#धर्मसंसद
वैसे तो आज के प्रश्न का बड़ा विस्तार से उत्तर नीलम मिश्रा शशिबाला राय राधिका प्रेरक ने दे ही दिया है इसलिए उत्तर देने की जरूरत नहीं है। फिर भी आप लोग पता नहीं क्यों मेरे उत्तर की प्रतीक्षा करते हैं जबकि मैं बता चुका हूं कि अपने लेखकों की अपेक्षा मैं कम
ज्ञानी हूं। आज तो नीलम ने यदुकुल की पूरी श्रृंखला ही लिख दिया। शशिबाला राय का तो कहना ही क्या। भावपूर्ण वर्णन करने में सिद्धहस्त हैं। सरस्वती की मानस पुत्री हैं। शोधकर्ता की तरह लेख लिखना कोई प्रेरक अग्रवाल से सीखे। मैं भी इतना विस्तार से और लय ताल से नहीं लिख सकता
जैसा कि राधिका ने कहा है यदुकुल की व्याख्या दो तरह की की जाती है। एक तो महाभारत के अनुसार जिसमें राजा ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु के दूसरे ऋग्वेद में वर्णित दाशराज्ञ युद्ध के पंचजन यदु पुरु तुर्वसु अनु और द्रुह्यु के रूप में। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार महाभारत
के यदु ही प्रधान हैं। जैसा कि इनके पिता ने रुष्ठ होकर श्राप दिया था कि तुम्हारे वंशज राजा नहीं होंगे यादवों की शासन व्यवस्था गणतंत्रतात्मक थी। वैसे तो ययाति के पांचों पुत्रों की वंशावली बहुत लंबी चौड़ी है पर ज्येष्ठ पुत्र यदु के वंश में कुल १२ कुल या कहें तो कबीले थे
इन बारहों में परस्पर वैवाहिक संबंध हुआ करता था। आश्चर्यजनक रूप से हम एक साम्यता देखते हैं। यहूदी धर्म ग्रंथ ओल्ड टेस्टामेंट में भी यहूदियों के १२ भटके हुए कबीलों का उल्लेख मिलता है। इसीलिए कुछ विद्वान तर्क देते हैं कि ईसा पूर्व
3133 के आसपास जब द्वारिका नगरी डूब गई
यादवों की एक मुख्य शाखा को वज्रनाभ के नेतृत्व में हस्तिनापुर भेज दी गई तभी बड़ी बड़ी नौकाओं में बैठकर यादवों की एक शाखा पश्चिमी एशिया की ओर निकल गई जिससे यहूदी धर्म का उदय हुआ। इसराइल की साम्यता ईश्वरालय के रूप में की जाती है।शेष तो विद्वान लेखकों ने बताया ही है धन्यवाद जय
इनसे मिलिए। नाम नसीरुद्दीन शाह वल्द मुहम्मद शाह। कारनामा थूककर चाटने में माहिर । इनके दादा सैयद आगा शाह अफगानिस्तान के डकैत थे । भाड़े के सिपाही हुआ करते थे। कुछ कुछ वैसा ही जैसा कि आजकल माफिया डानों के सुपारी किलर होते हैं।1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में
इसने अंग्रेजों की ओर से लड़ाई लड़ी थी और विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजों की बड़ी मदद की थी।मेरठ छावनी से जब विद्रोही सेनापति बख्त ख़ान ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया था तब अंग्रेजी सेना के साथ साथ दिल्ली पर पुनः कब्जा करने में कर्नल हडसन की सहायता किया था। इसके बाद
अंग्रेजों ने इसे मेरठ की सरधाना तहसील में एक जागीर दे दिया था। इससे यह मत समझिए ए साहब सरधाना के नबाव बेगम समरू के खानदान से ताल्लुक रखते हैं। इनके पिताजी मोहम्मद शाह नायब तहसीलदार थे इस दौरान पाकिस्तान में काफी संपत्ति बनाया था। विभाजन के बाद यह और इसका परिवार
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इतना सरल प्रश्न था कि किसी ने उत्तर देने की जरूरत नहीं समझा। केवल दो उत्तर आए एक बहन सत्यवती का और दूसरी प्रेरक अग्रवाल का। दोनों ही ने शूरसेन की विस्तृत व्याख्या की है। शूरसेन जनपद एक समय भारत के श्रेष्ठ सोलह महानपदों में से एक था। शूरसेन नामक दो राजा
हुए थे। एक त्रेतायुग में शत्रुघ्न के पुत्र महाराज शूरसेन और दूसरे द्वापरयुग में यदुकुल में उत्पन्न शूरसेन। जैसा कि आप जानते हैं कि किसी भी वंश में अपने नाम पर वंश चलाने का अधिकार सबको नहीं होता।वंश के कुछ ही राजा इतने प्रभावशाली होते हैं जिनके नाम पर वंश चलता है।
यादव कुल में यदु के बाद एकमात्र राजा शूरसेन ही हैं जिनके नाम पर वंश का नाम शूरसेन वंश हुआ। भिन्न-भिन्न पुराणों में भिन्न भिन्न वर्णन मिलता है जो विरोधाभासी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मुगल काल में पुराणों में जानबूझकर छेड़छाड़ की गई है जिससे हिंदू जनमानस दिग्भ्रमित
अगर आपसे पूछा जाए कि बज्जि स़ंघ क्या था तो उत्तर नहीं दे पाएंगे क्योंकि आपको इसके विषय में बताया ही नहीं गया है। संकेत में राष्ट्रवादी तो कहते ही हैं पर मजबूरी में कांग्रेसी भी कहते हैं भारत लोकतंत्र की जननी है। विश्व का सबसे पहला लोकतंत्र भारत में ही था पर नाम
नहीं जानते होंगे ।जी हां इस गौरवशाली गणतंत्र का नाम है वैशाली गणराज्य।इसे लिच्छवी गणराज्य भी कहते हैं क्योंकि 8
गणराज्यों के संघ का मुख्य राज्य लिच्छवी गणराज्य ही था। वैशाली गणराज्य वास्तव में आठ राज्यों का समूह था जिसे बज्जि स़ंघ या बज्जिका कहते थे।आठ राज्यों
का नाम इस प्रकार है।
१- वैशाली के लिच्छवी
२- कपिलवस्तु के शाक्य
३- कुशीनारा (वर्तमान में कुशीनगर के मल्ल)
४- कुंडिग्राम के ज्ञात्रिक
५- रामग्राम के कोलिय
६- सुंसुमारगिरि के मार्ग
७- पिप्पलीवन के मोरिय
८- मिथिला के विदेह जिनकी राजधानी जनकपुर वर्तमान में नेपाल में है।
मनुज बली नहिं होत है समय होत बलवान।ये क्या हो गया देखते-देखते।जो मुख्तार अंसारी खुली जीप में एके सैंतालीस लेकर मऊ की सड़कों पर घूम घूमकर दंगा करवाता था आज वही ह्वील चेयर पर बैठकर जान की भीख मांग रहा है। जिस हरिओम राय को उनके ही बाग में से आम नहीं तोड़ने देता था
अफजाल अंसारी आज उसी हरिओम राय ने पूरे बाग की नीलामी अपने नाम कर लिया। अतीक अहमद और अशरफ जैसे गुंडे जिनके पेशाब से इलाहाबाद में दिया जलता था दुनिया से चले गए।काली कमाई का साम्राज्य मिट्टी में मिल चुका है। जिस आजम खान की रामपुर में ही नहीं बल्कि पूरे पश्चिमी यूपी
में तूती बोलती थी,जो रामपुर के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को जूते की नोक पर रखता था वह आज रो रहा है।सारी अकड़ हवा में उड़ गई। मुन्ना बजरंगी और संजीव जीवा का आतंक खत्म हो गया। जहां शहरों सूर्यास्त में ही बाजार बंद हो जाते थे आज देर रात तक खुले रहते हैं। फिरौती
कहां राजा भोज कहां गंगू तेली।जानते हैं कि यह कहावत क्यों बनी है। लड़ते भिड़ते मातृभूमि की और सनातन हिन्दू धर्म की रक्षा करते हुए जब देश में क्षत्रियों की संख्या कम हो गई तो समाज चिंतित हो उठा कि इस संक्रमण काल में अरब की ओर से टिड्डी दल की विधर्मी सेनाएं जब कि
चढ़ी आ रही हैं तो मुठ्ठी भर बचे राजपूत क्या करेंगे।इसी समाज के जागरूक लोगों की सहायता से आबू पर्वत की ब्राह्मणों ने एक यज्ञ किया और घोषणा की गई जो भी क्षत्रिय धर्म पालन की क्षमता रखता हो आगे आए।उसे क्षत्रिय जाति में
दीक्षित किया जाएगा।जो भी लोग आए उन्हें चार कुल
में बांटकर क्षत्रिय बना दिया गया। यह चार कुल थे चालुक्य इन्हें गुजरात के सोलंकी भी कहते हैं,
शाकंभरी के चौहान मालवा के परमार और कन्नौज के प्रतिहार। मालवा के परमार राजाओं की राजधानी धारा नगरी थी जिसे आज कल जिला धार कहते हैं। इसमें सबसे प्रतापी राजा भोज हुए। राजा
धृतराष्ट्र द्वापरयुग में ही नहीं होते बल्कि आज भी पाए जाते हैं। बातें भले ही लंबी लंबी और ऊंचे आदर्श वाली की जाय जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है। आमतौर पर क्षेत्रीय दलों का एक अघोषित नियम हो गया है जहां बात समानता बंधुत्व समाजवाद की होती है।कहा जाता है कि हर कार्यकर्ता
अपने परिश्रम से आगे बढ़कर पार्टी के शीर्ष पद तक पहुंच सकता है पर हकीकत में ऐसा होता नहीं।जद यू अन्ना डीएमके बीजू जनता दल को छोड़ दें तो बाकी सबकी एक जैसी हालत है यहां यह मान लिया जाता है कि पार्टी संस्थापक के परिवार से ही कोई अध्यक्ष रहेगा तभी पार्टी रहेगी और आगे
चलेगी भी।इन का रोल मॉडल कांग्रेस पार्टी है जहां यह मान लिया गया है कि बिना नेहरू गांधी परिवार के पार्टी जीवित नहीं रह सकती। सोनिया गांधी लगातार २३ वर्षों तक कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बनी रहीं। लोकतंत्र के इतिहास में यह एक रिकॉर्ड है कि कोई एक व्यक्ति एक बड़ी और