अबकी बार कार्नवालिस सरकार ...
लार्ड साहिब असल लार्ड थे, उच्चकुल शिरोमणी गर्वनर जनरल। इसके पहले क्लाईव और वारेन हेस्टिंग्ज दलित टाइप के जीव थे। याने वो कंपनी एम्पलॉयी, छोटी मोटी नौकरी से शुरूआत, और प्रमोट होते होते गर्वनर बने।
लेकिन लार्ड कार्नवालिस,एक दिन अचानक हाईकमान के आदेश पर गुजरात के गवर्नर बन गए।
गुजरात टाइपो इरर है, बंगाल पढा जाए।तो असल मे अमरीका जाकर जार्ज वाशिंगटन से माफी मांगने के कारण कार्नवालिस की प्रसिद्धि चहुं ओर फैली थी। उन्होने संसद को बताया कि अमेरिका मे न कोई घुसा है,न आया है ..
बस वो इलाका हमारे हाथ से निकल गया है। इस पर खुश होकर जब भारत की गवर्नरी ऑफर की गई, तो पहले पहल उन्होने मना कर दिया।
दरअसल कार्नवालिस को नंदकुमार केस का पता चल चुका था। इसके कारण हेस्टिंग्ज के इंपीचमेण्ट की तैयारी चल रही थी। कार्नवालिस कोई लोचा नहीं चाहते थे।
उन्होने शर्त रखी - कैबिनेट की पूरी पावर मुझे दो।
मै गवर्नर जनरल,मै कमांडर इन चीफ,मै ही नेता, मै ही काउंसिल, झंडी भी अपुन हिलाएगा, और डंडी भी अपुन हिलाएगा।मै अकेला सब पर भारी .. मंजूर है तो बोलो।
मंजूर हो गया।कार्नवालिस सर्वशक्तिमान होकर भारत आए।उनका वादा था,अच्छे दिन लाऐंगे।
पब्लिक के नही, कंपनी के ..
और कंपनी को पैसे चाहिए थे। तब बेचने को एलआईसी, रेल्वे तो थे नही, कार्नवालिस ने सरकार ही बेच दी। पूरी सरकार ठेके पर चलने लगी, इसे पर्मानेन्ट सेटलमेण्ट कहते है।
सरकार बेचने का मतलब - टैक्स वसूली की पावर आउटसोर्स करना। आय का स्रोत भू भाटक था।
फसल उत्पादन के अनुरूप, इनकम हर साल कम ज्यादा होती रहती। कार्नवालिस ने हर इलाके का एक रेट फिक्स किया, और उसे ठेकेदारो को बेच दिया।
आजकल जैसे शराब के ठेके बिकते हैं, सरकार को फिक्स पैसा दो, फिर जीभर दारू, चाहे जिस कीमत पर बेचो। कार्नवालिस के राज मे जमींदार ठेका लेते,
किसानों से मन भर टैक्स वसूलते।
फिक्स राशि सरकार को देते, और बाकी बल्ले बल्ले .. इससे एक अच्छा दलाल वर्ग पैदा हुआ। यह सरकार के हर अच्छे बुरे काम के समर्थन मे खड़ा रहता। जमींदारो के नौकर, मालिशवाले, सफाईवाले, गुमाश्ते, गुण्डे, चौकीदार भी बड़ी संख्या मे अंग्रेजो भक्त हुए।
इसे लाभार्थी वर्ग समझ लें।
आम किसान खून के आंसू रो रहा होता, ये "नव-दलाल वर्ग" सरकार का अंधभक्त था। इससे बंगाल मे मामला सेट हो गया।
उत्तर भारत मे ब्रिटिश राज की जड़ें गहरी हुई।
इसी समय ब्रिटिश बंगाल मे अफीम की खेती होने लगी। यहां उगाया अफीम कौड़ियों के भाव लेकर चीन ले जाते।
वहां अफीम के बदले रेशम, चाय, पोर्सेलिन वगैरह लेकर ब्रिटेन मे सोने के भाव बेचते। चीनियों को मामले की गंभीरता समझने मे अभी 50 साल और लगने थे।
लेकिन एक बंदा था, जिसे भारत का भविष्य दिखाई दे रहा था।
दक्षिण का टीपू सुल्तान ...
उसके पिता हैदर ने दो बार अंग्रेजो को शिकस्त दी थी।
दक्षिण मे वह बेहद मजबूत था, फ्रेंच की ताकत से वह वाकिफ था, और उनके संपर्क मे था।
अंग्रजो ने पांडिचेरी पर हमला किया तो हैदर ने ब्रिटिश को अच्छा सबक सिखाया। मंगलौर की संधि हो गई। अब हैदर का स्वर्गवास हो चुका था, फ्रांस मे क्रांति मे उलझ गया था। ये मौका शानदार था।
पहले तो त्रावनकोर के राजा को उकसाया गया, जिसने टीपू के संरक्षित इलाको मे घुसपैठ की। टीपू मालाबार मे घुसा, विद्रोह दबाया, तो उसके अत्याचारों के बारे मे खूब प्रोपगंडा किया गया। यह प्रोपगण्डा आज तक संघी इस्तेमाल कर रहे हैं।
बहरहाल मलाबार को न्याय दिलाना था। टीपू की घेराबंदी की।
कार्नवालिस को छठी का दूध और जार्ज वाशिंगठन दोनो याद आ गए।
क्येाकि टीपू की तोपों ने बम मारकर वो धुआं धुंआ किया, कि लार्ड कार्नवालिस को श्रीरंगपट्नम से बकरे पर बैठकर भागना पड़ा। ये बात मै नही, उस वक्त ब्रिटिश अखबारों मे छपा कार्टून कहता है।
कॉपी लगाई है।
कार्नवालिस को समझ आ गया कि अकेले "टीपू मुक्त भारत" नही बना पाऐंगे। उसने "राष्ट्रीय धनतांत्रिक गठबन्धन" बनाया। इस गठबंधन मे मराठे थे, निजाम थे, त्रावणकोर का राजा था।
ये सब जो एक दूसरे का फूटी आंख नही देखते थे, मगर यहां, मामला दौलत का था, इलाकों का था। वे अंग्रेजो से मिल गए।
टीपू बहादुरी से लड़ा,मगर हार गया।
कभी हैदर ने कांची मठ का पुर्ननिर्माण कराया था। टीपू ने वहां स्वर्णमूर्तियां स्थापित करवाई थी,और शंकराचार्य को बुलाकर पूजा पाठ करवाये थे। सिकुलर टीपू को सबक सिखाने के लिए, मराठा सरदार रघुनाथ भाउ,और राघुनाथ राव पटवर्धन ने श्रृगेरी का मंदिर लूटा ,
60 लाख का सोना चांदी भरकर ले गए।
टीपू का आधा राज्य छीनकर बंदरबांट कर ली गई। उसके बेटे बंधक रखे गए। दक्षिण भारत मे ब्रिटिश राज की जड़े गहरी हुई।
उत्तर और दक्षिण दोनो सेटल था।
भारतीयों ने जुलमिलकर लार्ड कार्नवालिस के माथे से अमेरिकी हार का कलंक धो दिया था।
ये 1793 था, जब वह भारत से वापस जा रहा था, तो एयरपोर्ट पर मराठों को गले लगाकर फूट फूटकर रोया। वो जानता था .. कि अगर ये लोग अमेरिका मे भी होते ...
तो वहां भी अंग्रेजी राज का सूरज न डूबता।
क्या आप judge कर सकते हैं कि इन तीनों में से सबसे बढ़िया और अच्छा आदमी कौन है?
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Mr. A - उसकी गंदे नेताओं से दोस्ती थी, ज्योतिषियों की बातों में ज्यादा भरोसा करता था, उसकी 2 पत्नियां थी, chain smoker था सारे दिन सिगरेट पीता रहता था, दिन में 8 से 10 बार शराब पीता था.
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Mr. B - उसे ऑफिस से 2 बार धक्के मार के बाहर निकाला गया, दोपहर तक वो सोता था, कालेज में अफीम खाता था और रोजाना शाम को व्हिस्की पीता था.
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Mr. C - वह एक संवारा हुआ और पुरस्कृत योद्धा था, शुद्ध शाकाहारी था, उसने कभी बीड़ी सिगरेट नहीँ पी,कभी दारू नहीँ पी
1 ही घरवाली थी उसकी और उसे कभी धोखा नहीँ दिया.
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आप कहेंगे Mr.C सबसे बढ़िया है
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Right?
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But..
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Mr. A : Franklin Roosevelt ( USA का 32वां राष्ट्रपति था)
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Mr. B : Winston Churchill (भूतपूर्व British प्रधान मंत्री था )
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कपड़ा तेरे बाप का,
तेल तेरे बाप का,
आग भी तेरे बाप की,
तो जलेगी भी तेरे बाप की"
____ यह डायलॉग हनुमानजी बोलते हैं मेघनाद से लंका में आग लगाते समय !
ऐसे अशिष्ट हनुमान से पाला पड़ा था कभी आपका ! स्वयं श्रीराम हनुमान को 'सकलगुणनिधानम्' और 'ज्ञानिनामग्रगण्यं'
अर्थात् ज्ञानियों में अग्रगण्य कहकर प्रशंसा करते हैं। वाल्मीकि रामायण में सीता का पता लगा कर जब हनुमान राम को सकल वृतांत सुनाते हैं तब मुस्कुराते हुए श्रीराम प्रभु ने लक्ष्मण से कहा था कि देखो लक्ष्मण, इतने लंबे समय से बोल रहे हनुमान ने एक भी व्याकरण की ग़लती नहीं की !
"छोटे बिरजू महाराज" की चार्जशीट में क्या लिखा है ये मीडिया नहीं बता रहा है..पर मुझे सूत्रों से पता चला है कि क्या लिखा हुआ है..आप भी पढिए👇
बिरजू तो पहलवानों को ताड़े जा रहा था
बिरजू तो व्हिस्की पिए जा रहा था
बिरजू तो पहलवानों को घूरे जा रहा था
ताड़े जा रहा था, व्हिस्की पिए जा रहा था, घूरे जा रहा था
सबको मिर्ची लगी तो बिरजू क्या करे
जले चाहे सारा ज़माना
बिरजू है पहलवानो का दीवाना
पहलवानो को ले कर भाग जाए
नज़र किसी को भी ना आए
लोग बिरजू के प्यार से यार जलते हैं
कैसे बताए क्या-क्या चाल चलते हैं
बिरजू तो बैंकॉक में जा रहा था
बिरजू तो सीटी बजा रहा था
बिरजू तो पहलवानों पर हाथ फिरा रहा था
बैंकॉक में जा रहा था, सीटी बजा रहा था, हाथ फिरा रहा था
पहलवानो को बुरा लगा तो बिरजू क्या करे
गर्मी के पागल
वह बिजली आफिस में काम करते थे और प्रतिवर्ष गर्मी के मौसम में एक महीने तक पगला जाते थे. पगलाने के लिए वह दफ्तर से एक महीने की छुट्टी लेते थे.
बनारस के भदैनी मुहल्ले में रहते थे. पगलाने के दौरान वह सिर्फ अंग्रेजी बोलते थे. अच्छी अंग्रेजी..!
वैसे तो अस्सी-भदैनी मुहल्ले में अनेक पागल सड़क पर टहलते थे. उनकी अपनी अलग-अलग विशेषताएं थीं.
एक महोदय बंगाली टोला इंटर कालेज में मैथ के टीचर थे. वह जब गर्मी में पगलाते थे तो एकदम चुप हो जाते थे. वह सड़क पर किसी बरामदे में चुपचाप बैठे रहते थे. कोई छात्र आ जाता तो
उसका सवाल भी हल कर देते थे लेकिन बिजली विभाग के पागल के टक्कर का दूसरा कोई नहीं था. जब भी वह घर में अंग्रेजी बोलने लगते तो उनके परिवार के सदस्य समझ जाते की अब इनके पगलाने का मौसम आ गया है.
मजे की बात यह थी कि ठीक होने पर वह अंग्रेजी बोलना बंद कर देते थे. एक दूसरे सज्जन