वात-पित्त और कफ क्या होता है ?
“जठराग्नि” क्या होती और शरीर में क्यूँ है उसकी महत्वपूर्ण भूमिका !!
सबसे पहले आप हमेशा ये बात याद रखें कि शरीर मे सारी बीमारियाँ वात-पित्त और कफ के बिगड़ने से ही होती हैं।
सरलता से अगर इस बात को समझना हो तो ऐसे समझे की सिर से लेकर छाती के बीच
तक जितने रोग होते हैं वो सब कफ बिगड़ने के कारण होते हैं।
छाती के बीच से लेकर पेट और कमर के अंत तक जितने रोग होते हैं वो पित्त बिगड़ने के कारण होते हैं।
और कमर से लेकर घुटने और पैरों के अंत तक जितने रोग होते हैं वो सब वात बिगड़ने के कारण होते हैं।
हमारे हाथ की कलाई मे ये वात-पित्त और कफ की तीन नाड़ियाँ होती हैं
भारत मे ऐसे ऐसे नाड़ी विशेषज्ञ रहे हैं जो आपकी नाड़ी पकड़ कर ये बता दिया करते थे कि आपने एक सप्ताह पहले क्या खाया
और नाड़ी पकड़ कर ही बता देते थे कि आपको क्या रोग है।आजकल ऐसे विद्वान चिकित्सक बहुत ही कम मिलते हैं
सागर से बुदबुदे उठने लगे, देवताओं और दानवों में यह देख कर उत्साह आ गया। कुछ निकलने वाला है, शायद इस बार अमृत निकले!
मंदराचल को लपेटे वासुकी को तेजी से खींचा जाने लगा, कच्छप की पीठ पर घूर्णन से जल का ताप बढ़ने लगा। चारों ओर बुदबुदे फैलने लगे,
वासुकी के फूत्कार से हवाओं में भारीपन आ गया। मथानी का वेग चरम पर पहुँच गया, हर हर करते हुए पानी से नीला द्रव्य निकला,साँस खींचने में परेशानी होने लगी। बुदबुदे विशाल होने लगे।
सागर ने जहर उगल दिया। वायु अवरुद्ध हो गयी, जल के जीव जंतु तड़पने लगे। दिग्गज चिक्कारने लगे।
देव और दानव प्राण बचाने के लिए वहाँ से भाग परमपिता ब्रह्मा के पास पहुँचे।
यह कालकूट विष है, इसे शमन करने की क्षमता संसार में किसी के पास नही है। ब्रह्मवाणी गूंजी।
तो क्या आज प्रलय की घड़ी आ पहुँची परमपिता ? देवेंद्र ने प्रश्न किया।
एक ऐसी कहानी जिसे भारतीय इतिहास की किताबों से लगभग मिटा दिया गया
रूसी पनडुब्बियां जिन्होंने 1971 की जंग में अमेरिका के विरुद्ध ढाल बनकर भारतीय नोसेना की रक्षा की थी ।
50 साल पहले 1971 में अमेरिका ने भारत को 1971 के युद्ध को रोकने की धमकी दी थी।
चिंतित भारत ने सोवियत संघ को एक एसओएस भेजा।
जब 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की हार आसान लग रही थी, तो किसिंजर ने निक्सन को बंगाल की खाड़ी में परमाणु-संचालित विमानवाहक पोत यूएसएस एंटरप्राइज के नेतृत्व में यूएस 7वीं फ्लीट टास्क फोर्स भेजने के लिए प्रेरित किया।
यूएसएस एंटरप्राइज, 75,000 टन, 1970 के दशक में 70 से अधिक लड़ाकू विमानों के साथ दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु-संचालित विमानवाहक पोत था।समुद्र की सतह पर एक चलता-फिरता राक्षस।भारतीय नौसेना के बेड़े का नेतृत्व 20,000 टन के विमानवाहक पोत विक्रांत ने किया, जिसमें 20 हल्के लड़ाकू विमान थे।
जब अहमद शाह अब्दाली दिल्ली और मथुरा में मारकाट करता गोकुल तक आ गया और लोगों को क्रूरता से काटता जा रहा था महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे थे और बच्चे देश के बाहर बेचे जा रहे थे, तब गोकुल में अहमदशाह अब्दाली का सामना नागा साधुओं से हो गया,
कुछ 5 हजार चिमटाधारी साधु तत्काल सेना में तब्दील होकर लाखों की हबसी, जाहिल जेहादी सेना से भिड गए।
पहले तो अब्दाली साधुओं को मजाक में ले रहा था किन्तु कुछ देर में ही अपने सैनिकों के चिथड़े उड़ते देख अब्दाली को एहसास हो गया कि
ये साधू तो अपनी धरती की अस्मिता के लिए साक्षात महाकाल बन रण में उतर गए।
तोप तलवारों के सम्मुख चिमटा त्रिशूल लेकर पहाड़ बनकर खड़े 2000 नागा साधू इस भीषण संग्राम में वीरगति को प्राप्त हो गए लेकिन सबसे बड़ी बात ये रही कि दुश्मनों की सेना चार कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाई
अकबर द्वारा माँ ज्वाला देवी जी को भेंट किया गया सोने का क्षत्र का सच !!
हमारे देश के अति विशिष्ट श्रेणी के इतिहासकारों और उनकी मनगढ़ंत कहानियों और मुग़लों की सोची समझी प्रशंसा का एक और उदाहरण
हिमाचल में माँ भगवती ज्वाला जी का प्रसिद्ध मंदिर है
जोकि कांगड़ा से लगभग 30 किलो मीटर स्थित है
ये मंदिर अतिप्राचीन और हिन्दुओं की 51 शक्ति पीठ में से एक है। मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। यहां पर पृथ्वी के गर्भ से 9 अलग अलग जगह से ज्वालाएं निकलती रहती हैं जिसके ऊपर ही मंदिर का निर्माण किया गया।
इन 9 ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है।
वैसे तो अनेक कहानियाँ हैं इस मंदिर के इतिहास और मान्यता पर, किन्तु मंदिर के सूचना पट पर एक लिखी हुई सूचना को पढने के बाद जो सबसे बड़ा आश्चर्य होता है