पश्चिम में ऐसी ऐसी वैज्ञानिक रिसर्च होती रहती हैं कि वे लोग आंख बंद करके एक तरफ चलने लगते हैं। पहले उन्होंने खूब नॉनवेज खाया, हर चीज में मांस खाया। अब जब यह शाकाहारी बने हैं तो शाकाहारी में अति करते हुए कह रहे हैं कि केवल कच्चा ही खाओ। नॉनवेज की बात तो छोड़ो हमें #शहद भी नहीं
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पीना दूध भी नहीं पीना घी भी नहीं खाना, मक्खन भी नहीं खाना। यह सब अधकचरे या अधूरे ज्ञान की बातें हैं। खान पान से जुड़े जितने भी विचार पश्चिम से आये हैं जैसे डाइटिंग करें जैसे कीटो डाइट, जैसे लो-कार्ब डाइट, जैसे हाई-प्रोटीन डाइट जैसे इंटरमिटेंट फास्टिंग जैसे हर 2 घंटे में खाना
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थोड़ा-थोड़ा खाना यह सब #आयुर्वेद के हिसाब से उचित नहीं है। खाने-पीने में जितनी भी आज की रिसर्च है वह अधूरी है।
संपूर्ण रिसर्च तो यही है जो महर्षि #चरक, #सुश्रुत ने कहा है, उन्होंने आयुर्वेद में पक्का खाने की बात की है, सीमित मात्रा में कच्चा खाने की बात की है।
अंकुरित भोजन
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को कुछ खास मौसम या परिस्थितियों को छोड़कर आयुर्वेद में बहुत अधिक बल नहीं दिया।आयुर्वेद में किसी भी प्रकार से बासी आदि खाने की बात नहीं की। आयुर्वेद शुद्ध घी खाने की बात करता है लोगों ने झूठी रिसर्च के आधार पर घी को बदनाम किया घी छोड़कर #Refined_oil खाया। परिणाम आज विश्व की 15%
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आबादी हृदय रोग से #कोलेस्ट्रोल से पीड़ित है। आयुर्वेद प्रज्ञा अपराध की बात करता है। विश्व आज डिप्रेशन में ग्रसित है क्योंकि उन्होंने प्रज्ञा अपराध को समझा नहीं । #WHO पहले केवल शरीर को ही मानता था, मन को, बुद्धि को, मानसिक स्वास्थ्य को,सामाजिक स्वास्थ्य को आध्यात्मिक स्वास्थ्य
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को नहीं मानता था आज भी सीमित मानता है लेकिन आयुर्वेद में स्वास्थ्य का मतलब समग्र स्वास्थ्य है।
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हम बनारसीपन के शिकार लोग हैं :)
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हमको सुपरमार्केट नहीं चाहिए गुरु, हम रजा गोला दीनानाथ से मेवा और मसाला लेंगे...चन्नुआ सट्टी से सब्जी लेंगे, मोछू चाचा के दुकान से पनीर ले लेंगे।
हमको एसी की ठंडक भी नहीं चाहिए गुरु हमको मिटटी की महक पसंद है, हम खुल्ला चावल और गेहूं लेंगे
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और साफ़ करके कंडाल में रखेंगे...हमको कोहिनूर बासमती और शक्तिभोग भी नहीं चाहिए।
हमको साजन, मजदा, सरस्वती, टकसाल, छवि महल, विजया चाहिए मालिक आप अपना पीडीआर, JHV, IP अपने पास रखिये। हमें गोलगप्पे, टमाटर चाट और समोसा खाना है काशी चाट, दीना चाट और बंगाल स्वीट पे खड़े होके, आप
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बेशक McDonald के बर्गर और पिज्जा खाइए।
चौक का मलइयो, क्षीर सागर का खीर कदम, बंगाल स्वीट का रसगुल्ला, मधुर मिलन की जलेबी किस सुपरमार्केट में मिलेगी...गोदौलिया और नई सड़क की वैरायटी किसी स्टोर में शायद ही मिले। आप घुमने Sea Beach पे जाओ, अपनी लाईफ को किसी नाईट क्लब में
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@harbhajan_singh "मोड़" फिल्म आखरी शुक्रवार रिलीज हुई उस के साथ 1991 बनी "जट्ट जियोना मोड़" रिलीज कर दी गई। दोनो फिल्में पंजाब के बागी डाकू जियोना मोड़ पर आधारित थी लेकिन असल कहानी की अनुसार जियोना मोड़ मां नैना देवी का भगत था एवं माथे पर तिलक लगा कर रखता था किंतु नई फिल्म में
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यह angle ही हट्टा दिया गया। 2023 में बनी फिल्म को खालिस्तानी के रूप में दर्शाया गया है और सुनने में आया इस फिल्म को खालिस्तानी बॉडीज ने पैसा लगाया था। 1991 फिल्म 30 लाख में बनी थी और अपने समय की हिट फिल्म थी जिसने उस समय में 1 करोड़ कमाया था इस बार दुबारा रिलीज होने पार 50 लाख
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कमा चुकी है लेकिन दूसरी तरफ 2023 में बनी फिल्म औंधे मुंह गिर गई है सिर्फ 1.5 करोड़ कमाने के बाद 2 करोड़ के लिए संघर्ष कर रही है। पंजाब के हिंदुओं ने 2023 की फिल्म का बहिष्कार किया है एवं 1991 दुबारा देखने गए हैं शायद इसी से ही पंजाब को हिंदुओं के ताकत का पता चला हो।
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कल परसो से यह कार्ड वायरल हो रहा है। लभ जिहाद में फँसाई गयी लड़की के परिवार ने उसके जीते जी पिंडदान कर उसे मृत मान लिया। एक सभ्य शहरी परिवार की पढ़ी-लिखी लड़की अपने अच्छे और सुखद भविष्य को लात मार कर किसी असभ्य के प्रपंच में फँस जाय और उससे विवाह कर ले, और उसके बाद उस लड़के
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का परिवार सार्वजनिक रूप से लड़की के माता पिता का मजाक उड़ाए तो एक पराजित परिवार यही करेगा।
यह सामान्य परिवार इससे अधिक कुछ कर भी नहीं सकता। यदि करना चाहे तो वे लोग ही अपराधी घोषित हो जाएंगे। राजनीति, पत्रकारिता, न्यायपालिका, बुद्धिजीवी वर्ग, सभी लड़के के पक्ष में उतर जाएंगे
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और लाखों रुपये लेने वाले वकील मुफ्त में लड़के की ओर से लड़ने लगेंगे। तो यह सामान्य परिवार पिंडदान कर के ही मुक्ति पा लेना चाहता है।
मैं परिवार के निर्णय की आलोचना नहीं कर सकता, उनके दुख को केवल वही समझ सकते हैं। पर यह भी सच है कि यह अंतिम निर्णय नहीं है। यह इस बीमारी का इलाज
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दो वर्ष पूर्व की,ये घटना चंदरपुर महाराष्ट्र के बललपुर कस्बे की है।गोरी-चिट्टी-स्लिम-खूबसूरत 32 वर्षीया स्मार्ट महिला प्रग्रति .. अपने शरीर को खूब मेंटेन भी रखा था... 6 वर्ष और डेढ़ वर्ष की दो पुत्रियों को जन्म देने के बाद भी 26-27 साल से ज़्यादा उम्र की नहीं दिखती थी !
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पति 38 वर्षीय ऋषिकांत सरकारी स्कूल में अध्यापक थे... उच्च शिक्षित थे... सब तरफ संतोष था... खुशी थी... मगर ऐसे में #शाहनवाज़ नामक लोकल टैक्सी ड्राइवर... परिवार पर काल बनकर खड़ा हो गया....
शाहनवाज़ की आंख प्रगति की खूबसूरती पर अटक कर रह गयी... प्रगति घर से निकलती तो
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शाहनवाज़ पीछा करता... प्रगति ने भी जल्दी ही शाहनवाज़ की इच्छाओं को समझ लिया ! पति का अक्सर उच्चशिक्षित और एलीट होना.... सतही चरित्र वाली महिलाओं में अलगाव का कारण बन जाता है ! शाहनवाज़ ने इस गड्ढे की गहराई को आसानी से नाप लिया ! प्रगति ने छूट दी...पति ऋषिकांत की अनुपस्थिति में
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बनारसिया प्रपोज़ 🤣🤣
हम- "जरा सुनिये ! आप से कुछ काम है ।"
वो - "हाँ बोलिये !"
हम - "आप हमें पहिचानती है??"
वो (कुछ देर सोच कर) - "हाँ... याद आया... आप वही हैं न जो तीन-चार दिना पहिले हमारे पीछे-पीछे घूम रहे थे??"
हम - "हाँ... हम वही है ।"
वो- "का हम जान सकते है आप हमारा पीछा
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काहे कर रहे थे??"
हम - "जी वही बताने तो आए है आपके पास.. उ का है न कि हमारा एक ठो चीज चोरी हो गया है अउर हमको आप पर सक है ।"
वो (थोड़ी ऊँची आवाज़ में) - "त.. आप कोतवाली में जाकर रपट लिखवाइयें न... हम पर का सक कर रहे हैं.. हम का कर दिये भला.. हम त आपको जानते तक नही??"
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हम (मुस्कुराते हुए) - "अरे.. जो कुछ कीं हैं आपही त कीं हैं ।"
वो (भौचक्की आँखों से) - "मतलब.. !"
हम - "अरे.. ओदिनीया आप दसासुमेध घाट पर घुमने आई थी न.. अउर आप के साथ दुई लड़कीयाँ अउर थी अउर दुई-तीन ठो लौंडे भी थे.."
वो - "हाँ.. हाँ.. त का हुआ था उ दिन !!"
हम - "अरे.. ओदिन आपका
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“#मैंने_दहेज़_नहीं_माँगा” साहब मैं थाने नहीं आउंगा,
अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा,
माना पत्नी से थोड़ा मन-मुटाव था,
सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था,
पर यकीन मानिए साहब,“मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
मानता हूँ कानून आज पत्नी के पास है,
महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है।
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चाहत मेरी भी बस ये थी कि माँ बाप का सम्मान हो,
उन्हें भी समझे माता पिता, न कभी उनका अपमान हो ।
पर अब क्या फायदा, जब टूट ही गया हर रिश्ते का धागा,
यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
परिवार के साथ रहना इसे पसंद नहीं है,
कहती यहाँ कोई रस, कोई आनन्द नही है,
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मुझे ले चलो इस घर से दूर, किसी किराए के आशियाने में,
कुछ नहीं रखा माँ बाप पर प्यार बरसाने में,
हाँ छोड़ दो, छोड़ दो इस माँ बाप के प्यार को,
नहीं माने तो याद रखोगे मेरी मार को,
यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”