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भारत मे जब प्लासी की धूल छंट रही थी ..

जर्मनी के फ्रेड्रिक ने सैक्सनी पर हमला कर दिया। इसके साथ ही सात बरस तक चलने वाली मशहूर लड़ाई शुरू हो चुकी थी। इस समय चार्ल्स, ऐटन के मशहूर कॉलेज मे पढ ही रहा था।

वो बड़े प्रभावशाली और पहुंचे हुए खानदान का चश्मो चिराग था।
महान बनना चाहता था, तो सेना मे कैप्टन का पद खरीदा गया। चार्ल्स कार्नवालिस लाल कोट पहनकर यूरोप मे लडने चला गया।

सप्तवर्षीय युद्ध खत्म होते हुए वह कर्नल बन चुका था। लंदन लौटकर उसने हाउस ऑफ कामन्स की सांसदी खरीदी और पॉलिटिक्स करने लगा। यह वक्त अमेरिका मे असंतोष फूटने का था।
कार्नवालिस अच्छा आदमी था, इसलिए अमेरिकन कालोनी पर टैक्स बढाने का विरोधी थां। लेकिन जब चाय पर टैक्स के विरोध मे बोस्टन मे फसाद हुआ, दोबारा लाल कोट पहनकर, अमेरिकन्स से लडने मे उसे कोई हिचक भी न हुई।

वैसे भी वहां कुछ किसान तो थे, जो छोटे मोटे हथियार से लड़ रहे थे।
चुटकी मे मसल कर लौट आना था।

लेकिन अमेरिका मे हालात पलट गए। किसानों को फ्रेच फोर्स से मदद मिल रही थी। अमरीकी फौज के दूसरे जनरल क्लिंटन से कार्नवालिस की खटपट चलती रही।

और वाशिंगटन, आदमी नही ... भूत था।
पकड़ मे ही न आता।
गुरिल्ला तरीको से युद्ध मे ब्रिटिश सेना टिक नही पाई। सन 1775 मे जोश खरोश के साथ अमेरिका पहुंचे मेजर जनरल कार्नवालिस, 1781 मे यार्क के मैदान मे सरेंडर के लिए खड़े थे।

उसने फ्रेच जनरल को सलाम किया, किसानों का इग्नोर। फ्रेच जनरल को अपनी तलवार सौंपी, उसने बगल मे इशारा किया।
मन मारकर कार्नवालिस को अपनी तलवार जार्ज वाशिंगटन को सौंपनी पड़ी।

विश्व मे एक नए देश का जन्म हो चुका था।

कार्नवालिस का कॅरियर यहीं खत्म हो जाना था। लेकिन पिट भए प्रधान तो डर काहे का।

पिट, द यंगर ब्रिटिश प्रधानमंत्री थे।
भारत मे वारेन हेस्टिंग्ज के कारनामों से परेशान थे। नियंत्रण के लिए 1885 मे एक एक्ट लाया, जिसपर चिढकर हेस्टिंग्ज ने इस्तीफा दे दिया। पिट ने फटाफट स्वीकार किया। और नए गवर्नर जनरल की तलाश करने लगे।

भरोसेमंद मित्र कार्नवालिस को बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया।
महान बनने का दूसरा मौका मिला।

मगर रास्ते मे टीपू अड़ा था।

#वायसराय_औऱ_गवर्नर_जनरल (08)
#स्वतंत्र Image

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More from @sharmass27

Jun 15
क्या मणिपुरी भी शरणार्थी हो जाएंगे ,?
यहां न 370, यहां न एलान करती मस्जिदे, यहां न बहुसंख्यक मुस्लिम, यहां न कश्मीरी पंडित, आखिर क्यों मणिपुर का हिंदु ही हिंदु के खून का प्यासा हो गया, आखिर क्या है इस अविरल हिंसा का तात्पर्य, क्या 1990 के दशक का दोहराव हो रहा है।
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Jun 15
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Jun 14
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के लंबे चक्करों से मुक्त हो जाता है और स्पॉट पर ही अपना कर्म फल पाकर निगम कर्मियों का आभार प्रकट कर अपनी राह लेता है । पिछले दिनों इंदौर में एक बगीचे के पास कुछ लोगों ने कचरा फेंका । निगम कर्मियों ने देखा । नगर निगम , न्याय निगम बन गया ! असंख्य लंबित प्रकरणों के बोझ तले
कसमसाती न्याय पालिका को आराम देने के उद्देश्य से उन्होंने इस मामले में आरोपी को स्पॉट पिटाई योजना का फायदा देते हुए लात घूंसों और डंडों से पिटाई की। कर्तव्य परायणता के आवेग में पिटाई कार्यक्रम कुछ लंबा और विस्तृत हो गया । निगम कर्मियों का मानना था यह एक निजी कार्यक्रम है ,
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Jun 14
#बारात रवाना हो तो सबसे पहले बारातियो का फोकस ठेके पर होना चाहिये ठेके से निपटने के बाद डीजे वाले पर प्रेसर रखना चाहिये ताकि अपने अपने गानो पर जमकर नाच सके
फिर भी बारात गंतव्य स्थान तक ना पहुची हो तो उस साथी को ढुंढना चाहिये जिसके पास ठेके से उठाई ग ई एक्सट्रा बोतल रखी हो
ततपश्चात शालीन बाराती बनते हुये लडकी वालो के रहा प्रवेश करे
जब मोई रोगी इस विवाह मे आमंत्रित ही नही तो उनके बारे बहस विशुद्ध रूप से चूतियापा है ओर रही बात चाचा की ये भोश्री वाले चचा हमेशा पिटने वाले ही काम करते है
मैने जितनी बाराते एटेंड की है मेरा आंकलन तो
ये बता रहा है कि चाचा ओर बोलेरो चालक मे पेग को लेकर लफडा हुआ होगा अब चाचा ठहरे दूल्हे राजा के चाचा ऊपर से बारात का नशा विद वियरिंग रेमंड कोर्ट पैंट फिर मदिरा का सरूर बकचोदी हुई होगी ओर चाचा तन गये होंगे
लास्ट पेग खो चुका बोलेरो चालक पहले से ही पेग की चीटींग से क्रोधित था
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Jun 13
राजा का राजकाज
दिनभर की थकन मिटायी जा रही थी
राजा और उसके तीन चहेते बैठे हुए थे।सभी के गिलास में लाल पानी भरा था।दूर से कोई देखता तो कहता कि वे खून पी रहे हैं।हवा में एक अजब गंध घुल चुकी थी।अब हवा और गंध केअस्तित्व को अलगाना बहुत मुश्किल था।हल्की रोशनी में भी दृश्यता स्पष्ट थी
'क्या हम महंगाई शब्द को असंसदीय घोषित नहीं कर सकते महाराज!' पहला चहेता बोला।

अचानक विघ्न पढ़ा। सबके गिलास जहां थे,वहीं रुक गए।

'कर क्यों नहीं सकते,हमारे महाराज चाहे तो सब कर सकते हैं!' दूसरा चहेता बोला।

'बिल्कुल!' तीसरा चहेता थोड़ा जोर से बोला।

'क्यों,क्या हुआ!' राजा ने पूछा।
'महाराजा आप तो जानते ही है यह प्रजा न जब देखो तब महंगाई का रोना रोती रहती है,परंतु आजकल कुछ अधिक रो रही है!अब तो सिर दर्द हो गया है...'

'मैं तो कहता हूं कि महंगाई शब्द को बोलने पर ही पाबंदी लगा दी जाए!' दूसरा चेहता बोला।

'सही बात!पूर्ण पाबंदी!' तीसरे चहेते ने समर्थन किया।
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Jun 11
कल तीन रैलियाँ हुईं। विश्व गुरु की शान बढ़ाने वाली रैली गोंडा में उनके प्रिय बृजभूषण ने की।
उन महिला पहलवानों को बता दिया कि उनका शोषण और उत्पीड़न सांस्कृतिक अधिकार है। सांसद जी को कई-कई मीटर लंबी फूलमालाएं पहनाकर जनता को उनका जैसा बनने का संदेश दिया गया।
एक रैली कांग्रेस के सचिन पायलट ने दौसा में इस दावे के साथ बुलाई कि वह “कमजोर नहीं हैं, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते रहेंगे।” दरअसल उनका असली निशाना तो अशोक गहलोत और उनकी कुर्सी है। यह रैली पार्टी को धमकी के तौर पर भी देखी जानी चाहिए।
एक और रैली लोकपाल के लिए मर-मिटने को उतरे अन्ना का झोला-लोटा लेकर नमूदार हुए केजरीवाल ने दिल्ली में आयोजित की। इसका आयोजन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर अध्यादेश के विरोध में किया गया। इस रैली का वास्तविक उद्देश्य केजरीवाल ब्रांड को मज़बूत बनाना है।
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