#धर्मसंसद
यों तो हर पौराणिक घटना में किसी न किसी रूप में नारद मुनि का योगदान पाया जाता है तो प्रायः
जन कल्याण के लिए होता है। इस प्रश्न की विस्तृत विवेचना शशिबाला राय प्रेरक अग्रवाल और सत्यवती ने किया है।आप लोग अवगत हो गये होंगे। कुछ छोटी-छोटी बातों को जानिए
वामपंथियों का जवाब दे सकें जो हमारे वेदों पुराणों को मिथक मानते हैं हर घटना पर कुतर्क करते हैं।कंस जब अपनी बहन देवकी को रथ पर बिठा कर विदा करने जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई कि जिस बहन को इतनी खुशी से विदा कर रहे हो उसी का आठवां पुत्र तुम्हारा वध करेगा। इस एक घटना
से यह तो स्पष्ट हो गया कि तब का विज्ञान आज के विज्ञान सेकम नहीं बल्कि अच्छा रहा होगा। आज के लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व आकाशवाणी का होना क्या आप सबको आश्चर्यचकित नहीं करता। अवश्य ऐसा कोई यंत्र रहा होगा जो किसी भावी घटना का पूर्वानुमान लगा लेता और तदनुसार बचने का
उपाय आकाशवाणी के माध्यम से बता देता ‌है। अर्थात उस जमाने में भी बेतार का तार प्रचलित था। पुनः आगे देखते हैं कि देवर्षि नारद घर घटना के समय उसके मुख्य मुख्य पात्रों के पास पहुंच जाते हैं। ऐसा तभी संभव है जब कि नारद मुनि के विमान रहा हो अथवा ऐसी योग सिद्धि प्राप्त
रही हो जो उन्हें मन की गति से उपयुक्त और इच्छित व्यक्ति, स्थान पर पहुंचा देती है। पौराणिक साहित्य में मन की गति से गमनागमन का गुण केवल दो व्यक्तियों के पास था। एक मुनि नारद और दूसरे भगवान परशुराम।
वैसे तो संपूर्ण महाभारत में अनेक स्थानों पर नारद मुनि की उपस्थिति
पाई जाती है पर आज का प्रसंग श्री कृष्ण के विषय में है। ब्रह्मा जी का विधान तो था कि देवकी के आठ पुत्र हों जिसमें से आठवां कंस का वध करता। अगर कंस केवल आठवें को मार देता तो कृष्ण का अवतार ही संभव नहीं था। दूसरा कारण ब्रह्मा के लेख दो पुत्रों को जीवित होना लिखा था
तो सात क्यों जीवित होते। सृष्टि का कालक्रम बदल जाता इसीलिए को टालने के लिए देवर्षि नारद जी की उपस्थिति होती है। नारद जी एक अष्टदल कमल लेकर कंस को समझाते हैं कि पहला भी आठवां है और आठवां भी पहला है। इस प्रकार नारद कंस को प्रेरित करते हैं कि वह देवकी के आठों पुत्रों
को मार दे।इसका दोहरा लाभ होता है। एक तो कंस के पाप का घड़ा जल्दी से भर जाता दूसरे विष्णु को अवतार लेने की योजना बनाने का समय मिल जाता। ब्रह्मा जी का विधान भी नहीं मिटा और नारद जी के प्रयास से जगत का कल्याण भी हो गया। धन्यवाद जय

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Jun 16
इत्र- कौन खरीदता है इत्र? शर्की सुलतानों के समय से ही जौनपुर इत्र की नगरी कहा जाता था। कन्नौज के बाद इत्र के उत्पादन विक्रय में कभी जौनपुर का स्थान विश्व विख्यात था जो अब नहीं रहा।कभी मेरा शहर जौनपुर मक्का मूली इत्र और इमरती के लिए मशहूर हुआ करता था। इनमें से
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ने इसमें लगने वाले इंजन GE400
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Jun 14
सबेरे सबेरे मुफ्त में ट्विटर ज्ञान।
बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख।
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किसी को अंधाधुंध फालो न करें। किसी को फालो करते समय उसकी प्रोफ़ाइल देखें।उसकी टाइमलाइन ऐक्टिविटी देखें। विचार मिलते-जुलते हैं तभी फालो करें।
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