#धर्मसंसद
वैसे तो इसका उत्तर आप सबने दे ही दिया है विशेषकर शशिबाला राय ने।नीलम मिश्रा सत्यवती गोविंद वत्स प्रेरक अग्रवाल सबने एक से बढ़कर एक तार्किक उत्तर दिया है पर पिछले दो दिनों से मैंने खुद अपने प्रश्न की समीक्षा नहीं की तो आप सबको यह न लगे कि धर्म चर्चा
केवल औपचारिक तौर पर हो रही है जिसमें प्रश्न तो होता है पर संचालक अपनी ओर से कुछ नहीं कहता। यहां पूतना के पूर्व जन्म की कहानी भी आकर जुड़ती है पर उससे विशेष मतलब नहीं है।सवाल था कि कंस जैसे प्रतापी और भीषण अत्याचारी राजा ने एक महिला को मोहरा बनाकर ऐसा कुकर्म क्यों किया
वह चाहता तो अपनी सेना भी भेज सकता था पर उसने ऐसा क्यों नहीं किया इसका रहस्य कम ही लोगों को पता है। वास्तव में कंस एक क्रूर शासक था जिसकी प्रजा उससे प्रेम नहीं करती थी बल्कि केवल भयभीत रहती थी। ऐसा इसलिए क्योंकि कंस की सहायता और उसकी व्यक्तिगत सुरक्षा के उसके ससुर
जरासंध की एक सैन्य टुकड़ी तैनात रहती थी जिसकी संख्या १००००
थी। फिर नंद गोप केवल मामूली पशुपालक ही नहीं अपितु सारे राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के मुखिया थे।नंद के घर सेना भेजने का अर्थ होता कि प्रजा में विद्रोह फैल जाता जिसे कोई भी तानाशाह शासक स्वीकार नहीं करता
अत्याचारी शासकों सबसे ज्यादा भय प्रजा के संगठित विद्रोह का रहता है और इसीलिए कंस ने गुप्त रूप से कृष्ण की हत्या करने के लिए मथुरा की राक्षसी पूतना को भेजा था इसके पहले भी कंस की आज्ञा से पूतना ने मथुरा में उस दिन अर्थात भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को मध्यरात्रि रोहिणी नक्षत्र में जन्म
लिए हुए सभी बालकों की हत्या कर चुकी थी। पूतना का तरीका भी विचित्र किस्म का था।वह अपने स्तन पर विष का लेप करके नवजात शिशुओं को दूध पिलाने के बहाने मार डालती थी। पर यह दाव अबकी बार नटवर नागर नंद किशोर के साथ नहीं चला। बालक श्रीकृष्ण ने उसके स्तन को मुंह में लेकर
ऐसे खींचा कि उसके प्राण ही निकल गये। धन्यवाद जय

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Jun 18
फिर बैतलवा डाल पर! तेल लेने गई देशभक्ति। देशभक्ति से रूपए पैसे नहीं मिलते तो क्या बुरा किया मैंने जो अपने देशद्रोही एजेंडे पर वापस आ गया।अपना तो सीधा सा फंडा है। चैनल खोला है मोटा माल कमाने के लिए कोई चैरिटी संस्था नहीं खोला है। हिंदुओं तुम मूर्ख ही नहीं बल्कि Image
वज्र मूर्ख हो जो मुझे राष्ट्रवादी पत्रकार समझते हो। पैसे के लिए मैं अपना ईमान बेच सकता हूं।देश जाए भाड़ में। देश बेचना मेरे लिए बाएं हाथ का खेल है। वर्तमान समय में मीडिया में मेरे जैसा शातिर खिलाड़ी दिया लेकर खोजने से भी नहीं पाओगे। मूर्खो मेरे षड्यंत्र को
तब भी नहीं समझ पाये जब पिछले शनिवार को मैंने दलाल रविकिशन को आपकी अदालत में बुलाया था।यह सब मेरे बिजनेस का हिस्सा है। प्रोग्राम पहले से ही तय था कि मैं
तुम्हें अपनी अदालत में बुलाकर तुम्हारा महिमा मंडन करूंगा बदले में तुम फिल्म आदि पुरुष की तारीफ कर देना।
Read 7 tweets
Jun 18
मिलिए भोजपुरी सिनेमा के इस नमकहराम से। नाम है रविकिशन शुक्ला पर टाइटिल शुक्ला लिखता नहीं। काम है भोजपुरी फिल्म में फ़ूहड़ नाचना गाना। अश्लीलता से भरकर भोजपुरी भाषा को बदनाम करता है। घर है मेरे जिले जौनपुर के बिसुई बराईं गांव में।2014 तक यह भाजपा और मोदी को पानी Image
पी पी कर कोसता रहा। राजनीति का कीड़ा काटने लगा तो कभी सपा से तो कांग्रेस से टिकट लेकर विधानसभा लोकसभा का चुनाव लडने लगा। तीन बार लड़ा तीनों बात ज़मानत जब्त हो गई। तकदीर से पल्टा खाया और एक मोटी विरोधी भाजपाई नेता की नजर में आ गया और गोरखपुर से टिकट पा गया जबकि
योगी बाबा नहीं चाहते थे कि यह गोरखपुर से लड़ें पर अनुशासित सिपाही की तरह मन मसोस कर इसे जिता दिया। परंतु दोगला चरित्र इसने अंततः दिखा ही दिया। बालीवुड में एकमात्र यही अभिनेता है जिसने खुलकर आदि पुरुष की प्रशंसा किया है जबकि अक्षय कुमार अजय देवगन तीनों खानों किसी
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Jun 17
#धर्मसंसद
वैसे तो इस प्रश्न का उत्तर बहुत आसान है क्योंकि अब महाभारत की कथाएं गोपनीय नहीं रहीं। बीआर चोपड़ा की महाभारत सबने देखा ही होगा। उत्तर तो वैसे एक पंक्ति का है कि यदुवंशियों के कुल पुरोहित गर्गाचार्य ने नामकरण संस्कार नंद बाबा की गोशाला में किया था। परंतु
यहीं यह प्रश्न भी उठता है कि ऐसा क्यों किया गया। अब तक कंस को महामाया द्वारा पता चल चुका था कि देवकी का आठवां पुत्र जीवित हैं
पर इसकी पुष्टि कैसे हो यह जानने के कंस ने महावन में जगह जगह गुप्तचर नियुक्त किया था जिनका काम यह पता लगाना था कि नंद के घर में पल रहा बालक
क्या सचमुच नंद यशोदा का पुत्र है। ऐसा इसलिए कि कृष्ण जन्म के समय नंद यशोदा वृद्ध हो चले थे। संतान की आशा कम ही थी। वैसे वसुदेव देवकी और नंद सजातीय नहीं थे। वसुदेव वार्ष्णेय थे जैसा कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण के लिए बार बार कहा गया है जिसका अर्थ है वसुदेव वृष्णि वंशी थे
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Jun 17
कांग्रेस की नजर में नेहरू के कार्य
१- भारत खो गया था जिसकी खोज नेहरू ने ही किया था डिस्कवरी ऑफ इंडिया के जरिए।
२- आजादी न मिलती अगर मीरगंज के कोठा नंबर २४ एक होनहार बालक का जन्म न हुआ होता।
३- भारत में जो कुछ भी हुआ है नेहरू द्वारा हुआ जो बचा था वह उनकी पुत्री
ने किया था।
४- संविधान बनाने में किसी का योगदान नहीं था। अकेले नेहरू ने संविधान बना दिया था।
५- नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का आजादी में कोई योगदान नहीं था।वे अंतरराष्ट्रीय युद्ध अपराधी थे।
६- भगतसिंह राजगुरु सुखदेव चंद्रशेखर आजाद उधम सिंह खुदीराम बोस आतंकवादी थे।
इनका और इन क्रांतिकारियों ने आजादी के लिए कोई बलिदान नहीं दिया था।
७- जलियांवाला बाग में डायर ने कुछ नहीं किया था।लोग खुद ही कुएं में गिरकर मर गए थे।
८- पंचशील सिद्धांत से भारत विश्व गुरु बन गया था।
९- चीन ने भारत पर कोई हमला नहीं किया था।
१०- इतने शांतिप्रिय थे
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Jun 17
बचपन में एक कठबैठी सवाल सुनता था कि एक आदमी नदी किनारे बैठा था। उसके एक शेर एक बकरी और एक टोकरी पान था। इन्हें लेकर नदी के उस पार जाना था। शर्त यह थी कि एक बार में एक को ही ले जा सकता है। समस्या यह है कि अगर पहले शेर को ले जाता है तो इस पार बकरी पान खा जाएगी।
पान की टोकरी लेकर जाता है तो शेर बकरी को खा जाएगा। ठीक ऐसी ही समस्या आगामी 23 जून को होने वाली विपक्षी दलों के सम्मेलन की है। कोई त्याग करने को तैयार नहीं है। क्षेत्रीय दल कांग्रेस या फिर किसी अन्य दल को अपने राज्य में स्पेस देने के लिए तैयार नहीं हैं। ममता बनर्जी
का कहना है कि अगर कांग्रेस बंगाल में वाममोर्चे का समर्थन करता है तो फिर चुनाव बाद मेरे समर्थन की उम्मीद न रखे। उधर गिरगिटानंद फर्जीवाल का कहना है कि अगर २०२४ में कांग्रेस दिल्ली और पंजाब में मैदान खाली कर दे तो आप पार्टी भी राजस्थान मध्यप्रदेश में चुनाव नहीं
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Jun 16
इत्र- कौन खरीदता है इत्र? शर्की सुलतानों के समय से ही जौनपुर इत्र की नगरी कहा जाता था। कन्नौज के बाद इत्र के उत्पादन विक्रय में कभी जौनपुर का स्थान विश्व विख्यात था जो अब नहीं रहा।कभी मेरा शहर जौनपुर मक्का मूली इत्र और इमरती के लिए मशहूर हुआ करता था। इनमें से
मक्का मूली तो अब भी होती है। जौनपुरी मक्का अपने स्वाद के लिए जाना जाता है। जौनपुर की मूली अपनी लंबाई मोटाई के लिए जानी जाती है। कभी-कभी जौनपुरी मूली
पांच-पांच फुट लंबी और बीस-बीस किलो वजन की होती है। बेनी प्रसाद साह की इमरती अब भी बनती है पूरे देश में ही नहीं
विदेशों में भी सप्लाई होती है हालांकि अब वह बात नहीं रही जो १५० साल पहले बेनीराम देवीप्रसाद के जमाने में हुआ करती थी।पर इत्र की दुकानें अब नहीं दिखाई देतीं। कभी शहर का चितरसारी मुहल्ला इसका केंद्र हुआ करता था।गली में घुसते ही भिन्न-भिन्न महक के इत्र से पूरा मुहल्ला
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