बेटी को IFS बनना है..
ऐसे सपने का इन्सेप्शन, बीवी उसके दिमाग मे कर रही है। मुझसे भी योगदान करने की अपेक्षा की। भोजन की मेज पर बात शुरू हुई।
बेटी यूएन में रिप्रेजेंट करना कितना अच्छा लगेगा। फॉरेन में रहोगे, लैविश लाइफ स्टाइल, एम्बेसडर बन जाना.. ओपनिंग लाइन बीवी ने दी।
आगे मेरा मैदान था।
UPSC में टॉप के 10-12 सलेक्शन को विदेश सेवा मिल सकती है, यदि वैसा प्रिफरेंस दिया ह। इसके बाद ट्रेनिंग होती है। जैसे IAS मसूरी में और IPS हैदराबाद में होती है, IFS ट्रेनिंग दिल्ली में होती है।
आप भारतीय इतिहास, कल्चर, भारत की विदेश नीति के मुख्य टर्निंग पॉइंट, उसके स्टैंड और रेशनल को समझते है। फिर एक फॉरेन लैंग्वेज सीखनी होती है। पसर्नलिटी महत्वपूर्ण है।
बात, भाषा, वाइन पीना, ड्रेसिंग, कनवरेशन, जैसी चीजें होती है। उसके बाद प्रोबेशन पर साल भर के लिए विदेश
भेजा जाता है। लौटकर आप MEA में थर्ड सेक्रेटरी बनते है। प्रमोशन पर सेकेंड सेक्रेटरी, फर्स्ट सेक्रेटरी, काउंसलर, एम्बेसडर, फॉरेन सेक्रेट्री तक जा सकते हैं।
पोस्टिंग, कैरियर मे 60 प्रतिशत दिल्ली 40 प्रतिशत फॉरेन कैपीटल होती है।
कैडर की तरह डिवीजन होते है। जैसे EU, इंडो
पैसिफिक एंड आसियान डिवीजन आदि आदि। आपने स्पेनिश सीखा तो साउथ अमेरिका के देश वाला डिवीजन मिलने की संभावना है। चीनी सीखा तो आसियान और ईस्ट एशिया...
आप अमूमन अपने करियर में वही डेस्क देखेंगे, वहीं पोस्टिंग मिलेगी। उसी डिवीजन में थर्ड, सेकेंड, फर्स्ट सेक्रेटरी बनेंगे।
अब सोचो बेटा- जाम्बिया के एम्बेसडर बन गए तो। फिजी में पटक दिया तो?? और न सोचो कि UPSC रैंकिंग से बात बनेगी। वैकेंसी किधर है, वो डिसाइड करेगा। और वैकेंसी तो सड़ियल देशों में अधिक होगी।
आधी जिंदगी दिल्ली में जाम्बिया से आई रिपोर्ट को पढ़ते, चिट्ठी बनाते बीतेगी।
जब किसी देश मे पोस्टिंग रहेगी, तो वहां टूरिस्ट की तरह, या आम जिंदगी नही बिता सकते। घेरे में रहना है, और घेरे से बताकर निकलना है।
आपके एक एक कदम पर इंटेलिजेंस की नजर हो सकती है।
नो प्राइवेसी... ग्लोरिफाइड जेल..
- तुम तो केवल नेगेटिव बात करो। जबरन का ज्ञान- अरे, कभी
कुछ पॉजिटीव भी बता दो।
- पॉजिटिव है- मैनें कहा..जब आप किसी देश मे है, आप भारत के प्रतिनिधि है। दरअसल आप ही भारत हैं।
जब ओलंपिक मेडल कोई खिलाड़ी जीतता है, तो उसकी वजह से देश का झण्डा ऊंचा होता है। मजबूत से मजबूत शख्स को विव्हल होते देखा है।
देश को रिप्रेजेंट करना, एक क्षण के लिए ही सही, इंसानी जीवन की इससे बड़ी उपलब्धि क्या हो सकती है ??
-तो ये बात पहले नही बोल सकते थे??
-बोल सकता था !! मगर तुम्हारी बात शुरू हुई थी लैविश लाइफस्टाइल और विदेश भ्रमण के मजे से।
ये पाने के हजार दूसरे तरीके हैं। एक गिलास दूध पीने के लिए भैस नही पाली जाती। तब ये जान लेना जरूरी है, कि उसके गोबर उठाने पड़ेंगे, चारा काटना पड़ेगा। उसके भोजन पानी, रहवास का भी इंतजाम सोचना पड़ेगा।
आप भैस की सेवा करना चाहते है, तो दूध भी अवश्य मिलेगा।
काम, कॅरियर पैसे और लाइफस्टाइल के लिए चूज नही किये जाते। इसलिए चूज किये जायें की आप वो काम करना चाहते हैं।
शिक्षक बनकर बच्चे गढ़ना चाहते है, डॉक्टर बनकर लोगो की बीमारियों में राहत देना चाहते है। या IFS बनकर देश को डिप्लोमेटिक ऊंचाई देना चाहते है??
पर्पज इंपोर्टेन्ट है।
करियर का, योग्यता का, पद का आप अल्टीमेटली क्या उपयोग करेंगे, वह आपका पर्पज तय करेगा।
मेरी बात खत्म हुई। बीवी अभी भी कन्विंस न थी, पर शायद बेटी समझ गयी। मैं यह नही चाहता कि वह किसी दिन प्रधानमंत्री बने..
तो विदेशी हेड ऑफ गवर्नमेंट से कहे- मेरे दोस्त को अपने यहां दो खदान, एक पोर्ट और 3 पावर प्लांट खुलवा दो।
कल तीन रैलियाँ हुईं। विश्व गुरु की शान बढ़ाने वाली रैली गोंडा में उनके प्रिय बृजभूषण ने की।
उन महिला पहलवानों को बता दिया कि उनका शोषण और उत्पीड़न सांस्कृतिक अधिकार है। सांसद जी को कई-कई मीटर लंबी फूलमालाएं पहनाकर जनता को उनका जैसा बनने का संदेश दिया गया।
एक रैली कांग्रेस के सचिन पायलट ने दौसा में इस दावे के साथ बुलाई कि वह “कमजोर नहीं हैं, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते रहेंगे।” दरअसल उनका असली निशाना तो अशोक गहलोत और उनकी कुर्सी है। यह रैली पार्टी को धमकी के तौर पर भी देखी जानी चाहिए।
एक और रैली लोकपाल के लिए मर-मिटने को उतरे अन्ना का झोला-लोटा लेकर नमूदार हुए केजरीवाल ने दिल्ली में आयोजित की। इसका आयोजन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर अध्यादेश के विरोध में किया गया। इस रैली का वास्तविक उद्देश्य केजरीवाल ब्रांड को मज़बूत बनाना है।
ब्रिटिश मिलिट्री अफसर- गिलगित स्काउट का कमांडर. ..
ऊपरी कश्मीर, जिसे हम गिलगित बाल्टिस्तान कहते हैं, पाकिस्तान ने इंडिया या कश्मीर राजा से लड़कर नही जीता।
और न नेहरू ने गिफ्ट क़िया। इसे पाकिस्तान को गिफ्ट करने वाला यह बन्दा था- मेजर विलियम ब्राउन
गिलगित ,ब्रिटिश ने हरिसिंह से 30 साल के लिए लीज पर लिया था। 1930 की लीज 1960 में समाप्त होती, 1947 में खत्म कर दी गयी।
तो राजा का डेलिगेशन, गिलगित गया, प्रशासन का चार्ज लेने को। साथ मे गए कुछ राजा के सिपाही।
जी राजा के सिपाही .. सिपाही याने ठुल्ले याने पुलिसवाले....।
नॉट किंग्स "आर्मी.."
रजवाड़ो को "आर्मी" रखने की इजाजत नही थी। सहायक सन्धि, सब्सिडरी ट्रीटी.?? सेना नही रखना है, हम सुरक्षा गारन्टी लेंगे, रेजिडेंट रखेंगे, अंग्रेजो की राजाओ से सहायक सन्धि??? लार्ड वेलेजली-कुछ याद आया??
ओके। तो राजा की आर्मी नही थी। मुट्ठी भर पुलिसवालों
एक बुढ़िया अम्मा ने हाथ आटा चक्की टांचने वाले कारीगर को बुलाया।
देख भाई चक्की टांचना जानता तो है ना ?...ये पड़ी चक्की इसे ठीक कर दे, बस आज लायक दलिया बचा है, वो चूल्हे पर चढ़ा दिया है, तू इसे ठीक कर, मैं तब तक कुए से मटकी भर लाती हूँ।
ठीक है अम्मा चिंता मत कर मेरी कारीगरी के 7 गाँवों में चर्चे हैं, चक्की ऐसी टांचूंगा कि आटा पीसेगी और मैदा निकलेगी। चूल्हे पर चढ़ा तेरा दलिया भी सम्भाल लूंगा।
बुढ़िया आश्वस्त हो कुंए की तरफ पानी भरने निकल ली और कारीगर चक्की की टंचाई करने लगा।
हत्थे से निकल कर हथौड़ी उछल चूल्हे के ऊपर लटकी घी की बिलौनी पर लगी, घी सहित बिलौनी चूल्हे पर चढ़ी दलिये की हांडी पर गिरी।
कारीगर हड़बड़ा गया और हड़बड़ाहट में चक्की का पाट भी टूट गया। कुछ समझ में आता, उससे पहले चूल्हे पर बिखर गए घी से लपटें उछली और फूस की छान/छत ने आग पकड़ ली
देश की जनता से माफी के साथ एक परिचित कहावत को आप से पुनः याद दिलाना चाहता हू।
"लोभी के गांव मे,ठग कभी उपवास नही करता भले ही गांव के लोग आधा पेट खाकर सोते हो"
भाजपा की मोदी सरकार ने सपनो का सौदागर बन,पहले सपने बेचे,फिर धार्मिक उन्माद फैलाकर तफरत की खेती की,नोट वंदी और GST कर
मनमाने ढंग से लगाकर किसान मजदूर छोटे व्यापारीऔर मध्यवर्ग से धन लूट कर दो तीन धन्नाराम को विश्व के सबसे बडे धन्नपतियो की सूची मे स्थापित कर दिया।
देश की परिसम्पत्तियो को बेचा,सारे संवैधानिक संस्थानो को रीढविहीन कर फिर उसका दुरुपयोग कर विपक्षी दलो के साथ सारे देश को भयभीत कर दिया।
गोदी मीडिया ने भी अहम योगदान प्रदान किया ,इस झूठ लूट नफरत भय को छिपाकर, खलनायक को महामानव बना कर महामंडित करने मे कोई कमी नही की।
कांग्रेस के आजादी के संग्राम की चर्चा नही करते लेख बहुत लम्बा हो जायगा,केवल यह याद दिलाना चाहते है कि विश्व हिंदू परिषद (साबरकर) और जिन्ना ने आजादी
एक बार मियां ढिंढोरची किसी यूनिवर्सिटी का वीसी बन गया।
आदमी एक बार ढिंढोरची हो जाए वो फिर उम्र भर ढिंढोरची ही रहता है।
मियां ढिंढोरची भी वीसी बनने के बावजूद ढिंढोरची ही बने रहे और अपनी आदत के
अनुसार उस यूनिवर्सिटी को भी रंगशाला में तब्दील कर दिया।
फिर एक आई NEP, न्यू एजुकेशन पॉलिसी!!!
वीसी बने बैठे मियां ढिंढोरची को इसमें शहंशाह को पाणी मारने का एक बड़ा अवसर नज़र आया। उसको लगा कि यदि वह इस पाखण्ड को धारण कर लेता है तो तुरन्त सनकी शहंशाह की
नज़रों में चढ़ जाएगा और फिर उसकी बल्ले-बल्ले।
क्या पता पद्मश्री भी मिल जाए और यूजीसी की मेम्बरी भी।
मियां ढिंढोरची ने तुरंत खुद जैसे ही 3-4 रंगे सियार पकड़े और नौटंकी चालू कर दी।
ना किसी से चर्चा, ना किसी से कोई रायशुमारी, ना किसी पढ़े -लिखे आदमी से कोई सलाह...
मंगल वार, शनिवार और रविवार मुझ पर बहुत भारी पड़ते हैं.
मंगलवार को मेरा इनबॉक्स क्रोधित हनुमान जी की डरावनी तस्वीरों और शनिवार को शनिदेव की चेतावनी भरी फोटो से भर जाता है.
हनुमान जी को रौद्र रूप में कुछ दिनों से दिखाया जाने लगा है, जिसमे वह दाढ़ी बढ़ा कर किसी
पर हमले की तैयारी कर रहे हैं.
उनकी गदा भी सोनेगल राजदण्ड की तरह नुकीली बना दी गयी है.
इतवार को अवकाश के कारण फुर्सत पाये लोग तरह तरह के देवी देवताओं के उद्घोष से मेरा इनबॉक्स भर देते हैं.
ये सभी अंध भक्त हैं, जो तरह तरह के बाबाओं, तांत्रिकों, कापालिकों और भविष्य वक्ताओं से
प्रेरित हैं.
ये टीवी पर बाबाओं के प्रवचन और उनके आश्रमो से निकलने वाली भक्ति पत्रिकाओं के सिवा कुछ भी नहीं पढ़ते.
जीना दूभर किये हैं. देवी देवताओं के नाम पर तरह तरह से डराते हैं.
कभी मुसलमानो द्वारा पूरे उत्तराखण्ड को हड़प लिए जाने का डर दिखाते हैं, तो कभी सीमा पर