिरादरी का हाल तो जानते हैं न कि अगर कोई व्यक्ति किसी ऊंची जगह पहुंच गया तो जाति बिरादरी को सबसे पहले भूल जाता है जबकि अन्य जातियों