आदिपुरुष फिल्म में कितनी गलतियां बताऊं ?
१.भगवान ने कभी वन में खड़ाऊ नही पहनी लेकिन फिल्म में सेंडल पहन रखे हैं।
२.ब्रह्मा जी बिना मांगे ही रावण को वरदान दे रहे हैं
३.लक्ष्मण रेखा का प्रयोग लक्ष्मण द्वारा एक से ज्यादा बार दिखा दिया
४.भगवान राम को अंडर वाटर तपस्या करते दिखा दिया
५. फिल्म की भाषा एकदम छपरी है। हनुमान जी के डायलॉग तो ऐसे हैं की जैसे "हिंदुस्तानी भाऊ" को रामलीला में रोल मिल गया हो. जैसे "कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, तो जलेगी भी तेरे बाप की..."
इसके अलावा भी कोई १०० - १४० गलतियां और हैं। इसके अलावा
हॉलीवुड की फिल्मों से क्या क्या कॉपी किया:
१. थेनोस की सेना का सेनापति मय भाला जैसा का तैसा उठा लिया
२. किंग कॉन्ग से उठा के वानर सेना बना दी।
३. जैकी चान की फिल्मों से आखिरी एक्शन सीन उठा लिए
४. एनिमेशन तो लगता है सोमालिया या मोजांबिक की फिल्मों से उठाया है क्योंकि
हॉलीवुड का इतना घटिया नही है
कहानी ऐसी है की रामायण की बस ४ मुख्य घटनाओं को उठा के फिल्म बना दी। लेखक ने खुद रामायण या रामचरितमानस पढ़ने की जहमत नहीं उठाई , गांव में किसी चचा से जैसी सुनी उस टाइप की, मतलब "कुछ भी"। फिल्म देख के लगा की भाई प्रभास तुम बिना राजा मौली के ऑल इंडिया
रिलीज के लिए कोई फिल्म मत बनाना।
राम का नाम जुड़ा है इस लिए गालियां नही दे रहा वही बड़ी बात है, वरना फिल्म तो गाली खाने लायक है। और हां, ऐसी फिल्मों का विरोध होना चाहिए।
बस एक चीज की तारीफ करनी चाहिए, बनाने वाले की हिम्मत और कॉन्फिडेंस की। की ऐसी फिल्म भी रिलीज कर दी। 👏👏👏 😂😂 #कालचक्र
नोट ~बाबा इसे यूपी में टैक्स फ्री अवश्य करें
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हंसते क्यो नही आदिपुरुष..??
नवयुग की रामायण आई है। नए भारत के राम, मजबूत शरीर, भावहीन चेहरा। अधुनातन राम, भुजाओं की मांसपेशियां फुलाने में इतने मग्न रहे, कि मुस्कान लाने वाली पेशियां, अवशेषी छूट गयी।
अपेंडिक्स का अवशेषी होना, मानव विकास क्रम की पहचान थी।
वैसे मुस्कुराने वाली पेशियों का अवशेषी होना, अमृतकाल की पहचान। यहां देवता, नेता, कार्यकर्ता और नागरिक में क्रुद्धता जरूरी है।
दरअसल, खुशहाल व्यक्ति शौर्य प्रदर्शन नही कर सकता। क्या आप प्रसन्नचित्त होकर पड़ोसी को काट डालने, फाड़ देने, या माओं बहनों के साथ
विद्रूप यौनकर्म की धमकी दे सकते हैं। छीन लेने, दबा देने, सबक सिखा देने का उद्घोष कर सकते है??
नहीं न!!
हंसी और खुशी से अलगाव पहली जरूरत है। प्रसन्नता मन से कुंठा निकाल फेंकती है। भीतर से मजबूत बनाती है, असुरक्षा निकाल फेंकती है। आंखे खोल, सवाल करने की ताकत देती है।
सीता माता की इस तस्वीर पर हंगामा बरपा हुआ है..पर ये तो काल्पनिक/तख़इल है..आज से हज़ारो साल पहले कौन कैसी पोशाक पहनता था ये बताना मुश्किल है..
ये तो उस ज़माने की बात है जब बैंक नहीं हुआ करते थे और 500, 1000, 2000 के नोट भी नहीं हुआ करते थे..तब कोई ज़ाती,
मज़हब भी नहीं हुआ करता था..
सीता माता की इस तस्वीर से आपकी "भावना बेन" का "लव जिहाद" हो गया..पर 88,000 करोड़ 500 के नोट RBI से चोरी होने पर इस ज़माने में आपको कोई फ़र्क़ नही पड़ा..
बैंकों के 10 लाख करोड़ से ज़्यादा क़र्ज़ मा'फ़ हो गए तब आपकी कल्पना/तसव्वुर में ये नहीं
आया कि हिंदुस्तान के मुस्तक़बिल का क्या होगा?
क्या आपने राम, सीता, हनुमान, अल्लाह, जीसस किसी को कभी देखा है? ये सारे लोग केवल आपकी ज़ेहन का एक हिस्सा है..पर आपने बैंक, उद्योग और चोर उद्योगपति देखें है..
सीधी - सठ
यदि आप लगातार दो बार काल करने के बाद भी मेरा फोन नहीं उठाते, तो मैं समझ जाता हूँ कि आप अचानक अटैक आने या एक्सीडेंट में मर चुके हैं.
या आप मुझे इग्नोर कर रहे हैं.
अतः मेरा फोन उठाने में सक्षम नहीं.
काल रेज़ीव न करने का मेरे शब्द कोश में कोई अन्य कारण नहीं होता.
ऐसे में भविष्य में कभी मुझे फोन करने का दुस्साहस न करें.
क्योंकि आप ब्लॉक हो चुके होते हैं.
भारत के राष्ट्रपति को भी कभी फोन कीजिये.
आपकी काल उठाई जायेगी. नाम और काम पूछा जायेगा.
आप राष्ट्रपति नहीं हैं.
सिर्फ़ फ़र्ज़ी चौकीदार हैं. और आजकल तो वह भी नहीं हैं.
कभी पोर्न देखी?
हम बिस्तर होते हुए हांफती काल गर्ल भी अपने दूसरे यार का फोन उठाती है.
कहती है कि अभी मैं पार्क में दौड़ लगा रही हूँ. सांस फूल रही है. दस मिनट बाद काल करूँगी.
दस मिनट से ज़्यादा वक़्त लगा, तो बोलेगी, दौड़ अभी पूरी नहीं हुई.
आप वीडियो काल की ज़िद करोगे, तो कहेगी,
अक्सर यदा कदा सड़क पार के शहर लाहौर का ज़िक्र हो भुगत पितामह अटल बिहारी का ज़िक्र हो तो फज्जे के पाये के अतिरिक्त "हवेली रेस्टोरेंट" की चर्चा भी होती है ।
भारतीय मेहमानो को उधर के अधिकारी कम से कम एक बार तो यहाँ डिनर करने का सुझाव अवश्य देते हैं ।
गुरुद्वारा डेरा साहिब, बादशाही मस्जिद और मिनार ए पाकिस्तान स्थित इस रेस्टोरेंट की जगह पहले बदनाम हीरा मंडी का आखरी हिस्सा लगता था जिसे तोड़कर शाहबाज़ ने फ़ूड स्ट्रीट बनवा दिया।
इस रेस्टोरेंट के भूतल पर केवल स्वागत काउंटर ( रिसेप्शन ) है और वहाँ श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी
की बड़ी सी तस्वीर होती थी ( शायद अभी भी हो )
पहली , दूसरी मंजिल पर रेस्टोरेंट है, तीसरी या टॉप फ्लोर पर आधे मे कमरे बने हैं और शेष ओपन रेस्ट्रान है।
सबसे खास बात कि यहाँ सभी स्टॉफ केवल महिलाएं है जो हाथ धुलाने से लेकर खाना परोसने तक की सभी सेवाएं उपलब्ध कराती है ।
यह है वह #मेज़#कुर्सी,जिसपर दशकों पहले बैठे एक #इंसान से आज भी उनके #विरोधी#ख़ौफ़ खाते हैं । वह आज भी डरते हैं कि कहीं इनका विचार,उनके झूठ के आडंबर पर खड़े ताश की पत्तों के महल को उड़ा न दें । वह इस कुर्सी,इस कमरे,इसमें रखी किताबों, इस घर से ख़ौफ़ खाते हैं
और चाहते हैं कि हर वह चीज़ बदल दी जाए,जिससे उनका नाम जुड़ा है मगर क्या यह सम्भव है ।
जब भी देश के पहले #आईआईएम का नाम आएगा,तो उनका ज़िक्र आएगा । #आईआईटी का ज़िक्र आएगा,तो उनका नाम आएगा,#यूनिवर्सिटी,#स्कूल,#कॉलेज की बात होगी,तो उनका नाम आएगा,
न्यूज़ देखकर ज्ञान लेते यह जनाब,वाट्सएप भी इसी गम्भीरता से पढ़ते और फॉरवर्ड करते हैं । इन्हें लगता है कि इनकीं दुनिया भयंकर खतरे में है । यह साहब कुछ आइल्स-फाइल्स-पाइल्स जैसी फिल्मों से बहुत प्रभावित होते हैं और इनका एंटीना खड़ा हो जाता है दूसरों की हरकतों
को जज करने के लिए ।
असल में यह कुछ न्यूज़ एंकर्स को बहुत मंत्रमुग्ध होकर सुनते हैं । इन्हें लगता है कि टीवी के सामने से यदि हटा,तो बम फटा । बेचारे लोग,जो कभी खतरे से बाहर आने ही नही दिए गए । इन्हें कोई डराता है और यह डर जाते हैं, असल में इनके दिमाग की लगाम,ओह सॉरी,
जब दिमाग़ हो,तब तो लगाम हो,हाँ तो यह अभी सीधे साधे यहाँ खड़े हैं और मंत्रमुग्ध होकर चार्ज हो रहे हैं ।
जैसे ही इनके सामने से टीवी न्यूज़,वाट्सएप,पाइल्स जैसी फ़िल्म ख़त्म होती है,यह ज़ोम्बी बनने लगते हैं । नफ़रत से संक्रमित रोगी । देखते रहिए,यह संक्रमित व्यक्ति